Sep २९, २०२० १८:०८ Asia/Kolkata

ख़ुर्रमशहर की फ़तह को इराक़ के ख़िलाफ़ जंग में इस्लामी गणतंत्र ईरान के प्रतिरोध व सफलता की अमूतपूर्ण गाथा माना जाता है।

 दुनिया के सैन्य मामलों के माहिरों ने भी ख़ुर्रमशहर में इराक़ी सेना के मोर्चे व किलाबंदी को रूस के स्टैलिनग्राड शहर से उपमा दी थी।

लेकिन क्या हुआ सद्दाम का यह स्टैलिनग्राड २४ घंटे के भीतर ढह गया और इस्लामी गणतंत्र के जियालों के हाथ में आ गया। वह शहर जिस पर क़ब्ज़ा करने के लिए इराक़ी सेना ३४ दिन तक पूरी ताक़त से लड़ी ।

ख़ुर्रमशहर को आज़ाद कराने में ईरान के वीर सपूतों की सफलता का एक कारण बैतुल मुक़द्दस अभियान में अपनायी गयी व्यूह रचना थी।

इस चरण में ईरान की सैन्य व राजनैतिक सफलता ने शक्ति के संतुलन को इस्लामी गणतंत्र ईरान के हित में मोड़ दिया र दुनिया के राजनैतिक व सुरक्षा मामलों के विशेष  ने अपनी समीक्षाओं में ईरान को आंतरिक व विदेशी संकटों से निपटने में सफल बताया था और कहा था कि क्षेत्र के देश जल्द ही इन गतिविधियों का असर क्षेत्र में नज़र आएगा। इस चेतावनी को पश्चिमी देशों के राजनेता क्षेत्र में अपने हितो। के ख़तरे में पड़ने की नज़र से देखते थे। यही वजह है कि इस्राईल की अगुवाई में क्षेत्रीय स्तर पर गतिविधियां शुरु हुयीं। वास्तव में इसी दौरान लेबनान पर इस्राईल के अतिक्रमण की शुरुआत हुयी।

बैतुल कुक़द्दस अभथयान को ख़ूज़िस्तान प्रांत में अतिग्रहित इलाक़ों को आज़ाद कराने के लिए इस्लामी गणतंत्र की श्रंख्लाबद्ध रणनीति की अंतिम कड़ी समझा जाता था। उक्त रणनीति में जो चीज़ इस अभियान की अहमियत स्पष्ट करती थी वह रणनैतिक दृष्टि से अहम ख़ुर्रमशहर को आज़ाद कराने का लक्ष्य था।

बहुत से विदेशी मीडिया और राजनैतिक टीकाकार, इराक़ी सेना की तरह ख़ुर्रमशहर की आज़ादी के समय ईरानी जियालों की तेज़ कार्यवाही व अभियान की विशेषताओं को देखकर हैरत में पड़ गए थे। उनकी मुख्य समस्या ईरानी सेना की क्षमता पर भरोसा न होने के अलावा ईरान की सैन्य व राजनैतिक वरीयता को स्वीकार करने में अनिच्छा थी क्योंकि ईरान को ख़ुर्रमशहर को फ़त्ह करने से फ़ार्स की खाड़ी और पश्चिम एशिया के स्तर पर ये वरीयता हासिल होती ।

अल्जीरिया से प्रकाशित अख़बार अश्शाब ने ईरान की सैन्य सफलता के विस्तार पर बल देते हुए इसे निर्णायक मोड़ बताया जो इराक़ी शासन के भविष्य के लिए निर्णायक होगा।

जर्मनी से प्रकाशित अख़बार ड्वेचे वेले ने भी अपने पत्रकार कार्ल बूचाला के हवाले से ख़ुर्रमशहर की फ़त्ह के परिणाम की ओर इशारा करते हुए लिखा था : ईरान के जीतने का ख़तरा और उसके नतीजे में इराक़ में अस्त व्यस्तता और फिर क्षेत्र की व्यवस्ओं के सामने बासी शासन के पतन के बाद ख़तरे पैदा होंगे फिर बड़ी शक्तियों के हस्तक्षेप की संभावना पैदा होगी।

ख़ुर्रमशहर की फ़तह से इस्लामी गणतंत्र ईरान के संबंध में दृष्टिकोण बदल गए। इस्लामी गणतंत्र ईरान पर अतिक्रमण के लिए सद्दाम को उकसाने और उसका समर्थन करने में अमरीका का लक्ष्य ईरान की नवस्थापित व्यवस्था को गिराना था।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के ख़िलाफ़ सद्दाम के हमले का नतीजा अमरीका की कल्पना के विपरीत सामने आया। इस अतिक्रमण की वजह से इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था मज़बूत हुयी और इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक के नेतृत्व में राष्ट्रीय एकता की भावना मज़बूत हुयी। ख़ुर्रमशहर की आज़ादी के बाद ईरानी जनता ने जिस तरह ख़ुशी मनायी वह इस्लामी क्रान्ति के इतिहास में अमर हो गयी।

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