May २६, २०२१ १६:४६ Asia/Kolkata
  • नया सवेराः एलिज़ाबेथ उन लोगों में से हैं जो महान ईश्वर की खोज में इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लेती हैं

इस्लाम धर्म की एक विशेषता यह है कि वह इंसान की प्रवृत्ति के अनुरूप है और यह वह चीज़ है जो हर इंसान को अपनी ओर खींचती है।

एलिज़ाबेथ उन लोगों में से हैं जो महान ईश्वर की खोज में इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लेती हैं और अंत में वह महान ईश्वर के एक होने की गवाही देती हैं। वह ईश्वरीय धर्म इस्लाम स्वीकार कर लेने के बाद कहती हैं" मुझे कभी भी इतनी शांति नहीं मिली थी। उनका जन्म स्केन्डिनेविया में एक ईसाई परिवार में हुआ था और उसी परिवार में उनका पालन- पोषण हुआ। वह कहती हैं हम हमेशा महान ईश्वर पर आस्था रखते थे और उसे हर शक्ति से बड़ी  मानते थे परंतु जिस ईश्वर की बात गिरजाघर करता है और उसकी शिक्षा देता है उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।

एलिाज़बेथ

 

अंततः वह ईसाई धर्म छोड़ देती हैं और इस समय जो ईसाई धर्म है वह ट्रिनिटी की शिक्षा देता है यानी तीन ईश्वर की शिक्षा देता है और उसका कहना है कि ईश्वर तीन हस्तियों में प्रतिबिंबित हुआ है। यह तीनों व्यक्ति इस प्रकार हैं एक पिता, दूसरे बेटा यानी हज़रत ईसा और तीसरे रूहुल कुद्स अर्थात पवित्र आत्मा किन्तु एलिज़ाबेथ कहती हैं कि मैं कभी भी हज़रत ईसा के ईश्वर होने की बात समझ नहीं कर सकी। क्योंकि जो इंसान पैदा हुआ है उसे खाने- पीने और आराम करने की भी ज़रूरत होती है। यह बात पूरी तरह तार्किक है।  क्योंकि जिस ईश्वर को सोने, खाने, पीने और विश्राम की ज़रूरत है वह त्रुटिहीन ईश्वर नहीं हो सकता और दूसरे लोगों की भांति वह ईश्वर भी दूसरों का मोहताज होगा और यह ईश्वर के लिए महत्वपूर्ण कमज़ोर बिन्दु है।

इस आधार पर जैसाकि हम पवित्र कुरआन के सूरे फ़ातिर की 15वीं आयत में पढ़ते हैं” हे लोगों तुम सबके सब ईश्वर के मोहताज हो केवल ईश्वर है जो किसी का मोहताज नहीं है और वही हर प्रकार की प्रशंसा का पात्र है।“ तो वास्तविक ईश्वर किसी प्रकार से अपनी रचना का मोहताज नहीं है जबकि रचनाएं सबकी सब महान ईश्वर की मोहताज हैं।

एलिज़ाबेथ किशोरावस्था में एसे ईश्वर को प्राप्त करने का प्रयास करती हैं जो हर प्रकार की त्रुटि से पवित्र हो और वह हर कार्य और समस्त चीज़ों की रचना करने में पूर्ण सक्षम हो किन्तु यह नौजवान अपने सवालों का जवाब प्राप्त करने के लिए इस्लाम धर्म की ओर नहीं जाती हैं और वह अपने इस कार्य का कारण इस प्रकार बयान करती हैं। मैं इस्लाम से परिचित नहीं थी, मैं उसे अजनबी समझती थी और मैं इस आस्था के साथ पली- बढ़ी थी कि इस्लाम नफ़रत फैलाने वाला धर्म है और वह महिलाओं पर दबाव डालता है। मेरी समझ में नहीं आता था कि एक महिला किस प्रकार अपने लिए हिजाब का चयन कर सकती है? संचार माध्यमों ने हमें सिखा दिया था कि मुसलमान और आतंकवादी का एक ही अर्थ है, दोनों पर्यायवाची शब्द हैं और मुसलमानों का ईश्वर हमारे ईश्वर से भिन्न है किन्तु कुछ मुसलमानों से परिचित होने के बाद वह समझ जाती हैं कि जो कुछ संचार माध्यमों ने हमें सिखाया है उसमें और वास्तविकता में बहुत अंतर है।

एलिज़ाबेथ इस संबंध में कहती हैं समय बीतने के साथ- साथ मेरा संदेह व असमंजस कम हो रहा था। मैं देख रही थी कि मुसलमान शांतिपूर्ण ढंग से रहते हैं और महान ईश्वर की उपासना करते हैं। डेढ़ अरब से अधिक मुसलमान दुनिया में रहते हैं जो निश्चित रूप से किसी के कहने से मुसलमान नहीं हुए हैं वे केवल वास्तविकता को समझ गये हैं जिसकी वजह से मुसलमान हैं।  मुसलमानों के बारे में जब एलिज़ाबेथ की ग़लत फ़हमियां दूर हो जाती हैं तो वह गम्भीरता के साथ इस्लाम के बारे में अध्ययन शुरू कर देती हैं और वह इस बात को समझ जाती हैं कि इस्लाम धर्म ने परिपूर्ण ईश्वर का परिचय कराया है और ईश्वर हर प्रकार की आवश्यकता से परे है और वह किसी का भी मोहताज नहीं है और कोई भी उसका समतुल्य नहीं है।

जब उन्हें महान ईश्वर के बारे में अपने सबसे महत्वपूर्ण सवाल का जवाब मिल जाता है तो वह इस्लाम की दूसरी शिक्षाओं और कानूनों का अध्ययन आरंभ कर देती हैं और उन्हें भी वह पूर्णरूप से इंसान की प्रवृत्ति और बुद्धि के अनुसार पाती हैं। वह इस बारे में कहती हैं मुसलमान, असीम व अत्यंत कृपालु और क्षमाशील एक ईश्वर को मानते हैं और उन समस्त पैग़म्बरों को मानते हैं जिनके नाम इंजील में आये हैं। ईश्वरीय धर्म इस्लाम स्वीकार न करने के लिए मेरे पास कोई तर्क नहीं था। वह आगे कहती हैं मेरे दिल को सुकून मिल गया था और मैंने वास्तविकता को समझ लिया था। इस्लाम और ईसाई धर्म में जो समान बातें और आस्थायें थीं मैंने उनका पता लगा लिया था। मैंने वास्तविकता को समझ लिया था कि इस्लाम सही रास्ता है। सारी वास्तविकता स्पष्ट होने के बावजूद एलिज़ाबेथ इस्लाम धर्म के आदेशों पर अमल करने के लिए स्वयं को तैयार नहीं कर पाती थीं। वह धीरे- धीरे इस्लाम की शिक्षाओं पर अमल करना आरंभ करती हैं। वह इस बारे में कहती हैं मैं अपनी क्षमताओं व योग्यताओं को आंकना चाहती थी। क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि इस्लाम धर्म स्वीकार कर लेने के बाद मुझे नाकामी का सामना हो। मैंने धीरे- धीरे बुरी आदतों को छोड़ना आरंभ किया।

जब मैं दोराहे पर पहुंचती थी तो रुक जाती थी और कभी सही रास्ते से थोड़ा भटक जाती थी मगर दिल में मुझे पछतावा होता था और मैं सही रास्ते पर लौट आती थी। अंततः एलिज़ाबेथ इस बात का एहसास करती हैं कि वह अच्छी तरह इस्लाम धर्म की शिक्षाओं पर अमल और अपने दायित्वों का निर्वाह कर सकती हैं। वह इस स्थिति के बारे में कहती हैं मैं एसे बिन्दु पर पहुंच गयी थी जहां मुझे एक झटके की ज़रूरत थी। जब मैंने कलमये शहादतैन पढ़ा यानी ईश्वर के एक होने और पैग़म्बरे इस्लाम के ईश्वरीय दूत होने की गवाही एक इस्लामी सेन्टर में दी तो मैंने एहसास किया कि जो बोझ सालों से मेरे कांधे पर था उसे मैंने ज़मीन पर रख दिया है। उस रात मैं बहुत रोई। मुझे एसा लग रहा था कि मेरा दोबारा जन्म हुआ है। इस प्रकार इस ताज़ा मुसलमान ने गम्भीर रूप से और पूरी तरह इस्लाम की शिक्षाओं पर अमल करना आरंभ कर दिया।

वह कहती हैं कि इस्लाम से परिचित होने से पहले मैं सोचती थी कि नमाज़ पढ़ना बहुत अजीब है कि रुकू और सज्दा करूं परंतु जब मैंने कलमा पढ़ लिया तो नमाज़ पढ़ने का प्रयास करती थी, पहले भी मैंने प्रयास किया था और कलमा पढ़ने के बाद कार्य बहुत आसान हो गया था। अगर आप एक क़दम ईश्वर की ओर बढ़ायें तो वह बहुत तेज़ी के साथ आपकी ओर आयेगा। मैं बहुत भाग्यशाली थी कि ईश्वर ने मेरा मार्गदर्शन किया।

सूरए इख़लास

 

एलिज़ाबेथ पवित्र कुरआन विशेषकर सूरे इख़लास से विशेष लगाव रखती हैं और वह इस बात को जानती हैं कि इस सूरे ने महान ईश्वर के बारे में पूरी तरह उनके प्रश्नों का उत्तर दिया है। वह कहती हैं मैं सूरे इख़लास को बहुत पसंद करती हूं। यह पवित्र कुरआन का पहला सूरा था जिसे मैंने सीखा था और यह सूरा इतना महत्वपूर्ण है कि उसका महत्व पवित्र कुरआन के एक तिहाई के बराबर है। यह सूरा हमारे धर्म को बयान करता है यानी एक ईश्वर के बारे में हमारी आस्था को बयान करता है। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि यह सूरा महान ईश्वर की विशेषताओं को बयान करता है। सूरे इख़लास, सूरे तौहीद के नाम से भी मशहूर है। यह सूरा संक्षेप में किन्तु महान ईश्वर की बहुत ही सूक्ष्म व पूर्ण विशेषता बयान करता है। यह सूरा बयान करता है कि महान ईश्वर एक है, उसे किसी की भी ज़रूरत नहीं है, उसके न पत्नी है न बेटा और न वह किसी का बेटा है और कोई भी चीज़ उस जैसी नहीं है।

एलिज़ाबेथ वही हैं जो यह सोचती थीं कि इस्लाम ने महिलाओं पर विशेषकर हिजाब के संबंध में अन्याय किया है और अब स्वयं उन्होंने पूरी निष्ठा के साथ हिजाब का चयन किया है और वह उसके बारे में कहती हैं” इस्लाम स्वीकार करने से पहले मैं एसी किसी महिला को नहीं जानती जिसने स्वेच्छा से हिजाब का चयन किया हो परंतु जब मैंने इस्लाम के बारे में अध्ययन किया तो मैं समझ गयी कि हिजाब ईश्वर का आदेश है और वह जानता है कि कौन सी चीज़ हमारे लिए बेहतर है और वह हमारी रक्षा करता है। जब एक मुसलमान इस बात को स्वीकार कर लेता है कि महान ईश्वर हर चीज़ को जानता है और उसके जितने भी कानून व नियम हैं सब इंसान की भलाई के लिए हैं तो वह इन कानूनों के पालन में संकोच से काम नहीं लेता है। क्योंकि वह इस बात को जानता है कि यह सारे कानून सर्वज्ञाता ने बनाये हैं और कोई कानून नहीं है जो अकारण हो हर कानून के पीछे कोई न कोई रहस्य है और उसमें इंसान के फायदे निहित हैं।

एलिज़ाबेथ बल देकर कहती हैं कि अलबत्ता मर्दों को भी चाहिये कि वे पराई महिलाओं को ग़लत नज़र से देखने से परहेज़ करें और इस्लाम की दृष्टि से यह चीज़ परिवारों के आधारों को मज़बूत करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। वह पहले यह समझती थीं कि जिस तरह से एक ईसाई परिवार में महिलाओं के अधिकार हैं उसी तरह एक मुसलमान परिवार में भी हैं किन्तु अध्ययन करने के बाद उन्हें पता चला कि इस्लाम में महिलाओं को बहुत अधिकार प्राप्त हैं। वह महिलाओं को प्राप्त एक अधिकार के बारे में कहती हैं” अध्ययन के बाद मैं समझ गयी कि इस्लाम में महिलाओं से संबंधित उनके अपने अधिकार हैं। इस प्रकार मर्दों पर घर से बाहर के कार्यों और वित्तिय प्रबंध की ज़िम्मेदारी है। यह उस स्थिति में है जब महिलाएं घर से बाहर कार्य कर सकती हैं और उससे जो आमदनी होगी उसे वे अपनी इच्छानुसार खर्च कर सकती हैं।

 

एलिज़ाबेथ ईश्वरीय धर्म इस्लाम स्वीकार करके और अपनी इस्लामी जीवन शैली पर खुश हैं और वह इस बारे में इस प्रकार कहती हैं” हमारे सारे सवालों के जवाब मिल गये हैं और मैं दिल से जानती हूं कि यह वास्तविकता है। मुझे कभी भी इतना सुकून नहीं था। जो नया जीवन मुझे प्रदान किया गया है उस पर मैं इनती ख़ुश हूं कि मैं कभी इतनी प्रसन्न नहीं थी। फिर से मुझे जो अवसर दिया गया है उसके बदले में मैं प्रतिदिन ईश्वर का शुक्र अदा करती हूं। क्योंकि हर रोज़ बेहतर होने के लिए एक नया अवसर है। मैं जानती हूं कि हर घटना का कोई न कोई कारण होता है जिसकी वजह से वह घटती है और हर चीज़ बेहतरीन कार्यक्रम बनाने वाले की ओर से होती है।

टैग्स