Oct ०३, २०२० २०:१५ Asia/Kolkata

एक बड़ी नदी के किनारे बसे शाहरूद की सैर के बाद अब हम आप को उसकी के निकट स्थित एक बेहद ख़ूबसूरत और एतिहासिक नगर “ बसताम “ की सैर पर ले चलते हैं।

ईरान के इतिहास में साहित्य व कला के कई चमकते सितारे अपनी रौशनी बिखेर रहे हैं जिनमें से दो सितारों का जन्म बस्ताम में हुआ था। बस्ताम का नाम साहित्य व अध्यात्म के दो महागुरुओं के नामों से जुड़ा है। एक “ बायज़ीद बस्तामी “ दूसरे शेख़ अबुलहसन हरक़ानी “ हैं।

बस्ताम का इतिहास पांच हज़ार साल सा पूर्व से जुड़ा है। इस वक्त जो शहर है वह दरअस्ल उसी पुराने शहर के खंडहर पर बना है। यह नगर, ईरान में इस्लाम के प्रवेश के बाद से , देश का एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक व वैज्ञानिक केन्द्र बना और ख़ुरासान प्रान्त से मध्य एशिया, पश्चिमी ईरान और युरोप के रास्ते में स्थित होने की वजह से भी यह नगर बहुत महत्वपूर्ण समझा जाता था लेकिन इस नगर के इतिहास और भौगोलिक स्थिति के अलावा जिस चीज़ ने इस नगर को पूरी दुनिया में पशहूर किया वह दूसरी शताब्दी हिजरी क़मरी के आध्यात्मिक गुरू, बायज़ी बस्तामी का मक़बरा है। उनके मज़ार की वजह से यह नगर पूरी दुनिया में अध्यात्म में रुचि रखने वालों के लिए पर्यटन व दर्शन स्थल बन गया है।

इस नगर में “ बायज़ीद बस्तामी “ काम्पलेक्स बनाया गया है जो बस्ताम जाने वाले हर पर्यटक को अपनी ओर खींचता है। यह काम्पलेक्स नगर के बीच में स्थित है।

बायज़ीद बस्तामी दूसरी और तीसरी हिजरी क़मरी सदी के आध्यात्मिक गुरू हैं और उनके जीवन के बारे में सही और व्यापक मालूमात नहीं हैं लेकिन उनके कथनों और रचनाओं से यह पता चलता है कि बध्यात्मिक प्रेम से उन्हें खास लगाव था।

जब आप इस माहन आध्यात्मिक गुरू के मज़ार में जाते हैं तो जो चीज़ सबसे पहले आपको अपनी ओर आकर्षित करती है, वह वहां की सादगी है। एक साधारण सी क़ब्र जिस पर सफ़ेद पत्थर लगा है और उस पर बड़े ख़ूबसूरत अंदाज़ में बायज़ीद बस्तामी लिखा हुआ है।

बायज़ीद  मज़ार के साथ ही एक दूसरा मज़ार भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि वह इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के एक पुत्र की क़ब्र है। कहते हैं कि वे बायज़ीद को उपदेश देने और समझाने के लिए इस क्षेत्र में आए थे लेकिन बहुत जल्द उनका निधन हो गया। उनके मक़बरे की इमारत “ गुंबदे गाज़ान ख़ान” की तरह है और उसे ठिक उसी इमारत की तरह बनाया गया है।

मज़ार में महिलाओं और पुरुषों का अलग अलग भाग है, पुरुषों वाले भाग को सल्जूक़ी काल की एक मस्जिद के खंडहर पर बनाया गया है जहां चूने के काम वाली ख़ूबसूरत मेहराब नज़र आती है जिसे विभिन्न प्रकार की डिज़ाइनों और फूल पत्तियों के चित्रण से सजाया गया है। मेहराब के ऊपरी भाग को ईलख़ानी और काजारी काल की सुल्स व नस्तालीक़ कही जाने वाली लिपियों से सजाया गया है। मेहराब की छत पर बेहद ख़ूबसूरत चूने का काम नज़र आता है।

जब हम बायज़ीद बस्तामी काम्पलेक्स के प्रांगण में खड़े होते हैं तो हमें एक बेहद ख़ूबसूरत और फ़िरोज़ी रंग का गुबद भी नज़र आता है। जिससे इस काम्पलूक्स की ख़ूबसूरत में चार चांद लग गये हैं। इसे ग़ाज़ान ख़ान का गुंबद कहा जाता है। ग़ाज़ान ख़ान का गुंबद चौकोर है। वास्तव यह एक इमारत के ऊपर बना हुआ गुंबद है और उसे फ़िरोज़ी रंग की टाइलों की मदद ख़ूबसूरती के साथ सजाया गया है।

बायज़ीद बस्तामी काम्पलेक्स में “ बुर्जे काशाने “ नाम की एक अन्य इमारत है जिसे गुंबदे काऊस के बाद ईरान का दूसरा सब से बड़ा बुर्ज या मीनाक कहा जाता है। इसे ईरान की राष्ट्रीय धरोहर में पंजीकृत किया गया है। यहां मौजूद शाहरुख़िया मदरसा भी देखने लायक़ है। यह एक दो मंजिला इमारत है जिसमें लगभग २८ कमरे हैं।

 

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