फ़ार्स खाड़ी के ईरानी द्वीप- 1
फ़ार्स की खाड़ी स्वतंत्र समुद्र जलक्षेत्र है और वह हुरमुज़ स्ट्रेट और प्रशांत महासागर के माध्यम से ईरान को दूसरे जलक्षेत्रों और दुनिया के देशों से जोड़ता है।
फ़ार्स की खाड़ी में बहुत से द्वीप हैं जिनमें से अधिकांश का संबंध प्राचीन समय से ईरान से रहा है। यह श्रंखला 26 कड़ियों पर आधारित है और इसमें हम इन द्वीपों से परिचित कराने का प्रयास करेंगे।
फ़ार्स की खाड़ी का क्षेत्रफल लगभग 232850 किलोमीटर है। यह ईरान के दक्षिण में ईरान और सऊदी अरब के बीच में स्थित है। इस्लामी गणतंत्र ईरान, इराक, ओमान, सऊदी अरब, कुवैत, संयुक्त अरब इमारात, कतर और बहरैन फार्स की खाड़ी के किनारे स्थित हैं। उसकी लंबाई ईरान के पश्चिमोत्तर में स्थित अरवंदरुद नदी के मुहाने से आरंभ होती है और देश के दक्षिणपूर्व में स्थित हुरमुज़ स्ट्रेट तक जाती है। इस प्रकार उसकी लंबाई लगभग 805 किलोमीटर और चौड़ाई 56 किलोमीटर से लेकर 288 किलोमीटर तक है। फ़ार्स की खाड़ी की सबसे अधिक गहराई “रासुल मुसन्दम” क्षेत्र में 182 मीटर है जबकि उसकी सबसे कम गहराई अरवंद रुद नदी के मुहाने पर 30 मीटर है। फ़ार्स की खाड़ी के जो उत्तरी क्षेत्र हैं वे पूरे ईरान के तटवर्ती क्षेत्र हैं और उसके उत्तर पश्चिम का थोड़ा सा भाग कुवैत और इराक से लगता है। फ़ार्स की खाड़ी के पानी की गहराई में तेल और गैस के बड़े- बड़े भंडार हैं जिसकी वजह से वह व्यापारिक दृष्टि से भी विशेष महत्व रखती है। फ़ार्स की खाड़ी के किनारे- किनारे पर्वत मालायें भी हैं और कुछ क्षेत्रों में पर्वत मालाओं का अंत समुद्र पर होता है जबकि कभी समुद्र से दूर होता है। ईरान में लगभग 78 प्रतिशत मछली का शिकार फ़ार्स की खाड़ी के तटवर्ती क्षेत्रों से होता है। अरवंद, कारून, मंद, जराही, दालकी और मीनाब बहुत अधिक पानी वाली नदियां हैं। यह नदियां, फ़ार्स की खाड़ी में गिरती हैं। इनमें से अधिकांश का उद्गम स्थल ज़ाग्रोस पर्वत है।
विश्व के बहुत से पुराने नक्शों में फ़ार्स की खाड़ी नाम पाया जाता है। यह नाम प्राचीन समय से लेकर अब तक बाक़ी है। 6ठीं ईसवी शताब्दी के भूगोल वेत्ता एनाक्सिमंडर ने जो विश्व का मानचित्र तैयार किया है उसमें फार्स की खाड़ी का नाम लिया है। 1836 में जोआचिम लेलेवेल ने क्लाइनर श्रीफटेन नाम की किताब लिखी है उसमें इस नक्शे का उल्लेख किया गया है। इसी तरह 5वीं और 6ठीं ईसवी शताब्दी के यूनानी भूगोलवेत्ता हेक्टियस ने विश्व का जो मानचित्र बनाया है उसमें भी फ़ार्स की खाड़ी के नाम को देखा जा सकता है। इसी तरह दूसरी ईसवी शताब्दी में सिकंदरिया में प्रसिद्ध ज्योतिषी क्लूडियस टोलमीय वह पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने विश्व के विभिन्न भागों व क्षेत्रों के 36 मानचित्र तैयार किये हैं और उसमें ईरान के दक्षिण में स्थित जलक्षेत्रों का नाम “सेनेस पर्सेकस” यानी फार्स की खाड़ी रखा है।
फ़ार्स की खाड़ी में नौकायन का जो अतीत है उसका संबंध बहुत प्राचीन यहां तक कि दो हज़ार साल ईसापूर्व से है। सूमर, आकद और ईलामी जैसी सभ्यताओं के लोग और इसी प्रकार मोहन जोदड़ो सभ्यता के लोग फ़ार्स की खाड़ी में यात्रा करते थे। हाल में की जाने वाली समीक्षाएं इस बात की सूचक हैं कि फनीशन, सबसे पहले द्वीपों और फ़ार्स की खाड़ी के आस- पास के क्षेत्रों में रहते और नौकायन करते थे। हख़ामनशियों के काल में प्रथम दारयूश ने चुने हुए ईरानी, फनीशन और पार्स साम्राज्य में रहने वाले यूनानी सूबेदारों का आह्वान किया कि वे नये क्षेत्रों की खोज के लिए नौकायन करें और इसका नतीजा यह निकला कि फ़ार्स की खाड़ी के प्रति ईरानियों की पहचान अधिक हो गयी।
फ़ार्स की खाड़ी में नौकायन से संबंधित एक अति प्राचीन दस्तावेज़ में नियार खुस नाम के एक नाविक का नाम मिलता है। उसने एलेक्ज़न्डर मैसेडोनिया के आदेश से अपनी समुद्री यात्रा आरंभ की। वह इस समुद्री यात्रा में सिंध नदी के मुहाने से हुरमुज़ स्ट्रेट में गया और फ़ार्स की खाड़ी को पार करके उसने कारुन नदी के तट पर लंगर डाल दिया। उसने अपने यात्रावृतांत में फ़ार्स की खाड़ी की बड़ी- बड़ी समुद्री लालटेनों की ओर संकेत किया है।
फ़ार्स की खाड़ी के महत्वपूर्ण होने का एक बहुत बड़ा कारण उसमें तेल और गैस के बड़े- बड़े स्रोता का होना है इस प्रकार से कि इस क्षेत्र का नाम “मख़ज़ने नफ्ते जहान” यानी विश्व के तेल भंडार का नाम दिया गया है। ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और संयुक्त अरब इमारात के तेलों के स्थानांतरण का मार्ग फ़ार्स की खाड़ी है। इसी कारण इसे महत्वपूर्ण और स्ट्रैटेजिक क्षेत्र माना जाता है। विश्व के लगभग 30 प्रतिशत तेल की आपूर्ति फ़ार्स की खाड़ी क्षेत्र से होती है और यह मात्रा कभी कम तो कभी ज्यादा होती है। फ़ार्स की खाड़ी से जो तेल निकाला जाता है उसे विश्व के दूसरे क्षेत्रों तक पहुंचाने के लिए हुरमुज़ स्ट्रेट से होकर गुज़रना पड़ता है।
फ़ार्स की खाड़ी में जो तेल स्रोत हैं वे विश्व के दूसरे क्षेत्रों के तेल स्रोतों से भिन्न हैं। फ़ार्स की खाड़ी के तेल को निकालना सरल है, उसके उत्पादन की लागत कम है, वहां के तेल की गुणवत्ता उत्तम है, फ़ार्स की खाड़ी के तेल को लादने और उसे दूसरे क्षेत्रों तक पहुंचाना सरल है, फ़ार्स की खाड़ी में मौजूद तेल के कुंओं को खोदना आसान है और इसी तरह फ़ार्स की खाड़ी के विशाल क्षेत्र में ऊर्जा के स्रोतों की खोज भी सरल है। फ़ार्स की खाड़ी में अंजाम दिये गये अंतिम आंकलन के अनुसार लगभग 730 अरब बैरल तेल है और 70 ट्रिलियन घन मीटर से अधिक प्राकृतिक गैस है।
फ़ार्स की खाड़ी के किनारे कुछ महत्वपूर्ण बंदरगाहें हैं जैसे बंदरअब्बास, बूशहर, बंदरलिंगे, ख़ुर्रमशहर और माहशहर आदि यह बंदरगाहें ईरान में हैं। इसी तरह शारजा, दुबई और अबू ज़बी संयुक्त अरब इमारात की महत्वपूर्ण बंदरगाहें हैं जबकि बसरा इराक की महत्वपूर्ण बंदरगाह है जो फार्स की खाड़ी के किनारे स्थित है।
फार्स की खाड़ी की एक अन्य विशेषता उसमें छोटे और बड़े द्वीपों का होना है और उसमें से ध्यान योग्य द्वीपों का संबंध ईरान से है।