Oct २६, २०१६ १४:२२ Asia/Kolkata

28 सितम्बर को फ़िलिस्तीन के इंतेफ़ाज़ा आंदोलन की 16वीं वर्षगांठ मनाई गई और फ़िलिस्तीनी जनता तथा प्रतिरोधकर्ता गुटों ने इंतेफ़ाज़ा के प्रति अपने समर्थन की घोषणा की।

ज़ायोनी शासन ने 28 सितम्बर वर्ष 2000 का मस्जिदुल अक़सा का अनादर किया जिसके बाद फ़िलिस्तीनी जनता पूरे साहस के साथ इस्राईल के ख़िलाफ़ उठ खड़ी हुई। फ़िलिस्तीन के हालात इस बात के सूचक हैं कि बैतुल मुक़द्दस और मस्जिदुल अक़सा को फ़िलिस्तीनी जनता के बीच विशेष स्थान प्राप्त है और तीन में से दो इंतेफ़ाज़ा आंदोलन मस्जिदुल अक़सा के समर्थन और बचाव के नाम पर ही आरंभ हुए हैं।

फ़िलिस्तीन की स्थिति से यह भी पता चलता है कि फ़िलिस्तीनी जनता के प्रतिरोध को न केवल यह कि रोका नहीं जा सकता बल्कि यह चरणबद्ध ढंग से विस्तृत होता जा रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में सितम्बर वर्ष 2000 से आरंभ होने वाला फ़िलिस्तीनी जनता का इंतेफ़ाज़ा आंदोलन व्यवहारिक रूप से दूसरे इंतेफ़ाज़ा या अलअक़सा इंतेफ़ाज़ा के नाम से ज़ायोनियों के मुक़ाबले में प्रतिरोध के एक दूसरे चरण में प्रविष्ट हो गया। यह ऐसी स्थिति में है कि क़ुद्स का नया इंतेफ़ाज़ा आंदोलन भी अतिग्रहणकारी ज़ायोनियों के मुक़ाबले में फ़िलिस्तीनी जनता के संघर्ष के एक अहम मोड़ में परिवर्तित हो चुका है और फ़िलिस्तीनी अधिक साहस और मनोबल के साथ अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं।

फ़िलिस्तीन स्वतंत्रता आंदोलन के महासचिव ख़ालिद अबू हिलाल ने अतिग्रहित क्षेत्रों में इंतेफ़ाज़ा आंदोलन आरंभ होने की 16वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि फ़िलिस्तीनी राष्ट्र अपना आंदोलन जारी रखेगा और किसी भी स्थिति में इस्राईल को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं देगा। हमास के एक नेता सालिम सलामा ने भी बल देकर कहा कि फ़िलिस्तीनियों के अधिकारों की बहाली और उनके लक्ष्यों की पूर्ति तक इंतेफ़ाज़ा आंदोलन जारी रहेगा। बहर हाल हालिया बरसों में इंतेफ़ाज़ा आंदोलन की मज़बूती और फ़िलिस्तीनियों द्वारा प्रतिरोध जारी रखने पर बल से पता चलता है कि ज़ायोनी शासन इंतेफ़ाज़ा आंदोलन को रोकने के अपने लक्ष्य में पूरी तरह से विफल रहा है जिससे इस्राईल की स्थिति कमज़ोर पड़ गई है। अब स्वयं ज़ायोनी अधिकारी और इस्राईल के समर्थक भी यह कहने लगे हैं कि हालिया वर्षों में इस शासन के विघटन के चिन्ह अधिक स्पष्ट हो गए हैं।

ज़ायोनी शासन के पूर्व राष्ट्रपति शिमोन पेरिज़ की मौत इस बात का कारण बनी कि एक बार फिर फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध एक अपराधी ज़ायोनी उच्चाधिकारी की काली करतूतों की समीक्षा की जाए। पेरिज़ फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ किए जाने वाले अनेक अपराधों और अत्याचारों में शामिल थे। 93 साल की आयु में शिमोन पेरिज़ का निधन हुआ। पूर्व ज़ायोनी राष्ट्रपति की मौत पर ब्रिटेन के एक प्रख्यात पत्रकार राबर्ट फ़िस्क ने कहा कि शिमोन पेरिज़ का नाम मुझे दक्षिणी लेबनान के क़ाना गांव में ज़ायोनियों के अपराध की याद दिलाता है। उन्होंने समाचारपत्र इंडिपेंडेंट में लिखा कि यद्यपि पश्चिमी संचार माध्यम पेरिज़ को एक शांतिप्रेमी व्यक्ति के रूप में याद करते हैं लेकिन मुझे उनके नाम से अपराध और रक्तपात की याद आती है। मध्यपूर्व के राजनैतिक मामलों के विशेषज्ञ और प्रख्यात टीकाकार राबर्ट फ़िस्क ने लिखा है कि पश्चिमी मीडिया के प्रचार के विपरीत शिमोन पेरिज़ शांति प्रेमी नहीं थे। उनका कहना है कि पेरिज़ की मौत की ख़बर सुन कर मुझे ख़ून, आग और हथियारों की याद आ गई। मैंने उनके कामों के परिणामों को निकट से देखा था, टुकड़े-टुकड़े हो चुके बच्चों को देखा था।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1996 में दक्षिणी लेबनान के क़ाना नामक गांव में संयुक्त राष्ट्र संघ के एक केंद्र में शरण ले चुके अनेक महिलाओं व बच्चों सहित बहुत से फ़िलिस्तीनी आम नागरिकों पर ज़ायोनी सैनिकों ने हमला करके उनका जनसंहार कर दिया था। शिमोन पेरिज़ ने इसी तरह इस्राईल के सैन्य परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने में भी अहम भूमिका निभाई और इसी कारण उन्हें ज़ायोनी शासन के सैन्य परमाणु कार्यक्रम के संस्थापकों में से एक माना जाता है।

शिमोन पेरिज़ की मौत पर फ़िलिस्तीनियों के बीच व्यापक प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। फ़िलिस्तीनी जनता ने इस ज़ायोनी अपराधी की मौत के साथ ही इस्राईल के अपराधों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाए जाने पर बल दिया है। जेहादे इस्लामी संगठन ने कहा है कि शिमोन पेरिज़ का जीवन ऐसे अपराधों से भरा हुआ है जो फ़िलिस्तीन की अत्याचार ग्रस्त जनता के विरुद्ध किए गए हैं। जेहादे इस्लामी के मीडिया सेल के प्रमुख दाऊद शहाब ने कहा है कि पेरिज़, ज़ायोनी आतंकवाद का प्रतीक और फ़िलिस्तीनियों को बेघर करने में सहभागी थे। उन्होंने कहा कि शिमोन पेरिज़ को शांति प्रेमी दर्शाने की पश्चिम की कोशिशें सफल नहीं होंगी और पेरिज़ के मरने से फ़िलिस्तीनी जनता, ज़ायोनी शासन के अपराधों के संबंध में न्याय की अपनी मांग से पीछे नहीं हटेगी।

आले ख़लीफ़ा शासन के अपराधों के विरुद्ध बहरैनी जनता के शांतिपूर्ण प्रदर्शन निरंतर जारी हैं। बहरैन के लोगों ने दराज़ के क्षेत्र में वरिष्ठ शिया धर्मगुरू शैख़ ईसा क़ासिम के घर के बाहर सौ से अधिक दिन से धरना जारी रखा हुआ है। भीषण गर्मी, सुरक्षा बलों के घेराव और अनेक लोगों को गिरफ़्तार किए जाने के बावजूद बहरैन के शिया मुसलमान, शैख़ ईसा क़ासिम से समरसता दर्शाने के लिए उनके हार के बाहर धरने पर बैठे हुए हैं। धरने पर बैठे हुए लोग मांग कर रहे हैं कि धर्मगुरुओं पर मुक़द्दमे की कार्यवाही समाप्त की जाए और आले ख़लीफ़ा द्वारा जनता का दमन बंद किया जाए।

दूसरी ओर विदेशों में रह रहे बहरैनी नागरिकों ने “धर्म व देश की रक्षा के सौ दिन” के नाम से एक विज्ञप्ति जारी करके वरिष्ठ धर्मगुरू शैख़ ईसा क़ासिम की नागरिकता छीने जाने की कार्यवाही को एक निंदनीय क़दम और इस्लाम पर हमला बताया है। विज्ञप्ति में कहा गया है कि बहरैनी जनता की क्रांति पूरी तरह से शांतिपूर्ण है और इस देश के शिया मुसलमान मान्यताओं, क़ानून और राष्ट्रीय एकता की रक्षा करते हुए पूरे संयम के साथ आले ख़लीफ़ा के सभी लक्ष्यों को विफल बना रहे हैं।

बहरैन की आले ख़लीफ़ा सरकार ने जून में इस देश के वरिष्ठ शिया धर्मगुरू शैख़ ईसा क़ासिम की नागरिकता छीन ली जिसके बाद इस देश और संसार के अन्य देशों के मुसलमानों की ओर से कड़ी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। शैख़ ईसा क़ासिम ने बल देकर कहा है कि वे किसी भी स्थिति में बहरैन नहीं छोड़ेंगे। बहरैन के धर्मगुरुओं ने भी कहा है कि वे अपने नेता के विरुद्ध किसी भी प्रकार की कार्यवाही को सहन नहीं करेंगे और अगर सरकार ने उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही की तो उसे इसके परिणाम भुगतने पड़ेंगे।

सरकार की ओर से शैख़ ईसा क़ासिम की नागरिकता छीने जाने के बाद बहरैन की जनता ने उनके भरपूर समर्थन की घोषणा करते हुए सरकार की पिट्ठू अदालतों के फ़ैसलों पर आपत्ति जताई और कहा कि ये फ़ैसला अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों और संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणापत्र का उल्लंघन है। सौ दिन से अधिक का समय हो गया है कि बहरैन के लोग बड़ी संख्या में निरंतर शैख़ ईसा क़ासिम के घर पर बैठे हुए हैं और उनके विरुद्ध अदालत के फ़ैसले को वापस लिए जाने की मांग कर रहे हैं।

 

टैग्स