Nov ०३, २०२१ १९:२४ Asia/Kolkata
  • विज्ञान की डगर-74

वर्ष 2017 में पहली बार इस्लामी गणतंत्र ईरान, वैज्ञानिक उत्पादन या वैज्ञानिक आविष्कार की दृष्टि से मुस्लिम देशों में पहले स्थान पर था।

ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाली वैज्ञानिक वेबसाइट स्कोपस उद्धरण डेटाबेस ने मुस्लिम देशों के बीच ईरान को पहले नंबर पर क़रार दिया था लेकिन डब्ल्यूओएस नामक वेबसाइट ने हालिया वर्ष के दौरान तुर्की को पहले नंबर पर क़रार दिया और ईरान को दूसरा दर्जा दिया जबकि ईरान 2017 में पहला स्थान हासिल करने में कामयाब हो गया था। वर्तमान समय में स्कोपस उद्धरण डेटाबेस और डब्ल्यूओएस वेबसाइट दोनों की नज़र में ईरान ने अपना अंतर्राष्ट्रीय दर्जा बरक़रार रखा है।

इस्लामी विश्व विज्ञान प्रशस्ति पत्र डेटाबेस के प्रमुख के कथनानुसार वर्ष 2017 में क़ज़ाक़िस्तान में इस्लामी देशों के विज्ञान और तकनीकी मंत्रियों और प्रमुखों की उपस्थिति से इस्लामी देशों के विज्ञान और तकनीक के पास होने वाले दस वर्षीय कार्यक्रम के आधार पर अगले दस वर्षों के दौरान मुस्लिम देशों के वैज्ञानिक उत्पादों का स्तर दो गुना बढ़ेगा। वर्तमान समय में दुनिया के वैज्ञानिक उत्पादों और आविष्कारों में मुस्लिम देशों का हिस्सा 8 प्रतिशत है और यह अगले 10 वर्ष में बढ़कर 16 प्रतिशत तक हो जाएगा। अमरीका, फ़्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, चीन, कनाडा, आस्ट्रेलिया उन सात देशों में हैं जिन्होंने वर्ष 2013 से 2017 के बीच के वर्षों में मुस्लिम देशों के साथ ज़्यादा से ज़्यादा वैज्ञानिक सहयोग किया है।

 

अमरीका के मैसाच्यूस्ट राज्य की वॉर्सेस्टर पॉलिटेक्निक संस्थान की मैकेनिकल इंजीनियरिंग ग्रुप के शोधकर्ताओं ने ईरानी शोधकर्ता के नेतृत्व में नया इलेक्ट्रिक कूलिंग सिस्टम बनाने में कामयाबी हासिल की जिसमें कोई एसा पुर्ज़ा नहीं लगा है जो घूमता रहता हो। नासा की ओर से अंतरिक्ष यात्री को मंगलग्रह में भेजने के मामले में यह चीज़ मदद कर सकती है क्योंकि अंतरिक्ष यात्रियों के आसपास के माहौल को ठंडा रखने की ज़रूरत है और इसी चिंता को दूर करने के लिए वैज्ञानिकों ने यह आविष्कार किया है।

 

अंतरिक्ष यात्रियों के लिए सबसे ख़तरनाक चीज़ गर्मी होती है और यह चीज़ हमारे अंतरिक्ष यात्रियों के लिए समस्याएं पैदा करती है। धरती से बाहर का हिस्सा बहुत ही ठंडा होता है और जब अंतरिक्ष यात्री का सामना सूरज की गर्मी से होता है तो वह अचानक बहुत ही ज़्यादा गर्म हो जाता है और उसकी गर्मी 100 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाती है। इसका सबसे बेहतरीन इलाज यह है कि अंतरिक्ष यात्री जहां पर है वहां का तापमान सामान्य हो, यहां तक कि अंतरिक्ष यात्री का शरीर, गर्मी पैदा करता है और अंतरिक्ष के हालात की वजह से यह सारी चीज़ें कारण बनती हैं कि गर्मी स्थानांतरित नहीं हो पाती और गर्मी का भंडार बाद में समस्याएं पैदा कर सकता है। जमाल याक़ूबी का कहना है कि इस सिस्टम का 2017 में सफलता के साथ परीक्षण किया गया और तय यह है कि 2021 या 2022 में इसको और भी विकसित किया जाएगा और 10 मिलियन डालर ख़र्च करके इसको बनाया जाएगा।

 

अंतरिक्ष की सैर का सपना तो हम में से बहुत से लोग देखते हैं. लेकिन अंतरिक्ष यात्री बनना आसान नहीं है। मसलन आपकी सेहत आम लोगों के मुक़ाबले ज़्यादा बेहतर होनी चाहिए। दबाव होने के बावजूद आपका ज़हनी सुकून डगमगाना नहीं चाहिए। एक अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए ये चंद बुनियादी बातें हैं जिन्हें 'द राइट स्टफ़' कहा जाता है।

ज़मीन पर हम ऑक्सीजन के ग़िलाफ़ में रहते हैं. इसके बिना इंसानी वजूद की कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन धरती से दूर अंतरिक्ष में रहने वाले बनावटी सांसों के सहारे जीते हैं। उन्हें ब्रह्मांड में मौजूद रेडिएशन झेलना पड़ता है। इसका सीधा असर उनकी सेहत पर पड़ता है। शरीर कमज़ोर पड़ने लगता है। हर समय मतली महसूस होती रहती है। आंखें कमज़ोर हो जाती हैं। कमज़ोरी इतनी बढ़ जाती है कि बीमारियों से लड़ने की क़ुव्वत नहीं रहती।

अंतरिक्ष यात्री ल्यूका परमितानो इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में क़रीब साढ़े पांच महीने रहे। वो कहते हैं कि जैसे-जैसे दिन गुज़रते जाते हैं, आपकी टांगें ख़ुद आपको ही कमज़ोर और पतली महसूस होने लगती हैं। चेहरा गोल होने लगता है। वापस धरती पर आने के बाद भी नॉर्मल होने में काफ़ी समय लग जाता है।

 

 

अंतरिक्ष में शुरुआत के दिनों में एक ही दिशा में चलना पड़ता है। छह महीने बाद आप धीरे-धीरे दूसरी दिशाओं में घूमना शुरू कर देते हैं। स्पेस स्टेशन की जगह को पहचानना शुरू करते हैं। ज़ीरो गुरुत्वाकर्षण की वजह से अंतरिक्ष यात्री हवा में ही झूलते रहते हैं। लिहाज़ा आपकी टांगों का कोई काम नहीं रहता। अंतरिक्ष में बहुत लंबे समय तक टिक पाना आसान नहीं है।

अंतरिक्ष में जिस तरह की बस्तियां बसाने की बात की जा रही है, वो सुनने में तो सहज लगती है। लेकिन असल में इसके नुक़सान ज़्यादा हैं। मिसाल के लिए अगर आज किसी नौजवान को ऐसी किसी कॉलोनी में भेजा जाएगा, तो उसकी आने वाली पीढ़ी धरती पर रहने लायक़ नहीं रहेगी। उसका शरीर अंतरिक्ष के माहौल के मुताबिक़ ही ढल जाएगा। उनकी ज़िंदगी धरती पर रहने वालों से जुदा होगी। अंतरिक्ष के लिए एक इंसानों की नई नस्ल तैयार करना आसान नहीं है। लिहाज़ा बेहतर है कि धरती पर ही इंसानों को अंतरिक्ष के लिए तैयार किया जाए।

हालांकि एक ऐसी दुनिया का ख़याल दिलचस्प है जिसमें इंसान हवा में तैरते रहें. विज्ञान फंतासी वाली फ़िल्मों में हम ऐसी दुनिया देख चुके हैं। पर इन्हें हक़ीक़त का जामा पहनाना फ़िलहाल तो मुमकिन नहीं। दोस्तो अब हम मनोरोग के विषय पर चर्चा करेंगे।

 

मनोविकार (Mental disorder) किसी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य की वह स्थिति है जिसे किसी स्वस्थ व्यक्ति से तुलना करने पर 'सामान्य' नहीं कहा जाता। स्वस्थ व्यक्तियों की तुलना में मनोरोगों से ग्रस्त व्यक्तियों का व्यवहार असामान्‍य अथवा दुरनुकूली (मैल एडेप्टिव) निर्धारित किया जाता है और जिसमें महत्‍वपूर्ण व्‍यथा अथवा असमर्थता अन्‍तर्ग्रस्‍त होती है। इन्हें मनोरोग, मानसिक रोग, मानसिक बीमारी अथवा मानसिक विकार भी कहते हैं।

मनोरोग मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन की वजह से पैदा होते हैं तथा इनके उपचार के लिए मनोरोग चिकित्सा की जरूरत होती है। मनोविज्ञान में हमारे लिए असामान्य और अनुचित व्यवहारों को मनोविकार कहा जाता है। ये धीरे-धीरे बढ़ते जाते हैं। मनोविकारों के बहुत से कारक हैं, जिनमें आनुवांशिकता, कमजोर व्यक्तित्व, सहनशीलता का अभाव, बाल्यावस्था के अनुभव, तनावपूर्ण परिस्थितियां और इनका सामना करने की असामर्थ्य सम्मिलित हैं।

 

वे स्थितियां, जिन्हें हल कर पाना एवं उनका सामना करना किसी व्यक्ति को मुश्किल लगता है, उन्हें 'तनाव के कारक' कहते हैं। तनाव किसी व्यक्ति पर ऐसी आवश्यकताओं व मांगों को थोप देता है जिसे पूरा करना वह अति दूभर और मुश्किल समझता है। इन मांगों को पूरा करने में लगातार असफलता मिलने पर व्यक्ति में मानसिक तनाव पैदा होता है।

आज के समय में तनाव लोगों के लिए बहुत ही सामान्य अनुभव बन चुका है, जो कि अधिसंख्य दैहिक और मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं द्वारा व्यक्त होता है। तनाव की पारंपरिक परिभाषा दैहिक प्रतिक्रिया पर केंद्रित है। हैंस शैले ( Hans Selye) ने 'तनाव' (स्ट्रेस) शब्द को खोजा और इसकी परिभाषा शरीर की किसी भी आवश्यकता के आधार पर अनिश्चित प्रतिक्रिया के रूप में की। हैंस शैले की पारिभाषा का आधार दैहिक है और यह हारमोन्स की क्रियाओं को अधिक महत्व देती है, जो ऐड्रिनल और अन्य ग्रन्थियों द्वारा स्रवित होते हैं।

 

 

शैले ने दो प्रकार के तनावों की संकल्पना की है उनमें से पहला यूस्ट्रेस (eustress) अर्थात मध्यम और इच्छित तनाव जैसे कि प्रतियोगी खेल खेलते समय। दूसरा विपत्ति (distress/डिस्ट्रेस) जो बुरा, असंयमित, अतार्किक या अवांछित तनाव है।

तनाव पर नवीन उपागम व्यक्ति को उपलब्ध समायोजी संसाधनों के सम्बन्ध में स्थिति के मूल्यांकन एवं व्याख्या की भूमिका पर केंद्रित है। मूल्यांकन और समायोजन की अन्योन्याश्रित प्रक्रियायें व्यक्ति के वातावरण एवं उसके अनुकूलन के बीच सम्बन्ध निर्धारण करती है। अनुकूलन वह प्रक्रिया है जिस के द्वारा व्यक्ति दैहिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक हित के इष्टतम स्तर को बनाए रखने के लिए अपने आसपास की स्थितियाँ एवं वातावरण को व्यवस्थित करता है।