Feb २९, २०२० १५:२१ Asia/Kolkata
  • नया सवेराः  क़ुरआन ने जिन ग़ैर मुसलमानों को अपनी ओर आकृष्ट किया है उनमें एक ब्रिटेन की Myriam Francois-cerrah हैं

मरयम कहती हैं कि इस्लाम, हमारे भीतर की अच्छाइयों की पुष्टि करता है और इसी प्रकार वह मनुष्य के भीतर सुधार और बुराइयों को दूर करने में सहायता करता है। 

इस्लाम सदैव ही लोगों को उनके जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है।  मैं समझती हूं कि हज़रत मुहम्मद का मुख्य संदेश यह है कि हम अपने सभी कामों में संतुलन को बनाए रखें।

पवित्र क़ुरआन, पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा का एक महान चमत्कार हैं जो लोगों को वास्तविकता और मार्गदर्शन की ओर ले जाता है।  पवित्र क़ुरआन जिस प्रकार से शताब्दियों से ईश्वरीय अनुकंपाओं और मार्गदर्शन का स्रोत रहा है उसी प्रकार से अब भी वास्तविकता के खोजियों का मार्गदर्शन कर रहा है।  भौतिकवाद में डूबी हुई आज की दुनिया में यह ईश्वरीय किताब लोगों का आध्यात्मिक मार्दर्शन कर रही है।  जैसाकि जर्मनी के विश्व विख्यात लेखक एवं विचारक John wolfgang von Goethe गोएटे ने पवित्र क़ुरआन के बारे में लिखा है कि इसमे लिखी बातें हमको आकर्षित करने के साथ ही आश्चर्यचकित कर देती हैं। जो लोग मुसलमान होते हैं उनके द्वारा इस्लाम लाने के कारणों के बारे में यदि सोच-विचार किया जाए तो निश्चित रूप से उसका एक कारण क़ुरआन होता है।  यह क़ुरआन उनकी आत्मा को प्रभावित करता है।

मरियम फ़्रैंकोइस सिरा

पवित्र क़ुरआन ने जिन ग़ैर मुसलमानों को अपनी ओर आकृष्ट किया है उनमें से एक ब्रिटेन की Myriam Francois-cerrah मरयम "फ्रेन्कोइस सीरा" भी हैं।  वे पहले कलाकार थीं लेकिन एक घटना के कारण उन्होंने सबकुछ छोड़कर इस्लाम को गले लगा लिया।  इस्लाम स्वीकार करने से पहले उनका नाम Francois-cerrah था और मुसलमान होने के पश्चात उन्होंने अपना नाम मरयम कर लिया।  जिस समय "फ्रेन्कोइस सीरा" कलाकार थीं उस समय उनका व्यवसायिक जीवन जो उचित ढंग से चल रहा था किंतु उनको अपने निजी जीवन में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था।  उनका कहना है कि अपनी निजी समस्याओं को लेकर मैं बहुत परेशान रहा करती थी।  मैं अधिकतर अपनी समस्याओं के समाधान के प्रयास करती रहती थी।

वे कहती हैं कि मैं बहुत ही संवेदनशील स्वभाव की थी जिसके कारण मैं विभिन्न विषयों पर सोच-विचार किया करती थी।  जब मुझको अपने सवालों के जवाब मिल जाते थे तो मुझको प्रसन्नता होती थी किंतु जब उनके जवाब मुझको नहीं मिलते तो मैं बहुत परेशान हो जाया करती और दुखी रहती थी।  उनका कहना था कि मुझको ईश्वर पर तो भरोसा था किंतु इस मामले में बहुत गंभीर नहीं थी।  धर्म के बारे में मैं बात करन पसंद नहीं करती थी और इसपर मुझको कोई अधिक विश्वास नहीं था।  इसका कारण यह है कि मेरे परिवार का वातावरण भी कुछ इसी प्रकार का था।

 

"फ्रेन्कोइस सीरा" के अनुसार ग्यारह सितंबर 2001 की घटना ने मेरे जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन पैदा किया।  वे कहती हैं कि जब वर्ड ट्रेड सेंटर पर हमला हुआ और उसमें बड़ी संख्या में लोग मारे गए तो इससे मुझको बहुत दुख हुआ।  बाद में बताया गया कि यह मुसलमानों का काम था।  इस घटना के बाद पश्चिम में मीडिया ने खुलकर इस्लाम विरोधी प्रचार तेज़ कर दिया जिसने बहुत से लोगों को प्रभावित किया।  इसी बीच कुछ लोगों के मन में यह भी विचार आया कि यह इस्लाम कैसा धर्म है जो लोगों को मारने की अनुमति देता है।  

 

"फ्रेन्कोइस सीरा" कहती हैं कि पहले मेरे मन में भी यही विचार आया था किंतु बाद में मैंने सोचा कि क्यों न इसको पढ़कर देखा जाए कि वह इस प्रकार के आदेश क्यों देता है? वे कहती हैं कि अबतक मैं इस्लाम को रूढ़ीवादी और हिंसक धर्म समझती थी।  मरयम सीरा का कहना है कि पहले तो मैंने कई मुसलमानों से अलग-अलग मिलकर यही कहा कि तुम्हारा धर्म हिंसा का पाठ क्यों देता है।  जब उन्होंने मेरी बात नहीं मानी तो मैंने सोचा क्यों न इनकी किताबों से ही यह सिद्ध करूं कि तुम्हारी सोच उचित नहीं है।  हालांकि मैं उनकी किताबों को पढ़ना नहीं चाहती थी क्योंकि मुझको पता था कि उनमें कुछ न कुछ ग़लत ज़रूर है।

 

मरयम सीरा का कहना है कि मुसलमानों को यह सिद्ध करने के लिए कि तुम्हारे धर्म में कुछ ग़लत है मैने उनसे बहस शुरू की और इसी बीच क़ुरआन पढ़ना भी शुरू कर दिया ताकि उनको संतुष्ट करने के लिए उनकी किताब से प्रमाण पेश कर सकूं।  जब मैंने क़ुरआन पढ़ना शुरू किया तो आरंभ में तो मुझको कोई एसा प्रमाण नहीं मिला जिससे मैं अपनी बात सिद्ध कर सकती लेकिन क़ुरआन के बारे में मेरा लगाव बढ़ने लगा।  अब मैं इस पाबंदी से पढ़ने लगी थी।  मुझको इसकी बातें अच्छी लगने लगीं।  मुझको इसमें वे बातें नहीं मिलीं जो मैंने संचार माध्यमों में इस्लाम के बारे में सुने थे।  मुझको लगा कि हमारे संचार माध्यम इस्लाम के बारे में ईमानदारी से काम नहीं ले रहे हैं।

क़ुरआन में मुझको सबसे अच्छी बात यह लगी कि वह पूरी मानवता को संबोधित करते हुए संदेश देता है।  इस्लाम विश्व व्यापी धर्म है।  इसका संदेश सबके लिए है।  इसको पढ़ने से मेरे भीतर लगातार परिवर्तन हो रहे थे।  इसको पढ़कर मैं बहुत गंभीर होती जा रही थी।  मरयम सीरा कहती हैं कि क़ुरआन पढ़कर मैं इस नतीजे पर पहुंची कि मनुष्य जो काम भी करता है उसका हिसाब उसको अवश्य देना होगा चाहे वह अच्छा हो या बुरा।  हर व्यक्ति अपने कर्मों का ज़िम्मेदार है और उसका उसे हिसाब देना ही होगा।  क़ुरआन के अध्ययन से पहले तक मेरे मन में यह बातें नहीं थीं और मेरा इनपर विश्वास भी नहीं था।

 

यहां पर इस बात को बताना ज़रूरी है कि क़ुरआन केवल नैतिकता की किताब नहीं है अर्थात क़ुरआन में केवल नैतिकता की बातें ही नहीं लिखी हुई हैं।  इस ईश्वरीय पुस्तक में मानव जाति के मार्गदर्शन के लिए विभिन्न विषयों को अलग-अलग शैलियों में पेश किया गया है।  इसमें जहां नैतिक पाठ है वहीं पर कुछ अन्य बातों के आदेश दिये गए हैं।  धार्मिक कामों के आदेश भी आपको क़ुरआन में मिल जाएंगे और बहुत से प्राचीन क़िस्से भी इसमें मौजूद हैं।  मरयम सीरा को दर्शनशास्त्र से विशेष लगाव है।  उन्होंने इस बारे में व्यापक अध्ययन कर रखा है।  क़ुरआन में दर्शनशास्त्र के बारे में वे कहती हैं कि मेरा यह मानना है कि दर्शनशास्त्र को क़ुरआन में बहुत ही उचित ढंग से पेश किया गया है।  उनका कहना है कि यह दर्शनशास्त्रियों का प्रेरणास्रोत हो सकता है।  मरयम सीरा कहती हैं कि क़ुरआन में इस विषय को इस प्रकार से पेश किया गया है कि लंबे समय से इस बारे में जो खोज की जा रही है उसका जवाब सरलता से मिल सकता है।  वे इस्लाम को एसा व्यापक धर्म मानती हैं जो लोक-परलोक की सफलता का उचित मार्ग दर्शाता है।

मरयम सीरा द्वारा इस्लाम स्वीकार करने में जहां पवित्र क़ुरआन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है वहीं पर पैग़म्बरे इस्लाम का व्यक्तित्व भी इसमें प्रभावी रहा है।  वे कहती हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम का व्यक्तित्व मानवता के लिए आदर्श है।  पैग़म्बरे इस्लाम की नैतिकता के बारे में ईश्वर क़ुरआन में कहता है कि वास्तव में आपका शिष्टाचार बहुत ऊंचा है।  खेद की बात यह है कि वह पैग़म्बर जिसके शिष्टाचार की प्रशंसा, स्वयं ईश्वर कर रहा है उसी के बारे में पश्चिम में खुलकर दुष्प्रचार किया जाता है।  उनके विरुद्ध किताबें लिखी जाती हैं, फ़िल्में बनाई जाती हैं, कार्टून बनाते हैं और उनके संबन्ध में ग़लत जानकारियों को पेश करते हैं लेकिन इसके बावजूद लोग पैग़म्बरे इस्लाम के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर मुसलमान होते हैं।  इन्हीं लोगों में से एक मरयम फ्रेन्कोस सीरा भी हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा के बारे में वे कहती हैं कि मुझको एसे व्यक्ति के चरित्र के बारे में अवगत होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जिसे अपने वंशजों हज़रत मूसा, ईसा और इब्राहीम की ही भांति पवित्र ज़िम्मेदारी देकर भेजा गया।  वे कहती हैं कि मुझको इस बात का पूरा विश्वास है कि हज़रत मुहम्मद इतिहास के एसे सबसे महान व्यक्ति हैं जिनको ग़लत ढंग से पेश किया जा रहा है।  वे लोग जो सच की खोज में हैं उनके लिए पैग़म्बरे इस्लाम की छवि, बहुत ही आकर्षक और मार्गदर्शक है।  हज़रत मुहम्मद और उनके परिजन क़ुरआन के आधार पर, लोगों के लिए संपूर्ण आदर्श हैं।  जैसाकि सूरे अहज़ाब की आयत संख्या 21 में ईश्वर कहता है कि निश्चित रूप से ईश्वर का रसूल उन लोगों के जीवन के लिए अच्छा आदर्श हैं जो लोग ईश्वर की अनुकंपा के प्रति आशावान हैं।

इस्लाम की मूलभूत शिक्षाओं में से एक, न्याय और भेदभाव से दूरी है।  पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों में व्यक्तिगत और सामाजिक न्याय पर बहुत बल दिया गया है।  सूरे निसा की आयत संख्या 135 में ईश्वर कहता हैः हे ईमानवालो, ईमान पर मज़बूती के साथ क़ाएम रहो।  ईश्वर के लिए गवाही दो चाहे यह गवाही तुम्हारे या तुम्हारे रिश्तेदारों के ख़िलाफ़ ही क्यों न हो।  मरयम सीरा का कहना है कि क़ुरआन की आयत ने मुझको बहुत प्रभावित किया।  वे कहती हैं कि इस्लामी किताबें पढ़ने पर मुझको पता चला कि इस्लाम में सामाजिक न्याय को कितना महत्व हासिल है और यह चीज़ पश्चिमी समाज में बहुत कम दिखाई देती है।  उनका कहना है कि मुसलमान का यह कर्तव्य बनता है कि वह सदैव ही न्याय का पक्षधर रहे।

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