Jun २२, २०२१ १४:०७ Asia/Kolkata
  • ऑस्ट्रेलिया की ताज़ा मुसलमान होने वाली श्रीमती क्रिस्टिन जेम्स

इंसान को महान ईश्वर ने सर्वश्रेष्ठ प्राणी बनाया है और महान ईश्वर ने जो क्षमताएं व योग्यतायें इंसान को दी हैं वह उनका सही लाभ उठाकर ज़मीन पर उसका प्रतिनिधि भी बन सकता है।

स्वाभाविक रूप से इंसान हर क्षेत्र में कमाल व परिपूर्णता का इच्छुक होता है। अगर इंसान सही रास्ते का चयन करता है और परिपूर्णता तक पहुंचने के लिए प्रयास करता है तो उसे उसके परिश्रम के अनुसार फल मिलता है परंतु जब इंसान रास्ते के चयन में ग़लती करता है तो उसका परिणाम भी इंसान के लिए अच्छा नहीं होता है।

महान ईश्वर ने इंसान को बुद्धि दी है, पवित्र प्रवृत्ति दी है और एक लाख 24 हज़ार पैग़म्बरों को भेजकर इंसानों की मदद की है ताकि इंसान सही रास्ते का चयन करके लोक- परलोक में अपने जीवन को सफल बनाये। जो लोग ईश्वरीय धर्म इस्लाम स्वीकार करके अध्यात्मिक परिपूर्णता के मार्ग में कदम उठाते हैं वास्तव में वे लोक- परलोक के जीवन को सफल बनाने की दिशा में कदम उठाते हैं।

ऑस्ट्रेलिया की ताज़ा मुसलमान होने वाली श्रीमती क्रिस्टिन जेम्स इस संबंध में कहती हैं इंसान की परिपूर्णता का मार्ग महान ईश्वर के आदेशों के प्रति नतमस्तक होने में है। वह कहती हैं अगर आपके पास बड़ा घर हो, पैसा हो और बहुत सारे दोस्त हों तो ये सब चीज़ें आपको परिपूर्णता तक नहीं पहुंचा सकतीं परंतु अगर आप पूरी निष्ठा के साथ ईश्वरीय आदेशों के समक्ष नतमस्तक रहें तो आप वास्तविक परिपूर्णता तक पहुंचेंगे।

श्रीमती क्रिस्टिन जेम्स का ऑस्ट्रेलिया के एक ग़ैर धार्मिक परिवार में जन्म हुआ था परंतु महान ईश्वर ने जो इंसान को पवित्र प्रवृत्ति दी है और इंसान की प्रवृत्ति में महान ईश्वर की उपासना का रुझान पाया जाता है इस बात के दृष्टिगत वह बचपन से महान ईश्वर के बारे में बहुत बातें करती और उससे प्रार्थना करती थीं। जब वह स्कूल जाती हैं तो ईसाई धर्म की शिक्षाओं से अवगत होती हैं। स्कूल की पढ़ाई पूरा करने के बाद वह विश्वविद्यालय में जाती हैं तो यहूदी धर्म की शिक्षाओं का अध्ययन करती हैं परंतु वह दोनों में से किसी भी धर्म को वास्तविक मार्गदर्शक नहीं पाती हैं।

ऑस्ट्रेलियाई महिला क्रिस्टिन जेम्स ने जो ईश्वरीय धर्म इस्लाम स्वीकार किया उसका एक कारण शायद उनका अध्ययन और विभिन्न देशों में रहना है। उन्होंने ब्रिटेन के विश्वविद्यालय से ला और लिट्रेचर में ग्रेजुएट किया है और कई विश्वविद्यालय में पढ़ाया भी है। इसी प्रकार अब तक उनकी कई किताबें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। वह अपनी यात्राओं के बारे में कहती हैं यात्रा करना, अनुभव प्राप्त करना और अधिक जानना मुझे बहुत पसंद है। मैं ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, स्काटलैंड, डेनमार्क, स्वीडेन, स्पेन, अमेरिका और इसी तरह इंडोनेशिया और भारत जैसे पूर्वी देशों में पढ़ाने या रहने के लिए गयी हूं और इसी वजह से थोड़ा- बहुत कई देशों की संस्कृतियों और लोगों के रहन -सहन से अवगत हूं और शायद इन्हीं अनुभवों के कारण मैंने इस्लाम धर्म स्वीकार करने का पक्का इरादा किया।

पवित्र कुरआन और इस्लामी रिवायतों में यात्रा करने और ज्ञान अर्जित करने की बहुत सिफारिश की गयी है। जो इंसान यात्रा करता है और विभिन्न स्थानों के लोगों की परम्परा और सभ्यता से अवगत होता है उसकी सोच में और उस इंसान की सोच में जो आम तौर पर कहीं नहीं जाता है बहुत अंतर होता है। ऑस्ट्रेलियाई महिला श्रीमती क्रिस्टिन जेम्स ने जो विभिन्न देशों की यात्रा की है और इस यात्रा के परिणाम में उन्हें लोगों की सभ्यताओं व संस्कृतियों का काफी ज्ञान है इसी बात के दृष्टिगत वह इस परिणाम पर पहुंची कि इस्लाम धर्म की शिक्षाओं के बारे में भी अध्ययन करना चाहिये।

इस आधार पर वह इस्लाम, पवित्र कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम की पावन जीवनी का अध्ययन आरंभ कर देती हैं और इस ईश्वरीय धर्म की शिक्षाओं का गहन अध्ययन करती हैं और वह अपनी खोई हुई चीज़ को इस्लाम धर्म में पा जाती हैं यानी उन्हें लोक- परलोक में सफल जीवन का मार्ग मिल जाता है और वह कलेमा पढ़कर मुसलमान हो जाती हैं। इस संबंध में वह कहती हैं जब मैं कलेमा पढ़ रही थी तो मेरा ध्यान इस ओर गया कि मैं ईश्वर के एक होने को स्वीकार कर रही हूं और उसे वचन दे रही हूं।"

यह वचन वही महान ईश्वर के आदेशों पर अमल करना है और इसी में इंसान का लोक- परलोक का कल्याण नीहित है। ऑस्ट्रेलियाई महिला श्रीमती क्रिस्टिन जेम्स आस्था के बारे में इस्लाम धर्म के विभिन्न संप्रदायों की शिक्षाओं का अध्ययन करती हैं और वह इस परिणाम पर पहुंचती हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की जो शिक्षायें हैं वे सबसे अच्छी और तार्किक हैं। इस बात के दृष्टिगत वह शिया हो जाती हैं और डाक्ट्रेड का अपना थिसेज़ भी शिया संप्रदाय की सही पहचान के बारे में लिखती हैं।

वह पैग़म्बरे इस्लाम की उस हदीस व कथन को भी पढ़ती हैं जिसमें आपने फरमाया है कि मैं दो मूल्यवान चीज़ें छोड़कर जा रहा हूं एक क़ुरआन और दूसरे अहले बैत। अगर इन दोनों से जुड़े रहोगे तो कभी भी गुमराह नहीं होगे। वह इस बारे में कहती हैं मैंने कुरआन से सीखा कि जिस रास्ते का चयन मैंने किया है उसके सही होने के प्रति विश्वास हासिल करूं और सीधा रास्ता ही लोक- परलोक में कल्याण का कारण है। इसी प्रकार हमने कुरआन से यह सीखा कि हमारे सामने कुछ आदर्श हैं जिनका हमें अनुसरण व अनुपालन करना चाहिये। कुरआन वह किताब है जिसकी समस्त बातें शिक्षाप्रद हैं और यह वह चीज़ है जो इंसान के विश्वास और भरोसे को कई बराबर कर देती है।"

ईश्वरीय धर्म इस्लाम की एक विशेषता यह है कि वह लोगों को एक दूसरे के साथ भाईचारे का व्यवहार करने का आदेश देता है। पवित्र कुरआन मोमिनों को एक दूसरे का भाई बताता है और उनके मध्य प्रेम को ईश्वरीय नेअमत बताता है जिसे महान ईश्वर ने प्रदान किया है। पवित्र कुरआन के सूरे फत्ह के अंत में हम पढ़ते हैं जिसमें महान ईश्वर कह रहा है कि मोहम्मद ईश्वर के दूत हैं और जो लोग उनके साथ हैं वे काफिरों के मुकाबले में सख्त हैं जबकि आपस में मेहरबान व कृपालु हैं।"

ऑस्ट्रेलिया की ताज़ा मुसलमान होने वाली श्रीमती क्रिस्टिन जेम्स इस्लाम धर्म की इस शिक्षा से प्रभावित होकर पश्चिमी संचार माध्यमों के झूठे प्रचारों की ओर संकेत करते हुए कहती हैं इस्लाम के बारे में समस्त दुष्प्रचारों के बावजूद जो चीज़ मेरे लिए सबसे आकर्षक थी वह प्रेम व मेहरबानी थी। इस्लाम धर्म में पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों जैसी महान हस्तियां आदर्श हैं जो बहुत अधिक सख्तियों व समस्याओं के बावजूद लोगों के साथ बहुत ही सुशील व प्रेमपूर्ण व्यवहार करते थे। मैंने इस अवधि में यह सीखा है कि जितनी भी सख्ती और समस्या हो मुझे दूसरे लोगों के साथ अच्छा और प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिये।

इसी प्रकार ऑस्ट्रेलिया की ताज़ा मुसलमान होने वाली महिला श्रीमती क्रिस्टिन जेम्स का मानना है कि  इस्लाम की उच्च मानवीय शिक्षायें इस बात का कारण बनी हैं कि इस्लाम के खिलाफ़ भारी पैमाने पर नकारात्मक प्रचार के बावजूद ईश्वरीय धर्म इस्लाम ग़ैर मुसलमानों को अपनी ओर आकृष्ट करता है। वह मिसाल पेश करते हुए कहती हैं मैं काफी दिनों तक फ्रांस में थी। यद्यपि फ्रांसीसी आज़ादी की बात करते हैं परंतु वहां जातिवाद बहुत अधिक है। फ्रांस में काफी पलायनकर्ता मुसलमान हैं और बहुत से फ्रांसीसी इस्लाम और मुसलमानों से प्रभावित होते हैं।

यह ऑस्ट्रेलियाई महिला पश्चिमी महिलाओं की समस्याओं और उनके अधिकारों पर ध्यान न दिये जाने पर खेद जताती और कहती हैं पश्चिम में महिलाओं को बहुत अधिक समस्याओं का सामना है। पश्चिम में महिलाओं के बारे में जो लोक- लुभावन प्रचार किये जाते हैं उन पर अधिक ध्यान नहीं देना चाहिये। पश्चिम में महिलाओं को कामवासना और आर्थिक हित साधन के रूप में देखा जाता है। पश्चिमी महिला इस धारणा के साथ बड़ी हुई है कि उसे अपनी सुन्दरता का प्रदर्शन करना चाहिये ताकि वह पश्चिमी समाज में दिखाई दे। पश्चिमी महिलाएं सजने- संवरने और मेकअप करने पर घंटों समय लगाती हैं और ऐसे माडलों में खुद को दिखाने की कोशिश करती हैं जो उन्हें उनके मानवीय मूल्यों से दूर करते हैं और वे सोचती हैं कि इस तरह वे दूसरों के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित कर सकती हैं ताकि समाज में उन्हें सफल महिला के रूप में देखा जाये। इसका अर्थ यह है कि पश्चिम में महिला के लिए सीमितता है और वह एक प्रकार के बंधन में है।

ऑस्ट्रेलिया की ताज़ा मुसलमान होने वाली महिला श्रीमती क्रिस्टिन जेम्स पश्चिमी संचार माध्यमों के उस दुष्प्रचार की ओर संकेत करती हैं जिसमें कहा जाता है कि इस्लाम महिलाओं के अधिकारों का विरोधी है। वह बल देकर कहती हैं कि इस ईश्वरीय धर्म में महिलाओं के अधिकारों पर ध्यान दिया गया है। मैं एक पश्चिमी महिला हूं और पश्चिमी समाज की संस्कृति में पली- बढ़ी हूं। अगर इस्लाम महिलाओं पर अत्याचार करता और उसकी सीमितता का कारण बनता तो मैं कभी भी मुसलमान न होती। इस्लाम महिलाओं को महत्व देता है इसके लिए ऑस्ट्रेलियाई महिला श्रीमती क्रिस्टिन जेम्स इस्लामी गणतंत्र ईरान का उदाहरण देती और कहती हैं अगर इस्लाम महिलाओं पर अत्याचार करता तो आज ईरान में इतनी पढ़ी- लिखी व शिक्षित महिलायें न होतीं। आज ईरान में लाखों महिलायें मिल जायेंगी जिन्होंने विश्व विद्यालयों में शिक्षायें ग्रहण की हैं और कर रही हैं।  

वह कहती हैं कि मेरा मानना है कि मुसलमान महिलाओं को जो आज़ादी है वह पश्चिमी महिलाओं को नहीं है। उन पर अत्याचार किये जाते हैं और वे सीमितता में हैं। रोचक बात यह है कि इस्लाम धर्म स्वीकार करने से पहले श्रीमती क्रिस्टिन जेम्स हिजाब करती थीं क्योंकि उनका मानना है कि एक महिला को अपनी रक्षा के लिए हिजाब की ज़रूरत है।

ऑस्ट्रेलिया की ताज़ा मुसलमान होने वाली श्रीमती क्रिस्टिन जेम्स ने अब अपना नाम ज़ैनबे सानी रख लिया है। वह पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों को सर्वोत्तम आदर्श मानती और कहती हैं पैग़म्बरे इस्लाम के निकट हज़रत अली अलैहिस्सलाम का जो स्थान है उसे मैंने जाना और इस स्थान का सबसे बड़ा चिन्ह यह है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इसी प्रकार वह इस्लाम धर्म स्वीकार करने से पहले इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके महाआंदोल और उनकी कुर्बानियों से अवगत थीं। इस संबंध में वह कहती हैं अगर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफादार साथियों की कुर्बानियां व शहादत न होती तो इस्लाम बाकी न बचता और वह मिट जाता। आज जो विशुद्ध इस्लाम हम तक पहुंचा है वह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत का नतीजा है।

ऑस्ट्रेलियाई महिला श्रीमती क्रिस्टिन जेम्स ने अपना नाम ज़ैनबे सानी जो रखा है तो उसकी वजह यह है कि वह पैग़म्बरे इस्लाम की नवासी हज़रत ज़ैनब स. से विशेष श्रृद्धा व लगाव रखती हैं और उन्हें वह एक मुसलमान महिला के लिए परिपूर्ण व सर्वोत्तम आदर्श मानती हैं।

 

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