Sep ०२, २०२० १७:१६ Asia/Kolkata

हमने ख़ुर्रमशहर को आज़ाद कराने के लिए बैतुल मुक़द्दस अभियान के दूसरे चरण के बारे में आपको बताया था।

इस अभियान के पहले चरण में हज़ारों ईरानी जियालों ने देश की सबसे बड़ी और हमेशा पानी से भरी रहने वाली कारून नदी को 5 फ़्लोटिंग पुल से पार किया और 25 किलोमीटर पैदल चल कर इराक़ी सेना के मोर्चे के पीछे पहुंच गए। बैतुल मुक़द्दस अभियान की एक विशेषता हज़ारों की संख्या में सैनिकों का फ़्लोटिंग पुल से गुज़रना था जो कारून नदी के ऊपर कुछ घंटों में बन कर तय्यार हुआ था। इस अभियान का दूसरा चरण पहले चरण के 6 दिन बाद 6 मई 1982 को रात साढ़े 11 बजे शुरु हुआ। इस चरण में ईरानी जियालों ने कारून नदी के पश्चिमी छोर पर अहवाज़-ख़ुर्रमशहर मार्ग से सीमावर्ती पट्टी की ओर बढ़ना शुरु किया। दूसरा चरण शुरु होते ही अहवाज़-ख़ुर्रमहशर मार्ग के पश्चिम में तैनात बासी सेना की टुकड़ी पीछे हट गयी क्योंकि वह मदद की ओर से चिंतित थी।

इराक़ी सेना को पीछे हटते वक़्त बड़े बड़े गड्ढों और सुरक्षा के लिए सीमा पर बनी कोट जैसी मुश्किलों का सामना हुआ जिसकी वजह से उसके कई टैंक ख़न्दक़ में गिर गए। इस्लामी गणतंत्र के जियालों की नदी पार करने की टैक्टिक दुश्नम को पूरी तरह हैरत में डालने वाली थी अर्थात दुश्मन सोच भी नहीं सकता था कि ईरानी जियाले कारून नदी को पार करेंगे। इस टैक्टिक ने दुश्मन से पहल का अवसर छीन लिया और उसका मनोबल बहुत गिर गया। ऐसे हालात में दूसरे चरण के अभियान की योजना तय्यार हुयी और इस्लामी जियाले सफलता के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं तक पहुंच गए।

बैतुल मुक़द्दस अभियान के दूसरे चरण के लक्ष्य पूरे होते ही इराक़ की बासी सेना तीन ओर से ख़तरा महसूस कर रही थी। इस तरह इराक़ी सेना की पांचवीं और छठी डिवीजन को मोर्चे के पीछे गंभीर ख़तरे का सामना था। ख़ुर्रमशहर में तैनात इराक़ी सेना को भी मोर्चे के पीछे से ख़तरा था। इसके साथ ही बसरा शहर जिसे बचाने के लिए सुदृढ़ रक्षा मोर्चा नहीं था, वीर ईरानी जियालों के सामने था।

इराक़ी सेना की कमान इसके बाद क्षेत्र की रक्षा जारी रखने और अपने क़ब्ज़े वाले इलाक़ों को फिर से वापस लेने के बीच बौखलाहट का शिकार थी। दूसरे शब्दों में इराक़ी सेना दो क़दमों ख़ुर्रमशहर सहित अतिग्रहित इलाक़े को अपने क़ब्ज़े में रखने या बसरा को बचाने की कोशिश के बीच असमंजस का शिकार थी। अगर बासी सेना के कमान्डर सद्दाम के आदेश के अनुसार ख़ुर्रमशहर सहित अतिग्रहित इलाक़े की रक्षा का फ़ैसला करते तो मौजूदा स्थिति के मद्देनज़र अपने सैनिकों को जान से खोने के साथ साथ बसरा भी खो देते और अगर बसरा को बचाने का फ़ैसला करते तो उन्हें तुरंत अतिग्रहित इलाक़ों में अपने सैनिकों की जान बचाने के लिए क़दम उठाना पड़ता। इराक़ी सेना की कमान ने दूसरा मार्ग अपनाया और सेना की पांचवी और छठी डिविजन को पीछे हटने का आदेश दिया। इराक़ी सेना के इस क़दम का लक्ष्य इन दोनों डिविजनों को घिरने और विनाश से बचाना था। दूसरे यह कि बसरा की रक्षा पंक्ति को अधिक मज़बूत बनाने का रास्ता समतल हो।

इराक़ी सेना की पांचवीं और छठी डिविजन ने 8 मई 1982 को तड़के पीछे हटना शुरु किया। इराक़ी सेना की जल्दबाज़ी की वजह से कुछ इराक़ी सैनिक गिरफ़्तार हुए और बड़ी मात्रा में उनके सैन्य उपकरण रणक्षेत्र में छूट गए। ईरान की क़ुद्स छावनी के सैनिकों ने दुश्मन के पीछे हटते ही तुरंत उसका पीछा किया और अहवाज़-ख़ुर्रमशहर मार्ग तथा जुफ़ैर, हमीद और हुवैज़ा छावनी को आज़ाद कराया। इराक़ी सैन्य टुकड़ी इतनी जल्दबाज़ी में पीछे हटी कि पीछे हटते समय उसके कुछ सैनिक सो रहे थे और समय की कमी की वजह से सूचित न होने की वजह से वह ईरानी सैनिकों के हाथों गिरफ़्तार हो गए।

इराक़ी सेना के पीछे हटने के कारण के बारे में बैतुल मुक़द्दस अभियान के कर्बला छावनी में मुख्य कमान्डर के सहायक यहया रहीम सफ़वी ने एक इंटरव्यू में कहाः हम पहली यल्ग़ार ख़ुर्रमशहर-अहवाज़ मार्ग पर पहुंचे, दूसरी यल्ग़ार में सीमा तक पहुंचे इसलिए दुश्मन को लग रहा था कि हमारी तीसरी यल्ग़ार उसके पीछे हटने का मार्ग बंद कर देगी इसलिए उसने अपने सैनिकों को बचाने के लिए पीछे हटने का फ़ैसला लिया। यहया रहीम सफ़वी बैतुल मुक़द्दस अभियान के इस चरण में बासी सैनिकों के पीछे हटने के दूसरे कारण के बारे में कहते हैः दुश्मन को लग रहा था कि हमारा हमले बसरे पर होगा इसलिए क्षेत्र के उत्तर और दक्षिण में उसके सैनिकों की मौजूदगी का प्रासंगिकता ख़त्म हो गयी थी इसलिए उसने बसरा की रक्षा के लिए अपने सैनिकों को पीछे हटाया।

बैतुल मुक़द्दस अभियान के दूसरे चरण की समाप्ति पर ख़ुर्रमशहर में बासी सेना का प्रतिरोध निरर्थक था क्योंकि वह ईरानी सेना के हाथों घिर चुकी थी। बैतुल मुक़द्दस अभियान के दूसरे चरण में इस अभियान के योजनाकार कमान्डर हज़ारों स्वयंसेवियों की वीरता से अपने सभी लक्ष्य को हासिल करने में सफल हुए। इस अभियान का पहला लक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर पहुंचना और महीनों से देश की भूमि के अतिग्रहण को ख़त्म करना था। दूसरा लक्ष्य ख़ुर्रमशहर की नाकाबंदी कड़ी करना और बासी दुश्मन को अपने सैनिको को इस शहर से क्रमशः निकालने के लिए मजबूर करना था। तीसरा लक्ष्य हुवैज़ा, हमीद छावनी और अहवाज़ के उपनगरीय भाग से दुश्कन की मेकनाइज़्ड पांचवी डिविजन और बक्तरबंद वाली छठी डिविजन को पीछे हटाना था। चौथा लक्ष्य अहवाज़-ख़ुर्रमशहर मार्ग का आज़ाद होना था। पांचवां लक्ष्य ईरानी सेना को रसद पहुंचने के मार्ग की मुश्किल का हल होना था। बैतुल मुक़द्दस अभियान के पहले और दूसरे चरण के दौरान अहवाज़ ख़ुर्रमशहर-अहवाज़ मार्ग के पूरी तरह आज़ाद होने से लगभग 5000 वर्ग किलोमीटर अतिग्रहित इलाक़ा आज़ाद हुआ, बड़ी संख्या में इराक़ी सैनिक मारे गए और 9075 इराक़ी सैनिक क़ैदी बने। बैतुल मुक़द्दस अभियान के दूसरे चरण की समाप्ति, नए हालात के सामने आने और इराक़ी सेना की ज़्यादातर टुकड़ियों के मनोबल गिरने की वजह से केन्द्रीय छावनी कर्बला में सेना और आईआरजीसी के कमान्डरों की तुरंत बैठक हुयी ताकि दुश्मन के पीछे हटने के कारण और नए हालात की समीक्षा हो और अभियान को जारी रखने के बारे में ज़रूरी उपाय अपनाए जाएं। इस बैठक में आईआरजीसी की नस्र छावनी के कमान्डर शहीद हसन बाक़ेरी ने मिली हुयी जानकारी के आधार पर बासी दुश्मन के ख़ुर्रमशहर ख़ाली करने की सूचना दी। आईआरजीसी की फ़त्ह छावनी के कमान्डर ग़ुलाम अली रशीद ने भी यह निष्कर्ष पेश किया कि इराक़ी सेना के कमान्डरों की सारी कोशिश ईरानी सेना की शलम्चे की ओर प्रगति को रोकने पर केन्द्रित थी। इसलिए नए हालात और दुश्मन के फ़रार करने और पीछे हटने के मद्देनज़र यह फ़ैसला लिया गया कि बैतुल मुक़द्दस अभियान का तीसरा चरण तेज़ी से लागू किया जाए। आईआरजीसी के तत्कालीन कमान्डर मोहसिन रेज़ाई ने यह निष्कर्ष निकाला कि दुश्मन के पीछे हटने का लक्ष्य राजनैतिक प्रचार करना है इसलिए जल्द से जल्द तीसरा चरण शुरु करना चाहिए। इराक़ की बासी सेना फ़रार व पीछे हटते हुए शलम्चे में तैनात हो गयी ताकि ख़ुर्रमशहर में तैनात अपने सैनिकों के पीछे हटने के मार्ग को सुनिश्चित बनाए और बसरा की भी रक्षा करे। इस लक्ष्य के लिए उसने नई व्यूह रचना की।

 

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