Apr १६, २०२० १९:४८ Asia/Kolkata
  • कोरोना वायरस सऊदी अरब के सपनों का कर रहा है क़त्लेआम, इस्लामी जगत में डावांडोल हो चुकी है पुरानी पोज़ीशनः फ़ारेन अफ़ेयर्ज़

अमरीकी मैगज़ीन फ़ारेन अफ़ेयर्ज़ ने अपने लेख में जायज़ा लिया है कि इस्लामी जगत में सऊदी अरब की स्थिति लगातार कमज़ोर हो रही है जबकि दूसरी ओर रियाज़ सरकार ने कोरोना वायरस का प्रसार रोकने के लिए लाक डाउन का जो ज़रूरी फ़ैसला किया है राजनैतिक और आर्थिक दोनों क्षेत्रों में उसे इसकी भारी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है।

फ़ारेन अफ़ेयर्ज़ में छपने वाला यह लेख क्रिथिका वारागर का है जिनका कहना है कि फ़रवरी के आख़िर में सऊदी अरब ने उमरह का वीज़ा रोक देने का एलान किया और इसके कुछ दिन बाद पवित्र नगरों मक्का और मदीना में भी कर्फ़्यू लगा दिया और अब सऊदी सरकार इस साल का हज स्थगित करने पर विचार कर रही है हालांकि अभी इस बारे में औपचारिक घोषणा नहीं हुई है मगर संकेत यही मिल रहे हैं कि इस साल हज हो नहीं पाएगा।

सऊदी अरब के हज के मामलों के मंत्री ने इस्लामी देशों से कहा है कि वह हज का कार्यक्रम बनाने के संबंध में अभी ठहर जाएं। इससे पता चलता है कि जल्द ही सऊदी सरकार एलान करने वाली है कि इस साल हज नहीं हो सकेगा।

हज और उमरह पर रोक लगाना कोरोना के प्रसार को रोकने की दिशा में ज़रूरी क़दम था मगर यह भी हक़ीक़त है कि इससे सऊदी अरब को कई पहलुओं से नुक़सान पहुंचेगा। सऊदी अरब को हर साल हज और उमरह से अरबों डालर की रक़म हासिल हो जाती थी।

पिछले दो दशकों में इस्लामी जगत में सऊदी अरब की पोज़ीशन लगातार कमज़ोर होती गई है जबकि इस बीच हज में सऊदी प्रशासन के पास अच्छा अवसर होता था कि इस्लामी जगत में अपना प्रभाव बढ़ाए मगर अब यह अवसर सऊदी अरब के पास नहीं है।

सऊदी अरब की हमेशा कोशिश रही है कि उसे इस्लामी जगत के मुखिया के रूप में देखा जाए मगर कई तरफ़ से उसकी इन कोशिशों को नुक़सान पहुंच रहा है।

हज और उमरह पर रोक लगाना कोरोना के प्रसार को रोकने की दिशा में ज़रूरी क़दम था

 

सऊदी अरब 1960 से अपनी विदेश नीति में इस्लामी देशों को अपने ख़ैमे में लाने की कोशिश करता रहा है मगर 11 सितम्बर की घटनाओं के बाद मक्का नगर में स्थित इस्लामी जगत संपर्क संस्था की ओर से विभिन्न देशों में अलग अलग कार्यक्रमों को की जाने वाली फ़ंडिंग पर कड़ी निगरानी की जाने लगी जिसके नतीजे में यह एनजीओ प्रकार की संस्था अपनी गतिविधियां आज़ादी से अंजाम नहीं दे पा रही है। यह संस्था दुनिया भर में किताबें बांटने और मस्जिदों का निर्माण करवाने का काम करती रही है।

11 सितम्बर की घटनाओं के बाद इंडोनेशिया, कोसोवो और नाइजेरिया में इस संस्था की गतिविधियों को बहुत सीमित कर दिया गया। संस्था की नाईजेरियाई शाखा के प्रमुख डाक्टर फ़ज़्ल ख़लूद ने बताया कि लगभग दस साल से संस्था अपनी इस शाखा को पैसे नहीं दे पा रही है। नतीजा यह हुआ कि अब वह इस शाखा को अकेले ही चला रहे हैं वहां काम करने वाले सभी कर्मचारियों को निकाल देना पड़ा है।

तेल की क़ीमतों में गिरावट की वजह से भी सऊदी अरब के बहुत सारे सपने चकनाचूर हो गए हैं जबकि तुर्की और ईरान का इस्लामी जगत में रसूख़ लगातार बढ़ रहा है।

हज हमेशा सऊदी सरकार के हाथ में तुरुप के पत्ते की तरह रहा है। सऊदी अरब इडोनेशिया को हज का सबसे बड़ा कोटा देता है जिसके तहत हर साल 2 लाख 30 हज़ार इंडोनेशियाई नागरिकों को हज अदा करने की अनुमति मिलती है। इंडोनेशिया के अधिकारी हमेशा इस कोशिश में रहते हैं कि उनका कोटा कुछ बढ़ जाए क्योंकि इस देश के बहुत से नागरिकों को कभी 20 साल तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है तब उनकी हज की बारी आ पाती है।

सऊदी अरब चूंकि कई क्षेत्रीय विवादों में भी बुरी तरह कूद पड़ा है इसलिए वह हज का राजनीतिकरण भी कर रहा है इसका नतीजा यह निकला कि लीबिया और ट्यूनीशिया जैसे देशों के बहुत से इमामों ने यमन में गृह युद्ध की आग भड़काने के सऊदी अरब के फ़ैसले का विरोध करते हुए हज पर न जाने की अपील शुरू कर दी। इस साल सऊदी अधिकारी हज को स्थगित कर देते हैं तो आने वाले वर्षों में भी उनके लिए हज को दोबारा शुरू कर पाना आसान  नहीं होगा।

स्रोतः फ़ारेन अफ़ेयर्ज़

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