सब कुछ होते हुए भी अरबों को क्यों फैलाना पड़ रहा है हाथ? अरब देशों की इस हालत का कौन है ज़िम्मेदार?
(last modified Tue, 21 Jul 2020 05:16:01 GMT )
Jul २१, २०२० १०:४६ Asia/Kolkata
  • सब कुछ होते हुए भी अरबों को क्यों फैलाना पड़ रहा है हाथ? अरब देशों की इस हालत का कौन है ज़िम्मेदार?

कोरोना वायरस की महामारी ने एक ओर जहां स्वास्थ्य के हवाले से दुनियाभर में हंगामा मचा दिया वहीं इसके कारण कई अर्थव्यव्थाएं भी घुटनों पर आ गईं, यहां तक कि वे अरब देश जिन्हें हमेशा बेहद अमीर और मालदार समझा जाता था वे भी अब क़र्ज़ मांगने पर मजबूर हो गए हैं।

दुनियाभर में लॉकडाउन के कारण तेल की मांग में कमी और बाज़ार में इसकी क़ीमतों में आई गिरावट ने अरब देशों की सबसे बड़ी आमदनी के ज़रिए को बहुत नुक़सान पहुंचाया है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, कुवैत में ऐसा क़ानून बनाया जा रहा है जिसके ज़रिए वह क़र्ज़ के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार का दरवाज़ा खटखटा सके। कुवैत के एक सरकारी अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर रॉयटर्स को बताया, "अगर क़र्ज़ से संबंधित क़ानून नहीं मंज़ूर होता है तो कुवैत सरकार को सही अर्थों में संकट का सामना करना पड़ सकता है।" इस प्रस्तावित क़ानून पर कुवैत की संसदीय समिति में चर्चा भी हुई है और इसके तहत कुवैत 30 साल में 20 अरब डॉलर तक क़र्ज़ ले सकता है। बीते कुछ वर्षों में अन्य अरब देश भी क़र्ज़ के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार का रुख़ कर चुके हैं।

अरब देशों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाला सऊदी अरब, अपनी जनता से टैक्स न लेने के लिए जाना जाता था, लेकिन अब वहां भी वैल्यू एडेड टैक्स को 5 फ़ीसदी से बढ़ाकर 15 फ़ीसदी करने का ऐलान किया गया है और मासिक आवासीय सब्सिडी को भी ख़त्म कर दिया गया है। यह फ़ैसला अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में गिरती तेल की क़ीमतों और सरकारी आय में 22 प्रतिशत की कमी के बाद किया गया है। तेल के अलावा सऊदी अरब का ख़ज़ाना यमन के साथ 5 वर्षों से जारी युद्ध की वजह से भी खाली हुआ है। सऊदी अरब के पास पब्लिक इन्वेस्टमेंट फ़ंड के नाम से तक़रीबन 320 अरब डॉलर की रक़म मौजूद है जिसको अब वह अपने इस्तेमाल में लाएगा। इसके अलावा उसके पास सरकारी तेल कंपनी आरामको भी है जिसकी क़ीमत बीते साल 17 ख़रब डॉलर लगाई गई थी जो कि उस वक़्त गूगल और एमेज़न की कुल क़ीमत के बराबर थी। हाल ही में कंपनी की सिर्फ़ डेढ़ फ़ीसद हिस्सेदारी बेची गई थी और शेयर लिस्टिंग के इतिहास में सबसे बड़ा फ़ंड तक़रीबन 25 अरब डॉलर इकट्ठा किए गए थे। कोविड-19 और तेल की क़ीमतों में गिरावट के कारण सऊदी अरब के केंद्रीय बैंक को सिर्फ़ मार्च के महीने में तक़रीबन 26 अरब डॉलर का नुक़सान उठाना पड़ा है।

इस बीच जानकारों का कहना है कि, यह बात ढकी-छिपी नहीं है कि अधिकतर अरब देशों की आय तेल पर निर्भर करती है लेकिन इस वक़्त तेल की क़ीमत अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में शून्य पर आ चुकी है और आगे इसके गिरने की और आशंका है। कुवैत और सऊदी अरब जैसे देशों में जहां राजशाही है वहां उनकी सत्ता इसी पर निर्भर है कि वह लोगों की ज़रूरतों को पूरा करें, लेकिन इस वक़्त तेल की क़ीमतों को देखें तो यह वादा ज़्यादा दिन तक पूरा होता हुआ नहीं दिखता है। जानकारों के अनुसार, अरब देशों की ख़राब होती स्थिति के कारण इन देशों में राजनीतिक हलचल देखने को मिल रही है। साथ ही शाही ख़ानदानों में मतभेद भी उभरकर सामने आने लगे हैं और इसी परिप्रेक्ष्य में आले सऊद ख़ानदान में जारी मतभेद किसी से छिपा नहीं है। टीकाकारों के मुताबिक़, आने वाले दिन अरब देशों के लिए और ज़्यादा समस्या भरे होने वाले हैं और हो सकता है कि कई देशों में विद्रोह जैसी स्थिति की दुनिया साक्षी बने। इसका मुख्य कारण इन देशों की सत्ता जनता के विश्वास के कारण नहीं है बल्कि पैसे की वजह से है जो अब ख़त्म होता दिखाई दे रहा है। (RZ)

 

 

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