Feb २३, २०२० १७:४४ Asia/Kolkata

क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-775

تُرْجِي مَنْ تَشَاءُ مِنْهُنَّ وَتُؤْوِي إِلَيْكَ مَنْ تَشَاءُ وَمَنِ ابْتَغَيْتَ مِمَّنْ عَزَلْتَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْكَ ذَلِكَ أَدْنَى أَنْ تَقَرَّ أَعْيُنُهُنَّ وَلَا يَحْزَنَّ وَيَرْضَيْنَ بِمَا آَتَيْتَهُنَّ كُلُّهُنَّ وَاللَّهُ يَعْلَمُ مَا فِي قُلُوبِكُمْ وَكَانَ اللَّهُ عَلِيمًا حَلِيمًا (51)

 

(हे पैग़म्बर!) आपको अधिकार दिया जाता है कि अपनी पत्नियों में से जिसे चाहिए अपने से अलग रखिए और जिसे चाहिए अपने पास रखिए और जिसे चाहिए अलग रखने के बाद अपने पास बुला लीजिए। इस मामले में आप पर कोई दोष नहीं है। इससे इस बात की अधिक संभावना है कि उनकी आँखें ठंडी रहेंगी और वे दुखी नहीं होंगी और जो कुछ आप उन्हें देंगे उस पर वे राज़ी रहेंगी। जो कुछ तुम्हारे दिलों में है उसे ईश्वर जानता है। और ईश्वर अत्यंत जानकार व सहनशील है। (33:51)

 

لَا يَحِلُّ لَكَ النِّسَاءُ مِنْ بَعْدُ وَلَا أَنْ تَبَدَّلَ بِهِنَّ مِنْ أَزْوَاجٍ وَلَوْ أَعْجَبَكَ حُسْنُهُنَّ إِلَّا مَا مَلَكَتْ يَمِينُكَ وَكَانَ اللَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ رَقِيبًا (52)

 

(हे पैग़म्बर!) इसके बाद आपके लिए दूसरी स्त्रियाँ हलाल अर्थात वैध नहीं हैं और न ही इस बात की अनुमति है कि आप उनकी जगह दूसरी पत्नियां ले आएं, चाहे उनका सौन्दर्य आपको कितना ही क्यों न भाए। अलबत्ता दासियों की आपको अनुमति है और ईश्वर हर चीज़ पर नज़र रखने वाला है। (33:52)

 

 

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آَمَنُوا لَا تَدْخُلُوا بُيُوتَ النَّبِيِّ إِلَّا أَنْ يُؤْذَنَ لَكُمْ إِلَى طَعَامٍ غَيْرَ نَاظِرِينَ إِنَاهُ وَلَكِنْ إِذَا دُعِيتُمْ فَادْخُلُوا فَإِذَا طَعِمْتُمْ فَانْتَشِرُوا وَلَا مُسْتَأْنِسِينَ لِحَدِيثٍ إِنَّ ذَلِكُمْ كَانَ يُؤْذِي النَّبِيَّ فَيَسْتَحْيِي مِنْكُمْ وَاللَّهُ لَا يَسْتَحْيِي مِنَ الْحَقِّ وَإِذَا سَأَلْتُمُوهُنَّ مَتَاعًا فَاسْأَلُوهُنَّ مِنْ وَرَاءِ حِجَابٍ ذَلِكُمْ أَطْهَرُ لِقُلُوبِكُمْ وَقُلُوبِهِنَّ وَمَا كَانَ لَكُمْ أَنْ تُؤْذُوا رَسُولَ اللَّهِ وَلَا أَنْ تَنْكِحُوا أَزْوَاجَهُ مِنْ بَعْدِهِ أَبَدًا إِنَّ ذَلِكُمْ كَانَ عِنْدَ اللَّهِ عَظِيمًا (53) إِنْ تُبْدُوا شَيْئًا أَوْ تُخْفُوهُ فَإِنَّ اللَّهَ كَانَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمًا (54)

 

हे ईमान वालो! पैग़म्बर के घरों में न जाया करो सिवाय इसके कि कभी तुम्हें खाने के लिए अनुमति दी जाए। वह भी इस तरह कि (समय से पहले पहुंच कर) खाना पकने की प्रतिक्षा में न रहो। हां, जब तुम्हें बुलाया जाए तो (उस वक़्त) अंदर जाओ और फिर जब तुम खा चुको तो तुरंत उठकर चले जाओ और वहां बातों में (दिल लगा कर बैठे) रहने वाले न बनो। निश्चय ही यह (यानी तुम्हारा देर तक बैठे रहना) पैग़म्बर को तकलीफ़ देता है और उन्हें तुमसे (जाने को कहते हुए) लज्जा आती है लेकिन ईश्वर सही बात कहने से नहीं शर्माता। और जब तुम उन (की पत्नियों) से कुछ माँगो तो पर्दे के पीछे से माँगो। यह (शिष्टाचार) तुम्हारे दिलों के लिए भी और उनके दिलों के लिए भी बड़ी पवित्रता का कारण है। (हे ईमान वालो!) तुम्हारे लिए वैध नहीं कि तुम ईश्वर के पैग़म्बर को तकलीफ़ पहुँचाओ और न यह (वैध है) कि उनके बाद कभी उनकी पत्नियों से विवाह करो। निश्चय ही यह ईश्वर की दृष्टि में बड़ी (बुरी) बात है। (33:53) तुम चाहे किसी चीज़ को व्यक्त करो या उसे छिपाओ, निश्चय ही ईश्वर तो हर चीज़ का ज्ञान रखने वाला है। (33:54)

 

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