तालिब आमुली - 1
महान ईरानी साहित्यकार तालिब आमुली की जीवनगाथा बहुत ही रोचक है।
वे एक युवा कवि थे। प्रेम में विफल रहने के कारण उन्होंने अपनी मातृभूमि छोड़ दी थी लेकिन विशेष बात यह है कि प्रेम में विफल यही कवि अपने जन्मस्थल से हज़ारों मील दूर पहुंचकर ख्याति के शिखर पर पहुंचा। तालिब आमुली के जीवन की कहानी सुनने से यह काल्पनिक कहानी लगती है। यदि सफवीकाल में कवियों के बारे में लिखी जाने वाली जीवनियों को कोई न पढ़े तो उसे तालिब आमुली की कहानी काल्पनिक कहानी लगेगी।
इतिहास की किताबों और कवियों की जीवनियों में तालिब आमुली के पिता के बारे में कुछ अधिक नहीं मिलता है। हालांकि तालिब आमुली के देहान्त के चार वर्षों के बाद उनके बारे में लिखी गई जीवनगाथा में उनका नाम मुहम्मद और पिता का नाम अब्दुल्लाह बताय गया है। बहुत सी पुस्तकों में उनका तख़ल्लुस मुहम्मद तालिब कहा गया है। तालिब-तालेबा के नाम से प्रचलित शेरों में उनका तख़ल्लुस तालिब बताया गया है। इन शेरों में तालिब आमुली की प्रेम कहानी को स्थानीय लहजे में पढ़ा जाता है।
वे लेखक जिन्होंने तालिब आमूली के जीवन के बारे में कुछ लिखा है उन्होंने कहीं पर भी उनके जन्म लेने की तिथि या उनकी आयु के बारे में कुछ नहीं लिखा है। इन सभी का यह लिखना है कि तालिब आमुली, युवाअवस्था में ही ईरान से भारत चले गए थे। भारत जाकर तालिब ने बहुत ख्याति अर्जित की और साहित्य के क्षेत्र में बहुत नाम कमाया। "मैख़ाना" नामक किताब लिखने वाले "मीर अब्दुल ग़नी फ़ख़रुज़्ज़मानी क़ज़वीनी" ने लिखा है कि तालिब आमुली जवानी में ही अपनी मातृभूमि से बाहर चले गए थे। मीर अब्दुल ग़नी ने तालिब आमुली के साथ कुछ समय भी व्यतीत किया है। इसके अतिरिक्त "लताएफ़ुल ख़्याल" लिखने वाले लेखक मुहम्मद आरिफ़ शीराज़ी ने तालिब आमुली के बारे में लिखा है कि सन 1010 हिजरी क़मरी में तालिब, माज़ंदरान से इराक़ चले गए थे। आरिफ़ शीराज़ी ने अपने जीवन का कुछ समय तालिब के साथ गुज़ारा था।
तालिब आमुली ने जो शेर कहे हैं उनसे यह पता चलता है कि वे 19 वर्ष तक आमुल में ही रहे। अगर हम तालिब के दोस्त मुहम्मद आरिफ शीराज़ी की बात को मान लें तो यह बात सिद्ध होती है कि सन 1010 हिजरी क़मरी में तालिब की आयु 19 वर्ष की थी। इससे यह नतीजा निकाला जा सकता है कि तालिब आमूली का जन्म 991 हिजरी क़मरी में हुआ था। इस प्रकार यह पता चलता है कि तालिब आमुली का जन्म आमुल में सन 991 हिजरी क़मरी में हुआ था।
तालिब आमुली के जीवन को चार हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहला हिस्सा उनके जन्म से लेकर 19 वर्ष की आयु तक का है जो उन्होंने आमुल में गुज़ारा। दूसरा हिस्सा वह है जो उन्होंने ईरान के दूसरे शहरों में गुज़ारा जो संभवतः सन 1010 से 1016 हिजरी क़मरी तक का है। तालिब आमुली के जीवन का तीसरा हिस्सा सन 1016 हिजरी क़मरी से आरंभ होकर 1028 तक का है। यह वह काल है जिसके दौरान तालिब, भारत चले गए और वहां पर उन्होंने भारत के कई नगरों में जीवन व्यतीत किया। तालिब आमुली ने सन 1028 हिजरी क़मरी से 1036 हिजरी क़मरी तक भारत में राजदरबार के महाकवि के रूप में रहे और सन 1036 हिजरी क़मरी में तालिब आमुली का निधन हो गया। यह उनके जीवन का चौथा चरण था।
सन 991 हिजरी क़मरी को मुहम्मद तालिब आमुली का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था जो शिक्षित भी था और आर्थिक दृष्टि से भी संपन्न था। जहां पर इस बात की पुष्टि स्वयं मुहम्मद तालिब ने की है वहीं पर उनकी बहन "सत्युन्निसा बेगम" ने भी यही बात कही है। तालिब आमुली की बहन बाद में भारत के राजदरबार में रहीं जहां पर उनको "सदरुन्नेसा" का ख़िताब दिया गया। वे बहुत ही शिक्षित थीं। उनको चिकित्सा विज्ञान का भी ज्ञान था। वे अपने काल की एक जानीमानी चिकित्सक भी थीं। तालिब आमुली की बहन राजदरबार में शहज़ादियों को पढ़ाया करती थीं जिसके कारण उन्हें विशेष सम्मान प्राप्त था।
तालिब आमुली ने बालिग़ होने से पहले अपने काल के प्रचलित ज्ञानों को अर्जित कर लिया था। हालांकि उनके काल में संभ्रांत परिवारों के बच्चों के लिए यह बहुत ज़रूरी होता था। तालिब आमूली ने आमुल के शासक के बारे में जो शेर कहे हैं उनमें एक स्थान पर इस ओर संकेत किया है कि उनको तत्कालीन ज्ञान का भरपूर ज्ञान था। उन्होंने अपने शेरों में इस ओर भी संकेत किया है कि उनकी हैंडराइटिंग या सुलेखन बहुत सुन्दर था। इस बात की पुष्टि उनके काल के कई कवियों ने की है। तालिब आमूली के शेरों को पढ़ने से यह भी पता चलता है कि उन्होंने अपने से पहले वाले कवियों के काव्य संकलन की समीक्षा का काम किया था।
अपने काल के प्रचलित ज्ञानों में दक्षता रखने के बावजूद तालिब आमूली को घुड़सवारी और तीरअंदाज़ी का बहुत शौक था। अपने बहुत से शेरों में तालिब ने स्वयं को एक दक्ष योद्धा के रूप में पेश किया है। वे घुड़सवारी को बहुत पसंद करते थे और इसकी बहुत प्रशंसा किया करते थे। वे अपना अधिकांश समय घुड़सवारी और शिकार में बिताया करते थे। शिकार के लिए वे जंगलों में जाते और वहां पर आम लोगों के बीच अपना समय गुज़ारते थे। इस दौरान वे शेर भी कहा करते थे। उनके इस काल के काव्य का अध्ययन करने से पता चलता है कि उनको साहित्य से कितना गहरा लगाव था और वे अपने काल के हर सामाजिक वर्ग के जीवन से भलिभांति परिचित थे।
तालिब सन 1010 हिज़री कम़री में आमुल से काशान चले गए। उनके बारे में लिखने वालों में से अधिकांश ने यह नहीं बताया कि वे किस उद्देश्य से काशान गए थे किंतु उनकी लिखी बातों को यदि एकत्रित किया जाए तो उससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इस यात्रा से उनका लक्ष्य क्या था। कहते हैं कि तालिब आमुली के कुछ रिश्तेदार काशान में रहा करते थे जहां पर वे बड़े-बड़े पदों पर आसीन थे। यह लोग तालिब की मां के रिश्तेदार थे अर्थात उनकी ननिहाली थे। यह लोग सफ़वी दरबार से भी संपर्क में थे। तालिब आमूल के ख़ालाज़ाद भाई अपने काल के बहुत ही दक्ष चिकित्सक थे। उनका नाम "हकीम रुकनुद्दीन मसूद" था जो "रुकना" के नाम से प्रसिद्ध थे। रुकनुद्दीन मसूद एक अनुभवी चिकित्सक होने के साथ ही बहुत अच्छे कवि भी थे। शाह अब्बास के दरबार में उनको विशेष सम्मान हासिल था। उनको आम लोग भी बहुत ही मान-सम्मान की दृष्टि से देखा करते थे।
तालिब आमुली के ख़ालाज़ाद भाई "हकीम रुकनुद्दीन मसूद" उर्फ "रुकना" अकबर के काल में भारत गए थे। बाद में वे वहीं पर चिकित्सा का काम करने लगे और उन्होंने अपनी शायरी भी जारी रखी। कुछ समय के बाद वे भारत से ईरान वापस आ गए थे। प्राचीनकाल में ख्याति और धन अर्जित करने का सबसे उपयुक्त और प्रभावी रास्ता यह हुआ करता था कि मनुष्य, राजदरबार से निकट हो जाए। उस काल के कवि भी ख्याति और धन के लिए राजाओं के दरबारों से निकट होने के प्रयास करते रहते थे। तालिब आमूली को एसा लगता था कि आमूल में उनको वह सबकुछ नहीं मिल सकता जिसकी उनको इच्छा थी। संभवतः इसीलिए वह अपने नगर से काशान चले गए थे। उनका सोचना था कि काशान में उनके परिजनों के प्रभाव के दृष्टिगत वे शाह अब्बास के दरबार से निकट हो सकते हैं क्योंकि उनके मौसेरे भाई का तो राजदरबार में बहुत प्रभाव था।
बहुत से शोधकर्ताओं का मानना है कि तालिब का आमुल से काशान जाने कारण यह नहीं था कि वे ख्याति और धन की तलाश में थे क्योंकि उनका संबन्ध एक संपन्न परिवार से था। शोधकर्ताओं का मानना है कि उनकी यात्रा का कारण यह था कि उनको अपने प्रेम में विफलता हाथ लगी थी जिससे वे बहुत टूट गए थे। हालांकि किसी ने भी इस बारे में स्पष्ट रूप में कुछ नहीं लिखा है किंतु "तालिब व ज़ोहरा" नामक उनके काव्य को पढ़ने से बहुत कुछ ज्ञात हो जाता है। इस काव्य में लिखे शेर माज़ंदरान में स्थानीय लहजे में पढ़े जाते थे जिनमें प्रेम की विफलता का उल्लेख किया गया है। कहते हैं कि आज भी आमुल तथा नूर नामक शहरों में उनके शेर लोगों के बीच पढ़े जाते थे। इन शेरों में तालिब को प्रेमी और ज़ोहरा को प्रेमिका के रूप में दर्शाया गया है। हालांकि यह बात भी उल्लेखनीय है कि उनके यह शेर लिखित रूप में मौजूद नहीं थे किंतु उनको लिखित रूप देने के प्रयास किये गए और बहुत कोशिशों के बाद तालिब आमुली के लगभग 200 शेरों को एकत्रित किया जा सका। इन शेरों को पढ़कर यह समझा जा सकता है कि प्यार में नाकाम होने के बाद तालिब आमुली अपनी मातृभूमि से भारत चले गए थे।