हर गर्दन आले सऊद की तलवार से नहीं कटेगी
सऊदी अरब ने गत 30 वर्षों के दौरान विश्व में वहाबी विचारधारा फैलाने के लिए 67 अरब डॉलर ख़र्च किये हैं।
लेबनान के अलमनार टीवी चैनल ने रिपोर्ट दी है कि सऊदी अरब ने गत 30 वर्षों के दौरान क्षेत्र में वहाबी और अतिवादी विचारों के प्रचार- प्रसार के लिए अरबों डॉलर ख़र्च किये हैं।
अलमनार टीवी चैनल ने अपनी साइट पर क्षेत्र में सऊदी अरब के क्रिया- कलापों की समीक्षा की है। सऊदी अरब के क्रिया- कलापों के संबंध में लिखे गये लेख में “हेनरी जैकसन” के हवाले से लिखा गया है कि सऊदी अरब ने गत 30 वर्षों के दौरान विश्व में वहाबी विचारधारा फैलाने के लिए 67 अरब डॉलर ख़र्च किये हैं।
इसी प्रकार इस लेख में सऊदी अरब को तकफीरी आतंकवाद का पहला समर्थक देश बताया गया है।
लेख में आया है कि सऊदी अरब ने आतंकवाद के समर्थन का जो आरोप क़तर पर लगाया है उसकी ज़द से वह ख़ुद भी नहीं बचेगा क्योंकि आले सऊद आतंकवाद के समर्थन का ध्वजावाहक हैं।
ब्रिटेन की संसद में लेबर पार्टी के एक सांसद डैन याविस ने इस बारे में कहा है कि यह रिपोर्ट सऊदी अरब द्वारा अतिवाद के वित्तीय समर्थन के संबंध में बहुत गहरे व चिंताजनक संपर्क की सूचक है। उन्होंने ब्रिटेन की सरकार का आह्वान किया है कि वह इस संबंध में तुरंत जांच करे।
इसके बाद संपादक सऊदी अरब, संयुक्त अरब इमारात, बहरैन और मिस्र के क़तर के साथ संबंधों के बारे में लिखता हैः सऊदी अरब के विदेशमंत्री आदिल अलजुबैर ने क़ाहेरा में क़तर पर प्रतिबंध लगाने वाले चारों देशों के विदेशमंत्रियों की हालिया बैठक में कहा था कि क़तर के खिलाफ लगने वाले प्रतिबंधों को लागू होने से पहले इस बात की समीक्षा की जानी चाहिये कि इन प्रतिबंधों के इस देश पर क्या प्रभाव होंगे।
सऊदी अरब के विदेशमंत्री का यह बयान रियाज़ की उस नीति की विफलता का सूचक है जो क्षेत्र के विभिन्न मामलों व समस्याओं के संबंध में उसने अपना रखा है और सऊदी अरब तलवारबाज़ की भांति व्यवहार कर रहा है और अगर उसे विशेषकर अमेरिका की ओर से आदेश मिला हो तो उसके पास अपने प्रतिस्पर्धी की गर्दन उड़ा देने के अलावा कोई अन्य मार्ग नहीं होगा परंतु उसे जान लेना चाहिये कि यह नीति सदैव उपयोगी व प्रभावी नहीं होगी और कुछ गर्दनें आले सऊद की तलवार से नहीं कटेंगी और आले सऊद को चाहिये कि वे अपनी नीतियों में पुनर्विचार करें। MM