Sep १४, २०२३ १४:३६ Asia/Kolkata
  • पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास और इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत के दुःखद अवसर पर विशेष कार्यक्रम

दोस्तो जैसाकि आपके जानते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम स. सदगुणों की प्रतिमूर्ति थे। उनका जन्म अरब के उस समाज में हुआ था जहां विभिन्न प्रकार की बुराइयां व कुरीतियां प्रचलित थीं।

इस्लाम से पहले अज्ञानता के काल के अरब समाज में बहुत से लोग अपनी लड़कियों को ज़िन्दा दफ्न कर देते थे। यही नहीं जब उन्हें इस बात की सूचना दी जाती थी कि उनके यहां लड़की पैदा हुई है तो उनके चेहरे काले पड़ जाते थे। अरब शराब पीते थे, जुआ खेलते थे और शक्तिशाली लोग कमज़ोर लोगों पर अत्याचार करते थे।  छोटी- छोटी बातों पर वर्षों लड़ते रहते थे। बहरहाल इस प्रकार की दूसरी बहुत सारी बुराइयां अरब समाज में प्रचलित थीं और महान, सर्वसमर्थ व कृपालु ईश्वर की कृपा से अज्ञानता के अंधकार में डूबे अरब समाज में सच्चाई और मार्गदर्शन के सूरज का उदय हुआ। महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे आले इमरान की 159वीं आयत में पैग़म्बरे इस्लाम स. के व्यवहार की प्रशंसा करते हुए कहता है कि ईश्वर की कृपा से लोगों के प्रति आप नर्म व दयालु हो गये हैं और अगर आप दिल के कठोर होते तो लोग आप के पास से चले जाते। तो आप उन्हें माफ कर कीजिये और उनके लिए क्षमा याचना कीजिये।

इस्लाम धर्म जो इतनी तेज़ी से फैला उसकी एक महत्वपूर्ण वजह पैग़म्बरे इस्लाम का शिष्टाचार व अच्छा व्यवहार था और महान ईश्वर पवित्र कुरआन में कहता है हे पैग़म्बर आप अखलाक़ शिखर पर हैं। पैग़म्बरे इस्लाम के अखलाक के बारे में रिवायत में है कि एक बार एक व्यक्ति ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से पैग़म्बरे इस्लाम का अखलाक व सदव्यवहार बयान करने के लिए कहा तो आपने उससे कहा कि तू दुनिया की नेअमतों को गिनना शुरू कर मैं पैग़म्बरे इस्लाम की विशेषताओं की गणना आरंभ करता हूं।

इस पर उस व्यक्ति ने कहा कि किस तरह महान ईश्वर की नेअमतों की गणना की जा सकती है जबकि ईश्वर ने खुद कहा है कि अगर उसकी नेअमतों को गिनना चाहो तो नहीं गिन सकते। इसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उस व्यक्ति से फरमाया ईश्वर ने कुरआन में कहा है कि दुनिया की नेअमतें कम हैं जबकि पैग़म्बरे इस्लाम के बारे में कहता है कि तुम शिष्टाचार के उच्च शिखर पर हो।“ तुम जब दुनिया की कम व थोड़ी नेअमतों को नहीं गिन सकते तो मैं पैग़म्बरे इस्लाम के असंख्य सदगुणों को कैसे गिन सकता हूं।  

पैग़म्बरे इस्लाम के निमंत्रण का आधार न्याय व आध्यात्म था। पैग़म्बरे इस्लाम लोगों को एकेश्वरवाद की उपासना के लिए आमंत्रित करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम जब मक्का से पलायन करके मदीना गये तो उन्होंने एक व्यक्ति को लोगों को लिखाने- पढ़ाने का काम सौंपा। यही नहीं जंगों में जिन लोगों को मुसलमान बंदी बनाकर लाते थे अगर उनमें से एक बंदी 10 मुसलमानों को लिखना- पढ़ना सिखा देता था उसे आज़ाद कर दिया जाता था जबकि दूसरे बंदियों को आज़ाद होने के लिए पैसा देना पड़ता था।

एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम कारवां के साथ यात्रा में थे। उन्होंने आदेश दिया कि आज खाने में भेड़ ज़िब्ह की जाये। इस पर पैग़म्बरे इस्लाम के एक सहाबी ने कहा कि मैं ज़िब्ह करूंगा, दूसरे ने कहा कि मैं खाल उतारूंगा और तीसरे ने कहा कि पकाने का काम मैं करूंगा। तो पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया कि ईंधन इकट्ठा करने का काम मैं करूंगा। इस पर पैग़म्बरे इस्लाम के अनुयाइयों ने कहा कि हे अल्लाह के रसूल हमारी मौजूदगी में आप कष्ट न करें तो पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया मैं जानता हूं कि तुम लोग अंजाद दोगे मगर मैं इस बात को पसंद नहीं करता कि मुझे तुम पर कोई प्राथमिकता प्राप्त हो और ईश्वर भी इस बात को पसंद नहीं करता है कि बंदों के बीच में उसके किसी बंदे को अलग से कोई प्राथमिकता प्राप्त हो। इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम उठे और ईंधन इकट्ठा करने में लग गये।

पैग़म्बरे इस्लाम की एक विशेषता लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए प्रयास करना था। रिवायतों में है कि अगर पैग़म्बरे इस्लाम नमाज़ की हालत में होते थे और कोई उनके पास जाकर बैठ जाता था तो पैग़म्बरे इस्लाम नमाज़ को जल्द खत्म करने का प्रयास करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम का यह अमल इस बात का चिन्ह है कि वे लोगों की समस्याओं को बहुत महत्व देते थे। यह लोगों को सम्मान देने का एक तरीक़ा है और यह पैग़म्बरे इस्लाम की सरकार का एक आधार था।

वह हमेशा दूसरों को नेक काम करने के लिए कहते थे। एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने अनुयाइयों से कहा कि हर मुसलमान पर प्रतिदिन सदक़ा निकालना ज़रूरी है। इस पर पैग़म्बरे इस्लाम के कुछ अनुयाइयों ने कहा हे ईश्वरीय दूत! कौन यह कार्य कर सकता है? इस पर आपने फरमाया लोगों की समस्याओं का समाधान सदक़ा है। अज्ञानी का मार्गदर्शन करना, बीमार की हाल चाल पूछना, अच्छे काम के लिए कहना और बूरे काम से रोकना और प्रश्नों का उत्तर देना सदक़ा व दान है इस आधार पर सभी सदक़ा दे सकते हैं।

दोस्तो सदियों का समय बीत रहा है जबसे पैग़म्बरे इस्लाम की महान हस्ती मानवता के बीच मौजूद नहीं है परंतु उनकी याद और नाम लोगों की ज़बानों पर है और जब भी उनके सदाचरण का उल्लेख किया जाता है इंसान के सामने शांति, प्रेम और नयाय के द्वार खुलते हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम ने अपना पूरा जीवन लोगों के मार्गदर्शन और उनकी सेवा में बिता दिया। पैग़म्बरे इस्लाम लोगों की कठिनाइयों को अपनी कठिनाइ समझते थे और उसके समाधान के लिए पूरा प्रयास करते थे। इस प्रकार से कि लोग पैग़म्बरे इस्लाम के पावन अस्तित्व से सुकून का आभास करते थे।

पैग़म्बरे इस्लाम ने कभी भी किसी का अपमान नहीं किया यहां तक कि उन लोगों का भी अपमान नहीं किया जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम का अपमान किया, उनके पावन सिर पर कूड़ा करकट और गंदगी फेंकी और उनकी शान में अभद्र शब्दों का प्रयोग किया। सारांश यह कि पैग़म्बरे इस्लाम 63 साल की उम्र में इस नश्वर संसार से परलोक सिधार गये और इस्लामी व इंसानी समाज शोकाकुल हो गया।

पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी हज़रत अली अलैहिस्सलाम उनके स्वर्गवास पर दुःख व्यक्त करते हुए कहते हैं" हमारे मां- बाप आप कुर्बान हो जायें आपके मरने से मुझे जो दुःख पहुंचा है वह किसी दूसरे के मरने से नहीं पहुंचा है, आपके मरने से सब शोकाकुल हैं, अगर आपने धैर्य से काम लेने और व्याकुलता से मना न किया होता तो मैं इतना रोता कि मेरे आंसू खुश्क हो जाते और आपके वियोग का ग़म हमेशा हमारे अंदर रहेगा और इस ग़म के मुकाबले में दुनिया का समस्त ग़म हमारे लिए कुछ भी नहीं है। मौत को रोका नहीं जा सकता और उससे किसी को मुक्ति नहीं दिलाई जा सकती।

दोस्तो पैग़म्बरे इस्लाम को उसी मस्जिद में दफ्न किया गया है जिसका निर्माण स्वयं उन्होंने मदीने में किया था जिसे मस्जिदुन्नबी कहा जाता है।                         

 दोस्तो जैसाकि आपको ज्ञात है कि आज 28 सफर है और आज ही के दिन पैग़म्बरे इस्लाम के प्राणप्रिय नाती इमाम हसन अलैहिस्सलाम भी शहीद हुए थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम आपके पिता और हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा आपकी माता थीं। मक्का से मदीना पलायन के तीन वर्ष बाद इमाम हसन अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ और अपने जीवन के सात वर्ष इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने नाना पैग़म्बरे इस्लाम के साथ बिताये। अधिक समय नहीं गुज़रा था कि पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद ही लोगों के दिलों में जो द्वेष व दुश्मनी थी वह सामने आ गयी यहां तक कि वह समय भी आ गया जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम को रमज़ान के पवित्र महीने में कूफा की मस्जिद में नमाज़ की हालत में शहीद कर दिया गया और हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व इमाम हसन अलैहिस्सलाम के कांधों पर आ गया।

पैग़म्बरे इस्लाम इमाम हसन और इमाम हुसैन अलैहिमुस्सलाम को बहुत चाहते थे। उन्हें चुमते और सूघंते थे और फरमाते थे  इनसे मुझे स्वर्ग की सुगंध आती है। इमाम हसन और इमाम हुसैन को प्रलय के दिन अर्शे एलाही की शोभा बताते और कहते थे कि हसन और हुसैन जन्नत के जवानों के सरदार हैं।

इसी प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम एक अन्य स्थान पर फरमाते हैं पालनहार तू जानता है कि अहलेबैत मेरे निकट सबसे प्रतिष्ठित लोग हैं तो तू उसे दोस्त रख जो इन्हें दोस्त रखे और उसे दुश्मन रख उसे जो इन्हें दुश्मन रखे, हसन और हुसैन दो फूल हैं। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने उनके हाथों को आसमान की ओर हाथ उठाया और कहा पालनहार! तू गवाह रहना कि मैं उन्हें दोस्त रखने वाले को दोस्त रखता हूं और उनसे दुश्मनी करने वाले को दुश्मन रखता हूं और उससे सुलह करता हूं जो इनसे सुलह करता है और जो उससे जंग करता हूं जो इनसे जंग करता है। 

इमाम हसन अलैहिस्सलाम ईमान, तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय, दान, ज्ञान आदि समस्त सदगुणों की प्रतिमूर्ति थे।

ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता कहते हैं कि कभी शहीद होना जीवित रहने से आसान होता है और वास्तव में एसा ही है और इस बात को समझदार लोग समझते हैं और इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने इसी मुश्किल का चयन किया।

इमाम हसन अलैहिस्सलाम जहां दानी थे वहीं बहुत विनम्र थे। एक दिन इमाम हसन अलैहिस्सलाम कहीं जा रहे थे रास्ते में कुछ ग़रीब बैठे रोटी खा रहे थे। उन लोगों ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम को रोटी खाने के लिए आमंत्रित किया तो इमाम सवारी से उतरे और फरमाया ईश्वर घमंडी लोगों को पसंद नहीं करता है।

इसके बाद इमाम ने उनके साथ बैठकर रोटी खायी। उसके पश्चात इमाम ने उन सबको अपने यहां आमंत्रित किया और इमाम ने अपने यहां उन सबकी आवभगत और आतिथ्य सत्कार किया। इसी प्रकार रिवायत में है कि इमाम हसन अलैहिस्सलाम अपने जीवन में तीन बार अपनी सारी पूंजी को गरीबों व निर्धनों में बराबर बराबर बांट दी। चूंकि इमाम हसन अलैहिस्सलाम बहुत दानी थे इसलिए उनकी एक प्रसिद्ध उपाधि करीमे अहले बैत भी है।

सन 40 हिजरी कमरी में 21 रमज़ान को हज़रत अली अलैहिस्सलाम शहीद हो गये। उसी दिन 40 हज़ार से अधिक लोगों ने आपकी बैअत की थी परंतु वे सब अपनी बैअत पर बाकी न रहे और रिवायतों में इमाम हसन अलैहिस्सलाम के इमामत के काल को बहुत सख्त दौर बताया गया है। माअविया दूसरे और तीसरे खलीफा के दौर में शाम का शासक था और उसने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से जंग की और जब इमाम हसन अलैहिस्सलाम खलीफा बने तो उसने लोगों को लालच देकर इमाम हसन अलैहिस्सलाम से दूर कर दिया और इस काम वह काफी सीमा तक सफल भी रहा। उसने इमाम हसन अलैहिस्सलाम से सुलह की परंतु शांति के प्रति वह भी कटिबद्ध न रहा।

माअविया ने ही इब्ने मुल्जिम के माध्यम से हज़रत अली अलैहिस्सलाम को शहीद करवाया था और अब उसने इमाम हसन अलैहिस्सलाम की एक पत्नी जोअदा बिन्ते असअस के माध्यम से उन्हें ज़हर दिलवा कर शहीद करवा दिया। माअविया ने जोअदा को पैसे की लालच दी थी और कहा था कि उसका विवाह अपने बेटे यज़ीद से करा देगा।

माअविया ने जो ज़हर दिया था जोअदा ने उसे दूध में मिला दिया और एक दिन जब इमाम हसन अलैहिस्सलाम रोज़ा खोलना चाह रहे थे तो जोदा ने उस दूध को पेश कर दिया जिसमें ज़हर मिलाया था। ज़हर इतना शक्तिशाली था कि उसी ज़हर की वजह से इमाम शहीद हो गये और जब इमाम की शहादत की खबर माअविया को मिली तो वह बहुत प्रसन्न हुआ इस प्रकार से कि वह अपनी खुशी को न छिपा सका और उसने ऊंची आवाज में अल्लाहो अकबर कहा यहां तक कि दूसरों ने भी उसकी यह आवाज़ सुनी।

दोस्तो पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों पर जो अत्याचार व अन्याय हुए हैं उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।

दोस्तो एक बार फिर पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास और इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत के दुःखद अवसर पर आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रस्तुत करते हैं। MM