Nov ०३, २०१९ १६:५९ Asia/Kolkata

हमने आपको यह बताया कि फ़िरदोसी जिस दौर में जी रहे थे उस दौर में प्राचीन ईरानी कहानियों व किवदन्तियों का ज़ोर था।

ऐतिहासिक घटनाएं और प्राचीन कहानियां लोगों के बीच मौखिक रूप में प्रचलित थीं। किवदन्तियां सुनाने वालों की बड़ी मांग थी। लोग रूस्तम, सियावश और इस्फ़न्दयार जैसे बड़े पहलवानों की कहानियों में बहुत रूचि लेते थे। इसी तरह हमने यह बताया कि मौखिक कहानियों के अतिरिक्त कहानियां और घटनाएं भी लिखित रूप में मौजूद थीं और बहुत से कलाकार उन्हें संकलित व बयान करते थे। लिखित रचनाओं में ज़रीर, अर्दशीर बाबकान के कारनामे, बहराम चूबीन नामे सहित कुछ दूसरी किताबें उल्लेखनीय हैं।

फ़िरदोसी ने अपने शाहनामे के लिए मौखिक व लिखित कहानियों सहित सभी प्रकार के मौजूद स्रोतों से लाभ उठाया है। वह किवदन्तियों, कहानियों, यादगार बातों, दुख व पछतावे की घटनाओं को ईरानी राष्ट्र की शौर्यगाथा अर्थात शाहनामे में संकलित कर उसे अमर बनाने में सफल हुए।

मौखिक कहानियां, ख़ुदायनामक, दक़ीक़ी का शाहनामा, अबू मंसूरी का शाहनामा और कुछ दूसरी किताबों से फ़िरदोसी ने शाहनामे के संकलन में लाभ उठाया है।

फ़िरदोसी से पहले दक़ीक़ी ने शाहनामे को पद्य में लिखना शुरु किया लेकिन मौत की वजह से उनका यह काम अधूरा रह गया। ऐसा लगता है कि फ़िरदोसी को दक़ीक़ी के जीवन में भी प्राचीन कहानियों से लगाव था जिसे उन्होंने इकट्ठा किया है। फ़िरदोसी को पता था कि दक़ीक़ी शाहनामा कह रहे हैं और जब उन्हें दक़ीक़ी की मौत का पता चला तो फ़िरदोसी ने उनके अधूरे काम को पूरा करने का बीड़ा उठाया और उसे अंजाम तक पहुंचाया, लेकिन उस समय फ़िरदोसी के पास अबू मंसूरी का शाहनामा नहीं था। अबू मंसूरी का शाहनामा तूस के शासक अबू मंसूर मोहम्मद बिन अब्दुर्रज़्ज़ाक़ के आदेश से चौथी हिजरी क़मरी के आरंभ में कुछ विद्वानों द्वारा संकलित हुआ। दक़ीक़ी ने इस किताब से मदद लेते हुए कहानियों को पद्य का रूप दिया।

फ़िरदोसी ने अपने शाहनामे में अबू मंसूर को प्राचीन कहानियों का पहला संकलनकर्ता बताया और कहा कि इन कहानियों को ज़रतुश्ती धर्मगुरुओं के ज़रिए संकलित किया गया।     

फ़िरदोसी ने शाहनामे की प्रस्तावना में इस बारे में विस्तार से बताया है कि अबू मंसूर ने किस तरह शाहनामा संकलित किया है। इस प्रस्तावना से पता चलता है कि अबू मंसूरी ने जिस स्रोत को आधार बनाकर शाहनामा संकलित किया है वह ख़ुदायनामक था जो बिखरे हुए रूप में विभिन्न लोगों के पास था। अबू मंसूर अब्दुर्रज़्ज़ाक़ ने पहलवी भाषा के मुख्य स्रोतों से लाभ उठाने के लिए चार ज़र्तुश्ती धर्मगुरुओं को जिनकी उम्र ज़्यादा थी, हेरात, तूस, सीस्तान और निशापूर से बुलवाया। इन धर्मगुरुओं ने इस बारे में जो कुछ पहलवी भाषा के लिखित स्रोतों या मौखिक रिवायतों का ज्ञान था, उसे इकट्ठा कर शाहनामे को गद्य रूप में संकलित किया।

शोधकर्ताओं का मानना है कि फ़िरदोसी ने शाहनामे के संकलन में अबू मंसूरी के शाहनामा और ख़ुदायनामक जैसे स्रोत से फ़ायदा उठाया है। इस संबंध में उन्होंने और भी स्रोतों से फ़ायदा उठाया है। मिसाल के तौर पर किसानों व ग्रामवासियों के बीच रुस्तम के परिवार की जो कहानियां प्रचलित थीं उसके थोड़े भाग का अबू मंसूर के शाहनामे में उल्लेख मिलता है। बाक़ी भाग को फ़िरदोसी ने लिखित व मौखिक रिवायतों के आधार पर पद्य का रूप दिया है। रुस्तम-सोहराब की कहानी जो फ़िरदोसी के शाहनामे में बहुत अहमियत रखती है, लगता है कि अबू मंसूर के शाहनामे में मौजूद नहीं थी और फ़िरदोसी ने उसे बुद्धिमान किसान की बात को आधार बनाकर बयान किया है। फ़िरदोसी पर शोधकर्ता वाले समकालीन शोधकर्ता व साहित्य के शिक्षक डॉक्टर मनूचेहर मुर्तज़वी के अनुसार, फ़िरदोसी ने इस तरह की कहानियों के लिए संभवतः पहलवानों की कहानियों और मौखिक स्रोतों से लाभ उठाया है।         

फ़िरदोसी की जीवनी पढ़ने से पता चलता है कि उन्होंने प्राचीन ईरान की कहानियों और उपन्यासों के संकलन के लिए अत्यधिक कोशिश की। उन्होंने इन कहानियों की प्राचीन प्रतियों की खोज में बहुत से शहरों की यात्रा की और अपनी पूरी संपत्ति इसी मार्ग में ख़र्च कर दीं। उन्होंने अबू मंसूरी के शाहनामे की प्रति हासिल करने के लिए बुख़ारा की यात्रा की। बुख़ारा के उनके सफ़र को ईरानी इतिहास व शौर्यगाथा से संबंधित विश्वस्नीय स्रोतों की प्राप्ति के लिए किए गए अहम सफ़र में कहा जा सकता है।

शाहनामे के संकलन के अस्ल स्रोत की पहचान के लिए इस बिन्दु पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि फ़िरदोसी ने शहनामे की कहानियों के संकलन के लिए बड़े वर्णनकर्ताओं और बुद्धिमान लोगों का उल्लेख किया है। शाहनामे में विभिन्न जगहों पर इन वर्णनकर्ताओं की ओर फ़िरदोसी का संकेत यह दर्शाता है कि सामानी शासन काल के अंतिम दौर और ग़ज़्नवी शासन काल के आरंभ तक स्रोत, मौखिक रूप से एक नस्ल से दूसरी नस्ल तक पहुंचते रहे। इन मौखिक रवायतों व कहानियों के उद्धरण और उन्हें पद्य का रूप देने से पता चलता है कि फ़िरदोसी ने इतिहास और प्राचीन ईरान की कहानियों व रवायतों को सुरक्षित रखने का कितना बड़ा कारनामा किया है।

शाहनामा ईरान की पौराणिक कथाओं, पहलवानी की घटनाओं, ऐतिहासिक रवायतों, शौर्यगाथा, संगीत और वर्णन पर आधारित लघु व बड़ी कहानियों व किवदन्तियों का अद्भुत समूह है। फ़िरदोसी ने ईरानी क़ौम के ईरान में इस्लाम के आगमन तक के वृत्तांत के परिप्रेक्ष्य में इन सभी कहानियों को बहुत ही संतुलित अंदाज़ में पद्य का रूप दिया है।

स्पष्ट सी बात है कि फ़िरदोसी के इस महाउद्देश्य के लिए सभी लिखित, मौखिक व ऐतिहासिक स्रोतों से लाभ उठाना ज़रूरी था।संगीत

शाहनामे को पढ़ने से पता चलता है कि फ़िरदोसी ने जिन स्रोतों को इस्तेमाल किया है वह तीन प्रकार के हैं।

पहला समूह ईरान के इतिहास के आधिकारिक स्रोत हैं जिनसे तबरी, मसऊदी और इब्ने नदीम जैसे इस्लाम के आरंभिक शताब्दियों के लेखकों व इतिहासकारों ने लाभ उठाया है।

दूसरा समूह कहानी के स्वतंत्र स्रोतों का है, जिसमें रुस्तम, साम गर्शास्ब, इस्फ़न्दयार, कीन सियावश, बीजन और मनीजे की कहानियां  हैं।

तीसारा स्रोत मौखिक रूप से लोगों में मशहूर कहानियों व रवायतों का है जिन्हें शाहनामे में विभिन्न जगहों पर मुख्य कहानी को पूरा करने, या उसे सुंदर व कोमल रूप देने के लिए संपूर्ण कहानी के रूप में शामिल किया गया है।

अंत में आपको बताते चलें कि फ़िरदोसी पर शोध करने वालों का यह मानना है कि शाहनामे की विस्तृत समीक्षा से यह निष्कर्श निकलता है कि कहानियों और रवायतों की मूल विषयवस्तु में फ़िरदोसी का हस्तक्षेप उन्हें शायरी व शौर्यगाथा के सुंदर सांचे में ढालने या उन्हें तत्वदर्शी या विश्व दर्शन का आयाम देने तक सीमित है।

 

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