क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-923
सूरए ज़ुख़रुफ़, आयतें 57-62
आइए पहले सूरए ज़ुख़रुफ़ की आयत संख्या 57 और 58 की तिलावत सुनते हैं,
وَلَمَّا ضُرِبَ ابْنُ مَرْيَمَ مَثَلًا إِذَا قَوْمُكَ مِنْهُ يَصِدُّونَ (57) وَقَالُوا أَآَلِهَتُنَا خَيْرٌ أَمْ هُوَ مَا ضَرَبُوهُ لَكَ إِلَّا جَدَلًا بَلْ هُمْ قَوْمٌ خَصِمُونَ (58)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और (ऐ रसूल) जब मरियम के बेटे (ईसा) की मिसाल बयान की गयी तो उससे तुम्हारी क़ौम के लोग खिलखिला कर हंसने लगे। [43:57] और बोल उठे कि भला हमारे माबूद अच्छे हैं या वह (यानी ईसा)? उन लोगों ने जो ईसा की मिसाल तुमसे बयान की है तो सिर्फ झगड़ने के लिए। [43:58]
इतिहास की पुस्तकों और दस्तावेज़ों में है कि मक्के के मुशरिक मूर्ति पूजा को सही ठहराने के लिए ईसाइयों की शैली का हवाला देते थे और पैग़म्बर से कहते थे कि वे लोग भी हज़रत ईसा की इबादत करते हैं जिनको मरियम नाम का महिला ने जन्म दिया। अगर हम ग़लत हैं तो ईसाई भी ग़लत कर रहे हैं। अगर आप के कहने के मुताबिक़ हम और हमारे माबूद जहन्नम में जाएंगे तो फिर तो हज़रत ईसा का स्थान भी जहन्नम ही होना चाहिए। क्योंकि उनकी भी इबादत की गई है।
हज़रत ईसा और मूर्तियों की तुलना ज़ाहिर है कि तर्कहीन है मगर मुशरिक बेजा बहस के लिए पैग़म्बर के सामने इसे छेड़ते थे। वे अपने ग़लत काम छोड़ने के बजाए उसके ग़लत तर्क और बहाने पेश करते थे। आज भी बहुत से लोग हैं जो अपने ग़लत कामों को सही ठहराने के लिए इसी तरह की बहस करते हैं।
यह समझना ज़रूरी है कि इंसानों में से वे माबूद जहन्नम में जाएंगे जिनकी इच्छा थी कि दूसरे लोग उनकी इबादत करें जैसे फ़िरऔन जो लोगों से कहता था कि मेरी इबादत करो। लेकिन हज़रत ईसा ने कभी भी स्वीकार नहीं किया कि उनकी इबादत की जाए, वे इससे बहुत कड़ाई के साथ रोकते थे।
इन आयतों से हमने सीखाः
दूसरों की ग़लत आस्था का मज़ाक़ उड़ाने के बजाए तर्क और सही बयान से उसे ग़लत साबित करना चाहिए।
हक़ीक़त को समझने के लिए बहस और बातचीत पर क़ुरआन ने ताकीद की है। लेकिन ग़लत कामों को सही ठहराने के लिए बेजा बहस ग़लत है।
आइए पहले सूरए ज़ुख़रुफ़ की आयत संख्या 59 और 60 की तिलावत सुनते हैं,
إِنْ هُوَ إِلَّا عَبْدٌ أَنْعَمْنَا عَلَيْهِ وَجَعَلْنَاهُ مَثَلًا لِبَنِي إِسْرَائِيلَ (59) وَلَوْ نَشَاءُ لَجَعَلْنَا مِنْكُمْ مَلَائِكَةً فِي الْأَرْضِ يَخْلُفُونَ (60)
इन आयतों का अनुवाद हैः
बल्कि (हक़ तो यह है कि ये लोग झगड़ालू हैं) ईसा तो बस हमारे एक बन्दे थे जिन्हें हमने नेमत दी और उनको हमने बनी इस्राईल के लिए नमूना और आदर्श बनाया। [43:59] और अगर हम चाहते तो तुम ही लोगों में से (किसी को) फ़रिश्ते बना देते जो तुम्हारी जगह ज़मीन में रहते। [43:60]
पिछली आयतों में हज़रत ईसा और बुतों की तुलना के बारे में बात की गई जो मक्के के मुशरिक किया करते थे। अब यह आयतें हज़रत ईसा का बचाव करते हुए कहती हैं कि वो तो ख़ुद को अल्लाह का बंदा जानते थे और हरगिज़ सहन नहीं करते थे कि ईसाई उनकी इबादत करें, इसके ख़िलाफ़ संघर्ष भी करते थे। वो ऐसे इंसान थे जिन्हें अल्लाह ने नबूवत की नेमत दी कि बनी इस्राईल के पैग़म्बर बनें और आदर्श व उदाहरण के रूप में उनके सामने रहें और उनकी हिदायत करें। दरअस्ल उनका हर चमत्कार अल्लाह की शक्ति और उनकी नबूवत की एक निशानी है। उन्होंने अपने पूरे जीवन में बार बार कहा कि वो अल्लाह के बंदे हैं और सबको अल्लाह की इबादत की दावत देते थे। लेकिन ईसाई अल्लाह के बजाए उनकी इबादत करने लगे।
आयत आगे मुशरिकों से कहती है कि यह जो अल्लाह और उसके रसूल तुम्हें सीधे रास्ते पर आने की दावत देते हैं इसलिए नहीं है कि अल्लाह को तुम्हारे ईमान और इबादत की ज़रूरत है। क्योंकि अगर वो चाहे तो तुम्हारी जगह ज़मीन पर फ़रिश्तों को पैदा कर सकता है। उन फ़रिश्तों को जो दिन रात अल्लाह की फरमां बरदारी करें, उसके अनुपालन और इबादत में व्यस्त रहें।
इन आयतों से हमने सीखाः
अल्लाह की इबादत इंसान के उत्थान और संपूर्णता का ज़रिया है, पैग़म्बर बंदगी व इबादत के सबसे ऊंचे दर्जे तक पहुंचे।
हालांकि यहूदियों ने इतिहास के हर दौर में हज़रत ईसा का विरोध किया लेकिन वो भी बनी इस्राईल जाति से ही तअल्लुक़ रखते थे, यहूदियों की ओर से उनका इंकार ज़िद और द्वेष की वजह से था।
अल्लाह चाहता है कि इंसान समझ बूझकर ईमान लाए वरना वो ज़मीन में इंसानों के बजाए फ़रिश्तों को रख देता जिनका कोई अख़तियार नहीं होता और वो दिन रात अल्लाह की इबादत करते रहते।
आइए पहले सूरए ज़ुख़रुफ़ की आयत संख्या 61 और 62 की तिलावत सुनते हैं,
وَإِنَّهُ لَعِلْمٌ لِلسَّاعَةِ فَلَا تَمْتَرُنَّ بِهَا وَاتَّبِعُونِ هَذَا صِرَاطٌ مُسْتَقِيمٌ (61) وَلَا يَصُدَّنَّكُمُ الشَّيْطَانُ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُبِينٌ (62)
इन आयतों का अनुवाद हैः
और वह तो यक़ीनन क़यामत की एक रौशन दलील है तुम लोग इसमें हरगिज़ शक न करो और मेरी पैरवी करो यही सीधा रास्ता है। [43:61] और (कहीं) शैतान तुम लोगों को (इससे) रोक न दे वही यक़ीनन तुम्हारा खुला दुश्मन है। [43:62]
पिछली आयतों की बात को आगे बढ़ाते हुए यह आयत हज़रत ईसा की एक विशेषता का उल्लेख करती है और कहती है कि ख़ुद हज़रत ईसा का अस्तित्व भी क़यामत की निशानियों में से एक निशानी है। क्योंकि उनका जन्म उस मां से हुआ जिनका कोई पति नहीं था। यह क़यामत के दिन इंसानों को दोबारा ज़िंदा करने की अल्लाह की शक्ति की एक निशानी है। इसी तरह हज़रत ईसा का एक चमत्कार इसी दुनिया में मुर्दों को ज़िंदा करना था। इसके अलावा कई मोतबर रवायतों में है और ईसाइयों का अक़ीदा भी है कि आख़िरी ज़माने में हज़रत ईसा आसमान से ज़मीन पर आएंगे। यह भी इस बात का चिन्ह है कि उस समय दुनिया अपने अंत और क़यामत बरपा होने के क़रीब पहुंच चुकी होगी।
आयत आगे जाकर क़यामत के यक़ीनी होने पर और भी ज़ोर देती है कि हरगिज़ इसके बारे में कोई शक न करो क्योंकि क़यामत की तरफ़ से ग़ाफ़िल होना अलग अलग अपराधों और गुमराहियों का सबब बनता है और इंसान आख़िरकार जहन्नम में पहुंच जाता है। बेहतर है कि अल्लाह के सीधे रास्ते को अपनाओ जिस रास्ते को अल्लाह के पैग़म्बरों ने बयान किया है। यह इंसान को उन ढेरों ख़तरों से मुक्ति दिला सकता है जो उसकी घात में रहते हैं। इस तरह इंसान दुनिया और आख़ेरत में कामयाब हो सकता है।
अलबत्ता अल्लाह के रास्ते के मुक़ाबले में दूसरा रास्ता शैतान का है जो बहकावे और फ़रेब के ज़रिए तुम्हें अल्लाह के रास्ते और अपने अंजाम की तरफ़ तवज्जो से भटकाकर दुनिया और आख़ेरत में मुसीबत में फंसा सकता है। शैतान के इस काम की वजह तुमसे उसकी पुरानी दुशमनी है। क्योंकि वो तुम्हारे बाप हज़रत आदम की सजदा न करने की वजह से अल्लाह की बारगाह से निकाल दिया गया। उस समय उसने क़सम खाई थी कि दुनिया के ख़त्म होने तक हमेशा आदम की औलाद को बहकाने की कोशिश करता रहेगा। अब तुम किस तरह इस दुशमन के सामने ख़ामोश बैठ सकते हो और कैसे उसे मौक़ा दे सकते हो कि अपने बहकावों के ज़रिए तुम्हें सत्य और हक़ के रास्ते से हटा दे?
इन आयतों से हमने सीखाः
अल्लाह के वलियों और दूतों का अस्तित्व, उनकी बातें और उनका अमल क़यामत की याद दिलाने वाला है।
इंसान को सत्य के रास्ते पर चलने के लिए आदर्श और उदाहरण की ज़रूरत होती है, इसलिए सीधे रास्ते के बारे में अल्लाह के पाकीज़ा बंदों यानी पैग़म्बरों से हमें ज्ञान लेना चाहिए। वरना इंसान अपनी इच्छाओं और शैतान के बहकावों का शिकार हो जाएगा और इस ग़लत फ़हमी में रहेगा कि सत्य के रास्ते पर चल रहा है।
शैतान हमेशा इंसानों की घात में रहता है ताकि जहां कहीं भी मौक़ा और गुंजाइश मिले इंसान के दिल और विचार में उतर जाए और उसे सत्य के रास्ते से भटका दे।