Jul १७, २०१९ १८:१५ Asia/Kolkata

हमने ईरान पर सद्दाम के हमले के आरंभिक वर्ष में ईरान की आर्थिक व राजनीतिक समस्याओं का उल्लेख किया था।

हमने बताया था कि किस प्रकार से क्रांति के बाद ईरान के पहले राष्ट्रपति बनी सद्र, क्रांति के लक्ष्यों से दूर होकर, क्रांति के शत्रुओं और आतंकवादी संगठन एमकेओ से निकट हो गये थे जिसकी वजह से इमाम खुमैनी ने बनी सद्र को, सशस्त्र सेना के कमांडर के पद से हटा दिया था जिसके एक दिन बाद, ईरान की संसद ने बनी सद्र की राजनीतिक अयोग्यता का बिल पास कर दिया। ईरान में राजनीतिक संकट के साथ ही, इराक़ का राजनीतिक रुख भी बदल गया। बनी सद्र, उसके घटक और ईरान की इस्लामी क्रांति के शत्रु यह सोच भी नहीं सकते थे कि मामलों की बागडोर इस प्रकार से इमाम खुमैनी के हाथों में रहेगी। उन्हें लगता था कि इमाम खुमैनी , बनी सद्र को सेनाओं के प्रमुख के पद से नहीं हटा पाएंगे क्योंकि सेना बनी सद्र  का समर्थन करेगी किंतु इमाम खुमैनी ने बनी सद्र को इस पद से हटा कर अस्थाई रूप से मेजर फल्लाही को  यह पद दे दिया जो उस समय थल सेना के प्रमुख थे। 

 

ईरानी सेना ने, हर प्रकार के भड़कावे से दूर रहते हुए, इमाम खुमैनी के प्रति अपनी वफादारी की घोषणा की और क्रांति के मूल्य से अपनी प्रतिबद्धता दोहरायी। बनी सद्र को राष्ट्रपति पद से हटाए जाने के बाद, ईरान को एक नये खतरे का सामाना करना पड़ा। बनी सद्र, आतंकवादी संगठन एमकेओ के प्रमुख मसऊद रजवी के साथ फ्रांस भाग गया और उसके बाद से एमकेओ ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के खिलाफ सशस्त्र कार्यवाहियां आरंभ कर दी और विभिन्न हस्तियों यहां तक कि क्रांति के आम समर्थकों की हत्या का क्रम आरंभ कर दिया। बनी सद्र के भागने के एक हफ्ते बाद, एमकेओ, ने जुम्हूरी इस्लामी पार्टी के कार्यालय में बम  विस्फोट किया और इस आतंकवादी घटना में ईरान की इस्लामी क्रांति की 72 महत्वपूर्ण व प्रभावी हस्तियां शहीद हो गयीं। 

बनी सद्र & एमकेओ के प्रमुख मसऊद रजवी

शहीद होने वालों में मुख्य रूप से आयतुल्लाह बहिश्ती थे जो उच्चतम न्यायालय के प्रमुख थे। 27 मई सन 1981 में  तेहरान में जुम्हूरी इस्लामी पार्टी के कार्यालय में बम धमाके के दो महीने बाद अगस्त सन 1981 में एक अन्य आतंकवादी हमले में ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति मुहम्मद अली रजाई और प्रधानमंत्री मुहम्मद जवाद बाहुनर, शहीद हो गये। इन लोगों को प्रधानमंत्री कार्यालय में बम विस्फोट दवारा शहीद किया गया था। इन दो महीनों के दौरान, एमकेओ के आतंकवादियों ने ईरान के बहुत सी राजनीतिक व सैन्य , हस्तियों और आम लोगों की हत्या की। ईरान के उच्चाधिकारियों की हत्या से, दुश्मन को, ईरान की इस्लामी व्यवस्था के खत्म होने की उम्मीद पैदा हो गयी थी। इन दुश्मनों में ज़ाहिर सी बात है, सद्दाम का नाम सब से ऊपर था। इस प्रकार की उम्मीद या भ्रांति की वजह से सद्दाम को इमाम खुमैनी की सही पोज़ीशन , ताक़त और इस्लामी व्यवस्था की मज़बूती का सही रूप से अनुमान नहीं लग पाया। बनी सद्र के त्यागपत्र और एमकेओ के आतंकवादियों द्वारा ईरान के बड़े बड़े नेताओं और अधिकारियों की हत्या के बाद ईरान का राजनीतिक माहौल पूरी तरह से बदल गया। ईरान में राष्ट्रीय एकता बेहद मज़बूत हो गयी और एमकेओ के खिलाफ, जनता पूरी तरह से सक्रिय हो गयी। ईरान के राजनीतिक मंच से लेबरल और एमकेओ धड़ों का अंत हो गया और जनता सीधे रूप से राजनीति में सक्रिय हो गयी। 

 

ईरान में राजनीति में जनता के सक्रिय होने और धर्म से अत्याधिक रूचि के साथ ही साथ राष्ट्रीय एकता इस बात का कारण बनी कि लोग, बढ़ चढ़ कर युद्ध में भाग लें और इस प्रकार से इराक़ के खिलाफ युद्ध में भाग लेने के लिए मोर्चे पर जाने की इच्छा रखने वालों में असाधारण रूप से वृद्धि हो गयी  जिसके परिणाम में देश में राजनीतिक स्थिरता और मोर्चे पर विजय हाथ लगी और उसके परिणाम स्वरूप पूरे देश में जनता और सैनिकों का मनोबल बढ़ा जिससे ईरान के लिए असमान युद्ध में टिके रहना सरल हो गया। इमाम खुमैनी ने उसे महा विजय की संज्ञा देते हुए कहा कि दुनिया और इतिहास में शायद ही एसी कोई मिसाल मिले जिसमें हमें यह नज़र आए कि छोटे छोटे बच्चे, नौजवान, किशोर, युवा, महिलाएं, वृद्ध महिलाएं, दुल्हनें , दूल्हे अर्थात सब लोग इस प्रकार से एक दूसरे के साथ मोर्चे पर उपस्थित हों, आज युद्ध का मोर्चा वह जगह है जहां देश की जनता उपस्थित है। 

मोर्चों पर आम जनता की भारी उपस्थिति के कारण एक साल से भी कम समय में, सामिनुल अइम्मे, तरीक़ुल क़ुद्स, फत्हुल मुबीन और बैतुलमुकद्दम नाम से चार बड़े आप्रेशन किये गये जिनके दौरान, सद्दाम के हमले के आरंभिक दिनों में ईरान के हाथ से निकल जाने वाले 57 प्रतिशत क्षेत्रों को वापस ले लिया गया। इस तरह की विजय की वजह से दुश्मन के सैनिकों के दिल में डर बैठ गया और इसी वजह से सद्दाम की सेना ने ईरान के कई अन्य क्षेत्रों को भो छोड़ दिया। इस प्रकार से इन चारों सैन्य अभियानों के अंत तक 13600 वर्ग किलोमीटर पर फैले ईरान के अधिकृत क्षेत्रों में से 8600 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र स्वतंत्र हो गया और 2500 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को दुश्मन ने खाली कर दिया। लेकिन महत्वपूर्ण सीमावर्ती क्षेत्रों, पहाड़ियों तथा मेहरान व नफ्त शहर जैसे  क्षेत्रों पर आधारित 2500 वर्ग किलोमीटर का अन्य इलाक़ा, दुश्मनों के क़ब्ज़े में ही रहा। 

 

सामिनुल अइम्मे नामक अभियान से आरंभ होने वाले इस चरण में युद्ध के क्षेत्र में बहुत बड़े बड़े परिवर्तन हुए, नयी रणनीति बनायी गयी और ईरान की सशस्त्र सेना और क्रांति संरक्षक बल के सहयोग से संयुक्त अभियान संभव हुआ। नयी रणनीति में सेना और आईआरजीसी के लिए अलग अलग स्थान निर्धारित हुआ और दोनों ने अपनी अपनी जगह पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी प्रकार आईआरजीसी को विकसित किया गया और वह धीरे धीरे एक पूरी सेना में बदल गयी। आईआरजीसी ने 19  महीने पूर्व गोरिल्ला युद्ध से अपना काम आरंभ किया था और उसके पास केवल हल्के हथियार ही थे किंतु धीरे धीरे एक सेना के रूप में उसका गठन होने लगा और फिर उसे विभिन्न हिस्सों में बांट दिया गया और दुश्मन से मिलने वाले हथियार और साधनों का प्रयोग करके तोपखाना बना लिया गया। इस चरण में क्रांति संरक्षक बल ने दुश्मन से हाथ लगे एक टैंक की मदद से बक्तरबंद इकाई की स्थापना की। इस यूनिट ने फत्हुलमुबीन अभियान में भाग लिया। 

 

आईआरजीसी का विकास एक अन्य पहलु से भी ध्यानयोग्य है। युद्ध में शामिल होने के लिए जनता में बढ़ती रूचि के कारण, इन रंगरूटों को, भर्ती करने और उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए एक विभाग की ज़रूरत महसूस हुई। इस आधार पर आईआरजीसी को यह ज़िम्मेदारी सौंपी गयी। इस प्रकार से जैसे जैसे जनता में मोर्चे पर जाने की रूचि बढ़ने लगी, आईआरजीसी में विस्तार होने लगा। आईआरजीसी के विस्तृत होने से, क्रांतिकारी युवाओं की युद्ध में भागीदारी की संभावना और अवसर बढ़ गया और इसके साथ ही आईआरजीसी की गतिविधियों का दायरा बढ़ता गया और सामिनुल अइम्मा आप्रेशन से लेकर फत्हुलमुबीन के दौरान आईआरजीसी के सदस्य, पांच हज़ार से साठ हज़ार तक पहुंच गये। सामिनुल अइम्मे आप्रेशन में, 16 बटालियन, तरीक़ुल कु़द्स में 23, फत्हुल मुबीन में 100 तथा बैतुल मुक़द्दस में 112 बटालियन ने युद्ध में भाग लिया। ईरान के खिलाफ युद्ध के आरंभ के बाद से ईरानी सेना के सब से बड़े अभियान, सामिनुलअइम्मे, में एक अत्यन्त दुखदायी दुर्घटना घटी। यह अभियान ईरान के आबादान नगर की घेराबंदी तोड़ने के लिए किया गया था। इस अभियान में भाग लेने के बाद वापसी के दौरान 30 सितम्बर सन 1981 में एक हवाई दुर्घटना में आईआरजीसी के कई वरिष्ठ कमांडर शहीद हो गये। 

 

इस दुखदायी हवाई दुर्घटना में थल सेना प्रमुख, जनरल फलाही, वायु सेना के प्रमुख ब्रिगेडियर जनरल, फकूरी, रक्षा मंत्री ब्रिगेडियर जनरल नामजू और खुर्रम शहर में आईआरजीसी के कमांडर, जहान आरा, इस विमान में मौजूद थे। सेना और आईआरजीसी के इतने वरिष्ठ कमांडरों की शहादत से सेना और आईआरजीसी पर दुख के बादल छा गये लेकिन इस दुर्घटना से दोनों में एकता और अधिक मज़बूत हो गयी। इसी प्रकार सशस्त्र सेना में देश के लिए जान न्योछावर करने की भावना मज़बूत हुई जिसकी वजह से मोर्चे पर विजय प्राप्त होने लगी अलबत्ता इस नये चरण में हाथ आने वाली विजय में सेना की तकनीकी दक्षता और जनता से बने आईआरजीसी में बलिदान की भावना ने मुख्य भूमिका निभाई। 

 

इस प्रकार हम देखते हैं कि आईआरजीसी ने, ईरान पर इराक़ के हमले के दौरान पैदा होने वाले विशेष परिस्थितियों में अपना काम अत्यन्त छोटे पैमाने पर आंरभ किया जो वास्तव में, ईरान के खिलाफ इराक़ के असमान युद्ध में डटे रहने के लिए ज़रूरी था किंतु ईरानी जनता में इस बल की लोकप्रियता और इस से जुड़ने में युवाओं की असीम रूचि के कारण देखते ही देखते इस बल का दायर बढ़ता गया और धीरे धीरे वह युद्ध के दौरान ही एक शक्तिशाली सेना का रूप धारण करने में सफल हो गयी। ईरान इराक़ युद्ध में विजय का जो सिलसिला शुरु हुआ था उसमें आईआरजीसी की मुख्य भूमिका रही है और इसी बल ने ईरान के खिलाफ दुश्मनों की बहुत सी साज़िशों को विफल बना दिया और ईरान की सशस्त्र सेना और आईआरजीसी की एकता और संयुक्त अभियान ने ईरान के खिलाफ इराक के युद्ध में ऐसे ऐसे कारनामे अंजाम दिये जो ईरान के इतिहास में हमेशा स्वर्णिम अक्षरों में लिखे जाएंगे। (Q.A.)

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