सोशल डिसटेंसिंग मिडिल क्लास की चीज़ है, भारत के झुग्गी झोपड़ी निवासियों के लिए यह असंभव हैः सीएनएन
अमरीकी टीवी चैनल सीएनएन ने अपनी वेबसाइट पर प्रियाली सूर और ईशा मित्रा की एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें इस बात का जायज़ा लिया गया है कि भारत ने कोरोना वायरस की महामारी से बचने के लिए जो क़दम उठाए हैं उन पर अमल कर पाना हर सेक्टर के लिए संभव नहीं है।
मुंबई का धारावी इलाक़ा पूरे देश की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती है। यहां 1440 लोगों के लिए एक टायलेट है जबकि मुंबई के 78 प्रतिशत झुग्गी वाले इलाक़ों के टायलेट में पानी की सप्लाई नहीं है।
धारावी में रहने वाली 21 साल की सोनिया मानिकराज का कहना है कि धारावी के इलाक़े में गलियां बहुत संकरी हैं जहां हमेशा भीड़ रहती है। यहां ग़रीब रहते हैं। अगर वह बाहर जाते हैं तो वायरस की चपेट में आने की आशंका है और अगर बाहर नहीं जाते तो यह सवाल पैदा हो जाता है कि घर का खर्च कैसे चलेगा क्योंकि यह दिहाड़ी मज़दूर हैं। इन मज़दूरों का कहना है कि वह कोरोना वायरस से तो शायद बच जाएं लेकिन घर में पड़े रहे तो भूख से ज़रूर मर जाएंगे।
भारत में एक और बड़ी समस्या हेल्थ इंफ़्रास्ट्रक्चर का न होना है। भारत में 29 मार्च तक 34 हज़ार 931 लोगों का कोरोना टेस्ट हुआ था यानी हर दस लाख लोगों में से 19 लोगों का टेस्ट हो पाया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि भारत के प्राइवेट अस्पताल या लैब में अगर कोई कोरोना का टेस्ट कराना चाहता है तो इसका ख़र्चा 4500 रूपए है जबकि सरकारी अस्पतालों में मुफ़्त टेस्ट की सुविधा बेहद सीमित है।