ईरान की सांस्कृतिक धरोहर-41
वस्त्रों की बुनाई एक प्राचीन कला होने के अलावा एक ऐसा ज्ञान है, जिसके लिए सूत, धागा, रंग, कपड़ा, वेशभूषा के अलावा कपड़े के अन्य इस्तेमाल और उसकी गुणवत्ता को पहचानने की जानकारी ज़रूरी है।
बुनाई की कला की उत्पत्ति के अलावा रासायनशास्त्र, रंगों की पहचान, वनस्पति ज्ञान, और चिकित्सा के साथ उसका मज़बूत संबंध है।
कताई में इस्तेमाल होने वाला सूत दो प्रकार का होता है, एक प्राकृतिक और दूसरा कृत्रिम। प्राकृतिक सूत वह होता है कि जो मूल रूप में बदलाव किए बिना हासिल होता है। उदाहरण स्वरूप, रूई, रेशम, सन, जूट, कैनबिस और बिना बुना हुआ कपड़ा।
कृत्रिम सूत या धागे का विशेष प्रकार से उत्पाद होता है। सामान्य रूप से यह प्रकृति में नहीं पाया जाता, लेकिन संभव है इसकी मूल जड़ें प्राकृतिक हों। उदाहरण स्वरूप, सेलूलज़, सेलूलज़ एसीटेट, विस्कोस, एक्रिलिक एवं पोलीप्रोपिलीन।
कपड़ा एक नर्म वस्तु है, जो धागों, प्राकृतिक या कृत्रिम सूतों की बुनाई से बनता है। धागे और सूत को एक दूसरे से मिलाकर कपड़ा बनता है। कपड़े का उत्पादन बुनाई की विभिन्न शैलियों द्वारा किया जाता है।

प्रयोग की गई सामग्री के अनुसार, कपड़े विभिन्न प्रकार के होते हैं, जैसे कि सूती कपड़ा, रेशमी या सिल्की। कपड़े की बुनाई के लिए विभिन्न वस्तुओं से धागे का उत्पादन किया जाता है। सूत को धागे में बदलने की प्रक्रिया को कताई कहते हैं। इंसान ने हज़ारों वर्ष पूर्व इस विषय का ज्ञान प्राप्त कर लिया था कि किस तरह से अच्छा सूत हासिल किया जा सकता है। इसके लिए सूत को खींचकर बराबर किया जाता था और उसे घुमाया जाता था। उसके बाद सूत के धागे दबाव के कारण एक दूसरे में उलझ जाते थे और उससे एक मज़बूत धागा बनकर निकलता था। यह प्रक्रिया सूत को धागे में बदलने का आधार है, जिसे कातना कहते हैं। कताई के तीन नियम हैं, सूत को खींचना और बराबर करना, उसे घुमाना और लपेटना।
वर्षों पूर्व बुनाई की मशीनों के अविष्कार से इस प्रक्रिया में तेज़ी आ गई है, ख़र्चा कम हो गया है और कपड़े की गुणवत्ता बेहतर हो गई है। स्पष्ट है कि कपड़ा बुनने वाली मशीनें, जिस प्रकार के धागे का उत्पादन करती हैं, उसके अनुसार, विभिन्न प्रकार की होती हैं। उदाहरण स्वरूप, जिन मशीनों को सूती धागों के उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है, वे पूर्ण रूप से उन मशीनों से अलग होती हैं, जिन्हें सिल्क या रेशमी धागे के उत्पादन में प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार टेक्सटाइल मशीनों का सिस्टम धागों के प्रकार पर निर्भर करता है।
हालांकि हम जानते हैं कि दस्तकारी की स्थिति इससे एकदम अलग है, इसलिए कि कताई बहुत ही सामान्य एवं पारम्परिक उपकरणों और हाथों द्वारा की जाती थी। सूत की कताई के प्रारम्भिक उपकरण का अविष्कार स्टोन ऐज के अंत में हुआ था। इस उपकरण के तीन भाग थे, एक लकड़ी या धातु की छड़ी बीच में, नीचे की ओर एक पत्थर का भार और ऊपर की ओर एक हुक। चरख़े के प्रयोग से सूत को तेज़ी से काता जाता था और उससे बनाए गए धागे को तकली पर लपेटा जाता था।

चार हज़ार साल से अधिक तक दुनिया भर में चरख़ा धागा बनाने का महत्वपूर्ण उपकरण था। लगभग एक हज़ार वर्ष पूर्व हथ करघे का अविष्कार हुआ, जिससे चरख़े की तुलना में अधिक तेज़ी से धागा बुना जा सकता था। हालांकि उससे बनने वाले धागे कुछ मोटे और कमज़ोर होते थे। कातने के उद्योग में विकास से नई बड़ी बड़ी मशीनों का अविष्कार हुआ।
ऊन, कपड़े की बुनाई में एक प्राकृतिक धागा है, जिसे भेड़ के बालों से प्राप्त किया जाता है। आज दुनिया भर में भेड़ों की 200 से अधिक प्रजातियां हैं। उनमें से अधिकांश व्यापार एवं आर्थिक रूप से बहुत महत्व नहीं रखती हैं, इस उद्देश्य से केवल कुछ ही प्रजातियों का पालन किया जाता है। यह जानना दिलचस्प होगा कि दुनिया भर में भेड़ों का उनके ऊन के आधार पर वर्गीकरण किया जाता है। उदाहरण स्वरूप, वह भेड़ें जिनका ऊन बहुत नाज़ुक होता है, वह भेड़ें जिनका ऊन कम नाज़ुक होता है और वह भेड़ें जिनका ऊन मोटा होता है। बुनाई के ऐसे सामान्य उत्पादों के विपरीत कि जिनमें नाज़ुक ऊन की ज़रूरत होती है, भेड़ों का मोटा ऊन क़ालीन बुनने में प्रयोग होता है, क्योंकि उससे कपड़ा या नाज़ुक एवं सुन्दर उत्पाद नहीं बनाए जा सकते।
ऊन की कताई में पहले रंगीन और सफ़ेद धागों को काता जाता है। धागे को हाथ से खोला जाता है और पानी और तेल में डाला जाता है। यह काम इलेक्ट्रिसिटी एवं चिपकने से बचाने के लिए किया जाता है। ऊन को 24 घंटों तक उसमें रखा जाता है और उसके बाद एक ख़ास मशीन में डालकर निकाला जाता है, जिससे धागे एक दूसरे से अलग हो जाते हैं। उसके बाद एक दूसरी मशीन में डाला जाता है, जो कमज़ोर और फ़ालतू धागों तथा ख़ाक धूल को साफ़ कर देती है और धागे बनाती है।

धागे के उत्पाद में कपास एक दूसरा कच्चा माल है। इससे बनने वाला कपड़ा शरीर की गर्मी को बाहर निकालता है। कपास से बनने वाले कपड़ों से धब्बों को आसानी से साफ़ किया जा सकता है और इन्हें आसानी से धोया जा सकता है और यह जल्दी से घिसते नहीं हैं। कपास में मुलायम और फूले हुए रेशे होते हैं जो कपास के बीजों के चारों ओर एक फली में होते हैं। यह रेशे सेलूलज़ से बने होते हैं और ढापने की विशेषता के कारण, कपास के बीजों को हवा में दूर तक ले जाते हैं, जिससे वहां इसके पौधे उग जाते हैं।
कपास गर्म और कम गर्म इलाक़ों विशेषकर अमरीका, अफ़्रीक़ा और भारत की स्थानीय फ़सल है। जंगली कपास की विभिन्न प्रजातियां मेक्सिको उसके बाद ऑस्ट्रेलिया और अफ़्रीक़ा में पायी जाती हैं। इसे धागे और कपड़े के उत्पादन में इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए उसके रेशों को निकालकर धुना जाता है। उससे धागे बनाए जाते हैं, जिनसे कपड़ा बनता है। यद्यपि यह शैली प्राचीन काल से ही प्रचलित हैं, लेकिन अब कताई और बुनाई की आधुनिक मशीनों द्वारा यह काम किया जाता है, जिससे ख़र्च में कमी हो गई है।

रेशम एक ऐसा पदार्थ है, जिसका इस्तेमाल हज़ारों वर्ष पूर्व से हो रहा है। प्राचीन चीन इसका जन्म स्थल माना जाता है। कुछ कहानियों में सुनते रहे हैं कि चीन की एक राजकुमारी अपने बग़ीचे में चाय पीने में व्यस्त थी, अचानक उसके प्याले में रेशम का एक कीड़ा गिर जाता है, चाय की गर्मी के कारण रेशम का कीड़ा रेशम निकालता है। एक अन्य कहानी के अनुसार, 2600 वर्ष ईसा पूर्व रेशम के कीड़ों को पाला जाता था और उससे रेशम प्राप्त किया जाता था। चीनी लोग शताब्दियों तक रेशम के कीड़े पालते रहे और उससे रेशम का उत्पादन करते रहे, लेकिन उन्होंने इसे विदेशियों की नज़रों से छिपा कर रखा हुआ था।
91.44 सेंटिमीटर कपड़े के उत्पादन के लिए, लगभग 3000 रेशम के कीड़ों की ज़रूरत होती है। शताब्दियों तक रेशम आम लोगों की पहुंच से दूर था, केवल अमीर लोग और राज घराने इसका प्रयोग करते थे। इसलिए कि हर कोई इसे नहीं ख़रीद सकता था। आजकल नाइलोन और पोलिस्टर को कृत्रिम रेशम समझा जाता है और कपड़े के उत्पाद में उसका प्रयोग किया जाता है। इसके बावजूद आज भी रेशम के महत्व एवं मूल्य में कोई कमी नहीं हुई है।
