ख़तरनाक आतंकवादी गुट दाइश के गठन और उसकी गतिविधियों के बारे में चर्चा
पिछले दो दशकों के दौरान पूरे विश्व में विशेषकर मध्यपूर्व में आतंकवाद का अभूतपूर्व विस्तार हुआ है।
अमरीका की ओर से दाइश विरोधी व्यापक अभियान चलाने के बावजूद दाइश का प्रभाव बढ़ता ही जा रहा है। आइए देखते हैं कि इस घटना के पीछे की कहानी है क्या?
अमरीका में घटने वाली ग्यारह सितंबर सन 2001 की घटना को अमरीकी विदेश नीति में मील के पत्थर के रूप में देखा जाता है। तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज डब्लू बुश ने आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक संघर्ष के बहाने आक्रामक रूप अपनाते हुए अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ पर हमले कर दिये। अमरीकी हमले के बाद इराक़ का अतिग्रहण, कई आतंकवादी गुटों के गठन की भूमिका बना जिसमें एक दाइश भी है। दाइश ने इराक़ और सीरिया में जघन्य अपराध अंजाम दिये। दाइश के अपराधों और अत्याचारों ने मध्ययुगीन की याद ताज़ा कर दी। दूसरी ओर सीरिया में सन 2011 में आरंभ होने वाली अशांति का दुरूपयोग करते हुए अमरीका ने सीरिया की सरकार को गिराने के लिए कई सशस्त्र गुटों का समर्थन किया जिनमें दाइश भी शामिल था। असद की वैध सरकार को गिराने के लिए अमरीका ने आतंकवादी गुट दाइश को विशेष सुविधाएं उपलब्ध करवाईं।
अमरीका की दृष्टि में आतंकवाद के दो रूप हैं। अमरीका ने आतंकवाद जैसी बुराई को आरंभ में ही दो हिस्सों में बांट दिया था। अच्छा आतंकवाद और बुरा आतंकवाद। अमरीकी अधिकारियों के अनुसार अच्छा आतंकवाद और अच्छे आतंकवादी वे हैं जो अमरीका और उसके घटकों हितों की पूर्ति के लिए मारकाट करें। इन हितों को पूरा करने के लिए आतंकवादी, अत्याचार और हिंसा की किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। इस प्रकार की हिंसक कार्यवाहियां करने के बावजूद वे वाशिग्टन की नज़र में अच्छे आतंकवादी माने जाएंगे। अब चूंकि सीरिया में दाइश, अमरीकी हितों की पूर्ति के लिए काम कर रहा था इसिलए वह स्वाभाविक रूप से अमरीका की नज़र में अच्छा एवं उपयोगी गुट था इसलिए वाइट हाउस के अनुसार वह अच्छे आतंकवाद का हिस्सा है।
दूसरी ओर वे लोग जो अमरीकी वर्चस्व और उसके हितों के विरोध में क़दम उठाते हैं वे बुरे आतंकवादी माने जाते हैं। वे लोग और गुट जो अमरीका और उसके घटकों जैसे इस्राईल के विरुद्ध कोई भी काम करते हैं वे बुरे आतंकवादियों की सूचि में चले जाते हैं। इस अमरीकी परिभाषा के हिसाब से हिज़बुल्लाह, अंसारुल्लाह, हमास और जेहादे इस्लामी जैसे प्रतिरोधी संगठन बुरे आतंकवाद की लिस्ट में रहेंगे। यही कारण है कि आतंकवाद के बारे में अमरीका, विशेषकर वहां के वर्तमान राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के क्रियाकलापों में खुला विरोधाभास पाया जाता है। उदाहरण स्वरूप आतंकवादी गुटों और आतंकी प्रक्रिया को आर्थिक सहायता पहुंचाने वाले देश सऊदी अरब को ट्रम्प का खुला समर्थन प्राप्त है जबकि यही अमरीका, आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष के बारे में आए दिन बयान देता रहता है।
एसे में यह कहा जा सकता है कि आतंकवाद के संदर्भ में अमरीकी नीतियों और व्यवहार में खुला विरोधाभास पाया जाता है। इस बारे में एक राजनीतिक टीकाकार lvan lpolitov का कहना है कि हालिया वर्षों में अमरीका का लक्ष्य, आतंकवाद और अतिवाद का प्रयोग करके पश्चिम एशिया के देशों को कमज़ोर करना है ताकि वहां पर अतिवाद अधिक फैल सके। वास्तविकता यह है कि आतंकवाद के विस्तार का प्रमुख कारण उसके बारे में अपनाया जाने वाला दोहरा मानदंड है। ऐसे में यह बात कही जा सकती है कि अमरीका और सऊदी अरब जैसे देश जबतक यह देखते हैं कि उनके हितों को बाक़ी रखने में अतिवाद, प्रभावी सिद्ध होगा उस समय तक संसार के विभिन्न क्षेत्रों में आतिवाद एवं आतंकवाद को रोका नहीं जा सकता। ठीक उसी प्रकार जैसे वाशिग्टन और रेयाज़ ने परस्पर सहयोग से आतंकवादी गुट दाइश को अस्तित्व दिया।
सन 2011 और उसके बाद अरब जगत में जन आन्दोलनों के फ़ूट पड़ने के बद, पैदा हुए के कारण कुछ देशों में अतिवाद और आतंकवाद की भूमिका अधिक उपलब्ध हुई। यह विषय सीरिया में अधिक स्पष्ट रूप में दिखाई दिया। इस विषय ने सीरिया में दाइश जैसे क्रूर आतंकवादी गुट को फलने-फूलने में अधिक सहायता की। इसी बीच पश्चिमी देशों और उनके अरब घटकों ने अपने हितों को साधने तथा अपने दृष्टिगत लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष के स्थान पर आतंकवादी गुटों विशेषकर दाइश के समर्थन की नीति निर्धारित की। इन देशों ने एसे आतंकवादी गुट का हर प्रकार से समर्थन किया जिसने सीरिया एवं इराक़ में खुलकर हिंसक और अमानवीय कार्यवाहियां अंजाम दीं।
2011 में अरब देशों में आरंभ होने वाले जन आन्दोलनों से उत्पन्न हुई अशांति के दौरान दाइश ने सीरिया में जन्म लिया। इसका आरंभ तो इराक़ में बास पार्टी के बचे-खुचे तत्वों और तकफ़ीरी आतंकवादियों के मिश्रण से हो चुका था किंतु बाद में संसार में फैले हुए इनके तत्वों ने सीरिया में एकत्रित होकर निःसंकोच रूप से हिंसक एवं अमानवीय कार्यवाहियां आरंभ कर दीं। सीरिया संकट के आरंभ से ही अमरीका ने पश्चिम के ठेकेदार के रूप में अपने पश्चिमी घटकों के साथ मिलकर अपने दृष्टिगत अच्छे आतंकवादियों अर्थात दाइश और उसकी विचारधारा से मेल खाने वाले गुटों का व्यापक समर्थन किया। अमरीका के नेतृत्व में पश्चिम का लक्ष्य सीरिया की लोकतांत्रिक सरकार का तख्ता पलटना था। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पश्चिम ने खुलकर आतंकवादी गुटों का प्रयोग किया।
डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने चुनावी अभियान के दौरान एक भाषण में यह बात स्वीकार की थी कि दाइश को अस्तित्व देने में अमरीका का ही हाथ था। उनके अनुसार दाइश को बनाने में पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और पूर्व विदेशमंत्री हिलैरी क्लिंटन की भूमिका रही है। ट्रम्प ने जनवरी 2016 में कहा था कि वे अर्थात ओबामा और क्लिंटन झूठे हैं जिन्होंने दाइश को जन्म दिया है। उन्होंने कहा कि इन दोनो ने ही दाइश जैसे आतंकवादी गुट को बनाया है।
ट्रम्प का यह बयान, रूस के राष्ट्रपति सहित विश्व के कुछ नेताओं की इस बात की पुष्टि करता है जिसमें दाइश के गठन में वाइट हाउस की भूमिका की ओर संकेत किया गया है। विभिन्न देशों विशेषकर रूस ने अलग-अलग अवसरों पर यह कहा है कि अमरीका, दाइश का समर्थक रहा है। रूसी राष्ट्रपति विलादिमीर पुतीन कह चुके हैं कि पश्चिमी एशिया में अमरीका और पश्चिम की वर्चस्ववादी कार्यवाहियां, इस क्षेत्र में आतंकवादी गतिविधियों के बढ़ने का कारण बनी हैं। यह एक वास्तविकता है कि अमरीका ने पश्चिमी एशिया में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए ही व्यवहारिक रूप में दाइश को मज़बूत करने में सहायता की है।
विडंबना यह है कि वर्तमान समय में अरमीका, तथाकथित दाइश विरोधी अन्तर्राष्ट्रीय अभियान का मुखिया बना हुआ है जबकि वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग है। सीरिया में अमरीकी क्रियाकलाप दर्शाते हैं कि सन 2011 से 2014 के बीच अमरीका ने दाइश की बहुत सेवा की है। यह वह काल है जब दाइश का नियंत्रण इराक़ के भी कुछ क्षेत्रों पर था। सन 2014 में दाइश विरोधी तथाकथित अन्तर्राष्ट्रीय गठबंधन के गठन के बाद भी अमरीका का लक्ष्य दाइश जैसे आतंकवादी गुट की सुरक्षा करना रहा है। इसका मुख्य लक्ष्य, दाइश को सीरिया की सरकार और उसके घटकों के विरुद्ध प्रयोग करना रहा है। जानकारों का कहना है कि सन 2015 में ऐसे कई अवसर थे जब अमरीका ने विमान या हैलिकाप्टरों के माध्यम से इराक़ में दाइश को हथियार पहुंचाए। यह बात इस हद तक सही है कि कुछ अमरीकी पायलटों ने भी बताया है कि कई बार एसा हुआ कि वे दाइश के आतंकवादियों और उनके ठिकानों को बड़ी सरलता से निशाना बना सकते थे किंतु उनको इस बात की अनुमति नहीं दी गई। उनके अधिकारियों ने उन्हें ऐसा करने से मना किया।
इसका एक स्पष्ट उदाहरण सीरिया के पालमीरा नगर पर दाइश का क़ब्ज़ा है। जब सीरिया की सेना ने हलब को स्वतंत्र करा लिया और वे तेज़ी से आगे की ओर बढ़ रहे थे एसी स्थिति में अमरीका की ओर से हरी झंडी मिलने के बाद दाइश ने पालमीरा पर नियंत्रण कर लिया। इस घटना ने सिद्ध कर दिया कि अमरीका और दाइश के बीच समन्वय पाया जाता है। अमरीका की ओर से दाइश के समर्थन की एक अन्य मिसाल यह है कि सितंबर 2016 में सीरिया के दैरुज़्ज़ूर क्षेत्र में सीरिया की सेना पर दाइश के आतंकवादियों के हमले से पहले अमरीकी विमानों ने सीरिया के सैन्य ठिकानों को लक्ष्य बनाया जिसके बाद दाइश ने हमला कर दिया।
केवल सीरिया और इराक़ में ही नहीं बल्कि अफ़ग़ानिस्तान में भी अमरीका, दाइश को मज़बूत बना रहा है। रूस ने कई बार इस बात पर आपत्ति जताई है कि अमरीका, अफ़ग़ानिस्तान में खुलकर दाइश की सहायता कर रहा है। इस बारे में रूस के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़ाख़ारोवा ने कहा है कि हमें जो पुष्ट रिपोर्टें मिली हैं उनके आधार पर कहा जा सकता है कि अमरीका और नेटो, अफ़ग़ानिस्तान में दाइश की शाखा की सहायता कर रहे हैं। इस संदर्भ में अज्ञात हैलिकाप्टरों द्वारा दाइश के आतंकवादियों को अफ़ग़ानिस्तान में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने और उनके लिए हथियारों की आपूर्ति जैसी बातों का उल्लेख किया जा सकता है।
इस हिसाब से मास्को का मानना है कि एसे में अफ़ग़ानिस्तान में विदेशी सैनिकों की उपस्थिति के वास्तविक लक्ष्यों पर प्रश्न चिन्ह लग जाएगा। जिस प्रकार से दाइश अफ़ग़ानिस्तान के भीतर फैलते चले जा रहे हैं उससे इस बात का भय उत्पन्न हो गया है कि दाइश, केन्द्रीय एशिया के देशों तक अपनी पहुंच बना लेंगे जहां से वे रूस का रुख़ कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में क्षेत्र को गंभीर ख़तरे का सामना करना पड़ सकता है।
रूस की केन्द्रीय कमान के कमांडर एलेक्ज़ेंडर लेपिन ने दाइश की पराजय के बाद इस गुट के आतंकवादियों के अन्य देशों की ओर जाने के बारे में कहा है कि दाइश ने केन्द्रीय एशिया के देशों पर विशेष ध्यान केन्द्रित कर रखा है। उन्होंने कहा कि हमारी जानकारी के हिसाब से अफ़ग़ानिस्तान में इस समय लगभग दस हज़ार आतंकी मौजूद हैं जिनमे अधिकांश दाइश के आतंकवादी हैं। यह आतंकवादी केन्द्री एशिया के देशों में तथाकथित "ख़िलाफ़त" की स्थापना करना चाहते हैं। रूसी कमांडर का कहना था कि वर्तमान में 5000 आतंकी उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद हैं। अफ़ग़ानिस्तान के कुछ पड़ोसी देशों में अस्थिरता और अशांति उत्पन्न करने के लिए वाशिग्टन ने युद्धग्रस्त इस देश में भी दाइश के समर्थन को अपनी कार्यसूचि में सर्वोपरि रखा है।
अमरीका की ओर से दाइश विरोधी गठबंधन का नेतृत्व करने के दावे के बावजूद यह सिद्ध हो गया है कि अमरीका का यह दावा झूठा है। वास्तव में दाइश को बनाने और उसको फैलाने में अमरीका की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। विशेष बात यह है कि दाइश विरोधी तथाकथित अन्तर्राष्ट्रीय गठबंधन के गठन से पहले योजना यह थी की दाइश को सीमित कर दिया जाए और जब भी उसकी ज़रूरत हो तो उसका वहां पर प्रयोग किया जाए।