Jul १०, २०१७ १०:१६ Asia/Kolkata

इस बात में शक नहीं कि क्षेत्र में ब्रिटेन की ओर से बोए गये बड़े फ़ितनों में कल्पित ड्यूरैन्ड लाइन भी है जो 100 साल बीतने के बावजूद आज भी अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान के बीच तनाव व विवाद का बिन्दु बनी हुयी है।

यह लाइन 1893 में ब्रिटेन की साज़िश और रूस के ज़ार शासन से उसकी प्रतिस्पर्धा के मद्देनज़र तत्कालीन अफ़ग़ान शासक अब्दुर्रहमान ख़ान और ब्रिटेन के घाघ कूटनयिक हेनरी मोर्टिमर के बीच हुए समझौते के नतीजे में वजूद में आयी।

एक देश के भीतर विभिन्न संप्रदायों व जातियों के बीच फूट व दुश्मनी डालना और देशों के बीच संबंध में तनाव पैदा करना ब्रिटेन की हमेशा की नीति रही है ताकि इस तरह बूढ़ा साम्राज्य ब्रिटेन फूट डालो व राज करो की पुरानी नीति के तहत अपने अधीन क्षेत्रों पर राज करता रहे। 19वीं शताब्दी के पहले अर्ध के अंतिम वर्षों में एक ओर ब्रिटेन तो दूसरी ओर रूस का ज़ार शासन अपने हितों के लिए अफ़ग़ानिस्तान में अधिक पैठ बनाने की साज़िश रच रहे थे ताकि इस तरह भारत में दाख़िल हो सकें क्योंकि उस समय अफ़ग़ानिस्तान को भारत पर अधिकार का द्वार समझा जाता था। पहले रूसियों ने तत्कालीन अफ़ग़ान शासक दोस्त मोहम्मद ख़ान के साथ एक राजनैतिक संधि की ताकि इस तरह रूस के आंतरिक मामले में दख़लअंदाज़ी का रास्ता साफ़ हो। रूस के इस क़दम से ब्रिटेन चिंतित हो गया जिसके कारण उसने अब्दुर्रहमान ख़ान को लालच देकर या दबाव के ज़रिए पश्तूनिस्तान को बांटने की साज़िश तय्यार की जिसे कल्पित ड्यूरैन्ड लाइन के ज़रिए व्यवहारिक बनाया। उस समय ब्रिटेन को रूस का प्रतिस्पर्धी समझा जाता था।

ब्रिटेन ने अफ़ग़ानिस्तान से मिली भारत की सीमाओं को तय करने के लिए जो उस समय ब्रिटेन के अधिकार में था, तत्कालीन अफ़ग़ान शासक अब्दुर्रहमान ख़ान को एक दस्तावेज़ पर दस्तख़त के लिए तय्यार किया जिसके नतीजे में क्षेत्र में पख़तून जाति दो भाग कें बंट गयी। इस तरह कल्पित ड्यूरैन्ड लाइन अफ़ग़ानिस्तान-ब्रिटिश अधिकार वाले भारत के बीच सीमा निर्धारित करने से ज़्यादा आंतरिक मतभेद व अफ़ग़ानिस्तान और भारतीय उपमहाद्वीप के पश्तूनों के बीच बड़े फ़ितने की बुनियाद बनी। ब्रिटेन ने एक सोची समझी चाल के तहत पहले अफ़ग़ानिस्तान के एक बड़े भाग को इस देश से अलग किया जो पश्तून बाहुल और बलोचिस्तान था। उसके बाद ब्रिटेन ने 1947 में भारत का इस तरह विभाजन किया कि इसके बाद पाकिस्तान का भारत के साथ और पाकिस्तान का अग़ानिस्तान के साथ भी भूमि विवाद रहे।

हक़ीक़त में ब्रिटेन ने अपनी इस साज़िश से पश्तूनिस्तान या पख़्तूनिस्तान को दो भाग में बांट दिया जिस्की एक भाग अफ़ग़ानिस्तान और दूसरा ब्रितानी साम्राज्य के अधिकार वाले भारत में चला गया और फिर इस क्षेत्र के भारत-पाकिस्तान में बंटने के बाद पश्तूनिस्तान का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के हिस्से में चला गया।

अलबत्ता ब्रिटेन ने 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप की स्वाधीनता और उसके भारत-पाकिस्तान में विभाजन के समय कश्मीर के विषय को दोनों देश के बीच बिना हल किए उस घाव की तरह खुला छोड़ दिया जिससे टीसें उठती हैं और यह आज भी लगभग 70 साल के बाद नई दिल्ली-इस्लामाबाद के बीच विवाद का मुख्य कारण बना हुआ है जिसे लेकर दोनों आपस में दो बार जंग भी कर चुके हैं। सच तो यह है कि पाकिस्तान की स्वाधीनता के समय से ही दोनों विषयों ने कि जिसकी बुनियाद ब्रिटेन ने रखी पाकिस्तान के आंतरिक मामलों और उसके पड़ोसी देशों अफ़ग़ानिस्तान व भारत के साथ संबंध को बहुत प्रभावित किया है। कुछ हल्क़ों का दावा है कि इस बारे में सटीक जानकारी नहीं है कि तत्कालीन अफ़ग़ान शासक ने किन वजहों से ड्यूरैन्ड लाइन से संबंधित समझौते पर दस्तख़त किए इसलिए अफ़ग़ान और पाकिस्तानी हल्क़े अपने मन से इसकी व्याख्या करते हैं।

अफ़ग़ान हल्क़ों का मानना है कि ड्यूरैन्ड लाइन समझौता ब्रितानी साम्राज्य की साज़िश और उसकी ओर से अब्दुर्रहमान पर डाले गए दबाव का नतीजा है इसलिए इसकी कोई क़ानूनी हैसियत नहीं रह जाती लेकिन पाकिस्तान में राजनैतिक हल्क़े आधिकारिक रूप से कल्पित ड्यूरैन्ड लाइन के अफ़ग़ानिस्तान के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमा होने पर बल देते और दावा करते हैं कि अब्दुर्रहमान ख़ान ने पूरे होश में इस समझौते पर दस्तख़त किए थे। क्षेत्र में ब्रिटेन का फ़ितना इतना ख़तरनाक है कि पाकिस्तान का भारत के साथ संबंध बेहतर होना कश्मीर संकट के हल और पाकिस्तान का अफ़ग़ानिस्तान के साथ संबंध बेहतर होना ड्यूरैन्ड लाइन विवाद के हल पर टिका हुआ है।                  

 

अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद कर्ज़ई ने पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ से मुलाक़ात के बाद कहा था, “ पाकिस्तान सरकार अफ़ग़ानिस्तान में शांति व सुरक्षा प्रक्रिया में मदद देने के बदले में काबुल सरकार से चाहती है कि वह ड्यूरैन्ड लाइन को मन्यता दे और भारत के साथ संबंध सीमित करे।” ड्यूरैन्ड लाइन के बारे में इस्लामाबाद की इच्छा के जवाब में हामिद कर्ज़ई ने कहा था, “ड्यूरैन्ड लाइन के उस पार का इलाक़ा अफ़ग़ानिस्तान का है और जबसे यह लाइन वजूद में आयी है उस समय से उसे अफ़ग़ानिस्तान में किसी भी हुकूमत ने क़ुबूल नहीं किया है और हम भी क़ुबूल नहीं करेंगे।”

इस संबंध में एक और अहम बिन्दु यह है कि जबसे 2001 में अमरीका ने आतंकवाद से संघर्ष के बहाने अफ़ग़ानिस्तान का अतिग्रहण किया है उस समय से वह कल्पित ड्यूरैन्ड लाइन के बारे में अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान के बीच मतभेद को अपने राजनैतिक लक्ष्य साधने के लिए इस्तेमाल कर रहा है। अफ़ग़ानिस्तान के मामले में 2012 में अमरीकी प्रतिनिधि मार्क ग्रॉसमन ने राष्ट्रपति ओबामा के राष्ट्रपति काल में कहा था, “ड्यूरैन्ड लाइन के बारे में वॉशिंग्टन का नज़रिया साफ़ है। इसे वह एक अंतर्राष्ट्रीय सीमा मानता है।”

हालांकि ग्रॉसमन के इस नज़रिये का अफ़ग़ान सरकार ने कड़ाई से विरोध किया लेकिन एक बात साफ़ थी कि वॉशिंग्टन ने अफ़ग़ानिस्तान में अपनी नीति में पाकिस्तान को शामिल करने और इस्लामाबाद सरकार को ख़ुश करने के लिए अपने एक निचले स्तर के अधिकारी की ओर से इस तरह का बयान दिलवाया था।

पाकिस्तान सरकार की कल्पित ड्यूरैन्ड लाइन पर कांटेदार तार बिछाने की कार्यवाही ने एक बार फिर इस्लामाबाद-काबुल संबंधों के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। हालांकि अफ़ग़ान सरकार ने पाकिस्तान सरकार के इस क़दम के अंजाम की ओर से चेतावनी दी है लेकिन पाकिस्तान सरकार भलीभांति जानती है कि ड्यूरैन्ड लाइन के बारे में बिना किसी सहमति के की जाने वाली किसी भी कार्यवाही से अफ़ग़ानिस्तान में चरमपंथी राष्ट्रवादियों की भावना भड़क उठेगी और दोनों देश के संबंध पर और बुरा असर पड़ेगा।

इस बारे में अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व मंत्री मोहम्मद उमर दाऊद ज़ई का कहना है, “इस तरह की कार्यवाही से ड्यूरैन्ड लाइन के विवाद को ख़त्म नहीं माना जा सकता बल्कि पाकिस्तान के कांटेदार तार लगाने के क़दम से एक बार फिर अफ़ग़ानिस्तान के राजनैतिक व सुरक्षा हल्क़ों में ड्यूरैन्ड लाइन को लेकर चर्चा छिड़ गयी है। अफ़ग़ान जनता ने 124 साल इंतेज़ार किया है। 100 साल और इंतेज़ार करेगी यहां तक कि ग्रेट अफ़ग़ानिस्तान फिर से वजूद में आए।”

राजनैतिक हल्क़ों की नज़र में ड्यूरैन्ड लाइन को लेकर अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान के बीच संभावित टकराव का क्षेत्र के लिए ब्रिटेन की साज़िश के कारण ख़तरनाक परिणाम निकलेगा। ब्रिटेन की इस साज़िश के कारण क्षेत्र में वर्षों जंग चलती रहेगी और रक्तपात होता रहेगा।

अफ़ग़ान गृह मंत्रालय के एक अधिकारी नजीब दानिश पाकिस्तान की ओर से कल्पित ड्यूरैन्ड लाइन पर कांटेदार तार बिछाए जाने की प्रतिक्रिया में कहते हैं, “पाकिस्तान के इस क़दम का बुरा परिणाम निकलेगा क्योंकि उसे कल्पित लाइन पर बाड़ लगाने का कोई अधिकार नहीं है और काबुल सरकार को उम्मीद है कि पाकिस्तान बड़ी ग़लती नहीं करेगा।”

हालांकि अफ़ग़ान सरकार ड्यूरैन्ड लाइन को अंतर्राष्ट्रीय हल्क़ों में ज़ोरदार तरीक़े से उठाने के लिए सक्षम नहीं है लेकिन इस देश के चरमपंथी राष्ट्रवादी उस दिन की उम्मीद लगाए हुए हैं जब काबुल सरकार ड्यूरैन्ड लाइन के उस पार के इलाक़े को फिर से हासिल करने में सक्षम हो जाए। यही कारण है कि पाकिस्तान सरकार किसी भी तरह अफ़ग़ानिस्तान में एक मज़बूत सरकार का गठन नहीं चाहती।

 

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