Feb ०४, २०२५ १५:५१ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-920

सूरए ज़ुख़रुफ़ आयतें 36-42

आइए पहले सूरए ज़ुख़रुफ़ की आयत संख्या 36 और 37 की तिलावत सुनते हैं,

وَمَنْ يَعْشُ عَنْ ذِكْرِ الرَّحْمَنِ نُقَيِّضْ لَهُ شَيْطَانًا فَهُوَ لَهُ قَرِينٌ (36) وَإِنَّهُمْ لَيَصُدُّونَهُمْ عَنِ السَّبِيلِ وَيَحْسَبُونَ أَنَّهُمْ مُهْتَدُونَ (37)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

और जो शख़्स ख़ुदा की याद से मुंह मोड़ता है हम उसके वास्ते शैतान मुक़र्रर कर देते हैं तो वही उसका साथी है। [43:36]  और वह (शैतान) उन लोगों को (ख़ुदा की) राह से रोकते रहते हैं फिर भी वे इसी ख़याल में हैं कि वे हिदायत के रास्ते पर हैं। [43:37]  

पिछले कार्यक्रम में उन लोगों का ज़िक्र था जो हर चीज़ को भौतिकवादी पैमानों पर परखते हैं और सांसरिक दौलत और शान व शौकत की कोशिश में रहते हैं। जबकि सच्चे मोमिन आख़ेरत की फ़िक्र में रहते हैं और दुनिया की सुविधाओं और चमक से दिल नहीं लगाते।

अब यह आयतें कहती हैं कि भौतिकवाद में डूब जाने के बुरे नतीजों में से एक दुनिया से बहुत गहरा लगाव पैदा हो जाना और अल्लाह की याद से इंसान का ग़ाफ़िल हो जाना है। इस ग़फ़लत के नतीजे में उस इंसान पर शैतान सवार हो जाता है और जिधर चाहता है उसे हंका ले जाता है। यह अल्लाह की याद और ज़िक्र से मुंह मोड़ने का स्वाभाविक नतीजा है।

दूसरे शब्दों में इंसान का दिल या तो अल्लाह और रहमान की जगह है या फिर शैतान की। अल्लाह की याद से ग़ाफ़िल हो जाना, दुनिया की चमक पर मर मिटना और अनेक प्रकार के गुनाहों में पड़ जाना इंसान पर शैतान का नियंत्रण हो जाने का सबब है। इस स्थिति में शैतान इंसान का हमदम बन जाता है और अल्लाह की याद और ज़िक्र के लिए उसके पास कोई गुंजाइश नहीं छोड़ता। शैतान और शैतानी सोच इस प्रकार के इंसानों को घेर लेती है और उन्हें अल्लाह के रास्ते से दूर कर देती हैं। जब भी यह लोग सत्य के रास्ते की तरफ़ पलटना चाहते हैं शैतान उनका रास्ता रोक लेते हैं और उन्हें सत्य के रास्ते पर नहीं जाने देते। शैतान बुराई के रास्ते को उनकी नज़र में इतना सजा सवांर कर पेश करते हैं कि उनकी आंख दिल और कान हक़ीक़त और सत्य को देखने और सुनने व समझने में अक्षम हो जाते हैं। उन्हें यह लगने लगता है कि उनका हर काम दुरुस्त है और सत्य के रास्ते से समन्वित है। उनको लगता है कि दूसरे लोग भटके हुए हैं। ज़ाहिर है कि अगर यह नौबत आ जाए तो इंसान अपनी किसी ग़लती को महसूस ही नहीं करेगा और सत्य की तरफ़ लौटने की ज़रूरत ही नहीं समझेगा।

इन आयतों से हमने सीखाः

जो भी अल्लाह से मुंह मोड़ता है, जो मुसलमान नमाज़ व क़ुरआन का पाबंद नहीं रहता दरअस्ल वह अल्लाह की याद से दूर हो गया है और उसने अपने ऊपर शैतान के नियंत्रण का रास्ता तैयार कर दिया है।

इंसान का दिल ख़ाली बरतन नहीं है। उसमें या तो ख़ुदा रहता है या शैतान। अगर अल्लाह न हो तो शैतान आ जाता है।

ग़लती करने से भी बुरा यह है कि इंसान अपनी ग़लती को देख ही न पाए और यह समझ बैठे कि उसने सही रास्ता चुना है।

आइए अब सूरए ज़ुख़रुफ़ की आयत संख्या 38 और 39 की तिलावत सुनते हैं,

حَتَّى إِذَا جَاءَنَا قَالَ يَا لَيْتَ بَيْنِي وَبَيْنَكَ بُعْدَ الْمَشْرِقَيْنِ فَبِئْسَ الْقَرِينُ (38) وَلَنْ يَنْفَعَكُمُ الْيَوْمَ إِذْ ظَلَمْتُمْ أَنَّكُمْ فِي الْعَذَابِ مُشْتَرِكُونَ (39)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

यहाँ तक कि जब (क़यामत में) हमारे पास आएगा तो (अपने साथी शैतान से) कहेगा काश मुझ में और तुम में पूरब पश्चिम का फ़ासला होता! वो क्या ही बुरा साथी है। [43:38]  और जब तुम ना फरमानियाँ कर चुके तो (शैतानों के साथ) तुम अज़ाब में शरीक हो, आज तुमको (शैतान से दूर होने की आरज़ू का) कोई फायदा नहीं पहुँचा सकता। [43:39]

यह आयतें दुनिया में अल्लाह से ग़ाफ़िल हो जाने के बुरे नतीजों की ओर से सचेत करती हैं और कहती हैं कि अल्लाह से मुंह मोड़ लेने की बुराई इंसान के दुनिया से चले जाने तक जारी रहती है, फिर क़यामत में उसकी आंख खुलती है और वहां उसकी समझ में आता है कि शैतान ने उसे किस मुसीबत में डाल दिया है। वहां वो आरज़ू करेगा कि काश उसने दुनिया में शैतान की दोस्ती का रास्ता न चुना होता और उसको साथी न बनाया होता।

वो कहेगा कि काश मेरे और शैतान के बीच पूरब और पश्चिम के बीच का फ़सला हो जाता। तू कितना बुरा साथी और हमदम है। तूने बुराइयों को अच्छा और ग़लत रास्ते को सही रास्ता कहा।

ज़ाहिर है कि शैतान से दूर होने की उनकी आरज़ू पूरी नहीं होगी और पछताने का भी वहां कोई फ़ायदा नहीं होगा। इन लोगों का अंजाम यही है कि वो उसी शैतान के साथ अज़ाब में रहें और उसका साथ दें जिस तरह दुनिया में वो शैतान के साथ रहना पसंद करते थे। हां क़यामत दरअस्ल दुनिया का आईना है, दुनिया के दोस्त क़यामत में भी एक साथ नज़र आएंगे।

इन आयतों से हमने सीखाः

हमें ख़याल रखना चाहिए कि दुनिया में किससे हमारी दोस्ती और किसके साथ उठना बैठना है ताकि आख़ेरत में हसरत और पछतावा न हो।

जहन्नम इंसान और शैतान दोनों के लिए है और जहन्नम वाले लोग शैतान के साथी होंगे।

ज़ुल्म का केवल यही रूप नहीं कि एक इंसान दूसरे पर करता है बल्कि अगर इंसान अल्लाह की तरफ़ से ग़ाफ़िल हो जाए तो वो अपने ऊपर ज़ुल्म करता है। क्योंकि यह स्थिति इंसान को दुनिया में गुमराही और आख़ेरत में जहन्नम में ले जाती है।

अब आइए सुरए ज़ुख़रुफ़ की आयत संख्या 40 से 42 तक की तिलावन सुनते हैं,

أَفَأَنْتَ تُسْمِعُ الصُّمَّ أَوْ تَهْدِي الْعُمْيَ وَمَنْ كَانَ فِي ضَلَالٍ مُبِينٍ (40) فَإِمَّا نَذْهَبَنَّ بِكَ فَإِنَّا مِنْهُمْ مُنْتَقِمُونَ (41) أَوْ نُرِيَنَّكَ الَّذِي وَعَدْنَاهُمْ فَإِنَّا عَلَيْهِمْ مُقْتَدِرُونَ (42)

इन आयतों का अनुवाद हैः

तो (ऐ रसूल) क्या तुम बहरों को सुना सकते हो या अन्धे को और उस शख़्स को जो खुली गुमराही में पड़ा हो रास्ता दिखा सकते हो? (हरगिज़ नहीं)। [43:40]   तो अगर हम तुमको (दुनिया से) ले भी जाएँ तो भी हम उनसे बदला लेंगे। [43:41]   या (तुम्हारी ज़िन्दगी ही में) जिस अज़ाब का हमने उनसे वायदा किया है तुमको दिखा देंगे, जान लो हम उन पर हर तरह से क़ाबू रखते हैं। [43:42]

यह आयतें रसूले ख़ुदा को संबोधित करके कहती हैं कि जो लोग हक़ को देखने और सुनने के लिए तैयार नहीं है हालांकि उनकी आंखें और कान स्वस्थ हैं मगर उनकी देखने और समझने की अंदरूनी क्षमता मर गई है। इसलिए तुम उनहें अपनी बात नहीं सुना सकते कि वो हक़ीक़त को देख सकें और तुम उन्हें गुमराही से नहीं निकाल सकते। जो नींद का दिखावा कर रहा है और जो वाक़ई सो रहा है दोनों में अंतर है। दिखावे करने वाले को तुम लाख पुकारो जगा नहीं सकते। दूसरे व्यक्ति को दो चार बार आवाज़ देकर जगाया जा सकता है।

कुछ इंसान गुनाह में इतनी गहराई तक डूब जाते हैं कि अल्लाह और पैग़म्बर का नाम भी उन्हें बुरा लगने लगता है। धार्मिक और आध्यात्मिक बातें और विषय उन्हें परेशान करते हैं। ज़ाहिर है कि इस तरह के लोग सही रास्ते की तरफ़ वापसी का रास्ता बंद कर चुके होते हैं। अगर उनकी हिदायत के लिए अल्लाह के रसूल ख़ुद आ जाएं और बेहतरीन अंदाज़ में उनकी हिदायत करें और नेक अमल की दावत दें तब भी वे हिदायत के रास्ते पर नहीं आ सकते।

इस तरह की ज़िद और अड़ियल रवैये का नतीजा दुनिया और आख़ेरत में अल्लाह के अज़ाब के अलावा कुछ नहीं होता। चाहे वो पैग़म्बर की ज़िंदगी का ज़माना हो या उनके दुनिया से चले जाने के बाद का दौर हो। उनके पास फ़रार का कोई रास्ता नहीं होता। क्योंकि सारी कायनात अल्लाह के नियंत्रण में है और कोई भी अल्लाह के वर्चस्व के दायरे से बाहर नहीं जा सकता।

इन आयतों से हमने सीखाः

अगर हक़ बात को क़ुबूल करने की क्षमता न हो तो फिर हिदायत करने वाले अल्लाह के रसूल ही क्यों न हों इंसान हिदायत के रास्ते पर नहीं आता।

अगर इंसान पर शैतान का नियंत्रण हो जाए, उसका दिल और उसकी आत्मा सत्य और हक़ देख और समझ ही नहीं पाती।

मुशरिक इस गुमान में न रहें कि जब तक पैग़म्बर हैं उन पर अज़ाब नहीं आएगा या अगर पैग़म्बर दुनिया से चले गए तो फिर किसी को कोई सज़ा नहीं दी जाएगी।