Jun ३०, २०२१ १४:४१ Asia/Kolkata
  • शौर्यगाथा 39ः वलफ़ज्र ऑप्रेशन सैन्य नज़र से एक कामयाब ऑप्रेशन था जिसके दौरान ईरानी फ़ोर्सेज़ ने हलब्चे और उसके आस-पास के इलाक़े को अपने नियंत्रण में ले लिया

हम प्रोग्राम शौर्यगाथा में 80 के दशक में ईरान पर इराक़ के बासी सद्दाम शासन के हमले के मुक़ाबले में ईरानी राष्ट्र की पवित्र प्रतिरक्षा और इस दौरान ईरानी राष्ट्र के वीर सपूतों के शौर्य के बारे में आपको बता रहे हैं।

21 सितंबर 1987 को रात 11 बजकर 35 मिनट पर अमरीका के दो जंगी हेलिकाप्टरों ने अमरीकी विशेष जहाज़ फ़्रीगेट ‘जैरेट’ के डेक के उड़ान भरी और ईरानी नौसैना के 800 टन भारी लॉजिस्टिक जहाज़ ‘ईरान अज्र’ पर हमला किया जिसमें 5 सेलर शहीद और 2 लापता हो गए। इसके बाद अमरीकी जंगी नौकाओं ने इस ईरानी जहाज़ को रोका और उसमें मौजूद बाक़ी 26 कर्मचारियों को अपने साथ ले गए। अमरीका ने इस हमले के पाँच दिन बाद, इस जहाज़ को फ़ार्स की खाड़ी में धमाके के साथ डुबो दिया। अमरीकी सेना ने इस जहाज़ पर हमले का बहाना समुद्री सुरंग बिछाना और उस पर समुद्री सुरंग का लदा होना बताया। अमरीकी नौकाओं के ज़रिए हुयी जाँच के बाद यह तथ्य सामने आया कि जिस जगह ईरानी जहाज़ पर हमला हुआ वहाँ किसी तरह की सुरंग नहीं बिछायी गयी थी।

8 अक्तूबर 1987 में अमरीकी नौसेना के 2 अपाचि हेलीकाप्टरों ने फ़ार्स की खाड़ी के बीच में फ़ारसी द्वीप के क़रीब ईरान की इस्लामी क्रान्ति सरंक्षक बल आईआरजीसी की 3 स्पीड बोट पर हमला किया। इस दौरान आईआरीजीसी के नौसैनिक वीरों ने भी अमरीका के एक हेलिकॉप्टर को मार गिराया। इस कार्यवाही के बाद, अमरीका के 5 हेलीकाप्टरों ने आईआरजीसी की स्पीड बोट पर हमला किया जिसमें कई नौसैनिक शहीद और घायल हुए और बाक़ी को स्पीड बोट के साथ क़ैदी बना लिया।

19 अक्तूबर 1987 को अमरीका के 4 डेस्ट्रॉयर जहाज़ों ने फ़ार्स की खाड़ी के मध्य भाग में ईरान के रेशादत और रेसालत तेल टर्मिनलों पर इनके कर्मचारियों को इन दोनों टर्मिनलों को ख़ाली करने की चेतावनी देने के बाद, हमला कर दिया। अमरीकी नौसेना ने नौसैनिय तोपख़ाने के हज़ारों गोलों और विस्फोटक कार्यवाही से तेल के इस प्रतिष्ठान को तबाह कर दिया। इस हमले की वजह से रेशादत ऑयल फ़ील्ड के प्लेटफ़ॉर्म में जिससे रोज़ाना 20 से 25 हज़ार बैरल तेल का उत्पादन होता था, ख़तरनाक आग लगी जिससे ईरान को 50 करोड़ डॉलर का नुक़सान हुआ।

इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने उसी दिन मुंहतोड़ जवाब देने का हुक्म दिया। इस हमले के तीन दिन के बाद, अहमदी बंदरगाह में कुवैत के सीआईलैंड टर्मिनल को सिल्कवॉर्म मीज़ाईल से निशाना बनाया जिससे उसे भारी नुक़सान पहुंचा। इस जवाबी हमले से पश्चिम के आर्थिक व राजनैतिक हल्क़ों में चिंता फैल गयी। यह हमला, ईरान के तेल के प्लेटफ़ार्मों पर अमरीकी हमले और कुवैत सरकार के फ़ार्स की खाड़ी में अमरीका को सैन्य मौजूदगी का निमंत्रण देने का उचित जवाब था।           

अहमदी बंदरगाह की जेटी पर हमले से, अमरीका की गीदड़ भपकी की हवा निकल गयी और कुवैत का रोज़ाना तेल निर्यात घट कर 12 लाख बैरल तक पहुंच गया। इस कार्यवाही के बाद, पेन्टगॉन के एक अधिकारी ने एलान किया थाः रेगन सरकार इस हमले से चिंतित है, लेकिन किसी तरह की जवाबी कार्यावही की कोशिश में नहीं है।” फ़ार्स की खाड़ी में अमरीकी जंगी बेड़ों की बड़े पैमाने पर मौजूदगी और बड़ी ताक़तों की ईरान पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 598 को मानने के लिए दबाव की कोशिशों के बीच इराक़ ने ईरान के तेल के प्रतिष्ठानों व आर्थिक केन्द्रों पर हवाई हमले बढ़ा दिए और वह ईरान के तेल के निर्यात को रोकने के लिए ईरान के तेल के टर्मिनलों पर लगातार हमले करता रहा।

दूसरी ओर अमरीका संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ईरान के ख़िलाफ़ हथियारों की पाबंदी लगाने के लिए प्रस्ताव पास कराने की कोशिश करता रहा। रणक्षेत्र में अमरीकी सरकार, इराक़ के लंबी दूरी तक उड़ान भरने वाले बमबार फ़ाइटर जेट के सुरक्षित आसमान मुहैया करने की कोशिश करती रही। ये बमबार विमान फ़ार्स की खाड़ी में ईरान के तेल के प्रतिष्ठानों पर हमले करते थे। ये विमान अमरीका, पूर्व सोवियत संघ और उनके घटकों ने इराक़ को दिए थे। इस तरह अमरीकी सरकार, इस कोशिश में थी कि फ़ार्स की खाड़ी के दक्षिणी देशों के तेल टैंकरों के ख़िलाफ़ ईरान के जवाबी हमलों को रोके। ऐसे हालात में ईरान, यूएन को यह बात मनवाने की कोशिश में था कि पहले वह हमलावर का निर्धारण और उसका एलान करे, तो ईरान संघर्ष विराम और प्रस्ताव 598 को मानने के लिए तय्यार है।

रणक्षेत्र के लिए ईरान ने इराक़ पर जंग के मोर्चे पर भरपूर वार करने और जंग के मोर्चे के लिए ज़रूरी साज़ो सामान बनाने के लिए सैन्य उद्योग में विस्तार की नीति अपनायी। ईरानी फ़ोर्सेज़ की नए ऑप्रेशन की तय्यारी के दिनों में इराक़ी बमबार विमानों ने 1988 के फ़रवरी महीने के आख़िरी दिनों में तेहरान की रिफ़ाइनरी पर हमला किया। इसके दो दिन बाद, इराक़ के बासी शासन ने पहली बार तेहरान में चार जगहों को ज़मीन से ज़मीन पर मार करने वाले मीज़ाईल से निभाना बनाया। उसी दिन ईरान ने भी जवाबी कार्यवाही करते हुए बग़दाद पर स्कड-बी मीज़ाईल मारे। इराक़ के मीज़ाइल हमले और ईरान के जवाबी हमले जारी रहे।          

इराक़ के बासी शासन को दो बड़ी ताक़तों और उनके घटकों की ओर से हथियारों व सैन्य साज़ो सामान की आपूर्ति में किसी तरह की सीमित्ता नहीं थी और तेहरान सहित ईरान के शहरों पर फ़ायर होने वाले मीज़ाइलों की तादाद भी, ईरान की ओर सेर फ़ायर होने वाले मीज़ाइलों की तुलना में बहुत ज़्यादा थी। सद्दाम के पश्चिमी और पूर्वी समर्थकों ने उसे लंबी दूरी के मीज़ाईल देकर, जंग के रूख़ को सद्दाम के हित में मोड़ने का इरादा ज़ाहिर कर दिया था। इराक़ के बासी शासन ने यह फ़ैसला किया था कि वह उस वक़्त तक ईरान के आवासीय इलाक़ों पर हमले करता रहेगा जब तक ईरान प्रस्ताव 598 मान नहीं लेता। ईरान ने जवाबी हमले की रणनीति के साथ ही शहरों में बंकर बनाने और शहर छोड़ कर जाने वालों के लिए ठिकाना मुहैया करने का फ़ैसला लिया।    

ईरान का मानना था कि जंग का बुनियादी हल मोर्चों पर ऑप्रेशन जारी रहने से हासिल होगा। दक्षिणी इलाक़े में बड़े पैमाने पर अचानक ऑप्रेशन के रास्ते में  पैदा हुयी रुकावट के मद्देनज़र, 1988 में जनवरी के मध्य में देश के पश्चिमोत्तर में सद दरबंदी ख़ान इलाक़े में ऑप्रेशन करने का निश्चित फ़ैसला लिया गया। कई महीनों के अध्ययन के बाद, आईआरजीसी ने वलफ़ज्र-10 सैन्य ऑप्रेशन की योजना तय्यार की और यह ऑप्रेशन देश के पश्चिमी इलाक़े में 13 मार्च 1988 को तड़के 2 बजे शुरू हुआ। इस ऑप्रेशन का कोडवर्ड “या रसूलल्लाह” था।

इराक़ी सेना के दक्षिणी मोर्चों पर अधिक चौकन्ना रहने के मद्देनज़र, वलफ़ज्र-10 ऑप्रेशन अचानक बहुत तेज़ी से शुरू हुआ। ऑप्रेशन शुरू होते ही ईरानी फ़ोर्सेज़ की कार्यवाही में तेज़ी और दुश्मन को भनक न लगने की वजह से, पहले से तय 90 फ़ीसदी लक्ष्य हासिल हुए, जो बहुत हैरत की बात है। यह ऑप्रेशन एक हफ़्ते तक चला।

वलफ़ज्र ऑप्रेशन सैन्य नज़र से एक कामयाब ऑप्रेशन था जिसके दौरान ईरानी फ़ोर्सेज़ ने हलब्चे और उसके आस-पास के इलाक़े को अपने नियंत्रण में ले लिया। इस ऑप्रेशन का लक्ष्य इराक़ के सुलैमानिया शहर की सप्लाई को काटना था। कुछ ऐसे तत्व थे जिसकी वजह से ईरानी वीर, सुलैमानिया शहर पर नियंत्रण करने का लक्ष्य हासिन नहीं कर पाए। इस ऑप्रेशन के दौरान, 90 टैंक और बक्तर बंद वाहन, मरुस्थल में इस्तेमाल होने वाली 100 तोपें, 800 वाहन, 6000 हल्के हथियार, जंग में हाथ लगे। इसी तरह 5440 इराक़ी गिरफ़्तार हुए जिनमें 600 अफ़सर रैंक के थे। इसी तरह 400 क्रान्ति विरोधी तत्व भी गिरफ़्तार हुए। बलफ़ज्र-10 ऑप्रेशन के संबंध में एक अहम बात यह कि इस ऑप्रेशन के दौरान इराक़ के बासी शासन ने ईरान के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर केमिकल हथियार से हमले किए।

 

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