Mar १४, २०१६ १६:५१ Asia/Kolkata

आयलन कुर्दी ने अपने जीवन की केवल 3 बहारें ही देखी थीं।

आयलन कुर्दी ने अपने जीवन की केवल 3 बहारें ही देखी थीं। वह एसे समय में पैदा हुआ जब तकफ़ीरी आतंकवादियों की हिंसक कार्यवाहियों ने उसके शहर से शांति छीन ली थी। उसके पैतृक नगर में हर ओर अशांति और रक्तपात था। लोग आतंकवादियों की हिंसा से डरकर अपने घरों को छोड़ने पर विवश हो रहे थे। आयलन कुर्दी, कूबानी का रहने वाला था। तीन साल की आयु में आयलन कुर्दी अपने नगर की समस्याओं को समझ नही सका था किंतु एसा लगता था कि उसका पांच वर्षीय बड़ा भाई बहुत सी समस्याओं को समझने लगा है। अपने नगर में होने वाले रक्तपात से तंग आकर आयलन कुर्दी के पिता ने कूबानी से पलायन की योजना बनाई। वह तकफ़ीरी आतंकवादियों के आतंक से मुक्ति पाने के लिए अपने परिवार के साथ अपना घरबार छोड़कर निकल पड़ा। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसके साथ ऐसा कुछ हो सकता है जो निकट भविष्य में होने वाला था। 

हुआ यह कि आयलन कुर्दी के पिता अपने पूरे परिवार के साथ एक नाव पर सवार होकर तुर्की की ओर जा रहे थे। रात का समय था। चारों ओर अंधेरा था। आयलन कुर्दी अपने पिता की गोद में था। नाव बहुत से पलायनकर्ताओं को लेकर अपने गंतव्य की ओर जा रही थी। एकदम से तेज़ हवाएं चलने लगीं और नाव डांवाडोल होने लगी। नाव पर सवार लोग हिचकोले खा रहे थे। यकायक एलन कुर्दी के पिता के हाथ से उसका तीन साल का बेटा फिसल गया और समुद्र में जा गिरा। अगले दिन एलन कुर्दी का शव तुर्की के समुद्री तट पर मिला। समुद्र तट पर पड़े 3 वर्षीय आयलन कुर्दी के शव ने पूरी दुनिया में हंगामा मचा दिया। तकफ़ीरी आतंकवादियों के अत्याचारों से मुक्ति पाने के चक्कर में आयलन कुर्दी अपनी जान गंवा बैठा। आयलन कुर्दी तो केवल एक उदाहरण है इस प्रकार की कई घटनाए हैं जो, अपना घर छोड़कर भागने वाले हज़ारों नहीं बल्कि लाखों पलायनकर्ताओं के साथ घटी हैं।

इस समय बड़ी संख्या में सीरिया और इराक़ के लोग तकफ़ीरी आतंकवादियों के अत्याचारों से बचने के लिए अपना देश छोड़कर पलायन कर रहे हैं। उनके साथ उनके छोटे छोटे बच्चे भी हैं। इन छोटे बच्चों को मीलों दूर का रास्ता पैदल तै करना पड़ रहा है। कई बार एसा भी होता है कि लंबी यात्रा के दौरान खाना तो क्या उन्हें पानी से भी वंचित रहना पड़ता है। योरोपीय संघ की ओर से की जाने वाली घोषणा के अनुसार यूरोप के शरणार्थी विभाग का कहना है कि उनके कार्यालयों में अबतक दो लाख सत्तर हज़ार बच्चों का पंजीकरण हो चुका है। जिन बच्चों का पंजीकरण हो चुका है उनमे से बहुत से बच्चे एसे भी हैं जिनके माता पिता मर चुके हैं। यह बच्चे बिना किसी अभिभावक के पलायन कर रहे हैं। शरणार्थियों में बहुत कम एसे हैं जिन्हें शिविरों में जगह मिली है अन्यथा एसे बहुत से शरणार्थी हैं जो बहुत ही कम संभावनाओं के साथ सड़कों पर या नगरों के सीमावर्ती क्षेत्रों में बिना किसी शरणस्थल के जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

वर्तमान समय में इस्लामी जगत अपने गंभीर मतभेदों के कारण नाना प्रकार की समस्याओं का शिकार है। वर्चस्ववादियों अर्थात अमरीका और पश्चिम ने इस्लाम को पराजित करने और इस्लामी देशों पर वर्चस्व स्थापित करने के लिए बहुत भयानक षडयंत्र बना रखे हैं। अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए वे इस्लामी देशों में अतिवादियों का खुलकर समर्थन कर रहे हैं जो इस्लाम के नाम पर मुसलमानों का जनसंहार करते हैं। अमरीका की पूर्व विदेशमंत्री हिलैरी क्लिटन ने कहा है कि आतंकवादी गुट अलक़ाएदा को अमरीका ने ही अस्तित्व दिया है और उसने उसका समर्थन किया है। इस समय यह बात किसी से भी ढकी छिपी नहीं है कि आतंकवादी गुट दाइश और इसी प्रकार के अन्य गुटों के विरुद्ध तथाकथित संघर्ष के दावे के बावजूद वर्चस्ववादी उनका खुलकर समर्थन कर रहे हैं। इस्लाम के नाम पर आज मुसलमानों को ही मारा जा रहा है। इस समय वे अरब देश, जिनके पास संभावनाओं की भरमार है और जो हर प्रकार से संपन्न हैं, शरणार्थियों के संकट के बारे में किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं। उनके व्यवहार से तो एसा लगता है कि जैसे कहीं कुछ हो ही नहीं रहा है।

वर्तमान समय में सीरिया, इराक़ और इसी प्रकार के युद्धग्रस्त देशों के बच्चों को इस्लामी जगत के समर्थन की नितांत आवश्यकता है जबकि वास्तविकता यह है कि उन्हें पूरी तरह से अनदेखा किया जा रहा है। पिछले चार वर्षों के दौरान तकफ़ीरी आतंकवादियों के अत्याचारों के कारण लाखों सीरियावासी बेघर हुए हैं। इनमें कम से कम चौबीस लाख एसे लोग हैं जिन्होंने दूसरे देशों में जाकर शरण ली है। इसी प्रकार सीरिया के भीतर अपने ही देश में लाखों लोग बेघर हो गए। इनमें से अधिकांश बच्चे हैं। यूएनएचसीआर और यूनेस्कों की रिपोर्टों में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ के शिविरों में जिन पलायनकर्ताओं का पंजीकरण हुआ है उनमें से आधे तो बच्चे ही हैं। पलायन का विषय केवल सीरिया तक सीमित नहीं है बल्कि इराक़ भी इस संकट से अछूता नहीं रहा है।

पलायन का दंश झेल रहे शरणार्थी बच्चे, शिक्षा से वंचित हो चुके हैं। इस समय तो उनके लिए दो वक़्त की रोटी और सिर छिपाने के लिए कोई जगह ही सबसे अधिक महत्व रखती है। इस समय कि जब ठंड अपने चरम पर है, यह पलायनकर्ता खुले आसमान तले जीवन गुज़ार रहे हैं। इन परिस्थितियों को देखते हुए एसा नहीं लगता कि पलायनकर्ता यह बच्चे कुछ साल बाद भी शिक्षा जैसी अनुकंपा प्राप्त कर पाएंगे। वे शरणार्थी जो शिविरों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं वे भी कोई सम्मानित या शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत नहीं कर रहे हैं। शिविरों में खाने पानी की कमी के अतिरिक्त स्वास्थय सेवाओं की भी भारी कमी है जिसके कारण वहां पर रहने वाले लोग विशेषकर बच्चे नाना प्रकार की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। मानसिक समस्याओं, युद्ध की विभीषिका, घरबार छोड़ने, अपनों से अलग होने और इसी प्रकार की बहुत सी बातों के कारण यह पलायनकर्ता बच्चे, अवसाद का शिकार हो चुके हैं। अब जिसके पास खाने के लिए दो वक़्त की रोटी और सिर छिपाने के लिए कोई शरण स्थल न हो उसके लिए मानसिक समस्याओं के उपचार की बात तो बहुत दूर की है।

वे बच्चे जिनके माता पिता या अभिभावक, तकफ़ीरी आतंकवादियों के हाथों मारे जा चुके हैं, यूरोप में मानव तस्करों के हाथ बहुत जल्दी पड़ जाते हैं। योरोपीय पुलिस ने घोषणा की है कि पिछले 18 महीनों के दौरान दस हज़ार से अधिक बच्चे लापता हुए हैं। इनमें से 5 हज़ार बच्चे तो केवल इटली में ही ग़ाएब हो गए। हालांकि यह नहीं कहा जा सकता कि खो जाने वाले सभी दस हज़ार बच्चों का दुरूपयोग किया जा रहा है किंतु इतना तो सच है कि वे लापता हैं और उनकी कोई ख़बर नहीं है। यूरोपीय पुलिस के अनुसार पिछले 18 महीनों के दौरान पलायनकर्तओं का दुरूपयोग करने के उद्देश्य से मानव तस्करों के गुट बहुत सक्रिय हो चुके हैं।

वास्तविकता तो यह है कि इस समय यूरोपीय देश शरणार्थी संकट से जूझ रहे हैं हालांकि यह समस्या विश्व वर्चस्ववाद की देन है जिनमें वे भी सम्मिलित हैं। इन वर्चस्ववादी शक्तियों ने पिछले 50 वर्षों के दौरान पश्चिमी एशिया के लिए जो नीतियां बनाई थीं आज उसी का परिणाम उनके सामने है। हालांकि इस समस्या की ज़िम्मेदारी से वे अरब देश अपना पीछा नहीं छुड़ा सकते जिनके पास अपार संभावनाएं हैं और जिनके पास पैसे की कोई कमी नहीं है। उनमें से एक सऊदी अरब भी है जिसने सीरिया, इराक़ या अन्य देशों के मुसनलमान पलायनकर्ताओं की सहायता के लिए तो कोई कार्य नहीं किया किंतु सीरिया और इराक़ में सक्रिय आतंकवादी गुटों की जमकर सहायता कर रहा है जो वहां के निर्दोष लोगों की हत्याएं कर रहे हैं। यदि इस विषय में सोच विचार किया जाए तो यही निष्कर्श निकलता है कि सीरिया के पलायनकर्तओं की समस्याओं के लिए वे ही ज़िम्मेदार हैं जो सीरिया में युद्ध करने वाले आतंकवादियों की सहायता कर रहे हैं।


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