Jul ३०, २०१९ १२:४३ Asia/Kolkata

इस कार्यक्रम श्रंखला में हम 1980 के दशक में इराक़ के सद्दाम सरकार की ओर से इस्लामी गणतंत्र ईरान पर थोपे गए आठ वर्षीय युद्ध के दौरान ईरान की जनता के महान प्रतिरोध और साहस व क़ुरबानी के भावना के बारे में बता रहे हैं।

हमने इस्लामी गणतंत्र ईरान के पहले राष्ट्रपति और सशस्त्र बलों के कमांडर इनचीफ़ बनी सद्र को बर्खास्त किए जाने की पूरी प्रक्रिया और इसके कारणों के बारे में बताया। आज हम सामेनुल अइम्मा नाम के सैनिक आप्रेशन के बारे में बताएंगे। यह सैनिक आप्रेशन आबादान शहर को सद्दाम की सेना के परिवेष्टन से बाहर निकालने के लिए किया गया। यह सैनिक आप्रेशन सद्दाम के आठ वर्षीय युद्ध के जवाब में ईरान की जनता के प्रतिरोध के इतिहास की बड़ा महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।

 

जब यह बात साबित हो गई कि बनी सद्र के इस्लामी क्रान्ति के दुशमनों से संबंध हैं तो इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी के पास बनी सद्र को राष्ट्रपति पद से हटाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा। जब बनी सद्र को राष्ट्रपति पद से बर्खास्त कर दिया गया तो इस्लामी क्रान्ति से उसके संबंधों की हक़ीक़त और भी खुलकर सामने आ गई। बनी सद्र देश से भाग निकला। उसके फ़रार के बाद लगातार कई बम धमाके हुए जिनमें इस्लामी गणतंत्र ईरान के दर्जनों वरिष्ठ अधिकारी शहीद हो गए। न्यायपालिक प्रमुख डाक्टर बहिश्ती, देश के दूसरे राष्ट्रपति मुहम्मद अली रजाई और प्रधानमंत्री मुहम्मद जवाद बाहुनर इन शहीदों में शामिल थे। इस्लामी क्रान्ति के शत्रुओं ने यह योजना बनाई थी कि इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के वरिष्ठ अधिकारियों को क़त्ल कर दिया जाए और पूरे देश में विशेष रूप से राजधानी तेहरान में लगातार बम धमाके करवाएं जाएं ताकि इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था और इस्लामी क्रान्ति विफल हो जाए। मगर नतीजा वह नहीं निकला जो दुशमन चाहते थे। इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था की इमारत कमज़ोर होने के बजाए और मज़बूत हुई। जनता के बीच इन घटनाओं ने एकता व एकजुटता को और भी मज़बूत किया। जनता अपने देश के अधिकारियों के साथ मिलकर पूरी मज़बूती से दुशमनों के सामने डट गई।

क्रान्ति की महान हस्तियों की शहादत का जनता की भावनाओं और दृढ़ता पर गहरा असर हुआ और आम जनमानस क्रान्ति की रक्षा के मोर्चों पर अधिक मज़बूती से खड़ा हो गया। इस तरह इस मुक़ाबले के मैदान में बिल्कुल अलग प्रकार के हालात पैदा हो गए। इससे पहले जब बनी सद्र का शासनकाल था तो पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स को नज़रअंदाज़ किया जाता था। उसे ज़रूरत के संसाधन और उपकरण उपलब्ध नहीं कराए जाते थे। इस महत्वपूर्ण फ़ोर्स की उपेक्षा की जा रही थी। बनी सद्र को पद से हटाया गया तो पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स की ताक़त और क्षमताओं में तीव्र गति से विस्तार हुआ। इसका नतीजा यह हुआ कि जनता के बीच मौजूद क्षमताओं को व्यवस्थित रूप में प्रयोग करने का रास्ता साफ़ हो गया।

यह सारे परिवर्तन इस बात का कारण बने कि इस्लामी गणतंत्र ईरान अपने रक्षा उद्देश्यों में तेज़ी से आगे बढ़ने लगा और सभी मोर्चों पर उसे सफलताएं मिलने लगीं। बहुत कम समय में पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स ने अपनी चार शक्तिशाली ब्रिगेड तैयार कर ली। इनमें से हर ब्रिगे में 8 से 12 बटालियनें शामिल थीं जो आप्रेशनल कौशल से युक्त थीं। यह समय बहुत नाज़ुक था। क्योंकि इराक़ की सद्दाम सरकार ने पश्चिमी ब्लाक और पूर्वी ब्लाक दोनों का समर्थन हासिल कर लिया था बल्कि इन दोनों ब्लाकों ने ख़ुद ही सद्दाम को समर्थन दिया था ताकि वह ईरान की इस्लामी क्रान्ति और इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था को ध्वस्त कर दे। इलाक़े की अरब सरकारें भी सद्दाम की भरपूर मदद कर रही थीं।

बनी सद्र को बर्खास्त किया गया तो पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स और सेना के बीच आपसी सहयोग और समन्वय का रास्ता भी साफ़ हो गया इस सहयोग के नतीजे में सामेनुल अइम्मा नामक सैनिक आप्रेशन को उच्च रक्षा परिषद से मंज़ूरी मिली और यह आप्रेशन अंजाम दिया गया। इस आप्रेशन के तहत सेना और पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स ने युद्ध की रणनीति बनाने और उसे व्यवहारिक बनाने में नई तरकीबों का प्रयोग किया। सामेनुल अइम्मा आप्रेशन 27 सितम्बर 1981 को आधी रात को एक बजे शुरू किया गया इस आप्रेशन का कोड वर्ड था नसरुम्मिनल्लाह व फ़तहुन क़रीब अर्थात मदद ईश्वर की ओर से है और विजय नज़दीक है। दो दिन तक यह आप्रेशन जारी रहा और इस छोटी सी अवधि में ही ईरानी जियालों ने आप्रेशन के सारे निर्धारित लक्ष्य हासिल कर लिए। इस तरह आबादान की नाकाबंदी तोड़ने का इमाम ख़ुमैनी का आदेश व्यवहारिक हो गया। कुछ बिंदुओं पर इराक़ी फ़ोर्सेज़ ने प्रतिरोध दिखाया जिससे यह साफ़ हो गया कि शत्रु सेना किसी हद तक सतर्क है लेकिन इराक़ी कमांडरों को ईरान की सैन्य शक्ति और क्षमताओं के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं थी वे ईरानी सेना को कमज़ोर समझ रहे थे। अपनी इसी समझ के आधार पर उन्होंने तैयारियां की थीं यही कारण था कि इराक़ी फ़ोर्सेज़ जो आबादान की घेराबंदी किए हुए थीं ईरानी जियालों के हमलों के सामने टिक नहीं पाईं। इस आप्रेशन में दक्षिणी ईरान में कारून नदी के पूरब के इलाक़े इराक़ी फ़ोर्सेज़ के क़ब्ज़े से आज़ाद हो गए और ईरानी सेनाएं नए आप्रेशन के लिए और भी मज़बूत स्थिति में आ गईं। 150 वर्ग किलोमीटर का इलाक़ा इराक़ी फ़ोर्सेज़ के क़ब्ज़े से आज़ाद करा लिया गया इसमें अहवाज़-आबादान रोड तथा माहशहर आबादान रोड भी शामिल था। इस आप्रेशन के नतीजे में इराक़ी सेना के डेढ़ हज़ार से दो हज़ार सैनिक हताहत और घायल हुए जबकि 1800 इराक़ी सैनिकों को क़ैदी बना लिया गया। इराक़ी सेना के 90 टैंक और बक्तरबंद गाड़ियां ध्वस्त हो गईं, 100 टैंक, 60 बक्तरबंदी गाड़ियां तीन लोडर और 150 वाहन ईरानी जियालों के नियंत्रण में आ गईं। सद्दाम की सेना के तीन विमानों और एक हेलीकाप्टर को भी ध्वस्त कर दिया गया। इस सामेनुल अइम्मा सैनिक आप्रेशन में ईरानी जवानों को बहुत बड़ी सफलता मिली। इस आप्रेशन के नतीजे में इराक़ी सेना को पहुंचने वाले नुक़सान से सद्दाम को एसा गहरा आघात पहुंचा कि उसने आक्रोश में आकर अपनी सेना के 7 वरिष्ठ कमांडरों को गोलियों से भून दिया।

 

सामेनुल अइम्मा सैनिक आप्रेशन उन चार बड़े सैनिक आप्रेशनों में से एक था जो इराक़ी सेना के क़ब्ज़े में चले जाने वाले ईरानी इलाक़ों को आज़ाद कराने के लिए किए गए लेकिन सामेनुल अइम्मा सैनिक आप्रेशन का महत्व यह है कि इस आप्रेशन ने लड़ाई में एक नया अध्याय जोड़ दिया। इसके बाद लड़ाई पुरानी स्थिति से नई स्थिति में पहुंच गई। समीकरणों में एक बड़ा बदलाव आया। पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स के उस समय के प्रमुख जनरल मुहसिन रेज़ाई इस बारे में कहते हैं कि सामेनुल अइम्मा सैनिक आप्रेशन एक महत्पूर्ण मोड़ है। यह युद्ध के नए चरण का आरंभ बिंदु था। दूसरे चरण के युद्ध में यह आप्रेशन अपार आत्म विश्वास का स्रोत साबित हुआ। आबादान की नाकाबंदी टूटने और सामेनुल अइम्मा सैनिक आप्रेशन की सफलता के दूरगामी और बहुआयामी परिणाम निकले इन्हें आंतरिक और विदेशी दो भांगों में बांटा जा सकता है। आंतरिक रूप से यह परिणाम निकला कि जब सामेनुल अइम्मा सैनिक आप्रेशन परी सफलता के साथ अंजाम दे दिया गया तो सारे मोर्चों पर ईरानी फ़ोर्सेज़ का मनोबल बहुत बढ़ गया। ईरानी सेनाएं नए जोश और उत्साह के साथ सारे मोर्चों पर आगे बढ़ने लगीं। राजनैतिक दृष्टि से यह हुआ कि सामेनुल अइम्मा सैनिक आप्रेशन के बाद ईरान अधिक संगठित हो गया। इस आप्रेशन के एक हफ़्ते के भीतर ईरान की जनता ने तीसरे राष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा लिया और आयतुल्लाह ख़ामेनई को इस्लामी गणतंत्र ईरान के तीसरे राष्ट्रपति के रूप में चुना। यह चुनाव दूसरे राष्ट्रपति मुहम्मद अली रजाई की शहादत के कारण आयोजित हुआ था।

 

ईरान में राजनैतिक पटल पर स्थिरता आई और इस्लामी गणतंत्र ईरान के अधिकारियों के बीच एकता और एकजुटता मज़बूत हुई। दुसरी ओर ईरान ने विदेशी मामलों में और विदेश नीति के पटल पर अधिक दृढ़ता और आत्म विश्वास के साथ अपनी बात रखी। सामेनुल अइम्मा सैनिक आप्रेशन का एक नतीजा यह निकला कि फ़ार्स खाड़ी के दक्षिणी तट पर स्थित अरब देशों ने फ़ार्स खाड़ी सहयोग परिषद का गठन किया। इसका उद्देश्य इराक़ की सद्दाम सरकार की मदद करना और ईरान की इस्लामी क्रान्ति के बढ़ते प्रभाव को रोकना था। दूसरी तरफ़ इस्लामी गणतंत्र ईरान पर दबाव बढ़ाने के लिए फ़ार्स खाड़ी के इलाक़े में अमरीका की गतिविधियां बढ़ गईं। अमरीका इस कोशिश में था कि इलाक़े की तानाशाह अरब सरकारों की मदद करे।

अमरीका ने पश्चिमी एशिया के इलाक़े में अपना समुद्री बेड़ा भेजा और साथ ही ईरान के ख़िलाफ़ क्षेत्र और विश्व स्तर पर प्रोपैगंडा शुरू कर दिया। अमरीका ने ईरानोफ़ोबिया फैलाया और इलाक़े के देशों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश की कि उन्हें इस्लामी गणतंत्र ईरान से ख़तरा है और इस ख़तरे से उनकी रक्षा केवल अमरीका ही कर सकता है। जार्डन की राजधानी अम्मान में अरब देशों की बैठक में सद्दाम ने भी दावा किया कि हम सीमा विस्तार का इरादा नहीं रखते हमारा इरादा तो केवल यह था कि अपने शहरों से ईरान के ख़तरे को दूर करें। हालांकि हक़ीक़त यह है कि सद्दाम ने 22 सितम्बर को ईरान के ख़ोज़िस्तान इलाक़े पर क़ब्ज़ा करने के उद्देश्य से हमला किया था। सद्दाम सरकार का लक्ष्य यह था कि वह ईरान की इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था का तख़्ता उलट दे। सद्दाम तो यहां तक दावा कर रहा था कि वह एक सप्ताह में इस्लामी गणतंत्र ईरान की राजधानी तेहरान पहुंच जाएगा और तेहरान में बैठ कर प्रेस कान्फ़्रेन्स करेगा। सद्दाम अपना यह सपना कभी पूरा नहीं कर सका बल्कि उसे भारी पराजय का मुंह देखना पड़ा। यही नहीं धीरे धीरे हालात बदल गए और सद्दाम जो पश्चिमी और पूर्वी ब्लाकों तथा इलाक़े की अरब सरकारों की आंख का तारा बना हुआ था सबका दुशमन नंबर एक बन गया। सद्दाम का अंजाम भी बहुत बड़ा पाठ है और इस्लमी गणतंत्र ईरान का उज्जवल भविष्य भी अनेक देशों के लिए एसा उदाहरण है जिसे गर्व के साथ अपनाया जा सकता है। इस्लामी गणतंत्र ईरान ने दृढ़ता का इतिहास रचा  और सद्दाम ने धोखेबाज़ शक्तियों पर भरोसा करने की मिसाल पेश की। यदि ध्यान से देखा जाए तो आज भी इस प्रकार की सरकारें नज़र आएंगी जो अमरीका पर उसी तरह भरोसा कर  रही हैं जिस तरह किसी समय सद्दाम करता था। इसका मतलब यह है कि उन्होंने सद्दाम के अंजाम से पाठ नहीं लिया। हालांकि उन्हें पाठ ज़रूर लेना चाहिए क्योंकि संभव है कि फिर वह खुद दूसरों के लिए पाठ बन जाएं।   

 

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