युद्ध की आग में जलते देशों पर अपनी रोटी सेंकता अमेरिका! आख़िर यूक्रेन के लोग जिसे हीरो समझते थे अब उससे क्यों होते जा रहे हैं नाराज़?
(last modified Wed, 22 Feb 2023 09:50:25 GMT )
Feb २२, २०२३ १५:२० Asia/Kolkata
  • युद्ध की आग में जलते देशों पर अपनी रोटी सेंकता अमेरिका! आख़िर यूक्रेन के लोग जिसे हीरो समझते थे अब उससे क्यों होते जा रहे हैं नाराज़?

'अराजकता के बीच भी अवसर है।' सोमवार को अमेरिका के राष्‍ट्रपति के तौर पर जो बाइडन ने इस बात को सच साबित कर दिया। 24 फरवरी को रूस और यूक्रेन की जंग को एक साल हो जाएगा। इससे पहले यानी 20 फरवरी को स्‍टइलिश चश्‍मे, डिज़ाइनर ओवरकोट और चमचमाते जूतों में जो बाइडन कीव पहुंच जाते हैं। कीव, उस देश की राजधानी है जो पिछले एक साल से जंग का गवाह बना हुआ है।

जो बाइडन की यूक्रेन की 'सरप्राइज़ विज़िट' के बाद पूरी दुनिया की मीडिया में उनकी इस यात्रा को लेकर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। जहां उनके हीरोइज़्म के बारे में बातें हो रही हैं। वहीं वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति के अचनाक एक युद्धग्रस्त देश के दौरे की तुलना पूर्व राष्‍ट्रपतियों बराक ओबामा, डोनल्‍ड ट्रम्प और जॉर्ज बुश से की जा रही है। मगर सच्चाई यह है कि, जो बाइडन उसी देश के राष्‍ट्रपति हैं जिसका रिकॉर्ड हमेशा किसी युद्ध को शुरू करने, फिर उसे दशकों तक खींचने और फिर तबाह हुए देशों की कई फाइलों को तैयार करने का रहा है। यूक्रेन वह देश जो दुनिया की अर्थव्‍यवस्‍था का अहम हिस्‍सा और यूरोप का एक ख़ूबसूरत देश है, जो अब अपनी बेबसी पर रो रहा है। वहीं यूक्रेनी राष्‍ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्‍की अपने देश को युद्ध की आग से बाहर निकाले के बजाए लगातार हॉटलाइन पर बाइडन से कई अरब डॉलर की मदद और हथियारों की मांग करते चले आ रहे हैं। उन्‍हें यह मदद मिली भी है लेकिन इन डॉरल और यूरो में मिलने वाले पैसों का क्‍या हो रहा है? इसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है। इस बारे में स्वयं यूक्रेन के नागरिक भी जानना चाहते हैं। बच्‍चों का भविष्‍य, वृद्धों की पेंशन, युवाओं की सैलरी और घर पर पकने वाली रोटी अब ख़तरे में आ गई है।

अमेरिका की आदत हमेशा खुद को सुप्रीम घोषित करने की रही। उदाहरण के तौर पर दुनिया के किसी भी परिवार में जब बच्‍चों के बीच झगड़ा होता है तो मम्‍मी, उन्‍हें पापा की धमकी देती हैं। पापा आते हैं और शिकायत भी सुनते हैं लेकिन एक बच्‍चे को तो डांट देते हैं और दूसरे को प्‍यार से पुचकार देंगे। झगड़े की वजह भी पूछी जाती है। बाइडन या यों कहें अमेरिका, जो ख़ुद को दुनिया का वही पापा बनने की कोशिश करता रहता है। लेकिन थोड़ा अलग तरह का, जो झगड़े को सुलझाने के बजाए उसको हवा देने पर विश्वास रखता है। यही हाल यूक्रेन युद्ध का है, यहां पर बाइडन झगड़े की वजह भी जानते हैं और उसे सुलझाने का तरीक़ा भी। मगर फिर भी न जाने क्‍यों जंग को या झगड़े को ख़त्‍म करने की बजाय बस डॉलर पर डॉलर लुटाए जा रहे हैं। उन्‍हें इस बात से परहेज़ भी नहीं है क्‍योंकि आने वाले राष्‍ट्रपति के सामने रिकॉर्ड बुक में ख़ुद को मज़बूत नेता के तौर पर पेश करना है। अब चाहे इसके लिए कोई देश बर्बाद हो या लाखों लोगों की जान जाए, उससे उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है। यही कारण है कि कीव यात्रा के बारे में यह कहा जा रहा है कि जो बाइडन यूक्रेन की हालत समझने से ज़्यादा शायद अमेरिका के दिए हुए डॉलर्स का ऑडिट करने गए थे। दिलचस्‍प बात है कि उनका यह दौरा उस सर्वे के बाद हुआ है जिसके नतीजे यह बताने के लिए काफ़ी हैं कि यूक्रेन को मिलने वाली आर्थिक मदद यहां की जनता को रास नहीं आ रही है। अमेरिका की जनता यूक्रेन की मदद और ज़ेलेंस्‍की के ख़िलाफ़ हो रही है मगर बाइडन के अधिकारी जंग के असर को परखने में लगे हुए हैं।

इस बीच चीन के जासूसी गुब्‍बारे से मचे बवाल के बीच जनता का ग़ुस्‍सा जब बाइडन को डराने लगा तो उन्‍होंने वह चाल चल दी जिसकी उम्‍मीद किसी ने नहीं की थी। बाइडन, उन्‍हीं बराक ओबामा के जूनियर रहे हैं जिन्‍होंने खुद को नोबल का शांति पुरस्‍कार दिला डाला था। वही ओबामा जो साल 2011 में सीरिया के गृहयुद्ध में यह कहते हुए अमेरिकी सेना के हवाई हमलों को सही ठहराते रहे कि इसे देश के पास रासायनिक हथियार हैं। ओबामा के हाथ वह केमिकल वेपंस लगे या नहीं, ये तो बस व्‍हाइट हाउस ही जानता है। मगर तबाह हुए सीरिया की तस्‍वीर आज पूरी दुनिया के सामने है। ओबामा की विवादास्पद नीतियां हमेशा से विवादों में रहीं और बाइडन अब उन्‍हीं नीतियों को आगे बढ़ा रहे हैं। बाइडन यह जानते हैं कि रूस और चीन का 'दोस्ताना' अमेरिका के लिए कितना ख़तरनाक होगा। यूक्रेन के लिए वह एक तरफ़ तो किसी भी सैन्य समर्थन से इनकार कर देते हैं मगर दूसरी तरफ अरबों डॉलर की मदद और हथियार भी मुहैया कराते हैं। यह बात भी ग़ौर करने वाली है कि अमेरिका की जीडीपी में एक बड़ा हिस्‍सा हथियारों की बिक्री का भी है। स्टेटिस्टा रिसर्च डिपार्टमेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, साल 2000 से 2021 तक रक्षा ख़र्च 742 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो यूएस जीडीपी का लगभग 3.3 प्रतिशत था। साल 2020 में देश की जीडीपी का 6.6 फ़ीसदी हिस्‍सा रक्षा और हथियारों पर ख़र्च हुआ था। यानी जितनी हथियारों की बिक्री अमेरिका को उतना ही फ़ायदा।

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कुल मिलाकर जंग शुरू होने से पहले यूक्रेन दुनिया की अर्थव्‍यवस्‍था का एक अहम हिस्‍सा बना हुआ था। यह देश दु‍निया का एक तिहाई सूरजमुखी का तेल उत्‍पादित करता है। यह ग्‍लोबल निर्यात का आधा है। इस निर्यात से यूक्रेन को साल 2021 में 6.4 अरब डॉलर की कमाई हुई थी। सबसे बड़ा बाज़ार भारत था जो 31 फ़ीसदी तेल ख़रीदता था। इसके बाद 30 फीसदी ख़रीद के साथ यूरोपियन यूनियन दूसरे और 15 फ़ीसदी ख़रीद के साथ चीन तीसरे नंबर पर था। कोविड महामारी से उबरती दुनिया को रूस और यूक्रेन की जंग ने बर्बाद कर दिया। बाइडन एक बार फिर उस अमेरिका के ऐसे राष्‍ट्रपति बन गए हैं जिसे जंग की आग को हथियार देकर भड़काना और फिर उसी आग में हाथ सेंकना, अच्‍छा लगता है। (रविश ज़ैदी R.Z)

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