बच्चों पर किए जाने वाले हमलों को रोका जाएः यूनिसेफ़
संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनिसेफ़ ने मांग की है कि दुनिया भर में बच्चों पर होने वाले हमलों को रोका जाना चाहिए।
यूनिसेफ़ की कार्यकारी निदेशक “हेनरिटा एच फोर” की ओर से ब्रसल्स, जनेवा और न्यूयॉर्क से एक साथ जारी होने वाले बयान में कहा है कि सेंट्रल अफ़्रीक़ा, उत्तरी सूडान और सीरिया से लेकर अफ़ग़ानिस्तान तक युद्ध में उलझे सभी पक्ष, युद्ध के एक बुनियादी सिद्धांत अर्थात बच्चों की सुरक्षा को भुला चुके हैं और युद्धरत कोई भी पक्ष बच्चों को लेकर बिल्कुल भी गंभीर नहीं है।
हेनरिटा एच फोर ने कहा कि आज कल दुनिया में होने वाले युद्धों की कोई नैतिक सीमा नहीं रह गई है। उन्होंने कहा कि स्कूलों, अस्पतालों, सार्वजनिक स्थलों और बुनियादी ढांचों को निशाना बनाया जाता है। उन्होंने अपने बयान में कहा है कि युद्ध के दौरान गिरफ़्तार किए जाने वाले बच्चों को लेकर दुनिया भर में कोई गंभीरता नहीं दिखाई देती है, यह बहुत खेदजनक है कि बच्चों को सेना द्वार युद्ध में इस्तेमाल किया जा रहा है। फोर ने कहा कि दुनिया ने यह सोचना भी छोड़ दिया है कि बच्चों के भविष्य के लिए युद्ध कितना ख़तरनाक बनता जा रहा है।
हालिया कुछ वर्षों में युद्ध के कारण बच्चों को कितना नुक़सान पहुंचा है उसके आंकड़े कुछ इस तरह पेश किए गए हैं। वर्ष 2014 में गज़्ज़ा पर अत्याचारी ज़ायोनी शासन द्वारा किए गए हमलों के बाद, 14 और 15 मई 2018 को गज़्ज़ा पर किया गया हमला सबसे भयावह था जिसमें अधिकतर बच्चों की मौतें हुईं हैं।
यूनिसेफ़ की कार्यकारी निदेशक के अनुसार इस समय यमन में लगभग 45 लाख बच्चे और सीरिय में 55 लाख बच्चे बेहद ख़तरनाक स्थिति में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
इसी प्रकार, म्यांमार में हुए जनसंहार के पीड़ित रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी बच्चे बांग्लादेश में काफ़ी दयनीय स्थिति में ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं। बांग्लादेश में बारिश का मौसम है और आने वाले दिन रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए काफ़ी संकटमयी हो सकते हैं विशेषकर बच्चों के लिए क्योंकि बांग्लादेश एक बाढ़ग्रस्त देश माना जाता है।
इस बीच अफ़ग़ानिस्तान के प्राप्त रिपोर्टों के मुताबिक़ जारी वर्ष के पहले तीन महीने में 150 अफ़ग़ानी बच्चे युद्ध की भेंट चढ़ चुके हैं जबकि 400 से अधिक घायल बताए जा रहे हैं। (RZ)