Nov ०६, २०२१ १९:०५ Asia/Kolkata
  • विज्ञान की डगर-76

कनाडा के टोरेंटो विश्व विद्यालय के शोधकर्ता श्रीमान हकीमी ने शोधकर्ताओं के एक ग्रुप के साथ मिलकर हाथ से बना हुआ एक थ्री डी प्रिन्टर बनाया जो गहरे घावों पर सीधे रूप से त्वचा को प्रिंट करता है।

बताया जाता है कि यह गैजेट जूते के डिब्बे के बराबर और चिपकाने की एक सफ़ेद मशीन की तरह दिखता है जिसमें चिपने वाले पदार्थ के बजाए एल्गिनेट "एक प्रकार की भूरी समुद्री काई" की तरह निकलता है।

प्रत्येक प्रिंट शीट के नीचे, त्वचा कोशिकाओं और कोलेजन जैसे जैविक पदार्थों से युक्त प्राकृतिक स्याही की लेयर होती हैं। ये पदार्थ, फ़ाइब्रिन अर्थात घाव भरने में एक महत्वपूर्ण प्रोटीन" के साथ त्वचा में सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इस प्रिंटर का वज़न एक किलोग्राम से भी कम है और इसे इस्तेमाल करना बहुत आसान है। इस गैजेट के इस्तेमाल की वजह से धोने और ऊष्मायन का चरण जो सामान्य प्रिंटर में होता है, ख़त्म हो जाता है और घाव को एक या दो मिनट में त्वचा से ढक दिया जाता है। इस विधि का चूहों और सूअरों पर परीक्षण किया गया है। शोधकर्ता हकीमी के अनुसार यह त्वचा का यह प्रिंटर विशिष्ट रोगियों के लिए ऊतक बनाते हैं जो उनके घावों की विशेषताओं से मेल खाते हों।

 

 

 

दोस्तो मुदर्रिस टेक्नीकल कालेज में मेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ताओं ने सतही मस्तिष्क संकेतों के आधार पर मिर्गी के दौरे की भविष्यवाणी करने के लिए एक व्यापक विधि विकसित की है। इस योजना के शोधकर्ता के अनुसार, दुनिया में 65 मिलियन से अधिक लोग मिर्गी से पीड़ित हैं। इसलिए मिर्गी के दौरे की शुरुआत से पहले चेतावनी देने और दौरे को होने से रोकने या चोटों को कम करने के लिए आसन्न दौरे की भविष्यवाणी करने के लिए एल्गोरिदम का होने बहुत ही ज़रूरी है।

एपिलेप्सी (Epilepsy) यानी मिर्गी एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर Neurological Disorders) यानी तंत्रिका तंत्र संबंधी बीमारी है। इसमें तंत्रिका कोशिका (Nerve Cell) की गतिविधियों में रुकावट आने लगती है जिसके वजह से मरीज़ को दौरे पड़ने लगते हैं।

ऐसी कोई भी बीमारी या रोग जो बच्चों और बुजुर्गों को हो सकता है, यह एक गंभीर स्थिति को भी जन्म दे सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बच्चों और बुजुर्गों दोनों की ही इम्यूनिटी बहुत कमजोर होती है, और कमजोर इम्यूनिटी की वजह से ही बीमारी के गंभीर होने का खतरा बढ़ जाता है। मिर्गी भी एक ऐसा ही रोग है जो बच्चों और बुजुर्गों को अपनी गिरफ्त में ले लेता है।

आपको बता दें कि यह रोग नर्वस सिस्टम को ही प्रभावित करता है और उसी से जुड़ा हुआ एक रोग है। आमतौर पर मिर्गी से पीड़ित लोगों को इसके दौरे पड़ते हैं जो हल्के भी हो सकते हैं और गंभीर भी। मिर्गी एक बहुत ही गंभीर समस्या है, जो नर्वस सिस्टम की आवृत्तियों में बाधा उत्पन्न होने की वजह से पैदा होती है। अगर सही समय पर मिर्गी की समस्या का उपचार ना करवाया जाए तो यह आपके मस्तिष्क को भी नुकसान पहुंचा सकती है। आपको बता दें कि मिर्गी रोग के लिए कई तरह की थेरेपी और उपचार प्रक्रिया मौजूद है।

लेकिन इसकी इलाज की प्रक्रिया मरीजों की स्थिति पर ही निर्भर करती है। यही नहीं मिर्गी के रोग से राहत पाने के लिए कुछ साधारण तरीकों या उपाय अपनाए जा सकते हैं, या फिर उपाय उपचार प्रक्रिया के साथ भी आजमाए जा सकते हैं। लेकिन इसके लिए मरीज की स्थिति का पता होना बेहद जरूरी है। अगर आप भी भी मिर्गी से राहत पाने के कुछ घरेलू उपाय आजमाना चाहते हैं तो ऐसा कर सकते हैं।

 

दोस्तो अमरीका के पेन्सेल्वेनिया विश्वविद्यालय के डाक्टर्ज़ ने रोबोट की मदद से पहली रोबोटिक रीढ़ की सर्जरी अंजाम दी। रोबोटिक सर्जरी ऐसी गतिविधियां अंजाम दे सकता है जो दक्ष और निपुण डाक्टर्स भी अंजाम नहीं दे सकते। इस सर्जरी में  एक दा विंची रोबोटिक बांह का इस्तेमाल एक दुर्लभ ट्यूमर को हटाने के लिए किया गया था जो रीढ़ और खोपड़ी के बीच में बना था। यह सर्जरी दो अगस्त 2017 में हुई और दो दिनों तक चली।

आपका मेरुदंड नसों का एक समूह है जो आपकी पीठ के मध्य तक जाता है। यह आपके शरीर और मस्तिष्क के बीच संकेतों का आदान-प्रदान करता है। यह कशेरुका द्वारा संरक्षित होता है, जो आपकी रीढ़ बनाने वाले अस्थि-खंड होते हैं। यदि किसी दुर्घटना में आपकी कशेरुका या रीढ़ के अन्य हिस्से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं तो इससे मेरुदंड भी चोटिलहो सकता है। मेरुदंड की अन्य समस्याओं में शामिल हैं।

हम सब जानते हैं कि शरीर की हड्डियां बेशुमार प्रोटीन के रेशे द्वारा बनी होती है और इसके ऊपर विटामिन D की सहायता से कैल्शियम जमा होता है। ये प्रक्रिया लगातार चलती रहती है और हमारी हड्डियों को सुदृढ़ता प्रदान करती है

बढ़ती उम्र की वजह से यह प्रोटीन के रेशे पतले होने शुरू हो जाते हैं और इनकी मात्रा भी कम होनी शुरू हो जाती है । इसका मूल कारण बढ़ती उम्र तो है ही लेकिन साथ साथ कम व्यायाम करना , कम चलना और ठीक प्रकार का प्रोटीन  युक्त खाना न खाना भी इसका कारण बन जाते हैं हड्डी कमज़ोर होने से ऑस्टियोपोरोसिस हो जाता है या यूँ कहें कि हड्डी खोखला होनी  शुरू हो जाती है। इसी प्रकार से विटामिन D की कमी के कारण , क्योंकि , हड्डी पर कैल्शियम जमा नहीं हो पाता, हड्डी कमज़ोर हो जाती है और इस स्थिति को ऑस्टियोमलेशया कहते हैं बढ़ती उम्र के कारण कमज़ोर हड्डी का सबसे ज़्यादा प्रभाव देखने में आता है हमारी रीढ़ की हड्डी पर।

 

पहले हम ये समझ लें कि आख़िर हमारी रीढ़ की हड्डी की बनावट क्या है। रीढ़ की हड्डी एक प्रकार से एक मनके के ऊपर एक मनका है जो एक दूसरे से बड़े ही परिष्कृत एवं महीन तरीक़े से जुड़े रहते हैं। दो मनके यानी की वरटिबरा के बीच डिस्क होती है । यही वजह है कि हमारी रीढ़ की हड्डी के द्वारा हम चारों तरफ़ झुक एवं घूम सकते हैं हालाँकि रीड की हड्डी में एक बहुत ही महत्वपूर्ण  नाज़ुक सपाइनल कॉर्ड  अथवा सुषुम्ना नाड़ी  सुरक्षित रहती है हमारे गर्दन में सात , कमर में  बारह और निचले हिस्से में पाँच वरटिबरा होते हैं जिसको मिलकर रीढ़ की हड्डी बनती है। दोस्तो अब हम मनोरोग के विषय पर चर्चा करते हैं।

 

अवसाद ऐसी मानसिक अवस्था है जो कि उदासी, रूचि का अभाव और प्रतिदिन की क्रियाओं में प्रसन्नता का अभाव, अशांत निद्रा व नींद घट जाना, कम भूख लगना, वजन कम हो ना, या ज्यादा भूख लगना व वजन बढ़ना, आलस, दोषी महसूस करना, अयोग्यता, असहायता, निराशा, एकाग्रता स्थापित करने में परे शानी और अपने व दूसरों के प्रति नकरात्मक विचारधारा के लक्षणों को दर्शाती है। यदि किसी व्यक्ति को इस तरह के भाव न्यूनतम दो सप्ताह तक रहें तो उसे अवसादग्रस्त कहा जा सकता है और उस के उपचार के लिए उसे शीघ्र नैदानिक चिकित्सा प्रदान करवाना आवश्यक है।

 

आज के समय में कुछ बीमारियां बहुत ही साधारण बन चुकी हैं जैसे निम्न रक्तचाप, उच्च रक्तचाप, मधुमेह आदि। वैसे तो ये सब शारीरिक बीमारियाँ हैं परंतु ये मनावैज्ञानिक कारणों जैसे तनाव व चिंता से उत्पन्न होती हैं। अतः मनोदैहिक विकार वे मनोवैज्ञानिक समस्याएं हैं जो शारीरिक लक्षण दर्शातीं हैं, लेकिन इसके कारण मनोवैज्ञानिक होते है। वहीं मनोदैहिक की अवधारणा में मन का अर्थ मानस है और दैहिक का अर्थ शरीर है। इसके विपरीत दैहिकरूप विकार, वे विकार हैं जिनके लक्षण शारीरिक है परंतु इनके जैविक कारण सामने नहीं आते। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति पेटदर्द की शिकायत कर रहा है परंतु तब भी जब उसके उस खास अंग अर्थात पेट में किसी तरह की कोई समस्या नहीं होती।

किसी-किसी अभिघातज घटना के बाद व्यक्ति अपना पिछला अस्तित्व, गत घटनाएं और आस-पास के लोगों को पहचानने में असमर्थ हो जाता है। नैदानिक मनोविज्ञान में इस तरह की समस्याओं को विघटनशील विकार (Dissociative disorders) कहा जाता है, जिसमें किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व समाजच्युत व समाज से पृथक हो जाता है।

विघटनशील स्मृतिलोप ( dissociative amnesia), विघटनशील मनोविकार का एक वर्ग है, जिसमें व्यक्ति आमतौर पर किसी तनावपूर्ण घटना के बाद महत्वपूर्ण व्यक्तिगत सूचना को याद करने में असमर्थ हो जाता है। विघटन की स्थिति में व्यक्ति अपने नये अस्तित्व को महसूस करता है। दूसरा वर्ग विघटनशील पहचान विकार (dissociative identity disorder) है जिसमें व्यक्ति अपनी याददाश्त तो खो ही देता है वहीं नये अस्तित्व की कल्पना करने लगता है। अन्य वर्ग व्यक्तित्वलोप विकार है, जिसमें व्यक्ति अचानक बदलाव या भिन्न प्रकार से विचित्र महसूस करता है। व्यक्ति इस प्रकार महसूस करता है जैसे उसने अपने शरीर को त्याग दिया हो या फिर उस की गतिविधियां अचानक से यांत्रिक या स्वप्न के जैसी हो जाती है। हालांकि विघटन मनोविकार की सब से गम्भीर स्थिति तब उत्पन्न हो ती है जब कोई एकाधिक व्यक्तित्व मनोविकार व विघटन अस्तित्व मनोविकार से ग्रस्त हो। इस स्थिति में विविध व्यक्तित्व एक ही व्यक्ति में अलग-अलग समय पर प्रकट होते हैं।

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