Aug ०६, २०२३ १७:२४ Asia/Kolkata
  • भारत की पहचान बनता बिल्डोज़र, ऑन द स्पाट फ़ैसला करती सरकारें, नई प्रथा ने संविधान की उठाई अर्थी! जल्द लगेंगे अदालतों पर ताले!

भारत में वह दिन दूर नहीं है कि जब इस देश की अदालतों और न्यायपालिकाओं पर ताले लगे होंगे। क्योंकि जिस तेज़ी से अदालतों और जजों की जगह बिल्डोज़र ले रहा है उससे तो ऐसा ही महसूस होने लगा है। सत्ता में बैठे लोग ऑन द स्पाट फ़ैसले कर रहे हैं। ऐसा दिखने लगा है कि इस देश का संविधान और क़ानून सत्ताधारियों की उंगलियों के इशारों पर नाच रहा है। अब तो ऐसा लगने लगा है कि बिल्डोज़र, ही भारत में किसी भी जुर्म की सज़ा के तौर पर परिवर्तित हो गया है, बस शर्त यह है कि आरोपी मुसलमान या फिर सत्ताधारी पार्टी का विरोधी ह

हरियाणा के मेवात और नूंह में जिस प्रकार संप्रदायिक हिंसा हुई है वह किसी भी स्थिति में स्वीकारीय नहीं है। हिंसा करने वाले और उसकी साज़िश रचने वालों को कभी भी माफ़ नहीं करना चाहिए। लेकिन इंसाफ़ के साथ, न्याय का पूरा ख़्याल रखते हुए कार्यवाही की जानी चाहिए। क्योंकि जिस प्रकार हिंसा, समाज के लिए एक कैंसर जैसी बीमारी है वैसे ही अन्याय इस कैंसर को जन्म देने का कारण है। हरियाणा सांप्रदायिक हिंसा के संदिग्धों की नूंह में जिस प्रकार अंधाधुंध बिल्डोज़र चलाया जा रहा है वह इस राज्य की हिंसा को रोकने में नाकाम सरकार की खिसियाहट को दर्शा रहा है। इस दंगे को भड़काने वाले आरोपी आज भी खुले घूम रहे हैं जबकि केवल शक की बुनियाद पर मुसलमानों के घरों को खुले आम ज़मीनदोज़ किया जा रहा है। यह अन्याय नहीं है तो क्या है? दिलचस्प बात तो यह है कि अभी तक जिन लोगों को गिरफ़्तार किया गया है न ही उनपर आरोप सिद्ध हुआ है और न ही उनके ख़िलाफ़ अदालतों में क़ानूनी प्रक्रिया आरंभ हुई है। लेकिन क्योंकि हिंसा में मुसलमानों की ओर से कट्टरपंथी हिन्दू संगठनों की क्रिया पर प्रतिक्रिया सामने आई है तो इस तरह की कार्यवाही होनी ही थी। क्योंकि जिस तरीक़े से बिल्डोज़र की कार्यवाही की जा रही है उससे साफ़-साफ़ ज़ाहिर है कि यह कार्यवाही अतिक्रमण पर कम किसी ख़ास समुदाय के मन में भय पैदा करने के लिए अंजाम दी जा रही है।

यहां सवाल यह पैदा होता है कि आख़िर बिना क़ानूनी प्रक्रिया, बिना अदालती सुनवाई और बिना किसी फ़ैसले से पहले इस तरह की कार्यवाहियों को अंजाम दिया जाना किस हद तक सही है? क्या इस तरह की कार्यवाहियों से समाज में पैदा होने वाली नफ़रत कम हो जाएगी या फिर उसमें और बढ़ोतरी होगी? क्या इन कार्यवाहियों से भारतीय संविधान और क़ानून का गला नहीं घोंटा जा रहा है? इसी तरह बहुत सारे सवाल हैं कि जिसका जवाब देने को भी कोई तैयार नहीं है। इस बात से तो कोई भी इंकार नहीं कर रहा है कि हरियाणा में हिंसा हुई है, लेकिन सवाल यह है कि क्या हिंसा के दोषी वही हैं कि जिनके घरों और दुकानों पर बिल्डोज़र चलाया जा रहा है? क्योंकि हिंसा से पहले जो कट्टरपंथी हिन्दू संगठनों के सदस्यों की ओर से भड़काऊ वीडियो जारी किए गए, जिस प्रकार से हिन्दू संगठनों के लोग खुले आम हथियार लेकर यात्राएं निकाल रहे हैं और जिस तरह से सभी आशंकाओं के बावूजद पुलिस प्रशासन हाथ पर हाथ रखे बैठा हुआ था, क्या हिंसा के लिए वे ज़िम्मेदार नहीं है? अगर हिंसा की पूरी घटना पर नज़र डाली जाए तो कट्टरपंथी हिन्दू संगठनों के साथ-साथ स्थानीय पुलिस प्रशासन भी उतना ही ज़िम्मेदार है, तो फिर इनके ख़िलाफ़ क्यों कोई कार्यवाही नहीं की जा रही हैं? इन दोषियों के घरों पर क्यों बिल्डोज़र नहीं चलाया जा रहा है?

कुल मिलाकर आजकल भारत में नया क़ानून राज कर रहा है और उस क़ानून का नाम है बिल्डोज़र। जिस प्रकार लगातार कट्टरपंथी हिन्दू संगठनों की ओर से भड़काऊ नारे लगाए जा रहे हैं, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थलों का अनादर किया जा रहा है और जिस तरह राह चलते मुसलमानों, दलितों और इसाईयों के साथ मारपीट और उनकी हत्याएं हो रही हैं उसको पर कोई कार्यवाही न होकर अगर कोई भी इन आतंकवादी घटनाओं के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता है तो उसके ख़िलाफ़ बिल्डोज़र क़ानून का इस्तेमाल होने लगा है यह वास्तव में काफ़ी चिंता का विषय बनता जा रहा है। बल्कि यह कहना बिल्कुल उचित होगा कि भारत में अब लोकतंत्र ख़तरे के निशान के ऊपर पहुंच चुका है। वही ख़तरा कि जिसके बारे में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी बार-बार चेतावनी देते चले आ रहे हैं और जिसको लेकर अमेरिका में एक पत्रकार ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल भी किया था। अब ऐसा लगता है कि अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों और संस्थाओं को खुलकर सामने आने की ज़रूरत है और भारत में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ होने वाली अन्यायपूर्ण कार्यवाहियों के विरुद्ध आवाज़ उठाए जाने की आवश्यकता है। नहीं तो वह दिन दूर नहीं है कि जब सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के नारे के पीछ जारी मुसलमानों के विनाश की साज़िश केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया को भी अपनी चपेट में ले लेगी।  (RZ)

लेखक- रविश ज़ैदी, वरिष्ठ पत्रकार। ऊपर के लेख में लिखे गए विचार लेखक के अपने हैं। पार्स टुडे हिन्दी का इससे समहत होना ज़रूरी नहीं है।  

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