Feb १८, २०१७ १७:०२ Asia/Kolkata

हमने योरोप में इस्लामोफ़ोबिया और बढ़ते अतिवाद के बारे में चर्चा की थी। 

हमने बताया था कि योरोप में अतिवादी दक्षिणपंथी प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण प्रतीक, इस्लामोफ़ोबिया और पलायनकर्ताओं का विरोध है।    देखा यह जा रहा है कि अतिवादी दक्षिणपंथ, जातिवाद और पलायनकर्ताओं से विरोध का विषय, इस समय योरोपीय संघ के एकता स्थापित करने के प्रयासों के मुक़ाबले में आ चुका है।  यह वे प्रयास हैं जिनका उद्देश्य, राष्ट्रवादी भावनाओं को कम करना, योरोपीय मूल्यों की सुरक्षा, बहु-समाज की स्थापना और योरोपीय नागरिक की पहचान को नए ढग से परिभाषित करना है।

योरोप में सक्रिय अतिवादी दक्षिणपंथियों का मानना है कि योरोपीय संघ की एकता या उसके एकजुट होने से उनके देशों की सांस्कृतिक पहचान को गहरा आघात लगेगा।  उनका यह भी मानना है कि हर देश की अपनी अलग संस्कृति होती है जो दूसरे देश से भिन्न होती है साथ ही उसकी सीमाएं भी अलग होती हैं एसे में किसी एक संस्कृति पर किसी अन्य संस्कृति को थोपा नहीं जा सकता।  यही कारण है कि अतिवादी दक्षिणपंथी, यूरोपीय देशों में एकल संस्कृति की स्थापना का विरोध कर रहे हैं।  उदाहरण स्वरूप फ़्रांस के अतिवादी दक्षिणपंथी भी योरोपीय संघ के विरोधी हैं।  इन लोगों का मानना है कि यही संघ फ़्रांस की आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक संप्रभुता के पतन का कारण बना है।  फ़्रांस के राष्ट्रीय मोर्चें ने सन 2004 में योरोपीय संघ की ओलोचना करते हुए रोम समझौते के सभी अनुच्छेदों पर पुनर्विचार करने की मांग की थी।  फ़्रांस के राष्ट्रीय मोर्चे के प्रमुख मारयन लोपेन का मानना है कि फ़्रांस को चाहिए कि वह यूरो मुद्रा को त्याग दे, योरोप की पुरानी सीमाओं को बहाल किया जाए और ड्यूअल नैश्नलिटी या दोहरी नागरिकता रखने वालों के साथ कड़ाई से निबटा जाए।

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फ़्रांस के राष्ट्रीय मोर्चे के प्रमुख मारयन लोपेन का कहना है कि अप्रैल 2017 में फ़्रांस में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में फ़्रांस के योरोपीय संघ से निकलने के बारे में जनमत संग्रह कराया जाए।  जिन विषयों ने योरोपीय देशों के भीतर अतिवादी विचारधारा के तीव्र होने में सहायता की है उनमें से योरो क्षेत्र का आर्थिक संकट, योरोप की ओर पलायनकर्ताओं की बाढ़, वैश्वीकरण, और योरोपीय संघ के प्रभावशाली होने की स्थिति में योरोपीय देशों की सीमाओं के समाप्त होने का भय आदि का नाम लिया जा सकता है।  यूरोप के अतिवादी दक्षिणपंथी दल, योरोपीय संघ में एकता के विरुद्ध राष्ट्रवादी विचारों को प्रोत्साहित कर रहे हैं।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद फॉसीवाद और नाज़ीवाद के प्रभाव में कमी के बाद ऐसा लगता है कि यह सोच अब फिर से वापस आ रही है।  यह ऐसा गंभीर ख़तरा है जो योरोपीय संघ को अपनी समस्त उपलब्धियों के बावजूद ले डूबेगा।  विदेशियों और पलायनकर्ताओं के प्रति घृणा रखने वाले अतिवादी दक्षिणपंथी यदि सत्ता में आते हैं तो वे योरोपीय देशों के संयुक्त हितों को सबसे ऊपर रखने के विपरीत राष्ट्रवाद को सबसे ऊपर रखेंगे।  यह विषय योरोपीय देशों के बीच गंभीर मतभेदों का कारण बनेगा।  इन बातों का परिणाम यह निकलेगा कि पिछले कुछ दशकों के दौरान योरोप ने जो प्रगति और विकास प्राप्त करके शांति स्थापित की है वह भंग हो जाएगी और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर योरोप की छवि धूमिल हो जाएगी।  23 जून 2016 में ब्रिटेन के मतदाताओं द्वारा योरोपीय संघ से निकलने के हित में निर्णय से योरोप को आर्थिक और राजनैतिक दृष्टि से घचका लगा है।  हालांकि ब्रिटेन को योरोपीय संघ से बाहर निकलवाने के लिए अभियान चलाने वालों का संबन्ध विभिन्न सामाजिक और राजनैतिक गुटों से था किंतु यह बात स्पष्ट शब्दों में कही जा सकती है कि वे सभी, अतिवादी दक्षिणपंथी विचारधारा पापुलिस्ट के सक्रिय सदस्य रहे हैं।  इन सभी अतिवादी दक्षिणपंथी गुटों ने ब्रिटेन के योरोपीय संघ से निकलने के निर्णय का स्वागत किया।  इन सभी गुटों का कहना है कि सत्ता में आने की स्थिति में वे भी अपने देशों के योरोपीय संघ से निकलने के विषय पर जनमत संग्रह करवाएंगे।

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ब्रिटेन में कराए गए इस जनमत संग्रह के परिणाम, हालिया वर्षों के दौरान पापुलिस्ट राजनेताओं के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि माने जा रहे हैं।  इन अतिवादी दलों को पिछले वर्ष मिलने वाली कुछ सफलताएं इस प्रकार हैं।  यह दल पहली बार योरोपीय संसद के भीतर एक संसदीय दल के गठन में सफल रहे हैं जिसका नाम है, योरोपीय राष्ट्र और आज़ादी”, आज़ादी दल ने अपने सभी प्रतिद्धिवयों के मुक़ाबले में हालैण्ड में बढ़त प्राप्त की, क़ानून और न्याय नामक दल ने पोलैण्ड में दोनों सदनों में बहुमत प्राप्त किया, आस्ट्रिया में 2016 के राष्ट्रपति चुनावों में आज़ादी पार्टी का प्रत्याशी अपने प्रतिस्पर्धी से नाममात्र अंतर से हारा, फ़्रांस के आगामी राष्ट्रपति चुनावों में वहां के राष्ट्रीय मोर्चे के जीतने की प्रबल संभावना व्यक्त की जा रही है।  जर्मनी के अल्टरनेटिव दल को वहां के संसदीय चुनावों में अधिक वोट मिलने की संभावना है।

यूरोपीय संघ का गठन सन 1957 में रोम संधि के आधार पर हुआ था।  इसने पश्चिमी जर्मनी, फ़्रांस, इटली, हालैण्ड, बल्जियन और लक्ज़ंबर्ग जैसे छह देशों की आर्थिक सहकारिता के साथ काम आरंभ किया।  पिछले छह दशकों में योरोपीय संघ के सदस्य देशों की संख्या बढ़कर 28 हो चुकी है।  इस दौरान योरोपीय संघ एक सशक्त आर्थिक मंच के रूप में विश्व पटल पर उभरा जिसकी मुद्रा यूरो कहलाई।  योरोपीय संघ के 28 सदस्य देशों में से 19 सदस्य देश, इस संघ की एकल मुद्रा योरो को अपना चुके हैं।  योरोपीय संघ, अपने सदस्य राष्ट्रों के नागरिकों के लिए चार प्रकार की स्वतंत्रताएं सुनिश्चित करता है।  लोगों, सामान, सेवाओं और पूँजी का स्वतंत्र आदान-प्रदान करना। 

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इन सब बातों के बावजूद वर्तमान समय में योरोपीय संघ को कुछ राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक संकटों का सामना है जिसके कारण उसके कुछ सदस्य देशों के लोगों को अब इसमें कोई आकर्षण दिखाई नहीं देता।  योरोप के बहुत से वामपंथी और दक्षिणपंथी दल सब मिलकर योरोपीय संघ का खुलकर विरोध करते हैं।  इन गुटों का मानना है कि हमें इस संघ से निकल जाना चाहिए और अपनी सुरक्षा स्वयं करनी चाहिए।  छह दशकों के जीवनकाल में विभिन्न क्षेत्रों में महान उपलब्धियां प्राप्त करने के बावजूद वर्तमान समय में योरोपीय संघ को योरोपीय राष्ट्रों को एकजुट रखने में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

फ़्रांस के राष्ट्रीय मोर्चे के नेता फ़्रांसवां फियून ने, जिनके फ़्रांस के आगामी राष्ट्रपति चुनावों में जीतने की प्रबल संभावना पाई जाती है, योरोपीय संघ के विस्तार का विरोध किया है।  इसके साथ ही उन्होंने योरोप आने वाले शरणार्थियों के प्रवेश पर रोक की भी मांग की है।

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दूसरी ओर योरोपीय संघ के बाहर एसा घटनाक्रम चल रहा है जिसकी अनदेखी यह संघ नहीं कर सकता।  इस घटनाक्रम की अवहेलना करते हुए योरोपीय संघ, अपने ढांचे को भीतर से मज़बूत करने के लिए कुछ नहीं कर सकता।  इसका एक उदाहरण यह है कि इस समय वाइट हाउस पर एसे राष्ट्रपति का नियंत्रण है जो योरोपीय संघ के विघटन का खुलकर समर्थन करता है।  इसी के साथ योरोप की जल सीमाओं के निकट अर्थात उत्तरी अफ़्रीका और मध्यपूर्व में घटने वाली घटनाओं से योरोपीय संघ अपनी आंखें नहीं मूंद सकता।  वर्षों तक साम्राज्यवाद का शिकार रहे यहां के देशों में उत्पन्न संकट के कारण वहां के लोग स्वंय को सुरक्षित रखने के उदेश्य से योरोप की ओर पलायन कर रहे हैं।  यह वे विषय हैं जिनसे योरोप में सक्रिय अतिवादी दक्षिण पंथियों को अपनी विचारधारा मज़बूत करने में सहायता मिल रही है।

 

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