ईरान की सांस्कृतिक धरोहर-6
मिट्टी के बर्तन बनाने की कला सहित हस्तकला उद्योग स्थानीय कला है और यह कलाकारों की रचनात्मकता पर निर्भर होती है, शताब्दियां गुज़रने के साथ इसमें कलात्मक दृष्टि से भी प्रगति हुयी है जिससे इसकी गुणवत्ता भी बेहतर हुयी है।
मिट्टी के बर्तन बनाने की कला सहित हस्तकला उद्योग स्थानीय कला है और यह कलाकारों की रचनात्मकता पर निर्भर होती है, शताब्दियां गुज़रने के साथ इसमें कलात्मक दृष्टि से भी प्रगति हुयी है जिससे इसकी गुणवत्ता भी बेहतर हुयी है। मिसाल के तौर पर हज़रत ईसा से चौथी सहस्त्राब्दी ख़त्म होने से पहले मिट्टी के बर्तन बनाने वाला चाक थोड़ा बेहतर रूप व आकार का बनने लगा और उसके धीरे धीरे आज के दौरे के चाक का रूप हासिल कर लिया। केन्द्रीय ईरान के ‘सियाल्क’ में मिलने वाले मिट्टी के बर्तन, इन्हीं चाकों से बने हैं। इसी प्रकार भट्टियों में पकने वाले बर्तन समय बीतने के साथ साथ नई शैलियों से पकाए जाने लगे और इसी शैली के मिट्टी के बर्तनों की सुंदरता में निखार आया और वे मज़बूत बनने लगे। दूसरी बात यह कि हाइड्रस आयरन एसिड और मैंग्नीज़ियम एसिड से बने रंग को, बर्तन पर उस वक़्त चढ़ाया जाता था जब उसे भट्टी में दुबारा सिकने के लिए रखा जाता था ताकि मिट्टी के बर्तन पर अच्छा रंग चढ़े।
प्रकृति में दो प्रकार की गीली मिट्टी मौजूद है। मूल मिट्टी उस पत्थर के पास तलछट के रूप में जमा होती है जो मदर स्टोन कहलाता है। यह मिट्टी पानी या हवा से भी अपनी जगह से नहीं हटती। यह मिट्टी बड़ी हद तक शुद्ध होती है।
दूसरे प्रकार की मिट्टी हवा, पानी और स्थायी तथा अस्थायी प्राकृतिक कारणों से अपने मूल स्थान से दूसरे स्थान पहुंच कर कार्बन और दूसरे आक्साइड से मिल गए हैं। इस प्रकार की मिट्टी मूल मिट्टी की तुलना में कम शुद्ध होती है किन्तु इसमें चिपकने की क्षमता ज़्यादा होती है।
मिट्टी के बर्तन में इस्तेमाल होने वाली मिट्टी और पदार्थ के कई वर्गों में बांटा जा सकता है। गीली मिट्टी या वे मूल पदार्थ जिनमें रूप बदलने की क्षमता नहीं होती जैसे सिलिकन या चख़्माक़ का पत्थर, और टैल्क अर्थात सिलखड़ी। इसके अलावा फ़ेल्ड्सपर विशेष प्रकार का खनिज, सोडियम आक्साइड, पोटैशियम, बारोन, या बेरियम भी मिट्टी के बर्तनों के ढांचे और उन पर कोट लगाने के लिए इस्तेमाल होते हैं।
मिट्टी के बर्तन बनाने में जो उपकरण इस्तेमाल होते हैं वे इस प्रकार हैं, पत्थर को बारीक तोड़ने वाला उपकरण, चक्की, छन्नी, मिक्सर, सुखाने वाला उपकरण, भट्टी, मिट्टी के बर्तन बनाने से विशेष पहिया, और पहिये को घुमाने के लिए इस्तेमाल होने वाला छोटा उपकरण।
चार चरण में मिट्टी के बर्तन बनते हैं। गीली मिट्टी को तय्यार करना, उसे रूप देना, उस पर डीज़ाइन बनाना और अंत में उसे पकाने के लिए भट्टी में रखना। इनमें से हर एक चरण के लिए बहुत धैर्य और सूक्ष्मता से काम करना पड़ता है किन्तु भट्टी के चयन के लिए माहिर कुम्हार को बहुत सूक्ष्मता से काम करना पड़ता है क्योंकि भट्टी ही मिट्टी के बर्तनों के उत्पादन का केन्द्र होती है और इसके निर्माण में सबसे ज़्यादा पैसे लगते हैं। इस वक़्त भट्टी के चयन के लिए कुछ महत्वपूर्ण तत्व इस प्रकार हैं, किस प्रकार के उत्पाद पकाने हैं, उत्पादन का स्तर और उसकी गुणवत्ता, तापमान और पकाने के लिए समय, निर्माण की शैली, उसे सुखाने का स्थान और मूलभूत संरचना।
विगत में मिट्टी के बर्तनों को दैनिक जीवन के इस्तेमाल के लिए ईरान के अधिकांश इलाक़ों में बनाया जाता था किन्तु आज जीवन शैली में बदलाव की वजह से मिट्टी के बर्तन का निर्माण कुछ शहरों तक सीमित हो गया है और मिट्टी के बर्तन बनाने की कला भी विगत की भांति इतनी प्रचलित नहीं रह गयी है। इसका यह मतलब नहीं है कि अब कोई अपने दैनिक जीवन में मिट्टी के बर्तनों को इस्तेमाल नहीं करता।
इस समय दूसरे प्रकार के बर्तनों पर मिट्टी के बर्तनों की वरीयता के मद्देनज़र, कुछ लोग हैं जो अभी भी मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल करते हैं और अपने दस्तरख़ान की मट्टी के बर्तनों से शोभा बढ़ाते हैं। इस वक़्त ईरान के कुछ शहरों को मिट्टी के बर्तन का महत्वपूर्ण गढ़ समझा जाता है जिनमें ‘लालजीन’ उल्लेखनीय है। लालजीन पश्चिमी ईरान के हमदान प्रांत का एक शहर है। और यह मिट्टी के बर्तन और सिरामिक की नज़र से मध्यपूर्व में मशहूर है। इस शहर की अस्सी फ़ीसद जनता मिट्टी के बर्तन और सिरामिक के क्षेत्र से रोज़गार हासिल कर रही है। लालजीन की मिट्टी बहुत अच्छी होती है और इस शहर में बनने वाले बर्तन बहुत से देश निर्यात होते हैं। लालजीन में मिट्टी के बर्तन बहुत प्रकार के बनाए जाते हैं । ये बर्तन दैनिक जीवन में इस्तेमाल होने वाले और सजाने के लिए भी होते हैं। लालजीन की मिट्टी बहुत चिकनी होती है। इस इलाक़े के ज़्यादातर बर्तनों पर चित्र नहीं होते। पूरे बर्तन पर एक जैसी कोट चढ़ायी जाती है। इन बर्तनों को बनाने के लिए ज़्यादातर चाक का इस्तेमाल किया जाता है।
यज़्द प्रांत का मेबूद इलाक़ा ईरान में मिट्टी के बर्तनों के मुख्य केन्द्रों में गिना जाता है। इस क्षेत्र में मिट्टी के बर्तन सफ़ेद रंग की मिट्टी से बनाए जाते हैं और बनाने के बाद बर्तन की सतह पर अधिक शुद्ध सफ़ेद मिट्टी की परत चढ़ायी जाती है। उसके बाद बर्तन पर अलग अलग रंग से चित्र बनाए जाते हैं और फिर आख़िर में चमकदार पदार्थ की कोट चढ़ा कर उसे भट्टी में पकाया जाता है। मीबद के मिट्टी के बर्तनों की एक विशेषता यह है कि वहां के बर्तन पर सूरज का चित्र महिला के रूप में बनाया जाता है और इस डिज़ाईन को स्थानीय लोग ख़ुर्शीद ख़ानूम कहते हैं। इस इलाक़े के मिट्टी के बर्तनों की एक और विशेषता, इन बर्तनों पर सजावट के लिए इस्तेमाल होने वाले फूल, मछली और परिन्दे के चित्र बनाए जाते हैं और यह मीबद के कलाकारों की विशेषता है। मीबद के बर्तनों पर बने चित्र अन्य क्षेत्रों के मिट्टी के बर्तन पर बनने वाले फूल और परिन्दों के चित्र से अलग होते हैं।
इस बात का उल्लेख भी ज़रूरी है कि ईरान के जिन इलाक़ों में मिट्टी के बर्तन के बनाने की कला प्रचलित है उनमें मीनाब शहर के निकट शहवार, गुनाबाद का उपनगरीय इलाक़ा मन्द, तबरेज़ के नज़दीक ज़नूर, क़ुम, माज़न्दरान, गीलान, सेमनान, सावेह और शहरज़ा उल्लेखनीय हैं। इनमें से हर एक इलाक़े के मिट्टी के बर्तनों की अपनी अलग पहचान है।
मिसाल के तौर पर क़ुम में मिट्टी के फ़िरोज़ई रंग के मोहरे बनाए जाते हैं जो श्रंगार के लिए इस्तेमाल होने वाले लाकेट और मोतियों की तरह दिखते हैं। ये लाकेट ईरान के दूसरे शहरों में भेजे जाते हैं। ये लाकेट कापर आक्साइड के साथ ऐल्कलाइन की कोट में डूबने के बाद फ़िरोज़ई रंग के बन कर निकलते हैं।
ईरान में मिट्टी के बर्तनों के निर्माण का एक और महत्वपूर्ण केन्द्र सीस्तान व बलोचिस्तान है। ईरान के इस दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में मिट्टी के बर्तन की कला का इतिहास पैलियोलिथीक और इतिहासपूर्व काल से मिलता है। ऐतिहासिक अवशेषों से पता चलता है कि ईरान के सूख़्ते शहर में 3200 साल ईसापूर्व में मिट्टी के बर्तन की निर्माण कला प्रचलित थी। शहर सूख़्ते इतिहास के अनुसार 6 हज़ार साल प्राचीन दुनिया का सबसे ज़्यादा विकसित शहर था। पूर्वी ईरान के ज़ाबुल से 56 किलोमीटर दक्षिण में इस शहर के अवशेष अभी भी मौजूद हैं।
सीस्तानो बलिचस्तान का सरावान शहर के उपनगरीय इलाक़े में स्थित कलपूरगान गांव मिट्टी के ऐसे बर्तनों के निर्माण के लिए मशहूर है जिन्हें बलोच महिलाएं पहिए की मदद के बग़ैर बनाती हैं और शायद कलपूरगान के मिट्टी के बर्तन की यह अपने आप में एक अनोखी विशेषता है। इस प्रकार के मिट्टी के बर्तन के निर्माण की शैली बत्ती वाली शैली कहलाती है जो 4 से 6 हज़ार साल से अब तक उसी तरह प्रचलित है।
कलपूरगान में मिट्टी के बर्तनों का निर्माण महिलाओं से विशेष कला है। मर्द सिर्फ़ खानो से मिट्टी निकाल कर उन्हें लसदार बनाने का काम करते हैं। इस इलाक़े के मिट्टी के बर्तन पर कोट नहीं चढ़ाई जाती और इन बर्तनों पर ज्यामितीय चित्र बनाए जाते हैं जो प्राचीन काल के चित्रों की याद दिलाते हैं। कलपूरगान के बर्तनों पर हॉलो सर्किल, सॉलिड सर्किल और स्केल की मदद से चित्र बनाए जाते हैं। इन बर्तनों को विशेष प्रकार के रंग से रंगा जाता है। यह रंग विशेष प्रकार की खनिज को पानी में घोलने से हासिल होता है। ये रंग ज़्यादातर भूरा या काला होता है। MAQ
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