क्या सऊदी सरकार साहसिक निर्णय लेने के लिए तैयार है? आर्थिक मुसीबत से कैसे निकल पाएगी रियाज़ सरकार?
सऊदी अरब से अमरीका के लिए तेल का निर्यात जारी महीने में भारी स्तर पर कम हो गया है। ब्लूमबर्ग वेबसाइट ने ब्रायन विंगफ़ील्ड और जेवियर प्लस की एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसके अनुसार अमरीका के बाज़ार को अतिरिक्त तेल से भर देने वाले सऊदी अरब ने अपने निर्यात में भारी कटौती कर दी है।
जून महीने में अब तक सऊदी अरब ने केवल एक तेल टैंकर अमरीका भेजा है जिसका मतलब यह है कि रोज़ाना मात्र 1 लाख 33 हज़ार बैरल तेल सऊदी अरब से अमरीका गया है। जबकि गत अप्रैल महीने में रोज़ाना 13 लाख बैरल तेल सऊदी अरब से अमरीका भेजा गया था। अलबत्ता यह उस समय की बात थी जब रूस से सऊदी अरब का तेल युद्ध चल रहा था और सऊदी अरब तेल मंडियों को अतिरिक्त तेल से भर देने की नीति पर काम कर रहा था।
अब सऊदी अरब ने तेल के उत्पादन और निर्यात में जो कटौती शुरू की है अगर यह जारी रहती है तो हो सकता है कि सऊदी अरब से अमरीका को तेल का निर्यात पिछले 35 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच जाएगा और नतीजे में अमरीका में कच्चे तेल के बाज़ार को संकट से उबरने का शायद मौक़ा मिल जाएगा।
एनर्जी आस्पेक्टस कंपनी की विशेषज्ञ अमृतासेन का कहना है कि सऊदी अरब का तेल निर्यात उस समय और भी कम हो जाएगा जब स्थानीय रिफ़ाइनरियां अपना उत्पादन बढ़ा देंगी। उस स्थिति में अमरीकी रिफ़ाइनरियों को कहीं और से कच्चा तेल लेना पड़ेगा।
अमरीकी बाज़ार में सामान्य स्थिति बहाल हो जाने के बाद हो सकता है कि सऊदी अरब से अमरीका को तेल का निर्यात कुछ बढ़े लेकिन ज़्यादा बढ़ोत्तरी की आशा नहीं है। कारण यह है कि अप्रैल में सऊदी अरब ने जो तेल नीति अपनाई उससे अमरीकी अधिकारी बुरी तरह भड़क गए हैं। सेनेटर टेड क्रूज़ ने तो खुलकर कहा कि सऊदियों के लिए मेरा संदेश यह है कि अपने जहन्नुमी तेल टैंकरों का रुख़ किसी और तरफ़ मोड़ो।
सऊदी अधिकारियों के हवाले से ब्लूमबर्ग ने लिखा है कि जून के बाक़ी बचे दिनों में और जुलाई के शुरुआती दिनों में भी नहीं लगता कि सऊदी अरब अपना तेल निर्यात बढ़ाएगा। इसका नतीजा यह होगा कि अमरीका में कच्चे तेल के भंडार धीरे धीरे ख़ाली हो जाएंगे और तेल की क़ीमतों पर इसका असर दिखाई देने लगेगा।
वैसे भी अमरीकी रिफ़ाइनरियों ने सऊदी अरब से तेल के जो सौदे किए थे उनसे कम मात्रा में वह तेल का आयात करना चाहती हैं।
इस स्थिति का नतीजा यह है कि सऊदी अरब भारी आर्थिक संकट में घिरता जा रहा है क्योंकि ख़र्चे में कटौती के बावजूद यह नहीं लग रहा है कि सऊदी अरब अपना सालाना बजट संभाल पाएगा। सऊदी अरब को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से क़र्ज़ा लेना पड़ा है और हालात बता रहे हैं कि इस देश को बार बार क़र्ज़ा लेना पड़ेगा क्योंकि जिस स्थिति में सऊदी अरब इस समय फंस गया है उससे बाहर निकलने के लिए रियाज़ सरकार को कई साहसिक निर्णय लेने होंगे इनमें सबसे बड़ा निर्णय यमन युद्ध बंद करने का है जिसकी वजह से सऊदी अरब पर भारी आर्थिक बोझ पड़ रहा है। क्या सऊदी अरब इस तरह के साहसिक निर्णय लेने के लिए तैयार है?