इस्लाम में बाल अधिकार- 24
बच्चों का सम्मान करने से उनके व्यक्तित्व पर बहुत अच्छा असर पड़ता है।
सम्मान करने से व्यक्ति में ख़ुद के अच्छे होने की भावना जागृत होती है, उसे अपने व्यक्तित्व में भलाई नज़र आती है जिससे उसमें आत्म विश्वास पैदा होता है। बच्चे भी दूसरे लोगों की तरह पसंद करते हैं कि लोग उनसे प्रेमपूर्ण व्यवाहर करें और उनकी शख़्सियत का सम्मान हो। यही वजह है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया हैः अपने बच्चों के साथ कृपालु रहो और उनके साथ किए हुए वादे को पूरा करो। इसी तरह आपका एक और कथन हैः "जब अपने बच्चों को पुकारो तो सम्मान से पुकारो, उनके बैठने के लिए जगह बनाओ और उनके साथ बुरा व्यवहार मत अपनाओ।" इसी तरह पैग़म्बरे इस्लाम का एक और कथन हैः "जो व्यक्ति अपने बच्चों को प्यार करता है, उसके कर्मपत्र में पुन्य लिखा जाता है।"
वास्तव में ये सब बातें बच्चों का सही तरह सम्मान करने की अहमियत को बताती हैं कि जिनका पालन करके मां-बाप अपने बच्चों को अहमियत देकर उनकी आत्मिक व मानिसक ज़रूरतों को पूरा कर सकते हैं।
सम्मान का अर्थ ऐसा पारस्परिक व्यवहार जिससे सामने वाले पक्ष के मन में ख़ुद के मूल्यवान होने की भावना पैदा हो और वह प्रसन्न हो। जो मां-बाप चाहते हैं कि उनके बच्चों का व्यक्तित्व अच्छा बने तो उन्हें बच्चों का हमेशा सम्मान करना चाहिए, उनके वजूद को अहमियत दें। बच्चों का सम्मान उनकी परवरिश में बहुत अहम तत्व की हैसियत रखता है। जिस बच्चे का सम्मान होता है वह अच्छे व्यक्तित्व का स्वामी बनता है। ऐसा बच्चा अपने व्यक्तित्व की रक्षा के लिए बुरे काम से दूर रहेगा।
बच्चों और नौजवानों के अच्छे व्यक्तित्व के लिए ज़रूरी है कि उनके भीतर आत्म-सम्मान जगाया जाए कि इसकी अच्छा व्यक्तित्व बनाने में मूल भूमिका है। मज़बूत आत्म विश्वास, फ़ैसला करने, पहल करने, रचनात्मकता की क्षमता, स्वस्थ विचार और मानसिक स्वास्थ्य का बच्चे में आत्म सम्मान व ख़ुद की अहमियत के बीच सीधा संबंध है। अगर चाहते हैं कि बच्चे अपनी मानसिक क्षमता और निहित क्षमता का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल करें तो ज़रूरी है कि उनका अपने व्यक्तित्व और आस-पास के माहौल के बारे में सकारात्मक दृष्टिकोण हो और वे कोशिश करने के लिए प्रेरित हों।
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि अगर आप बच्चे को सज़ा देना चाहते हैं तो ऐसी सज़ा न दें जिससे वह अपनी बेइज़्ज़ती महसूस करे। शारीरिक सज़ा से इंसान अपनी बेइज़्ज़ती महसूस करता है। शारीरिक सज़ा बच्चे का सम्मान करने के मार्ग में रुकावट है। ज़्चादातर मौक़ों पर बच्चों के रोने का कारण सज़ा से होने वाली पीड़ा नहीं बल्कि बेइज़्ज़ती से होने वाली पीड़ा होती है। इसलिए मां-बाप ऐसा व्यवहार न अपनाएं कि बच्चे को अपनी बेइज़्ज़ती महसूस हो।
बच्चों के व्यवहार में विकार का एक बड़ा कारण मां-बाप का उनके साथ प्रेमपूर्ण व सम्मानजनक व्यवहार न करना है। बच्चे के व्यक्तित्व के विकास का एक मार्ग उसका सम्मान करना है। उसका अपमान करने से बचना है। अगर मां-बाप चाहते हैं कि उनके बच्चे में हीन भावना न पनपे तो उन्हें चाहिए कि बपचन से ही इस अहम बिन्दु पर ध्यान दें अर्थात बच्चे का सम्मान करें। मां-बाप को चाहिए कि अपने व्यवहार और बातचीत से बच्चे के व्यक्तित्व को निखारें। उसके साथ इस तरह व्यवहार करें कि बच्चा ख़ुद को स्वाधीन महसूस करे। जैसा कि हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः "अपने बच्चों का सम्मान करो। उन्हें शिष्टाचार सिखाओ ताकि ईश्वर तुम्हें क्षमा कर दे।"
बच्चे को शारीरिक दंड देना उसके अंदर हीन भावना को जन्म देता है। शारीरिक दंड व्यक्ति या बच्चे का सम्मान करने के मार्ग की रुकावट है।
इस्लामी इतिहास में ख़ास तौर पर पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के आचरण में बच्चों का सम्मान करने की अनेक मिसालें मिलती हैं। एक दिन जब पैग़म्बरे इस्लाम ने लोगों को नमाज़ के लिए बुलाया तो उस समय इमाम हसन अलैहिस्सलाम उनके पास मौजूद थे जो समय बच्चे थे। पैग़म्बरे इस्लाम ने इमाम हसन को अपने बग़ल में बिठा दिया और नमाज़ के लिए खड़े हो गए। पैग़म्बरे इस्लाम ने नमाज़ में एक सजदा बहुत देर तक किया। रावी कहता हैः मैंने सजदे से सिर उठाया तो देखा कि हसन अपनी जगह से उठ कर पैग़म्बरे इस्लाम के कांधे पर बैठे हुए हैं। जब नमाज़ ख़त्म हुयी तो नमाज़ियों ने कहाः हे ईश्वरीय दूत! आज तक आपने ऐसा सजदा नहीं किया, हमे लगा कि आप पर वही अर्थात ईश्वरीय संदेश उतर रहा है। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमायाः वही नहीं आयी थी बल्कि मेरा बेटा हसन सजदे की हालत में मेरे कांधे पर सवार था। मैं बच्चे को उतार कर सजदे को जल्दी से पूरा करना नहीं चाहता था। इतना इंतेजार किया कि बच्चा ख़ुद मेरे कांधे से उतर जाए।
पैग़म्बरे इस्लाम का लोगों के बीच अपने बड़े नाती के साथ यह व्यवहार, बच्चे के सम्मान का स्पष्ट उदाहरण है। पैग़म्बरे इस्लाम ने देर तक सजदा करके अपने नाती के प्रति सम्मान के चरम को पेश किया।
पैग़म्बरे इस्लाम बच्चे के सम्मान में कभी देर तक सजदा करते हैं तो कभी बच्चे के सम्मान में नमाज़ को जल्दी से ख़त्म करते हैं। रवायत में हैः "एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम बैठे हुए थे कि इमाम हसन अलैहिस्सलाम और इमाम हुसैन अलैहिस सलाम उनके पास पहुंचे। उन्हें देख कर पैग़म्बरे इस्लाम उनके सम्मान में खड़े हो गए। बच्चे रास्ता धीरे-धीरे तय कर रहे थे। उन्हें पास पहुंचने में देर हो रही थी कि पैग़म्बरे इस्लाम ने ख़ुद आगे बढ़ कर बच्चों का स्वागत किया। अपनी बाहें खोल दीं और दोनों को अपने कांधे पर सवार करके चल पड़े और फ़रमायाः प्रिय बच्चो! तुम्हारी सवारी कितनी अच्छी है और आप लोग कितने अच्छे सवार हैं और आपके पिता आपसे बेहतर हैं।"
इस तरह पैग़म्बरे इस्लाम ने कई तरह से अपने बच्चों का सम्मान किया। बच्चों के सम्मान मे खड़े होना, उनका इंतेज़ार करना, उनका स्वागत करना और कांधे पर बिठाना। यह सब पैग़म्बरे इस्लाम की ओर से व्यवहारिक सम्मान था और बच्चों को अच्छा सवार कह कर भी उनका सम्मान किया।
पैग़म्बरे इस्लाम अपने सारे बच्चों या दूसरे बच्चों से बहुत प्रेम करते थे। रवायत में है कि बच्चों के साथ कृपालु व्यवहार पैग़म्बरे इस्लाम की विशेषता थी। संगीत
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम बच्चों को सलाम करने में हमेशा पहल करते थे। बच्चों के खेल में निमंत्रण को रद्द नहीं करते थे बल्कि उनके साथ खेलते थे। जब सफ़र से लौटते थे तो बच्चे उनका स्वागत करने दौड़ते थे। पैग़म्बरे इस्लाम भी उनके साथ बहुत मेहरबानी से पेश आते। फिर उन्हें सवार करते और अपने कुछ साथियों को बाक़ी बच्चों को सवार करने के लिए कहते और इस तरह मदीना शहर लौटते थे। इस तरह पैग़म्बरे इस्लाम बच्चों के मन में अपनी मीठी यादें बिठाते थे। अपने बच्चों और दूसरे बच्चों की शख़्सियत का सम्मान पैग़म्बरे इस्लाम का आम आचरण था। इस तरह बच्चों में आत्म विश्वास व आत्म सम्मान की भावना उनमें जागृत करते थे।
पैग़म्बरे इस्लाम और उनके उत्तराधिकारियों ने भी बच्चों के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार अपनाने पर बहुत बल दिया है। इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैः अपनी संतान का सम्मान करो, उन्हें शिष्टाचार सिखाओ ताकि ईश्वर तुम्हें क्षमा कर दे।
बच्चों का सम्मान करने की अनेक शैलियां हैं। कुल मिलाकर यह कि बड़ों का बच्चों के साथ व्यवहार व बातचीत सम्मानजनक तथा उनकी शख़्सियत के विकास व निखार के परिप्रेक्ष्य में होना चाहिए। औलाद का अच्छा नाम रखना भी उनके सम्मान में अहम तत्व है। बच्चों को अच्छे नाम और प्रेमपूर्ण शब्द से पुकारना भी उनके सम्मान के लिए बहुत प्रभावी व्यवहार है। पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के आचरण में मिलता है कि अपने बच्चों को प्रिय बेटे कह कर पुकारते थे। जैसा कि मशहूर रवायत हदीसे किसा में पढ़ते है कि हज़रत फ़ातेमा ज़हरा अपने बच्चों को आंखों की ठंडक और दिल के चैन जैसे शब्दों से पुकारती थीं।
इसी तरह बच्चों से लोगों के बीच में हाथ मिलाना भी उनका सम्मान करना है। ऐसा न करने से उन्हें लगेगा कि उनकी उपेक्षा हो रही है। या यह कि जब बच्चा आपको कोई चीज़ पेश करे या आपका कोई काम करने को कहे और उसमें कोई मुश्किल न हो तो बच्चों के प्रस्ताव को सहृदयता से क़ुबूल करना चाहिए। संगीत
बच्चों से किया हुआ वादा पूरा करना भी उनका सम्मान करने की तरह है। इस्लाम में मोमिन बंदे की विशेषताओं में वादा पूरा करना भी शामिल है। इसके अलावा वादा पूरा करना इस्लामी व मानवीय ज़िम्मेदारी है। जब आप अपनी औलाद से वादा करते हैं कि उन्हें पार्क ले जाएंगे और उस पर अमल करते हैं तो बच्चे को लगता है कि उसकी अहमियत है। इस बात से वह ख़ुश होता है कि उसके साथ किये हुए वादे को आपने अहमियत दी। लेकिन इसके विपरीत अगर आप ने अपने वचन पर अमल न किया तो बच्चे को लगेगा कि आप उसे कोई अहमियत नहीं देते और वह नाराज़ हो जाएगा। जब आप कोई वचन देकर उस पर अमल नहीं करते तो इस काम से आप न सिर्फ़ यह कि बच्चे का सम्मान नहीं करते बल्कि उसे झूठ बोलने की शिक्षा देते हैं।
बच्चों का सम्मान करने का एक और रास्ता उनकी ग़लतियों को क्षमा करना भी है। बच्चे के सम्मान में ज़रूरी है कि जब उससे कोई बड़ी ग़लती हुयी है तो उसे चेतावनी देकर माफ़ कर दें।
अगर बच्चों के साथ सम्मानजनक व्यवहार होगा तो वे बेहतर व्यक्तित्व व मानसिक विकास के साथ समाज में सक्रिय होंगे और अपनी क्षमताओं को निखारेंगे।