Jun २४, २०२१ १९:४७ Asia/Kolkata
  • चकाचौंध भरे जीवन से उकताकर अमरीकी महिला एलिज़ा किम ने इस्लाम को लगाया गले

आज दुनिया में आपाधापी का वातावरण है, सच्चे प्रेम और निष्ठा की कमी है जबकि झूठी ख़बरों की कमी नहीं है।  इस समय लोगों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना है। 

वर्तमान समय में लोग मशीनी युग में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।  आज बहुत से लोगों के पास सोचने का भी समय नहीं है। वे विभिन्न कामों में व्यस्त रहते हैं। हर इंसान सुख, शांति और आराम हासिल करने के प्रयास में है। ऐसे वातावरण में ईश्वरीय धर्म इस्लाम इंसान को अध्यात्मिक शांति प्रदान कर सकता है और यह शांति, इंसान के कथनों और कर्मों से ज़ाहिर हो सकती है। 

हां जो लोग चिंतन-मनन करके सही रास्ते का चयन करते हैं उनका भविष्य अच्छा होता है और वे लोक-परलोक का कल्याण प्राप्त करते हैं। ईश्वरीय धर्म इस्लाम स्वीकार करने वाले, उन लोगों में से हैं जिन्होंने अपने चयन से लोक-परलोक में अपने जीवन को सफल बना लिया। निश्चित रूप से उनके इस चयन का व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन पर प्रभाव पड़ता है।  इस प्रकार के लोगों को विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

जो लोग ईश्वरीय धर्म इस्लाम स्वीकार करते हैं वे अच्छी तरह जानते हैं कि जो चीज़ उन्हें मिली है उसके मुकाबले में उन्हें जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है वे कुछ भी नहीं हैं। थाई मूल की एक अमेरिकी महिला, एलिज़ा किम हैं। इस्लाम से परिचित हो जाने के बाद वह स्वंय को इस्लाम की उच्च शिक्षाओं से समन्वित करते हुए दुनिया की चकाचौंध से स्वंय को दूर कर लेती हैं।  एलिज़ा किम अमेरिका में पैदा हुई हैं और वहीं पर पढ़ी-लिखी हैं। वह इस बारे में कहती हैं हमारे पास बैचलर की दो डिग्रियां हैं। एक इकनामिक और दूसरे सोशलोजी की। इसी प्रकार बिज़नेस में मास्टर की डिग्री भी हमारे पास है।

एलिज़ा किम

एलिज़ा किम अपने जीवन के आरंभ में सबसे पहले संचार उद्योग में जाती हैं और टीवी कार्यक्रमों में एंकर का काम करती हैं। यह ऐसा काम है जहां आम तौर पर अध्यात्मिक शांति नाम की कोई चीज़ नहीं है। वहां आम तौर पर हर इंसान स्वंय को दिखाना और पब्लिसिटी चाहता है इसके लिए इंसान को अगर नापसंद काम भी करना पड़ता है तो करता है। इसी कारण कुछ समय के बाद वह इस बात का आभास करती हैं कि भौतिक आराम के बावजूद उन्हें अपने जीवन में अध्यात्मिक शांति व आराम नहीं है। मानो उनके जीवन में किसी चीज़ की कमी है।

एलिज़ा किम उस वक्त की अपनी स्थिति को इस प्रकार बयान करती हुई कहती हैं कि मैंने इस बात का आभास किया कि मेरे जीवन में एक शून्य है। मैंने एहसास किया कि मुझे आत्मिक दृष्टि से जागरुक होने और आंतरिक रूप से ईश्वर की ओर यात्रा करने की ज़रूरत है।“

हर इंसान के अंदर अपने पालनहार की उपासना का रुझान पाया जाता है।  यह रुझान इस बात का कारण बनता है कि एलिज़ा किम अपने पालनहार की उपासना की ओर जाती हैं परंतु बेहतर ढंग से महान ईश्वर की पहचान के लिए उन्हें एक धर्म के चयन करने की ज़रूरत थी। इस कारण वह ईसाई, यहूदी और इस्लाम जैसे धर्मों का अध्ययन आरंभ कर देती हैं और परिणाम स्वरूप अपने लिए इस्लाम धर्म का चयन करती हैं। जब उन्होंने ईश्वरीय धर्म इस्लाम का चयन कर लिया तो उन्होंने अपने काम को छोड़ दिया और हिजाब करने लगीं इस प्रकार उन्होंने इस्लामी शैली में जीवन व्यतीत करना आरंभ कर दिया।  

एलिज़ा किम ने जब इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया और इस्लामी तरीक़े से जीवन व्यतीत करना आरंभ किया तो उन्हें अपने जीवन में अध्यात्मिक सुकून का आभास बहुत अच्छी तरह होने लगा। वह इस बारे में वह कहती हैं जिस दुनिया में अराजकता व्याप्त हो, निष्ठा न हो और अनुचित बातें और झूठी जानकारियां व्याप्त हों एसी दुनिया में इस्लाम इंसान को आंतरिक व वास्तविक सुकून उपहार स्वरूप प्रदान कर सकता है और यह सुकून उसके कथनों और कमों से ज़ाहिर होता है।  यह वही परिवर्तन हो सकता है जिसके प्रयास में हम हैं। हम सब हार्दिक दृष्टि से एक शांतिपूर्ण जीवन के प्रयास में हैं।

एलिज़ा किम बिज़नेस के क्षेत्र में एक सक्रिय अमेरिकी मुसलमान महिला हैं। वह अपने व्यवहार से सबको बताना चाहती हैं कि इस्लाम, महिलाओं की सामाजिक गतिविधियों का विरोधी नहीं है। रोचक बात यह है कि वह अपने कार्यों में धार्मिक मूल्यों और पवित्र कुरआन की शिक्षाओं से भी लाभ उठाना चाहती हैं।  वे व्यापारिक कार्यों में अपने फैसलों का आधार, इस्लाम की शिक्षाओं को करार देना चाहती हैं।

यह ताज़ा मुसलमान होने वाली यह अमेरिकी महिला अपने जीवन में बहुत सक्रिय हैं और अब तक कई शहरों में रह चुकी हैं और कई यात्रायें कर चुकी हैं। वह इस संबंध में कहती हैं। यात्रा करना और जानकारी हासिल करना मेरे लिए महत्वपूर्ण है। क्योंकि इससे मेरा दिल व दिमाग़ खुलता है। यात्रा के दौरान मैं विभिन्न संस्कृतियों को देखती हूं और यह इस बात का कारण बनता है कि मैं स्वंय की और दूसरों के जीवन की परिस्थिति को बेहतर बना सकूं। वह आगे कहती हैं विभिन्न जातियों, रंगों, संस्कृतियों और धर्मों के लोगों के साथ रहकर मैंने जो चीज़ सीखी वह यह है कि हम सब इंसान हैं और हम सबको लगभग एक जैसी समस्याओं का सामना है। सामाजिक कानूनों व मापदंडों से हटकर हम सब एक ही परिवार के सदस्य हैं।“

पवित्र कुरआन सूरे हुजरात की 13वीं आयत में कहता है” हे लोगो! हमने तुमको एक मर्द और औरत से पैदा किया और तुमको विभिन्न जातियों और क़बीलों में करार दिया ताकि तुम एक दूसरे से पहचाने जाओ। निःसंदेह ईश्वर के निकट उसका स्थान सबसे अधिक है जिसका तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय सबसे अधिक होगा, ईश्वर सर्वज्ञाता है।“

इस आधार पर समस्त इंसान मानवता और इंसानियत में समान हैं यद्यपि वे अलग-अलग जातियों, रंगों और क़बीलों के हैं।  उनके बीच श्रेष्ठता का मापदंड केवल ईश्वरीय भय व सदाचारिता है। इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार कोई गोरा, काले से श्रेष्ठ नहीं है, कोई धनी, निर्धन से श्रेष्ठ नहीं है यानी इस्लाम में गोरा, काला, रंग, जाति और धन-सम्पत्ति श्रेष्ठता का मापदंड नहीं है बल्कि ईश्वरीय भय व सदाचारिता श्रेष्ठता का मापदंड है।

इस्लाम धर्म ने ज्ञान हासिल करने के लिए यात्रा करने की सिफारिश की है। एलिज़ा किम ज्ञान अर्जित करने को इंसान की अध्यात्मिक ज़रूरत समझती हैं जिसका कोई अंत नहीं है। वह इंसान के अस्तित्व में बुद्धि को बहुत महत्वपूर्ण मानती हैं। इस संबंध में वे कहती हैं कि बुद्धि आपके लिए बहुत अधिक अध्यात्मिक सुकून उपहार में ला सकती है। क्योंकि बुद्धि के ज़रिये से आप जानते हैं कि जीवन में किस प्रकार रहना चाहिये और संसारिक समस्याओं का किस तरह मुकाबला किया जाना चाहिये। इसी तरह आप बुद्धि के माध्यम से समझते हैं कि दूसरों के साथ कैसे रहना और कैसा व्यवहार करना चाहिये। ताकि दूसरे से भी हमसे आराम व सुकून का आभास कर सकें। वह कहती हैं बुद्धि एक काल्पनिक चीज़ नहीं है।  हमें उन  चीज़ों के बारे में जानना चाहिये जिनसे इंसान को शांति मिलती है।

पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं समस्त अच्छाइयों का स्रोत बुद्धि है।  पैग़म्बरे इस्लाम उस इंसान को सबसे बुद्धिमान इंसान बताते हैं जो अपने पालनहार को पहचानता और उसके आदेशों का अनुपालन करता है। इस आधार पर इस्लाम में बुद्धि का बहुत महत्व है और बुद्धि ही वह चीज़ है जो इंसान को अच्छाई और बुराई बताती है और इंसान को परिपूर्णता के शिखर तक पहुंचाती है।

दोस्तो जैसाकि हमने कार्यक्रम के आरंभ में कहा कि एलिज़ा किम ने सबसे पहले मीडिया जगत में कदम रखा था। इस समय वह सोशल साइटों में सक्रिय हैं इसलिए वह विश्व वासियों को वास्तविक इस्लाम से परिचित कराने का भी प्रयास कर रही हैं। वह कहती हैं मिडिया जगत के अनुभवों के दृष्टिगत बहुत से लोगों से मेरा संपर्क है और मैं इस्लाम के प्रचार के लिए वह चीज़ें पेश कर सकती हूं जिसे अधिकांश लोग स्वीकार कर सकते हैं।

वह ईश्वरीय धर्म इस्लाम के प्रचार- प्रसार के बारे में कहती हैं पश्चिमी संचार माध्यमों में इस्लाम की छवि बिगाड़ कर एक बुरे धर्म के रूप में पेश की जाती है। पश्चिमी संचार माध्यमों में जिस इस्लाम के बारे में बात की जाती है वह इस्लाम हज़रत मोहम्मद स. द्वारा बताये गये इस्लाम से पूर्णतः भिन्न है। पश्चिमी संचार माध्यमों में जो चीज़ें इस्लाम से संबंधित बताई जाती हैं उन्हें बड़ी आसानी से पवित्र कुरआन की शिक्षाओं और रिवायतों व हदीसों की रोशनी में रद्द किया जा सकता है।  

खेद की बात है कि पश्चिमी संचार माध्यम इस्लाम की वास्तविकताओं पर ध्यान दिये बिना उन चीज़ों को बयान करते हैं जिन्हें दाइश और वहाबी जैसे धर्मभ्रष्ट गुट व संप्रदाय कहते हैं। अधिकांश लोग अध्ययन के बिना आंख मूंदकर इन्हीं गुमराह करने वाली बातों को इस्लामी शिक्षा समझ कर स्वीकार कर लेते हैं किन्तु संचार माध्यमों की इसी ताक़त का लाभ उठाकर हम विशुद्ध इस्लाम की शिक्षाओं का प्रचार- प्रसार कर सकते हैं। जैसाकि आज दुनिया में इस्लाम के प्रचार- प्रसार के लिए इंटरनेटर और सोशल साइटों से लाभ उठाया जा रहा है।

हां इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिये कि कुछ संचार माध्यम और साइटें इस्लाम का प्रचार-प्रसार कर रही हैं परंतु यह काम वे लोगों और मुसलमानों में फूट डालने के लिए एसा कर रही हैं। इन साइटों पर इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं के बजाये धर्मभ्रष्ट गुटों व संप्रदायों की उन बातों का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है जिनका इस्लाम से कोई संबंध नहीं है।

इस्लाम का सही परिचय कराने के लिए एलिज़ा किम संचार माध्यमों की शक्ति से लाभ उठाये जाने के बारे में कहती हैं संचार माध्यमों के ज़रिये इस्लाम की सही व वास्तविक तस्वीर पेश की जा सकती है। उन कार्यक्रमों को पेश किया जाना चाहिये जो मुसलमानों के अलावा ग़ैर मुसलमानों के लिए भी लाभप्रद हैं और उनके ध्यान को सच्चाई की ओर आकर्षित करते हैं। वह कहती हैं कि आरंभ में उन कार्यक्रमों व बातों को पेश किया जाना चाहिये जो विभिन्न धर्मों में समान हों इससे लोगों को एक दूसरे के निकट लाने और आपस में जोड़ने में मदद मिलेगी।

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