Dec ०३, २०१९ १३:१५ Asia/Kolkata

फ़िरदौसी ने शाहनामे में ख़ुद इस बात का उल्लेख किया है कि इस किताब की रचना में उन्हें तीस साल का समय लगा और इसके लिए उन्हें बहुत कठिनाइयां सहन करनी पड़ीं। वे कहते हैं।

“इन तीस बरसों में मैंने बहुत अधिक कष्ट उठाए हैं, इस पारसी के माध्यम से मैंने ईरान को जीवित कर दिया है, मैंने पद्य द्वारा एक ऐसे बड़े महल का आधार रखा है जिसे तेज़ हवाओं और बारिश से कुछ नुक़सान नहीं होगा। मैं अब नहीं मरूंगा और जीवित रहूंगा क्योंकि मैंने कथनों के बीज बो दिए हैं।“

फ़िरदौसी की काव्य रचना शाहनामे, ईरानी राष्ट्र की कई हज़ार वर्षीय विरासत का खज़ाना और ईरानियों के विचारों, इतिहास व संस्कृति का विश्वकोष है। यह किताब सासानी काल तक ईरानी जनता की सबसे पुरानी राष्ट्रीय यादों, सामाजिक परिस्थितियों, विभिन्न वर्गों के जीवन की स्थितियों, परंपराओं, संस्कारों, रीति-रिवाजों और भावनाओं का संकलन है। यह किताब मुख्य रूप से ईरान के इतिहास और ईरानी राष्ट्र के इतिहास में आने वाले उतार-चढ़ाव के बारे में बताती है। फ़िरदौसी के शाहनामे में पौराणिक, ऐतिहासिक और पहलवानी के विभिन्न कालों और इसी प्रकार विभिन्न व्यक्तित्वों का चित्रण किया गया है। शाहनामे का पौराणिक काल, पहले शासक क्यूमर्स से शुरू होता है और फ़रीदून के उदय के साथ ही उसका अंत हो जाता है। कावे आहनगर के आंदोलन से लेकर रुस्तम की मौत तक की घटनाएं, शाहनामे के पहलवानी वाले भाग में शामिल हैं जबकि ऐतिहास भाग में ईरान के कुछ हिस्सों पर सिकंदर के क़ब्ज़े और सासानी सरकार का उल्लेख किया गया है।

फ़िरदौसी ने ईरान के पारंपरिक इतिहास को अपने पास मौजूद पौराणिक कथाओं, ऐतिहासिक घटनाओं और प्रचलित क़िस्सों के आधार पर पद्य का रूप दिया है। भलाई व बुराई के बीच कभी न ख़त्म होने वाला संघर्ष, न्याय के पालन और अन्याय व अत्याचार से दूरी और मनुष्य की आयु व संसार की अस्थिरता जैसे विषयों से फ़िरदौसी का मानवीय चेहरा और इसी तरह शाहनामे की दार्शनिक व नैतिक प्रवृत्ति स्पष्ट होती है। शाहनामे, ईरान का इतिहास और राष्ट्रीय शूरवीरता की कहानी है। फ़िरदौसी की कहानियां, कुछ आयमों से कुछ विश्वस्त अरबी स्रोतों की कहानियों से समानता रखती हैं और कुछ अन्य आयामों से उनके विपरीत हैं। इन अंतरों का कारण यह है कि फ़िरदौसी ने लोककथाओं और लोगों के सीनों में मौजूद कहानियों को एकत्रित किया है और फिर उन्हें अबूमंसूर के गद्य में लिखे गए शाहनामे व अन्य स्रोतों के साथ रख कर इस्तेमाल किया है और एकजुट बना दिया है।

शाहनामे मूल रूप से चार मुख्य भागों और एक आंशिक भाग पर आधारित है। पौराणिक भाग, पौराणिक शूरवीरता का भाग, पहलवानी का भाग, इतिहास का भाग और अलग कहानियों का भाग जो इस किताब का आंशिक भाग समझा जाता है। यह कहानियां, जो विदित रूप से फ़िरदौसी की अपनी पसंद पर चुनी गई हैं, पौराणिक भाग के अलावा शाहनामे के सभी हिस्सों में दिखाई देती हैं। इतने अधिक विविधतापूर्ण भागों वाले इतने बड़े काव्य संकलन में फ़िरदौसी ने ऐतिहासिक जुड़ाव को यथासंभव सुरक्षित रखा है। शाहनामे का विषय, ईरानी राष्ट्र के इतिहास का सविस्तार वर्णन है और इसमें पौराणिक, पहलवानी और ऐतिहासिक घटनाएं शामिल हैं।

शाहनामे की कहानियों पर ग़ौर करने से पता चलता है कि इस किताब में विजय या पराजय व दुर्भाग्य, स्पष्ट व गुप्त कारणों व कारकों से अलग नहीं है। शासकों व पहलवानों का अंजाम प्रायः उनकी व्यक्तिगत अच्छाई व बुराई, सौभाग्य व दुर्भाग्य और सच व झूठ का परिणाम होता है। फ़िरदौसी की इस महान काव्य रचना में नैतिक व्यवस्था पूरी तरह से स्पष्ट व निर्धारित है। ऐसे अवसरों पर जब शाहनामे के स्रोत इस महान कवि को इस नैतिक व्यवस्था को सुरक्षित रखने की अनुमति नहीं देते, फ़िरदौसी अपने प्रभावी स्वर के साथ पाठक और श्रोता का ध्यान उनके खोखलेपन की ओर आकर्षित कराते हैं। फ़िरदौसी का दर्शन और उनकी तत्वदर्शिता मुख्य रूप से भलाई और बुराई के बीच संघर्ष पर आधारित है। कुछ समीक्षकों का कहना है कि यह दर्शन, ईश्वर की सही पहचान की ओर फ़िरदौसी के ध्यान कर प्रमाण है। निश्चित रूप से सृष्टि और संसार के मामलों के बारे में फ़िरदौसी की गहरी दृष्टि, ईश्वर की सही पहचान के व्यापक अर्थ से असंबंधित नहीं है।

अध्ययनकर्ताओं और समीक्षकों ने फ़िरदौसी के शाहनामे को, फ़ारसी भाषा के बाक़ी रहने का मंत्र बताया है। शाहनामे न केवल ईरान व ईरानी राष्ट्र की प्राचीन विरासत है बल्कि फ़ारसी भाषा के मूल्य व महानता का प्रमाण और ईरानी संस्कृति व सभ्यता के वैभव का गवाह भी है। फ़िरदौसी ने उस समय शाहनामे की रचना की जब ईरान ख़लीफ़ाओं के अधीन था। समाज के उच्च वर्ग की औपचारिक साहित्यिक भाषा अरबी थी। सरकारी और दफ़्तरी पत्राचार अरबी भाषा में होता था और ज्ञान की गूढ़ किताबें भी अधिकतर अरबी भाषा में लिखी जाती थीं। फ़िरदौसी ने इतनी बड़ी किताब लिख कर विभिन्न प्रकार के विषयों को बयान करने में फ़ारसी भाषा की क्षमता को स्पष्ट कर दिया और इस भाषा के स्तंभों को मज़बूत बना दिया। उन्होंने अपनी इस किताब के माध्यम से शाहनामे की भाषा को एक हज़ार साल तक फ़ारसी भाषा का मानदंड बना दिया।

एक हज़ार साल के दौरान आने वाले विभिन्न प्रकार के परिवर्तनों के बावजूद आजकी फ़ारसी भाषा, फ़िरदौसी की ही ज़बान व भाषा का क्रम है और अनपढ़ ईरानी भी शाहनामे की ज़बान को अच्छी तरह समझ लेते हैं तो इसे फ़िरदौसी के विचारों का चमत्कार ही कहा जाएगा। यूरोप के अधिकतर राष्ट्र, दो सौ साल पहले की अपने साहित्यिक किताबों की भाषा को सरलता से नहीं समझ पाते और कभी कभी इसमें उन्हें बहुत कठिनाई भी होती है लेकिन फ़िरदौसी और शाहनामे की भाषा को आजके ईरान, अपनी आजकी भाषा समझते हैं। यह भाषा समृद्ध व प्रकाशमान मानवीय संस्कृति की स्वामी है।

एक हज़ार साल बीत जाने के बाद भी आज सभी ईरान शाहनामे को अच्छी तरह समझ लेते हैं, इसके दो कारण हैं। एक तो यह कि फ़िरदौसी ने अपनी काव्य रचना को अपने काल की अत्यंत सरल भाषा में लिखा है। ईरान के समकालीन साहित्यकार उस्ताद फ़ुरूज़ानफ़र कहते हैं कि गर्शास्बनामे के मुक़ाबले में शाहनामे के पाठक को शब्दकोष उठाने की कम ही ज़रूरत पड़ती है। दूसरा कारण यह है कि एक हज़ार साल के दौरान ईरानियों ने निरंतर शाहनामे को पढ़ा है और उसकी बातें, उसके शब्द और उसके शेर उनकी ज़बानों पर हैं और यही कारण है कि यह नश्वरता के ख़तरे से सुरक्षित रहा है। यह ऐसी स्थिति में है कि पिछले सौ साल के दौरान लिखी गई कुछ कविताएं ऐसी हैं जिन्हें शब्दकोष का सहारा लिए बग़ैर समझा नहीं जा सकता। शाहनामे में फ़िरदौसी की अभिव्यक्ति की शैली अत्यंत सादा, स्पष्ट व सरल है। अधिकतर मामलों में उन्होंने बहुत संक्षेप में बात कही है और बात को साहित्यिक अलंकारों में उलझाने से बचे हैं।

उदाहरण स्वरूप अगर हम ज़ाल और रूदाबे की कहानी पढ़ें तो हम देखेंगे कि पूरी कहानी, चौथी शताब्दी हिजरी की आम बोल-चाल की भाषा में है। जब मेहराब काबुली ज़ाल से बात करता है, रूदाबे की दासियां, ज़ाल से बात करती हैं और रूदाबे से ज़ाल का संवाद या मनूचेहर के नाम साम का पत्र, इन सबको अत्यंत सरल और बोल-चाल की भाषा में कविता का रूप दिया गया है। यही कारण है कि आज भी कम पढ़े लिखे यहां तक कि निरक्षर लोग भी बड़े शौक़ से शाहनामे को सुनते और समझते हैं। यह ऐसी स्थिति में है कि जब शाहनामे के सौ-दो सौ साल बाद लिखी गई किताबों की भाषा इतनी कठिन है कि उन्हें समझना मुश्किल है और विश्वविद्यालयों के भाषा व साहित्य के विभाग में पढ़ाई करने वाले भी उन्हें सरलता से नहीं समझ पाते।

शाहनामे एक ऐसी कलाकृति है जो उसके कवि के काल के लोगों की भाषा में लिखी गई है। फ़िरदौसी की बुद्धिमत्त का रहस्य यह है कि उन्होंने अपनी इस कलाकृति को गद्य में नहीं लिखा कि उसे उनके काल के और आने वाले कालों के कुछ शिक्षित लोग पढ़ सकें। उन्होंने अपनी इस महान कलाकृति को पद्य की लड़ियों में पिरोया ताकि यह लोगों के मन में बाक़ी रहे और जनता के बीच प्रचलित हो जाए। पुरानी किताबों में लिखा हुआ है कि छोटे-छोटे बच्चे भी गली कूचों में शाहनामे के शेरों को लय में पढ़ा करते थे। पुरातन विभाग द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में की गई खुदाइयों और किए गए अध्ययनों से स्पष्ट होता है कि मज़दूर और कलाकार शाहनामे के शेरों को टाइलों पर उकेरा करते थे या उन्हें डिज़ाइनों के रूप में लिखा करते थे। (HN)

 

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