यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकलने के मामले पर चर्चा
यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकलने (ब्रिग्ज़िट) का मामला जहां इस देश के लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण मामला बना है वहीं यह मामला यूरोपीय संघ की सबसे बड़ी राजनीतिक चिंता बन गया है।
इस अस्पष्ट स्थिति का जारी रहना और यूरोप तथा ब्रिटेन के मध्य कुछ महत्वपूर्ण मतभेदों के समाधान का न होना इस स्थिति के बारे में चेतावनियां देने और चिंता का कारण बना है।
नवंबर 2018 के अंत में लंदन और ब्रसल्ज़ के बारे में इस संबंध में सहमति बनी थी परंतु इसके बावजूद ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरेज़ा मे इस समझौते को हाऊस आफ कामंस में पारित कराने में विफल रहीं। 15 जनवरी 2019 को पहली बार हाऊस आफ कामंस ने इस समझौते के खिलाफ मत दिया। ब्रिटेन की प्रधानमंत्री ने पिछले महीने (ब्रिग्ज़िट) के नये समझौते के संबंध में 12 मार्च को भी कुछ स्पष्टीकरण दिया था और उन्होंने हाऊस आफ कामंस के सदस्यों का आह्वान किया कि वे संशोधित (ब्रिग्ज़िट) के पक्ष में मत दें परंतु हाऊस आफ कामंस के सदस्यों ने दूसरी बार ब्रिग्ज़िट के खिलाफ मतदान किया। 13 मार्च को भी हाऊस आफ कामंस के सदस्यों ने समझौते के बिना यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकलने का विरोध किया। इस प्रकार ब्रिगज़िट का मामला और जटिल रूप धारण कर गया। 29 मार्च 2019 को ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से निकलने की अंतिम तारीख थी परंतु हाऊस आफ कामंस के सदस्यों ने 14 मार्च को ब्रिग्ज़िट की तारीख को आगे बढ़ाने पर सहमति जताई। यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के नेताओं ने 22 और 23 मार्च को होने वाली बैठक में इस बात पर सहमति जताई कि ब्रिग्ज़िट को लागू करने की अवधि 12 अप्रैल 2019 तक बढ़ा दी जाये। इसके बावजूद हाऊस आफ कामंस के सदस्यों ने टेरेज़ा मे की अपेक्षा के विपरीत तीसरी बार 29 मार्च को ब्रिग्ज़िट समझौते को रद्द कर दिया।
इस समझौते के अनुसार यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकल जाने के बाद लगभग एक दो वर्षीय दौर का आरंभ होगा जिसमें ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के बीच जो इस समय व्यापारिक संबंध हैं उसे सुरक्षित रखा जायेगा यहां तक कि दोनों पक्ष मुक्त व्यापार के संबंध में एक समझौते पर हस्ताक्षर करें। दोनों पक्षों ने ब्रिग्ज़िट समझौते के अलावा एक संयुक्त राजनीतिक विज्ञप्ति पर भी हस्ताक्षर किये हैं और कानूनी दृष्टि से उस पर अमल अनिवार्य नहीं है और उसका उद्देश्य ब्रिग्ज़िट के बाद दोनों पक्षों की इच्छाओं व संबंधों की घोषणा है। विभिन्न राजनीतिक धड़ों ने अलग- अलग कारणों से ब्रिग्ज़िट समझौते के खिलाफ मत दिये। ब्रिटेन की सरकार विरोधी मुख्य लेबर पार्टी और यूरोपीय संघ में ब्रिटेन के बाकी रहने के समर्थक प्रतिनिधियों का मानना है कि इस समझौते के अनुसार ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से निकलना इस देश की अर्थ व्यवस्था के लिए हानिकारक है। दूसरी ओर ब्रिग्ज़िट के प्रबन समर्थकों का मानना है कि इस समझौते से ब्रिटेन का हर चीज़ पर नियंत्रण नहीं होगा और वे इस बात से चिंतित हैं कि उत्तरी आयरलैंड की सीमा से संबंधित भाग इस बात का कारण बनेगा कि ब्रिटेन हमेशा यूरोपीय संघ के बंधनों में बाकी रहे। दोनों आयरलैंड के बीच सीमा का मामला ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से निकलने के समझौते का एक जटिल भाग बन गया है और हाऊस आफ कामंस के सदस्यों ने इस समझौते के खिलाफ जो मत दिया था यही मामला उसका एक कारण था। बहरहाल किसी को भी यहां तक कि जो लोग ब्रिग्ज़िट के प्रबल समर्थक हैं उन्हें भी इस बात की अपेक्षा नहीं थी कि ब्रिग्ज़िट को क्रियान्वित करना इतना जटिल और चुनौती भरा हो जायेगा। इन परिवर्तनों के दृष्टिगत लंदन के पास कोई विकल्प नहीं है किन्तु यह कि वह ब्रसल्ज़ से एक बार फिर यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकलने की अवधि में वृद्धि किये जाने का अनुरोध करे।
ब्रिग्ज़िट मामले की अधिक संवेदनशीलता और ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से निकलने के समय और उसके प्रकार के स्पष्ट होने के दृष्टिगत यूरोपीय संघ के नेताओं ने 10 अप्रैल को ब्रसल्ज़ में बैठक की। टेरेज़ा मे ने इस बैठक का मूल लक्ष्य ब्रिग्ज़िट की अवधि में वृद्धि करना बताया और कहा कि ब्रिटेन ने इस संबंध में 30 जून का प्रस्ताव दिया है परंतु संभव है कि ब्रिटेन मई 2019 के अंत में यूरोपीय संसद का चुनाव होने से पहले ही इस संघ से निकल जाये।
यूरोपीय नेताओं ने घंटों बहस और विचार- विमर्श के बाद गुरूवार की सुबह 11 अप्रैल को यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकलने की अवधि में 31 अक्तूबर 2019 तक की वृद्धि कर दी। इस प्रकार यूरोपीय नेताओं ने ब्रिटेन को इस संघ से निकलने के लिए तीन महीने से अधिक का समय दे दिया। यूरोपीय परिषद के के बीच ने ब्रिग्ज़िट के बारे में 31 अक्तूबर 2019 तक सहमति बनी है। उन्होंने कहा कि ब्रिग्ज़िट के संबंध में फैसले का अधिकार पूरी तरह लंदन के पास है, ब्रितानी प्रतिनिधि यूरोपीय संघ से निकलने के समझौते को पारित कर सकते हैं। यदि एसा होता है तो समय में वृद्धि का मामला ही खत्म हो जायेगा। इसी प्रकार ब्रिटेन अपने स्ट्रैटेजिक दृष्टिकोण में पुनर्विचार कर सकता है कि वह पूरी तरह ब्रिग्ज़िट को निरस्त कर सकता है। इसी प्रकार यूरोपीय नेताओं ने इस बैठक में सहमति की है कि वे जून में यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकलने की परिस्थिति की दोबारा समीक्षा करेंगे। ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरेज़ा मे ने यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष डोनल्ड टास्क,,, से भेंट की और इस संबंध में वार्ता का प्रस्ताव दिया है।
महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि यूरोपीय संघ ने उससे भी तीन महीने अधिक के समय पर सहमति जताई है जितने का आह्वान ब्रिटेन की प्रधानमंत्री ने किया था। ब्रिटिन की प्रधानमंत्री ने पिछले सप्ताह एक पत्र लिखकर यूरोपीय संघ के नेताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि ब्रिग्ज़िट के क्रियान्वयन को 30 जून तक विलंबित कर दिया जाये। इस संबंध में फ्रांस के राष्ट्रपति एमानोएल मेक्रां ने ब्रिटेन को अधिक समय दिये जाने का विरोध किया था और 30 जून तक ब्रिग्ज़िट को क्रियान्वित करने के साथ समझौते का आह्वान किया था जबकि यूरोपीय संघ के दूसरे नेता टेरेज़ा मे को अधिक समय देने के पक्षधर थे ताकि यूरोपीय संसद के लिए होने वाले चुनाव के दृष्टिगत उनके पास इस बात का अवसर रहे कि ब्रिटेन की संसद में उन्हें अधिक समर्थन प्राप्त हो जाये।
यूरोपीय संसद का चुनाव सदस्य देशों में 23 से 26 मई 2019 को होने वाला है और अगर इस अवधि तक ब्रिटेन यूरोपीय संघ से निकलने में सफल नहीं हो पाया तो विवशतः उसे भी इस चुनाव को अपने यहां कराना पड़ेगा। प्रतीत यह हो रहा है कि यूरोपीय संघ ने ब्रिग्ज़िट की अवधि में जो सात महीने की वृद्धि कर दी है संभवतः उससे कोई पक्ष प्रसन्न नहीं है। यूरोपीय संघ के अधिकांश सदस्य देश यह चाहते थे कि ब्रिग्ज़िट के मामले को 9 से 12 मई तक विलंबित किया जाये और फ्रांस तीन महीने तक विलंबित किये जाने का इच्छुक था।
ब्रिटेन के भीतर भी लोग ब्रिग्ज़िट के लंबा खिंचने से प्रसन्न नहीं हैं। यही नहीं जो लोग ब्रिग्ज़िट के प्रबल समर्थक हैं वे भी विशेषकर ब्रिटेन की सत्ताधारी पार्टी के प्रतिनिधि इस मामले को तीन महीने तक विलंबित किये जाने के पक्षधर नहीं थे परंतु इस समय कुट वास्तविकता का सामना है। ब्रिग्ज़िट के सात महीने तक विलंबित कर दिया गया है और हो सकता है कि ब्रिटेन को यूरोपीय संसद का चुनाव भी अपने यहां कराना पड़े। ये चीज़ें टेरेज़ा मे से अप्रसन्नता में वृद्धि का कारण बनी हैं और बहुत से लोग उन्हें सत्ता से हटाये जाने के इच्छुक हैं और वे इस संबंध में प्रयास भी कर रहे हैं।
इस समय ब्रिग्ज़िट के बारे में कुछ विकल्प भी हैं जैसे ब्रिटेन की दो प्रमुख पार्टियों के मध्य ब्रिग्ज़िट के संबंध में होने वाली वार्ता का किसी परिणाम पर पहुंच जाना, यूरोप के साथ समझौता करके ब्रिटेन का इस संघ से निकल जाना और ब्रिग्ज़िट के बारे में दोबारा जनमत संग्रह कराया जाना या समझौते के बिना ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से निकल जाना और इस संबंध में मतभेदों का बाकी व जारी रहना।
रोचक बात यह है कि ब्रिटेन की प्रधानमंत्री दूसरी बार ब्रिग्ज़िट के बारे में जनमत संग्रह कराये जाने की मुखर विरोधी हैं। उन्होंने 10 अप्रैल को कहा था कि ब्रिग्ज़िट के बारे में जनमत संग्रह कराये जाने के बारे में उनका दृष्टिकोण परिवर्तित नहीं हुआ है और वह अब भी ब्रिग्ज़िट के बारे में दोबारा जनमत संग्रह कराये जाने की मुखर विरोधी हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि ब्रिग्ज़िट का नतीजा ब्रिटेन के अंदर जो भी हो परंतु यह बात निश्चितरूप से कही जा सकती है कि यूरोपीय संघ अब दोबारा ब्रिग्ज़िट की अवधि में वृद्धि नहीं करेगा। जिस कारण से भी हो अगर लंदन यूरोपीय संघ से निकलने का इरादा त्याग देता है तो वह दोबारा यूरोपीय संघ में रह सकता है और इस संघ से निकलने के लिए उसे किसी ने मजबूर नहीं किया है। यूरोपीय संघ की अदालत के फैसले के अनुसार ब्रिटेन इस संघ से निकलने की तारीख़ से पहले एकपक्षीय रूप से इस संघ से निकलने की अपनी अपील को वापस ले सकता है और इस संघ में बाकी रहने के लिए उसे दूसरे सदस्यों की पुष्टि की आवश्यकता नहीं है और एकमात्र शर्त यह है कि यूरोपीय संघ में बाकी रहने का फैसला डेमोक्रेटिक प्रक्रिया से गुज़रा हो इन अर्थों में कि ब्रिटेन की संसद में यह विषय पारित हुआ हो या एक अन्य जनमत संग्रह हो जिसमें ब्रिटेन के लोग इस संघ में बाकी रहने के पक्ष में वोट दें।
आरंभ में यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकलने का मामला साधारण विषय प्रतीत हो रहा था परंतु समय बीतने के साथ इस संबंध में मौजूद कठिनाइयां स्पष्ट होती गयीं। यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकलने के संबंध में ढ़ाई वर्ष पूर्व जनमत संग्रह हुआ था और उसमें 52 प्रतिशत लोगों ने इस संघ से ब्रिटेन के निकलने के पक्ष में मत दिया था और अब इस मतदान के ढाई वर्ष बाद भी ब्रिटेन की सरकार एसा समझौता नहीं कर सकी है जो सर्वमान्य हो। ब्रिग्ज़िट का मामला इस समय पहले से अधिक जटिल हो गया है और उससे बहुत सी राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा चिंतायें उत्पन्न हो गयी हैं।
आर्थिक रिपोर्टें इस बात की सूचक हैं कि ब्रिग्ज़िट की वजह से ब्रिटेन को अब तक 17 अरब पाउंड की आर्थिक क्षति पहुंच चुकी है और बहुत से टीकाकार ब्रिटेन में निर्धनता में वृद्धि से चिंतित हैं।
ब्रिटेन विश्व की पांचवी बड़ी आर्थिक शक्ति है और इसके यूरोपीय संघ से निकलने से स्वयं इस देश की अर्थ व्यवस्था और यूरोपीय संघ के दूसरे देशों की अर्थ व्यवस्था पर गम्भीर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। ब्रिटेन के सेन्ट्रल बैंक ने कहा है कि अगर यह देश समझौते के बिना यूरोपीय संघ से निकल जाता है तो आठ प्रतिशत इस देश की अर्थव्यवस्था में कमी आ जायेगी। ब्रिटेन की अर्थ व्यवस्था में आठ प्रतिशत की कमी न केवल दूसरे यूरोपीय देशों की अर्थ व्यवस्था में विकास की गति को धीमा कर देगी बल्कि शेयर बाज़ार के गिरने और कच्चे तेल जैसी चीज़ों से बनने वाली वस्तुओं के मूल्यों के कम हो जाने का कारण बनेगा। इस प्रकार अगर यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकलने के संबंध में समझौता हो जाता है और इस संघ से ब्रिटेन के जो संबंध हैं वह कुछ वर्षों में धीरे- धीरे समाप्त हो जाते हैं तो विश्व की अर्थ व्यवस्था पर कम प्रभाव पड़ेगा। दूसरी ओर ब्रिग्ज़िट की वजह से सुरक्षा चिंतायें भी उत्पन्न हो गयी है। समाचार पत्र इंडिपेन्डेन्ट ने 28 जनवरी को लिखा कि यूरोपीय संघ की खुफिया एजेन्सियों की रिपोर्टों के आधार पर ब्रिग्ज़िट, ब्रिटेन में दसियों हिंसात्मक कार्वाहियों और लड़ाइयों का कारण बनेगा और स्काटलैंड और उत्तरी आयरलैंड में स्वतंत्रता के लिए जनमत संग्रह कराये जाने की मांग बढ़ेगी।
बहरहाल ब्रिग्ज़िट की अवधि में वृद्धि करने के संबंध में ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के बीच सहमति हो जाने के बावजूद अमेरिका दोनों पक्षों के मध्य मतभेदों को अधिक करने की चेष्टा में है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने लंदन और ब्रसल्ज़ के मध्य होने वाली सहमति पर प्रतिक्रिया दिखाई और ट्वीट करके यूरोपीय संघ को अमेरिका का निर्दयी भागीदार बताया। उन्होंने कहा कि बहुत गलत है कि यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और ब्रिग्ज़िट के प्रति कड़ाई से पेश आ रहा है। इसी प्रकार उन्होंने ट्वीट करके कहा कि यूरोपीय संघ अमेरिका का निर्दयी भागीदार है कि अलबत्ता यह स्थिति परिवर्तित होगी।
बहरहाल ट्रंप ने अपने क्रिया- कलापों से दर्शा दिया है कि वह किसी समझौते या वचन के प्रति कटिबद्ध नहीं रहते हैं और इसी कारण इस बात की संभावना मौजूद है कि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से निकल जाने के बाद भी ट्रंप सरकार ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार के समझौते पर हस्ताक्षर न करे या इस संबंध में बहुत कठिन शर्तें लगा दे।