Jun २२, २०१५ १२:५९ Asia/Kolkata

ईरान में हस्तकला उद्योग और कलाओं की समीक्षा, इतिहास के विभिन्न कालों में लोगों की जीवन शैली और सभ्यता के वजूद में आने के समय से जुड़ी हुयी है।

ईरान में हस्तकला उद्योग और कलाओं की समीक्षा, इतिहास के विभिन्न कालों में लोगों की जीवन शैली और सभ्यता के वजूद में आने के समय से जुड़ी हुयी है। ईरान के बारे में गहरा अध्ययन करने वाले आर्थर पोप, उनकी बीवी फ़िलिस ऑकरमैन और हेनरी डैलमानी के अनुसार कृषि, मिट्टी के बर्तन और धातु पर काम की कला मध्यपूर्व और ख़ास तौर पर ईरानी पठार में विकसित हुयी और ईरान में मानव जीवन के सबसे पुराने काल का संबंध मौजूद दस्तावेज़ के अनुसार, मेसोलिथिक काल से है। यह सभ्यता लगभग 10 से 12 हज़ार साल पहले इस क्षेत्र में विकसित हुयी और इससे संबंधित दस्तावेज़, मौजूदा ईरान के उत्तरी भाग में स्थित बेहशहर के निकट हूतू आवासीय ग़ार से बरामए हुए हैं।

 

 

यह दस्तावेज़ बताते हैं कि उस समय ईरान में गेहूं और जौ की खेती प्रचलित थी और कृषि उत्पाद दरांती से काट जाते थे। यह दराती चख़माक़ के पत्थर की बनी, दांतदार धार रखती थी और उस पर चित्र बने होते थे। उस समय पशुपालन और भेड़-बकरी के गोश्त का सेवन प्रचलित था। पशु के ऊन की कताई और बुनायी की जाती थी और दैनिक जीवन के लिए मिट्टी के बर्तन बनाए जाते थे।

फ़्रांसीसी पुरातन विशेषज्ञ रोमर गर्शमन प्राचीन ईरान के बारे में अपने शोध में ऐसे लोगों का ज़िक्र करते हैं जो पश्चिमी और दक्षिण-पश्चिमी ईरारन के बख़्तयारी पहाड़ों में रहते थे और मिट्टी के बर्तन बनाना जानते थे। सभी ऐतिहासिक दस्तावेज़ कृषि और मिट्टी के बर्तन तथा बुनाई जैसे उद्योगों के ईरान में शुरु होने का पता देते हैं। इसी प्रकार इन दस्तावेज़ों से पता चलता है कि ईरानी सभ्यता मिस्र, भारत और चीन की सभ्यताओं से इस क्षेत्र में आगे थी।

 

 

ईरान में मिट्टी के बर्तन बनाने की कला का इतिहास बहुत पुराना है और यह उन महत्वपूर्ण आरंभिक कलाओं में है जिनकी मानव जाति ने खोज की है। पुरातनविद् मिट्टी के बर्तन के बारे में शोध से किसी क्षेत्र के एक काल की आर्थिक व सामाजिक स्थिति से अवगत होते हैं और उस काल के लोगों के जीवन, धर्म, इतिहास और सामाजिक संबंध का पता लगाते हैं।

इस ज़मीन पर जबसे मानव जीवन है लगभग उस समय से मिट्टी के बर्तन का भी वजूद है और इस दृष्टि से इतिहास पूर्व के काल की समीक्षा में भी मिट्टी के बर्तन का महत्वपूर्ण रोल है। समय बीतने के साथ मिट्टी के बर्तन के निर्माण में इतिहास पूर्व की संस्कृतियों की तुलना में बहुत परिवर्तन आया और इसका कारण पदार्थ, रूप, आकार, रंग और चित्र की नज़र से मानव जाति द्वारा अर्जित किया गया अनुभव है।

ईरान में इतिहास पूर्व के उद्योग के बारे में शोध के लिए पहली सबसे बड़े स्तर पर खुदाई दक्षिण-पश्चिमी ईरान के शूश क्षेत्र में जाक द मोर्गन ने की। इस खुदाई से प्राप्त चीज़ें, तांबे के दौर के आरंभिक दिनों की हैं जिनमें सूई, तांबे के आइने और कुल्हाड़ी शामिल हैं। ये चीज़ें शूश में एक मक़बरे से बरामद हुयीं जो इस बात को दर्शाती हैं कि उस समय ईरानी तांबे की धातु की अहमियत को समझते थे।

 

 

इस बात का भी उल्लेख करते चलें कि ईरान के विभिन्न इलाक़ों में की गयी खुदाई में विभिन्न प्रकार के धागों की बुनी हुयी चीज़ें भी बरामद हुयीं किन्तु उस काल में ईरान का सबसे बड़ा उद्योग मिट्टी के बर्तन का था।

शूश में की गयी खुदाई में एक गले का हार भी बरामद हुया जो छोटे छोटे पत्थर और शंख का बना है। उसके साथ ही कुछ अंगूठियां भी बरामद हुयीं जो पत्थर के नगीने की हैं और उन पर पशुओं के चित्र भी बने हुए हैं। यहां तक कि दक्षिणी ईरान के पेर्सपोलिस और तख़्ते जमशीद में मिट्टी के ऐसे बर्तन बरामद हुए जो चीनी बर्तनों की तरह नाज़ुक हैं। इन बर्तनों पर चित्र बने हुए हैं। खुदाई में प्राप्त होने वाली ये चीज़ें ईरान में मिट्टी के बर्तन के उद्योग की प्रगति की बेहतरीन मिसाल हैं।

इराक़ में लगभग 10 हज़ार साल पहले रहने वाले इंसान, गुफाओं के जीवन को छोड़ कर खाद्य पदार्थ के उत्पादन के क्षेत्र में सक्रिय हो गए थे। वे लोग नदियों के किनारे उपजाऊ क्षेत्रों में सामूहिक रूप से रहने लगे ताकि खेती करें। उन लोगों ने ऐसी सभ्यता की बुनियाद रखी जिसकी विशेषताओं में एक बादामी और लाल रंग के मिट्टी के नाज़ुक बर्तनों का निर्माण है। यह सभ्यता अपनी और विशेषताओं के साथ इस क्षेत्र में विकसित हुयी और धीरे-धीरे इतिहास पूर्व में दुनिया में व्यापक स्तर पर फैल गयी। इस प्रकार के बचे हुए मिट्टी के बर्तन और उनके टुकड़े पूर्व भूमध्यसागर से पाकिस्तान की सिंध नदी के दर्रों में की गयी पुरातात्विक खुदायी में बरामद हुए हैं।

 

 

ईरानी पठार क्षेत्रों में मिट्टी के बर्तन की एक विशेषता यह है कि ये लाल रंग के हैं और इन पर चित्र बने हुए हैं। इस प्रकार के बर्तन छठी और पांचवी ईसापूर्व सहस्त्राब्दी में ईरान के केन्द्रीय पठार के मरुस्थलीय किनारे पर बनाए जाते थे। ये बर्तन लाल रंग के होते थे और उसमें मिट्टी के अलावा रेत या वनस्पति भी मिलायी जाती थी। इसके नमूने ईरान के पश्चिमी और केन्द्रीय क्षेत्रों में विभिन्न स्थानों पर की गयी खुदाई में बरामद हुए। ये बर्तन पूरे ईरानी पठारी क्षेत्रों में इस सभ्यता के विस्तार का पता देते हैं।

केन्द्रीय ईरा के काशान शहर के नज़दीक सियाल्क टीला, लाल रंग के मिट्टी के बर्तनों के उत्पादन का केन्द्र था जो गुणवत्ता की नज़र से अपने से पहले वाले बर्तनों की तुलना में बेहतर दिखाई देता है। दस्तावेज़ों से पता चलता है कि ये बर्तन भट्टियों में पकाए जाते थे इसलिए ये बर्तन अन्य मिट्टी के बर्तनों की तुलना में अधिक मज़बूत होते थे। सियाल्क में मिलने वाले मिट्टी के बर्तनों पर जंगली बकरी, घोड़े, सूरज और इसी प्रकार ज्यामिती आकार बने हुए हैं।

चौथी ईसापूर्व सहस्त्राब्दी में ईरानी पठार में रहने वाले लोगों ने ज़्यादा प्रगति की और वे मिट्टी के बर्तनों पर चिड़ियों और जंगली जानवरों की तस्वीर काले रंग से बनाते थे। धीरे धीरे ये बर्तन बेहतर बनते गए। इसलिए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि चाक के आविष्कार ने मिट्टी के बर्तन के निर्माण में मदद की और इसका बेहतर नतीजा सामने आया। मौजूद दस्तावेज़ से पता चलता है कि उस काल के चाक, पतले होते थे जिसे ज़मीन पर रखकर हाथ से घुमाते थे और इस प्रकार बरतनों को अच्छा आकार देते थे। उल्लेखनीय है कि अब तक ऐसे बर्तन दुनिया में किसी और स्थान से बरामद नहीं हुए हैं जिससे यह नतीजा निकाला जा सकता है कि मिट्टी के बर्तन के उद्योग में ईरानी अन्य जातियों से आगे थे और शायद मिट्टी के बर्तन के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले चाक का आविष्कार उन्होंने किया हो।

 

तीसरी ईसापूर्व सहस्त्राब्दी के शुरु में ईरान के पठारी क्षेत्र के उत्तर से ईरान के पठारी भाग में मिट्टी के बर्तन के निर्माण की एक विशेष शैली पहुंची जो ख़ाकी रंग के मिट्टी के बर्तन के नाम से जानी जाती है। इस शैली के मिट्टी के बर्तनों को चाक की मदद से बनाया जाता था जो निर्माण शैली और ख़ूबसूरती की दृष्टि से अपने काल के धातु के बर्तनों जैसे थे। ख़ाकी रंग के मिट्टी के बर्तनों को विशेष भट्टी में आक्सीकरण के स्तर और गर्मी को नियंत्रित करके बनाया जाता था।

पुरातनविदों ने यानीक तप्पे, अर्दबील, तूरंग तप्पे, गुर्गान और तप्पे हेसार जैसे पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में ख़ाकी मिट्टी के बर्तन निकाले और यह बात स्पष्ट हो गयी कि ईरान के उत्तरी और पश्चिमोत्तरी इलाक़े इस प्रकार के बर्तनों के उत्पादन के महत्वपूर्ण केन्द्र थे। ख़ाकी मिट्टी के बर्तन ईसापूर्व शताब्दियों में ईरानी पठारी इलाक़ों में बनने लगे और उसी दौर में ये बर्तन अपनी नज़ाकत व गुणवत्ता की नज़र से अपने चरम पर पहुंचे किन्तु धातु के काम के चल निकलने से मिट्टी के बर्तन के उद्योग का पतन शुरु हुआ। यहां तक कि इतिहास के कालों में ऐसे भी मिट्टी के बर्तन बने हैं जो बिना चित्र के हैं और बहुत ही खुरदुरे हैं यहां तक कि इतिहास पूर्व के मिट्टी के बर्तनों जैसी नज़ाकत का नामो निशान नहीं है।

 

 

एक महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि मिट्टी के बर्तनों में समय बीतने के साथ इतिहास पूर्व और इतिहास के दौर में हुए सांस्कृतिक परिवर्तनों के साथ, पदार्थ, गुणवत्ता, आकार, रंग और चित्र की दृष्टि से बदलाव आए हैं। इन परिवर्तनों का मिट्टी के बर्तनों के वर्गीकरण में बहुत बड़ा रोल है। ये बर्तन आज भी आधुनिक उद्योगों के साथ साथ अपनी लोकप्रियता बनाए हुए हैं। (MAQ)

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