Aug २४, २०१५ १२:३३ Asia/Kolkata

वर्तमान संसार की जटिलताओं और कठिनाइयों के दृष्टिगत, युवाओं के लिए धर्म और आध्यात्म की आवश्यकता का आभास बहुत अधिकता से किया जा रहा है।

वर्तमान संसार की जटिलताओं और कठिनाइयों के दृष्टिगत, युवाओं के लिए धर्म और आध्यात्म की आवश्यकता का आभास बहुत अधिकता से किया जा रहा है। यह एसी आवश्यकता है जिसकी यदि उचित ढंग से पूर्ति की जाए तो वह युवा को मोक्ष एवं कल्याण तक पहुंचा सकती है। जीवन में आध्यात्म की कमी के कारण इस समय हम परिवारों विशेषकर युवाओं के जीवन में नाना प्रकार की समस्याओं के साक्षी हैं।

 

इस संदर्भ में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं इस समय आप जो यह देख रहे हैं कि विश्व के बहुत से देशों में युवा परेशान हैं, वे समस्याओं में उलझे हुए हैं, आत्महत्याएं की जा रही हैं, परिवार टूट रहे हैं और इसी प्रकार की अन्य समस्याओं का मुख्य कारण आध्यात्म की कमी है। मानव के लिए आध्यात्म, एक भोजन समान है। यह मनुष्य का आध्यात्मिक भोजन है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि युवाकाल में आध्यात्म की ओर झुकाव, जीवन के अन्य चरणों की तुलना में अधिक पाया जाता है।

 

 

इस समय यूनेस्को के विशेषज्ञ, आगामी शताब्दी के लिए शिक्षा एवं प्रशिक्षण के लिए नई योजना तैयार कर रहे हैं। इन विशेषज्ञों का मानना है कि वर्तमान काल के युवाओं की मुख्य समस्या यह है कि वे अपने भीतर खोखलेपन का आभास कर रहे हैं। यूनेस्को के विशेषज्ञों का कहना है कि युवाओं की समस्या का समाधान यह है कि उनके जीवन में नैतिक मूल्यों को पुनः स्थापित किया जाए। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि युवाओं का एक महत्वपूर्ण कार्य, आध्यात्म की ओर ध्यान देना है। जानकारों का कहना है कि युवाओं की ओर से आध्यात्म की ओर ध्यान दिये जाने से उनकी बहुत सी समस्याओं का समाधान हो सकता है और साथ ही अपने भविष्य को लेकर उनके भीतर पाया जाने वाला भय भी समाप्त हो जाता है। जो व्यक्ति अपने जीवन में आध्यात्म को महत्व देता है उसके पास जीवन व्यतीत करने के लिए मज़बूत सहारा होता है। एसा व्यक्ति, अपने जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव से आसानी से गुज़र जाता है।

 

 

 

वास्तव में युवा के भीतर निहित शक्ति एवं उसके अंदर पाई जाने वाली ऊर्जा से अच्छे भविष्य का निर्माण किया जा सकता है किंतु इसके लिए सबसे अधिक आवशयकता आध्यात्म की होती है। आध्यात्म की सहायता से मनुष्य अपने जीवन में सफलता के चरम तक पहुंच सकता है। आध्यात्म या धर्म की ओर झुकाव, युवा पीढ़ी को हर काल में सहारा दे सकता है और वह अपना ही नहीं बल्कि दूसरों का भी सुधार कर सकता है। युवा वर्ग आत्म सुधार करने के बाद न्याय को स्थापित कर सकता है।

 

मानवता या आध्यात्म के फलने-फूलने में उपासना की बहुत अधिक भूमिका है। ईश्वर का स्मरण या उसकी उपासना, मानव की आत्मा को शाति प्रदान करती है। उपासना उस समय अधिक सुन्दर हो जाती है जब मनुष्य, अनंत शक्ति से बहुत गहरा संबन्ध स्थापित कर लेता है। इस स्थिति में वह बिना किसी बाधा के अपने पालनहार से बात करता है। ईश्वर ने प्रत्येक व्यक्ति को इस बात का अवसर प्रदान कर रखा है कि वह निःशुल्क, अपने पालनहार से सीधा संपर्क स्थापित कर सक रुकता है किंतु इस बारे में युवाओं को अधिक महत्व दिया गया है। वास्तव में उपासना, परिपूर्णता तक पहुंचने का सर्वोत्तम मार्ग है। जो भी व्यक्ति अपने युवाकाल में ईश्वर के मार्ग पर क़दम रखकर आगे बढ़ता है वह निश्चित रूप से परिपूर्णता तक पहुंचता है।

 

 

 

युवाओं के भीतर आध्यात्म की ओर विशेष झुकाव पाया जाता है। जब वह ईश्वर के मार्ग में क़दम आगे बढ़ाता है तो ईश्वर भी उसकी सहायता करता है। इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कहना है कि ईश्वर की उपासना करने वाले युवाओं पर ईश्वर गर्व करता है। वह फरिशतों को संबोधित करते हुए कहता है कि देखो, मेरा दास अपनी आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण करके मेरी उपासना कर रहा है। एक अन्य स्थान पर वे कहते हैं कि ईश्वर, उन युवाओं को पसंद करता है जो अपनी जवानी को उसके मार्ग में व्यतीत करता है।

 

स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी, युवाओं को महत्व देते हुए उसने युवाकाल में आत्मनिर्माण का आह्वान किया करते थे। वे कहते थे कि युवाओं, तुमको अभी से आत्मनिर्णाम में लग जाना चाहिए। एसा न हो कि इस काम को तुम बुढ़ापे पर टाल दो। वे कहते थे कि जबतक युवा के भीतर ऊर्जा है, उसके भीतर कोमल आत्मा है, तबबतक उसके भीतर भ्रष्टाचार और बुराइयों की ओर झुकने की क्षमता कम है वही आत्म निर्माण कर सकता है। युवाओं, तुम बहुत उचित ढंग से आत्म निर्माण कर सकते हो।

 

युवा को चाहिए कि वह पथभ्रष्टता तथा बुराइयों से दूरी और आध्यात्म को अपनाते हुए सही मार्ग पर चलने के प्रयास करता रहे। उसको धार्मिक शिक्षाओं की पृष्ठभूमि में अपनी आंतरिक इच्छाओं का उचित उत्तर देना चाहिए। इन बातों के परिणाम स्वरूप वह बुराइयों से दूर हो जाता है। एसा युवा, अपनी आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण करके अपनी यौन इच्छा की पूर्ति विवाह के माध्यम से करता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि युवा के लिए आध्यात्म का एक सकारात्मक प्रभाव, घर बसाने के प्रयास करना है।

 

 

कुछ मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि आध्यात्म के विरुद्ध नकारात्मक दुष्प्रचार, ईश्वर के प्रति आस्था रखने वाले युवा को प्रभावित नहीं कर पाते। इस बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि धर्म, सुरक्षा लाता है अर्थात धर्म को स्वीकार करके इंसान स्वयं को बुराइयों से सुरक्षित कर लेता है। इस बारे में हम देखते हैं कि प्रतिवर्ष पवित्र रमज़ान के आने के साथ ही इस्लामी देशों में अपराध का ग्राफ़ बहुत गिर जाता है। रमज़ान जैसा आध्यात्मिक उपाय, समाज की बहुत सी बराइयों को समाप्त कर सकता है। वह जवान, जिसने आध्यात्म का स्वाद चख लिया हो फिर कभी भी इसका सौदा, सांसारिक मायामोह से नहीं करेगा।

 

यह एक कटु वास्तविकता है कि समस्त लोग, अपने जीवन में कठिनाइयों के समय किसी एसे मज़बूत सहारे की आशा करते हैं जो उसकी कठिनाइयों को समाप्त करने में सहायता करे। दुनिया में शायद ही कोई एसा व्यक्ति हो जो समस्याओं में घिरा न हो। ईश्वर पवित्र क़ुरआन में कहता है कि जो भी उसपर ईमान रखता है, ईश्वर उसका मार्गदर्शन करता है। वह उसको समस्याओं से मुक्ति दिलाता है। सूरए तगाबुन की आयत संख्या 11 में ईश्वर कहता है कि कोई भी मुसीबत, ईश्वर की इच्छा के बिना नहीं हो सकती और जो भी ईश्वर पर ईमान लाता है ईश्वर उसका मार्गदर्शन करता है और ईश्वर सर्वज्ञानी है।

 

 

 

वर्तमान समय में हम धर्म विरोधी व्यापक दुष्प्रचारों के बावजूद दिन प्रतिदिन लोगों के आध्यात्म की ओर उन्मुख होने के साक्षी हैं। एक ओर आध्यात्म और नैतिकता का शून्य तथा दूसरी ओर वर्तमान विश्व पर तकनीक का वर्चस्व, एसे विषय हैं जिन्होंने युवाओं को आध्यात्म की ओर मोड़ा है। संसार में बहुत से युवा इस समय आध्यात्म की ओर उन्मुख होते हुए शांति की तलाश कर रहे हैं। वास्तव में यह लोग आंतरिक शांति के खोजी हैं जो वास्तविकता की तलाश में हैं।

 

इस बारे में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि यह शताब्दी, इस्लाम की शताब्दी है। यह शताब्दी, आध्यात्म की शताब्दी है। इस्लाम बुद्धिमानी, आध्यात्म और न्याय को राष्ट्रों को उपहार स्वरूप देता है।   

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