Mar १५, २०१६ १५:४५ Asia/Kolkata

इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी शिष्टाचार के एक प्रशिक्षक के रूप में युवाओं की भावनाओं, आवश्यकताओं और संभालनाओं से भली भांति अवगत थे।

इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी शिष्टाचार के एक प्रशिक्षक के रूप में युवाओं की भावनाओं, आवश्यकताओं और संभालनाओं से भली भांति अवगत थे। इसी लिए परिपूर्णता तक पहुंचने के लिए वे युवाओं के समक्ष स्पष्ट मार्ग प्रस्तुत करते थे। इमाम ख़ुमैनी की दृष्टि में युवाकाल की विशेषताएं और विशेष योग्यताएं, परिवर्तित करने और परिवर्तित होने की क्षमता, अध्यात्म की ओर रुझान और नैतिक गुण उचित वातावरण मिलने पर व्यवहारिक हो सकते हैं और यह बातें युवा को सीधे मार्ग, परिपूर्णता और प्रगति के मार्ग पर अग्रसर कर सकती हैं। यह बात ईरान की इस्लामी क्रांति में व्यवहारिक रूप से देखी गई। इमाम ख़ुमैनी अपने पूरे अस्तित्व से युवाओं से प्यार करते थे और उन्हें ईश्वर की पूंजी और इस्लामी जगत की खिलती कलियां मानते थे। उनके इसी प्रेम के कारण, न केवल ईरान बल्कि पूरे मध्यपूर्व के युवाओं के अस्तित्व की गहराइयों में इमाम ख़ुमैनी से श्रद्धा घर कर गई थी। उनके प्रति यही प्रेम था जिसने इस्लामी क्रांति के दौरान और उसके बाद पवित्र प्रतिरक्षा के काल में ऐसे ऐसे कारनामे किए जिनको समझने में साधारण मानवीय बुद्धि अक्षम है।

इमाम ख़ुमैनी हमेशा, आगामी पढ़ी और उसकी उपयोगिता पर दृष्टि रखते थे। वे युवाओं को देश के सम्मान व शक्ति के रक्षक के रूप में देखते थे और उनसे अपेक्षा रखते थे कि वे स्वयं को राष्ट्रीय व सार्वजनिक ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के लिए तैयार करें। युवाओं का सही प्रशिक्षण, इस्लामी समाज की प्रगति में मूल भूमिका रखता है। युवाओं का नैतिक प्रशिक्षण, धार्मिक व बौद्धिक शिक्षाओं के आधार पर किया जाना चाहिए जिस पर पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों ने सदैव बल दिया है। पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि युवाओं का ख़याल रखो क्योंकि वे दूसरों से जल्दी सद्कर्मों की ओर उन्मुख होते हैं। इमाम ख़ुमैनी ने भी जवानों की इसी विशेषता के दृष्टिगत कहा है कि युवा बेहतर ढंग से अपना प्रशिक्षण कर सकते हैं, वृद्धों के मुक़ाबले सुधरने की अधिक क्षमता रखते हैं। युवाओं के भीतर बुराइयों क जड़ें कम हैं, अगर एक वृद्ध सुधरना चाहे तो बहुत कठिन है, युवा जल्दी सुधर जाता है, सुधरने के काम को बुढ़ापे के लिए न टालिए, अभी जब आप जवान हैं, अपने आपको पहचानिए, अपने को बेहतर बनाने का काम अभी से शुरू कीजिए।

धर्म की एक शिक्षा, जिस पर बहुत अधिक बल दिया गया है, पाप पर तौबा व प्रायश्चित करके ईश्वर की ओर लौटना है। ईमान वाले व्यक्ति को कभी भी शैतानी उकसवों के धोखे में नहीं आना चाहिए और निश्चेतना के साथ पाप करते हुए जवानी गुज़ारना चाहिए और बुढ़ापे में तौबा करने का प्रण नहीं करना चाहिए। जवानी, तौबा का सबसे अच्छा अवसर है। अगर मनुष्य इस स्वर्णिम काल से बिना तौबा किए हुए गुज़र गया तो यह काम बुढ़ापे में अक्षमता के दिनों में अत्यधिक कठिन होगा।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम कहते हैं। ईश्वर के निकट तौबा करने वाले युवा से अधिक प्रिय कोई चीज़ नहीं है। पैगम्बरे इस्लाम के इस कथन के दृष्टिगत इमाम ख़ुमैनी कहते हैं। तौबा की वसंतु ऋतु युवाकाल है जिसमें पापों को बोझ कम होता है, हृदय की गंदगी कम होती है, आंतरिक अंधकार कम होता है और तौबा के लिए परिस्थितिया अधिक सरल होती हैं। तो हे प्रिय युवा! यथाशीघ्र तैयारी करो, संकल्प करो और जवानी में ही पापों से तौबा कर लो, ईश्वर ने जो तुम्हें अवसर दिया है उसे न गंवाओ और शैतानी उकसावों और आंतरिक इच्छाओं के धोखे में न आओ।

स्वस्थ शरीरी से ही आत्मा प्रफुल्लित होती है। व्यायाम के चलते बहुत सी सामाजिक, मानसिक यहां तक कि आर्थिक बुराइयां दूर हो जाती हैं। व्यायाम, शरीर व आत्मा के स्वास्थ्य का उत्तम कारक है जो मनुष्य की क्षमताओं को निखारने और उसे अंदर व बाहर से मज़बूत बनाने में बहुत प्रभावी है। सशक्त व साहसी युवा देश की रक्षा करने और अतिक्रमणकारी शत्रु को पराजित करने के संबंध में बेजोड़ पूंजी हैं और उन्हें इस्लामी क्रांति का दूत समझा जा सकता है। इसी आधार पर इमाम ख़ुमैनी कहते थे। जब में आप सक्षम जवानों को देखता हूं तो बहुत प्रसन्न होता हूं और मुझे गर्व का आभस होता है। आप अन्य देशों के लिए आदर्श बनिए कि आप इस्लामी गणतंत्र ईरान से हैं। आपका चरित्र ऐसा होना चाहिए कि आप इस्लामी गणतंत्र के लिए आदर्श रहें और इस्लामी गणतंत्र आपके माध्यम से दूसरे स्थानों पर भी जाए।

आज लोगों की वैचारिक पथभ्रष्टता, भ्रष्ट विचारों की घुसपैठ और शत्रु की अदृश्य सेना के हमले के साथ ही आस्थाओं और नैतिक मूल्यों को तबाह करने वाले वायरस का रूप धारण कर गई है। यह ऐसा औचक हमला है जिससे बचने का एकमात्र मार्ग धार्मिक शिक्षाओं की प्राप्ति और धार्मिक व नैतिक आधारों को मज़बूत बनाना है। इस संबंध में इमाम ख़ुमैनी युवाओं को सिफ़ारिश करते हैं कि इस्लाम के वास्तविक चेहरे को पहचाने और पहचनवाने पर युवा पीढ़ी का ध्यान, सराहनीय है। आज हर चीज़ से अधिक हमारा दायित्व यह है कि साम्राज्य के एजेंटों के कुप्रचारों को विफल बनाए।

आप युवाओं का दायित्व है कि पश्चिम से प्रभावित लोगों को जागृत करें और पश्चिम की अमानवीय सरकारों तथा उनके एजेंटों की बुराइयों व अपराधों को सबके सामने लाएं। एक अन्य स्थान पर वे कहते हैं। इस्लाम को परिचित करवाने के लिए अधिक गंभीरता से काम लें। क़ुरआने मजीद की पवित्र शिक्षाओं को सीखिए व उन पर अमल कीजिए। पूरी निष्ठा के साथ अन्य राष्ट्रों के समक्ष इस्लाम के परिचय व उसकी महान उमंगों को आगे बढ़ाने का प्रयास कीजिए।

इमाम ख़ुमैनी की दृष्टि में ज्ञान प्राप्ति से लोगों पर मानसिक, सामाजिक और नैतिक प्रभाव पड़ना चाहिए। अगर क़ुरआनी व धार्मिक शिक्षाएं भी मनुष्य पर सकारात्मक प्रभाव न डालें, उसके व्यवहार को परिवर्तित न करें और उसके मन, हृदय और ज़बान को ईश्वरीय रंग में न रंग दें तो फिर वे लोक-परलोक में घाटे का कारण बन जाएंगी। वे कहते हैं। मैं ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक सभी युवाओं को नसीहत करता हूं कि आप और अन्य सभी वस्तुएं, ईश्वर का प्रतिबिंब हैं, हर चीज़ में अपने लिए पाठ खोजने का प्रयास करें ताकि ईश्वर तक पहुंच सकें।

इमाम ख़ुमैनी अपनी पूरी आयु में, जवानों के लिए एक अच्छे आदर्श थे और वे उन्हें अपनी संतान ही समझते थे। वे जब भी युवाओं के समूह से मुलाक़ात करते तो उनके उत्साह को देख कर बहुत प्रसन्न होते थे और बड़ी विनम्रता से उनके हाथों और भुजाओं को चूमते थे। इमाम ख़ुमैनी, इस्लाम को नया जीवन प्रदान करने और इस्लामी शासन की स्थापना में युवा पीढ़ी में पाई जाने वाली क्षमता को समझ कर, जवानों को, इस्लामी क्रांति का एक आधार मानते थे। सदैव इस बात पर बल देते थे कि ये युवा ही हैं जो अपने प्रतिरोध के माध्यम से इस आंदोलन को परिणाम तक पहुंचा सकते हैं।

युवाओं के बारे में इमाम ख़ुमैनी के सम्मानजनक दृष्टिकोणों ने अन्य देशों के युवाओं को भी उनकी और उनके उच्च विचारों की ओर आकर्षित किया। अरब व अफ़्रीक़ी देशो में इस्लामी जागरूकता आंदोलन में भी, जो तानाशाही और साम्राज्य से संघर्ष के मार्ग में इमाम की शिक्षाओं से प्रेरणा लेकर आरंभ हुआ, युवाओं ने मूल भूमिका निभाई और उन्हीं के प्रयासों, त्याग व बलिदान से ही यह आंदोलन सफल हुआ। मिस्र, लीबिया और ट्यूनीशिया जैसे कई देशों को, जो इससे पहले तक पश्चिम के पिट्ठुओं के क़ब्ज़े में थे, युवाओं ने साम्राज्यवादियों और तानाशाहों से मुक्त कराया।

बहर हाल कहा जा सकता है कि इमाम ख़ुमैनी ने युवाओं की क्षमता व उनके महत्व को समझ कर उनके पवित्र व सत्यवादी चरित्र को उजागर किया और युवाओं ने भी परिपूर्णता के मार्ग पर अनेक कारनामे अंजाम दिए।


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