भारत और पाकिस्तान को एक मंच पर लाने की तेहरान की कोशिश जबकि अमेरिका चल रहा है नई चाल
पार्सटुडे - भारत और पाकिस्तान के लिए ईरान की गैस पाइपलाइन को "शांति की पाइपलाइन" नाम देने की वजह, इस आम नज़रिए पर आधारित थी कि एक महत्वपूर्ण और रणनीतिक पाइपलाइन के माध्यम से इन दोनों देशों के बीच संबंध स्थापित किया जाना संभव हो जाएगा।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति की जैसे ही पाकिस्तान यात्रा हुई दोनों देशों के बीच शांति पाइपलाइन की योजना पर काम होने या न होने को लेकर अफवाहों का बाज़ार एक बार फिर गर्म हो गया।
वर्ष 1990 से संयुक्त अरब इमारात की भागीदारी से भारत और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ मिलकर ईरान के संचार और आर्थिक क्षेत्र में "शांति पाइपलाइन" नामक एक योजना पेश की गयी थी।
इस सहमति और समझौते के आधार पर, ईरान ने 25 वर्षों की अवधि के अंदर भारत और पाकिस्तान को सहमत हासिल करने वाले मूल्य पर अपनी गैस बेचने की प्रतिबद्धता जताई थी।
उसके बाद इस बड़ी परियोजना के लिए प्राकृतिक गैस उपलब्ध कराने में तुर्कमेनिस्तान और क़तर की तरफ़ से ईरान का साथ देने के विषय पर भी चर्चा हुई लेकिन अमेरिका की ओर से पैदा की जाने वाली बाधाओं सहित विभिन्न कारणों से किसी भी योजना को लागू नहीं किया जा सका और यह नज़रिया लगभग फ़ेल होता नज़र आने लगा।
इस बात की तरफ़ इशारा किया जाना ज़रूरी है कि इस पाइपलाइन योजना का नाम "शांति" रखने की वजह, इस आम नज़रिए पर आधारित था कि एक महत्वपूर्ण और रणनीतिक पाइपलाइन के माध्यम से इन दोनों देशों के बीच संबंध स्थापित किया जाना संभव हो जाएगा।
इस बात को भी भूलना नहीं चाहिए कि उस समय भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर जैसे मुद्दों पर काफ़ी तनाव बढ़ गया था।
यह तनाव इतने ज़्यादा थे कि आधिकारिक तौर पर परमाणु क्लब में शामिल दोनों देशों को जंग के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया था।
ईरान का मानना था कि यह पाइपलाइन शांति को बढ़ावा देगी। कुछ लोगों का मानना है कि इस पाइपलाइन का नाम "शांति" रखने की कोई आवश्यकता ही नहीं थी।
क्योंकि अमेरिका के विशेष दबाव के कारण भारत इस परियोजना से हट गया है। संयुक्त अरब इमारात इस गैस पाइपलाइन के लिए एक अरब डॉलर के प्रारंभिक निवेश पर सहमत हो गया है।
भारत के इस परियोजना से हटने के बाद यह योजना लगभग कोमा में चली गयी। हालांकि, ईरान ने अपनी सद्भावना का प्रदर्शन किया और पाकिस्तान की सीमा तक गैस पाइपलाइन बिछा दी।
यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान, सीमित आंतरिक इच्छाशक्ति के साथ, इस परियोजना पर अमल कर सकता है और क्षेत्र में अपनी बड़ी भूमिका के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
यह नज़रिया जीत-जीत का है जिससे सभी पक्षों को फ़ायदा हो सकता है।
इस पर बात की जानी चाहिए कि पाकिस्तान के इस परियोजना में शामिल होने के बाद भारत, यूएई, क़तर और तुर्कमेनिस्तान समेत अन्य अहम खिलाड़ी भी इस पाइपलाइन योजना में शामिल हो जाएंगे।
स्रोत:
शांति नामक जीत-जीत पाइपलाइन (तआदुल समाचार पत्र 1402 नेर्सी क़ुरबान)
कीवर्ड्स: पाकिस्तान और भारत के बीच शांति, पाकिस्तान और भारत के बीच मतभेद, ईरान की आर्थिक शक्ति, शांति पाइपलाइन क्या है? अमेरिका और भारत के बीच कैसे संबंध हैं? (AK)
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