Feb १५, २०२० १८:५४ Asia/Kolkata
  • नया सवेराः फ़ातेमा ग्रैहम कहती हैं इस्लाम का अध्ययन करके मैं कलमा पढ़कर मुसलमान हो गई!

फ़ातेमा ग्रैहम का जन्म ब्रिटेन में हुआ।  उनके पति भी अब मुसलमान हो चुके हैं और दोनो स्काटलैण्ड में जीवन गुज़ार रहे हैं। यह दोनो वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। फ़ातेमा ग्रैहम का जन्म कैथोलिक इसाई परिवार में हुआ था।

उन्होंने अपनी शिक्षा भी एक कैथोलिक इसाई स्कूल से हासिल की।  इसाई धर्म को मानने के बावजूद उनके कुछ सवालों के जवाब उनका धर्म नहीं दे सका और वे उन जवाबों से संतुष्ट नहीं हुईं।  इसी बात के दृष्टिगत फ़ातेमा ग्रैहम ने अन्य धर्मों का अध्ययन करना आरंभ किया।  इस बारे में वे कहती हैं कि मैंने विश्व के बहुत से धर्मों को पढ़ना शुरू किया और इस बात का प्रयास किया जो अच्छी बात हो उसको मैं समझूं।  मैं उस धर्म की तलाश में थी जिससे मुझको शांति प्राप्त हो और इसीलिए धर्मों को जानने के मैंने अपने प्रयास जारी रखे।

फ़ातेमा ग्राहम

फ़ातेमा ग्रैहम का कहना है कि मैंने इस्लाम को रोज़े से पहचाना।  इस बारे में वे कहती हैं कि एक बार मैं अपनी मुसलमान सहेली से मिलने उसके घर गई।  दोपहर का समय था।  सामान्यतः इस समय लोग दोपहर का खाना खाते हैं।  जब मैं अपनी मुसलमान सहेली के घर पहुंची तो देखा कि काफ़ी समय गुज़रने के बावजूद उसके घर में किसी ने भी दोपहर का खाना नहीं खाया।  यह बात मेरे लिए बहुत विचित्र थी।  जब मुझको बात करते हुए काफी देर हो गई और मेरी सहेली ने भी खाना नहीं खाया तो मैंने उससे पूछा कि क्या तुम दोपहर में खानी नहीं खातीं?  इस पर मेरी सहेली ने कहां नहीं तो हम दोपहर में खाना खाते हैं।  अपनी सहेली का जवाब सुनकर मैंने कहा कि फिर तुम क्यों आज दोपहर में खाना नहीं खा रही हो।  इसके जवाब में उसने बताया कि हम लोगों का रोज़ा है। उस समय तक मुझको रोज़े के बारे में कुछ भी पता नहीं था। मैंने अपनी सहेली से कहा कि मुझको रोज़े के बारे में बताओ।  इसपर उसने मुझको रोज़े के बारे में विस्तार से बताया।  उसकी बातों को सुनकर मैंने सोंचा कि रोजा तो हम इसाइयों के यहां भी है किंतु मुसलमानों के रोज़े बहुत भिन्न है।  फ़ातेमा ग्रैहम ने कहा कि जब मुझको मुसलमानों के रोज़े के बारे में पता चला तो मैंने जाना कि हमारे रोज़े की तुलना में मुसलमानों के रोज़े में अधिक बलिदान और अधिक इच्छा शक्ति की ज़रूरत होती है।  वे कहती हैं कि चलते समय मेरी सहेली ने मुझको उपहार में क़ुरआन दिया।

 

पवित्र क़ुरआन के बारे में ब्रिटेन की इस मुसलमान महिला का कहना है कि जब मैंने क़ुरआन पढ़ना शुरू किया तो मुझे इससे विशेष प्रकार का लगाव हो गया।  मेरी इच्छा क़ुरआन को अधिक से अधिक पढ़ने की होती।  मुझको क़ुरआन पढ़कर आराम मिलता।  वे कहती हैं कि क़ुरआन मुझको जटिल नहीं लगा और उसको पढ़कर मुझे समझने में परेशानी नहीं हुई।  फ़ातेमा ग्रैहम का कहना है कि क़ुरआन पढ़ने के साथ ही बहुत ही जल्दी मेरा संपर्क इस पवित्र क़ुरआन से हो गया।  वास्तविकता यह है कि उस समय की अपनी भावनाओं को मैं व्यक्त करने में असमर्थ हूं।  क़ुरआन ने मुझको अपनी ओर आकर्षित किया।  फ़ातेमा ग्रैहम कहती हैं कि क़ुरआन, हर सच्चाई के ढूंढने वाले को अपनी ओर खींचता चला जाता है।  सूरे इसरा की आयत संख्या 9 में ईश्वर कहता हैः यह क़ुरआन, सीधे रास्ते की ओर मार्गदर्शन करता है।

फ़ातेमा ग्रैहम कहती हैं कि इस्लाम का व्यापक अध्ययन करने के बाद मैं एक मुसलमान धर्मगुरू के घरपर कलमा पढ़कर मुसलमान हो गई।  वे इस्लाम को सकारात्मक विशेषताओं वाला धर्म बताती हैं।  इस बारे में वे कहती हैं कि मेरे लिए इस्लाम एक परिपूर्ण धर्म है जो शुद्ध और पवित्र है।  फ़ातेमा ग्रैहम का कहना है मेरे हिसाब से इस्लाम में भेदभाव नहीं है।  इस धर्म में न्याय को सर्वोपरि रखा गया है।  इसके नियम परिपूर्ण हैं। यह शांतिप्रिय धर्म है। वे कहती हैं कि मुसलमान होने के बाद निश्चित रूप से मुझको कुछ नियमों के प्रति प्रतिबद्ध रहना पड़ेगा।  अब मुझको अपने खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने और बहुत सी अन्य बातों का ध्यान रखना होगा।  अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा।  वे कहती हैं कि पश्चिमी समाज में रहते हुए इस प्रकार का परिवर्तन थोड़ा सख़्त तो है किंतु असंभव नहीं है।  फ़ातेमा ग्रैहम का कहना है कि सब कुछ धीरे-धीरे सामान्य हो जाएगा।

 

पश्चिमी समाज में इस्लाम जैसे शांतिपूर्ण धर्म के बारे में पाई जाने वाली कुछ नकारात्मक बातों से फ़ातेमा ग्रैहम बहुत अप्रसन्न हैं।  वे कहती हैं कि इतने अच्छे धर्म के बारे में हमारे समाज में कुछ भ्रांतियां पाई जाती हैं।  फ़ातेमा ग्रैहम कहती हैं कि यूरोप की सड़कों पर यदि आप किसी ग़ैर मुसलमान से इस्लाम के बारे में पूछेंगे तो उनसे आपको सामान्यतः यह सुनने को मिलेगा कि यह हिंसक, कठोर और महिलाओं के साथ भेदभाव करने वाला धर्म है जहां पर मानवाधिकारों का सम्मान नहीं किया जाता।  फ़ातेमा ग्रैहम का कहना है कि हमारे प्यारे इस्लाम के बारे में इन लोगों के यह विचार क्यों हैं?

जिस प्रकार इस्लाम के उपासना संबन्धी नियमों का पालन करना चाहिए उसी प्रकार हमें उसके गहरे तर्क को भी समझना चाहिए।  फ़ातेमा ग्रैहम कहती हैं कि इस्लामी शिक्षाओं के विदित रूस और उसके निहित रूप में से किसी को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता।  इस बारे में वे कहती हैं कि इस्लामी नियमों के विदित और निहित रूप के बीच संतुलन को बनाए रखना बहुत ही ज़रूरी है।  फ़ातेमा ग्रैहम का मानना है कि तकफ़ीरी आतंकवाद की जड़ें ही इसी ग़लती में छिपी हुई हैं।  उनका कहना है कि इस्लामी नियमों के प्रति अतिवाद ही तकफ़ीरी आतंकवाद का मूल है।  मानवीय शिक्षाओं की ओर अधिक ध्यान देना और इस्लामी नियमों को अनदेखा करना भी उचित नहीं है।

दाइशी आतंकी

वे कहती हैं कि जब मुसलमान केवल नियमों की ओर आकृष्ट हो तो फिर उसमें चरमपंथ की ओर बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है जो कि ग़लत है।  इसके परिणाम में अतिवाद और हिंसा जैसी बुराइयां सामने आती हैं।  वे लोग जो अतिवादी कार्यवाहियां करते हैं वे वास्तव में पवित्र मन से ईश्वर के साथ संपर्क स्थापित नहीं कर पाते।  यह कैसे संभव है कि एक मुसलमान जो पवित्र हृदय रखता हो वह धर्म के नाम पर उस स्थान पर बम विस्फोट करे जहां पर महिलाएं और बच्चे मौजूद हों? इस प्रकार के लोग वास्तव में दिगभ्रमित हो चुके हैं।  उनकी नज़रों में जीवन का कोई महत्व नहीं है।  फ़ातेमा ग्रैहम का मनना है कि तकफ़ीरी आतंकवादियों ने हिंसा को उन पवित्र विचारों का विकल्प बना दिया जो हत्या तो दूर की बात अपशब्द कहने के भी विरोधी हैं।  खेद की बात यह है कि तकफ़ीरी आतंकवादी यह चाहते हैं कि केवल उनकी विचारधारा का अनुसरण किया जाए।

फ़ातेमा ग्रैहम कहती हैं कि वे लोग जो मुसलमान होते हैं उनके सामने मुसलमान होने के बाद एक बहुत ही महत्वपूर्ण चुनौती आती है।  वे कहती हैं कि इस मुसलमान को यह पता नहीं होता कि वह अब किस मुस्लिम पंथ को अपनाए अर्थात हनफ़ी, मालेकी, शाफ़ेई, हंबली या फिर जाफ़री को।  यह सबसे मुख्य चुनौती है।  वे कहती हैं कि ताज़ा मुसलमान को पहले यह तै करना चाहिए कि इस्लाम के किस पंथ की शिक्षाएं उसे सही रास्ते की ओर ले जाती हैं।

फ़ातेमा ग्रैहम का कहना है कि मुझको भी इस चुनौती का सामना करना पड़ा।  वे कहती हैं कि जब मेरे सामने यह बात आई तो मैंने इस्लाम के सारे पंथों की शिक्षाओं को बहुत गंभीरता से पढ़ा जिनकी अधिकांश शिक्षाएं संयुक्त थीं या एक-दूसरे के निकट थीं।  फ़ातेमा ग्रैहम ने बताया कि जब मैंने इन सभी पंथों का अध्ययन किया तो इस नतीजे पर पहुंची कि पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद के बाद उनके पवित्र परिजनों ने जिन शिक्षाओं का प्रचार एवं प्रसार किया है वे सबसे उपयुक्त हैं। 

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