चीन से भारत की भिड़ंत के बाद क्या अब पाकिस्तान की बारी है?
हिमालिया के इलाक़े में भारत और चीन के बीच टकराव फ़िलहाल तो थम गया है लेकिन संकट बढ़ जाने की आशंका अब भी पूरी तरह मौजूद है। पिछले हफ़्ते भारत ने औपचारिक रूप से एलान कर दिया कि वह अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान से संबंधों को कम कर रहा है और इसी फ़ैसले की तहत हाई कमीशन के स्टाफ़ में पचास प्रतिशत की कमी की जा रही है।
इससे पहले भारत ने 2001 में पाकिस्तान से मांग की थी कि वह अपने दूतावास के स्टाफ़ की संख्या कम करे। उस समय भारत की संसद पर हमला हुआ था।
गत वर्ष 5 अगस्त को जब से भारत सरकार ने जम्मू व कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किया है उस समय से दोनो देशों के संबंध और भी ख़राब हो गए जो पहले ही तनावग्रस्त चले आ रहे थे।
कुछ कारण हैं जिनसे लगता है कि चीन और भारत की भिड़ंत के बाद अब भारत और पाकिस्तान के बीच टकराव हो सकता है।
एक तो चीन के मामले में भारत ने जिस प्रकार की ख़ामोशी अख़तियार की है उससे भारत की भूमिका को लेकर अब चिंता पैदा हो गई है। अमरीका तो इंडोपेसिफ़िक रणनीति के तहत भारत की भूमिका बढ़ाने की कोशिश में था मगर अब हालात बदल गए हैं। इस समय भारत जिस तरह चीन से सैनिक अधिकारियों और कूटनयिकों के स्तर पर बात कर रहा है उससे लगता है कि भारत चीन से उलझने के मूड में क़तई नहीं है हां अगर सैनिक क्षेत्र में अपनी कमज़ोरी पर पर्दा डालना है तो इसके लिए पाकिस्तान से कोई टकराव अनुकूल रहेगा।
दूसरे यह कि 2014 में सत्ता संभालने के बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के भीतर राष्ट्रवादी भावनाओं के तहत काम करने की क्षमता ज़ाहिर करने पर मेहनत की है हालांकि देश की अर्थ व्यवस्था कठिन दौर में पहुंच गई है और पिछले ग्यारह साल में सबसे निचले स्तर पर चल रही है। इन हालात में राष्ट्रवादी भावनाओं को भड़काकर देश के भीतर भाजपा अपनी साख संवार रही है। मोदी की पार्टी ने कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली संविधान की धारा ख़त्म कर दी और राम मंदिर निर्माण का वादा भी लगभग पूरा कर दिया है।
अध्ययनों से पता चलता है कि भाजपा के नेता इस समय अपने पारम्परिक दुशमन को निशाना बनाने की कोशिश में हैं। भाजपा के नेताओं ने पाकिस्तान नियंत्रित कश्मीर पर अपनी दावेदारी इसी रणनीति के तहत बढ़ाई है।
तीसरी बात यह है कि भारत और चीन के बीच जब तनाव कुछ कम हुआ है तो पिछले साल फ़रवरी में भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले हवाई टकराव की बातें ज़्यादा होने लगी हैं जिसमें पाकिस्तान ने भारत का पायलट पकड़ लिया था। इस घटना के बाद न्यूयार्क टाइम्ज़ ने एक रिपोर्ट छापी थी कि भारत उस देश से टकराव में अपना एक युद्धक विमान गवां बैठा जिसकी सैनिक शक्ति भारत की आधी है। इस पर शिव सेना की ओर से मांग उठी कि भारत को चाहिए कि पाकिस्तान के ख़िलाफ़ और सर्जिकल स्ट्राइक करे। स्थिति यह है कि मोदी सरकार के लिए बालाकोट वाला मुक़ाबला अब भी अधूरा रह गया है। इस समय देश के भीतर यह सोच पैदा हो गई है कि भाजपा विदेशी दुशमनों के सामने पांव पीछे खींचने पर मजबूर है।
एक और बिंदु यह भी है कि भारत की अर्थ व्यवस्था और अमरीका के साथ भारत के संबंध दोनों ही नीचे की दिशा में बढ़ रहे हैं जबकि ट्रम्प की ओर से भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता का प्रस्ताव नई दिल्ली सरकार ख़ारिज कर चुकी है। नई दिल्ली का कहना है कि शिमला समझौते के तहत भारत और पाकिस्तान को अपने मुद्दों को आपस में हल करना है बाहरी मध्यस्थता की गुंजाइश नहीं है मगर यह भी हक़ीक़त है कि शिमला समझौते में कहा गया था कि कश्मीर के मामले में दोनों में से कोई भी देश एकतरफ़ा रूप से कोई कार्यवाही नहीं करेगा जबकि भारत ने जम्मू व कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म करके इस समझौते को नज़रअंदाज़ किया है।
इस बीच तालेबान और अमरीका के मध्य समझौते को देखते हुए लग रहा है कि पाकिस्तान से अमरीका के संबंधों में भी एक सार्थक प्रगति होगी। इन हालात में शायद भारत को यह संदेश जाएगा कि वह अमरीका पर भरोसा करने के बजाए अपने आप पर भरोसा करे और कुछ करके दिखाए।
स्रोतः फ़ारेन पालीसी
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