यूरोपीय संघ और जेसीपीओए की सुरक्षा (2)
हमने बताया था कि यूरोपीय आयोग के प्रमुख जॉन क्लोट यूनकर के अनुसार यूरोपीय संघ ने परमाणु समझौते से अमरीका के बाहर निकलने के परिणामों को निष्प्रभावी बनाने के लिए एक प्रतिरोधक क़ानूनी प्रक्रिया शुरू की है।
इसके साथ ही यूरोपीय संघ ने यह भी फैसला किया है कि यूरोपीय इन्वेस्टमेंट बैंक की ओर से ईरान में पूंजीनिवेश करने वाली विशेषकर छोटी कंपनियों के साथ सहयोग के मार्ग की बाधाएं भी दूर की जाएं। यूरोपीय संघ ने इसी प्रकार ईरानी पक्ष के भरोसे की बहाली के लिए ईरान में विशेष कर ऊर्जा के क्षेत्र में पुंजीनिवेश को अपने एजेन्डे में शामिल किया है इस संदर्भ में यूरोपीय संघ में, जल, वायु और ऊर्जा के आयुक्त, मेगोइल एरियस कैन्टे ने ईरान की यात्रा भी की। यूरोप ने इसी तरह से ईरान को तेल की बिक्री से प्राप्त होने वाली विदेशी मुद्रा को अन्य देशों के रिज़र्व बैंकों में रखे जाने का प्रस्ताव, भी गारंटी के रूप में पेश किया। इस प्रकार हम देखते हैं कि यूरोपीय संघ ने अपने विचार में ईरान के खिलाफ़ अमरीकी प्रतिबंधों के प्रभाव को कम करने के लिए कई क़दम उठाए हैं। फ्रांस के विदेशमंत्री जीन-इव लोद्रियां ने इस बारे में कहा कि युरोप को, ईरान के खिलाफ अमरीकी प्रतिबंधों से युरोपीय कपंनियों को बचाने की दिशा में कुछ सफलता प्राप्त हुई है। इस प्रकार से हम देखते हैं कि यूरोप, अमरीकी प्रतिबंधों से मुक़ाबला करने के चरण में प्रविष्ट हो गया है। पाकिस्तान के वरिष्ठ टीकाकार, रुस्तम शाह मेहमंद कहते हैं कि ऐसा महसूस होता है कि युरोपीय , अंतरराष्ट्रीय नियमों के कड़ाई से पालन के उद्देश्य से, ईरान के खिलाफ अमरीकी प्रतिबंधों का मुक़ाबला करने का इरादा रखते हैं और इसी लिए उन्होंने अमरीकी मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए ईरान के साथ वार्ता भी आरंभ कर दी है।
इस प्रकार की कोशिशों के बावजूद जेसीपीओए के बारे में यूरोप के रुख़ के बारे में पारदर्शिता नहीं है। सबसे पहली बात तो यह सवाल है कि यूरोप किस हद तक अमरीका के सामने और ईरान के साथ खड़ा रह सकता है? इस संदर्भ में हालांकि यूरोप ने कुछ क़दम उठाए हैं लेकिन अमरीका की ओर से लगाये गये प्रतिबंधों से उन की तुलना नहीं की जा सकती। जान क्लोट यूनकर कहते हैं कि अमरीका की ओर से जेसीपीओए से निकलना, विश्व शांति के लिए अच्छा नहीं है और परमाणु समझौते के पक्ष के रूप में हमें इस समझौते की रक्षा करना चाहिए। हालांकि सारे युरोपीय देशों ने ट्रम्प के फैसले की आलोचना की है लेकिन अमरीकी फैसले पर अंकुश लगाने के सिलसिले में युरोप में समन्वय का अभाव है हांलाकि युरोपीय नेता इसे स्वीकार नहीं करते। युरोपीय संघ में विदेश मामलों की प्रभारी , फेड्रीका मोगरेनी ने बल दिया है कि जेसीपीओए के बारे में सदस्य देशों की एकजुटता पर संदेह भी नहीं किया जा सकता है। दरअस्ल इस बात में तो पूरा यूरोप एकजुट नज़र आता है कि जेसीपीओए का संबंध, युरोप की सुरक्षा से है लेकिन जहां तक अलग अलग देशों की बात है तो बहुत से देश, अमरीका से टकराव से बचते नज़र आते हैं और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रां ने तो खुल कर कहा है कि युरोप यह नहीं चाहता कि वह ईरान की वजह से अमरीका के साथ रणनीतिक युद्ध आरंभ कर दे।
इसी मध्य युरोपीय संघ में भी विवाद पैदा करने की कोशिश शुरु हो गयी है और कुछ सदस्य, अमरीका का साथ देने की कोशिश कर रहे हैं। फ्रासं के लीमोंड समाचार पत्र ने अपनी एक रिपोर्ट में पोलैंड की ओर से इस प्रकार के प्रयासों का उल्लेख किया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि, ईरान के परमाणु समझौते को बचाने के लिए वाशिंग्टन के सामने 28 देशों के मध्य एकजुटता बेहद ज़रूरी है लेकिन यह मुद्दा, वाशिंग्टन से टकराव का कारण नहीं बना क्योंकि एकजुटता व महत्वकांक्षा के एलान के बावजूद, ब्रसल्ज़ में एक प्रकार की अस्पष्टता दिखायी देती है। एेसा लगता है कि युरोपीय संघ की एकजुटता को आज़माने का एक अन्य अवसर आ गया है। वास्तव में लीमोंड ने युरोपीय संघ और नेटो में अमरीका के स्थायी घटक पोलैंड की ओर संकेत किया है जिसे युरोप से अधिक वाशिंग्टन को खुश करने की चिंता रहती है।
इस संदर्भ में युरोपीय संघ की बैठक और जेसीपीओए के समर्थन के बावजूद पोलैंड के विदेशमंत्री ने कहा कि वार्सा युरोप की ओर से हर उस क़दम का विरोधी है जिससे अमरीका के प्रतिबंधों का प्रभाव कम हो। उनके अनुसार, ईरान में काम जारी रखने के लिए युरोपीय कपंनियों को प्रोत्साहित करने से अमरीकी प्रतिबंध कमज़ोर होंगे। उन्होंने अपने युरोपीय मित्रों से अपील की कि वह अमरीका की सुरक्षा संबंधी चिंताओं पर ध्यान दें। उन्होंने यह भी संकेत किया कि हंगरी भी इसी प्रकार का विचार रखता है। पोलैंड के विदेशमंत्री ने पूर्वी युरोप में रूस और नेटो के टकराव का उल्लेख करते हुए बल दिया कि युरोपीय संघ को पूर्वी युरोप में रूस की भूमिका और अमरीकी घटक के समर्थन पर भी ध्यान देना चाहिए।
संगीत
जेसीपीओए के बारे में ईरान का रुख़ पूरी तरह से पारदर्शी है और ईरान ने साफ़ तौर पर यह ऐलान कर दिया है कि वह उसी वक्त तक जेसीपीओए से जुड़ा रहेगा जब तक इस से उसके हितों की रक्षा होगी । दर अस्ल ईरान परमाणु समझौते में बाक़ी बचने वाले पक्षों से यह गारंटी चाहता है कि ईरान के खिलाफ अमरीकी प्रतिबंधों के बाद वह जेसीपीओए से पहले की भांति व्यवहार नहीं करेंगे विशेषकर यह मांग युरोप, रूस और चीन से है जिन्होंने जेसीपीओए पर हस्ताक्षर किये हैं। ईरान चाहता है कि अमरीकी प्रतिबंधों की वजह से उसके तेल की खपत में कमी को यह पक्ष पूरा करें और युरोपीय बैंकिंग सिस्टम में ईरान की उपस्थिति बनी रही। अगर ईरान इस प्रकार की गारंटी लेने में सफल रहा तो इस बात की संभावना है कि जेसीपीओए, ईरान और चार धन एक गुट के मध्य होने वाले एक समझौते के रूप में जारी रहे।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने ईरान व युरोप के मध्य व्यापक आर्थिक सहयोग के दृष्टिगत 2000 के दशक में परमाणु वार्ता के दौरान युरोप के उल्लंघनों का उल्लेख किया और बल दिया कि युरोप को यह साबित करना होगा कि वह पहले की तरह उल्लंघन नहीं करेगा। वरिष्ठ नेता ने कहा कि गत दो वर्षों के दौरान अमरीका ने बारम्बार जेसीपीओए का उल्लंघन किया और युरोप चुप रहा, अब युरोप को अपनी उस चुप्पी की क़ीमत अदा करना चाहिए। वरिष्ठ नेता ने जेसीपीओए से ईरान के जुड़े रहने के लिए पांच शर्तें पेश कीं। पहली शर्त यह पेश की कि अमरीका ने संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव 2231 का उल्लंघन किया है इस लिए युरोप उसके खिलाफ एक प्रस्ताव जारी करे। दूसरी यह कि युरोप यह वादा करे कि ईरान के मिसाइल कार्यक्रम और क्षेत्रीय भूमिका पर चर्चा नहीं करेगा। तीसरी शर्त यह कि युरोप ईरान पर लगाए जाने वाले हर प्रकार के प्रतिबंध का मुक़ाबला करे और अमरीकी प्रतिबंधों के सामने खुल कर खड़ा हो। चौथी शर्त यह रखी कि युरोपीय बैंक ईरान के साथ व्यापार की गारंटी दें ।
वरिष्ठ नेता ने यह शर्तें युरोप के तीन बड़े देशों, अर्थात जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन के अतीत के दृष्टिगत रखी। आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने इस संदर्भ में स्पष्ट रूप से कहा कि हमारा इन तीन देशों से कोई झगड़ा नहीं है लेकिन उनके अतीत के दृष्टिगत हमें उन पर भरोसा नहीं है। वरिष्ठ नेता ने कहा कि अगर युरोप हमारी मांगों को स्वीकार करने में विलंब करता है तो, परमाणु गतिविधियां आरंभ करने के लिए ईरान का अधिकार सुरक्षित है। जब हमें यह लगेगा कि जेसीपीओए से कोई फायदा नहीं तो उसका एक मार्ग यह है कि हम छोड़ दी गयी परमाणु गतिविधियों की ओर बढ़ें। वरिष्ठ नेता द्वारा पेश किया गया यह रास्ता वास्तव में जेसीपीओए से ईरान के पूर्ण रूप से निकलने और समझौते के पहले का हालात की वापसी के अर्थ में होगा।
इस समय युरोप के सामने कड़ी परीक्षा है और गेंद उसके पाले में है। युरोप के पास यह अवसर है कि वह, केवल अपने हितों के लिए और युरोप की पूर्ण रूप से अनदेखी करके जेसीपीओए से निकलने वाले ट्रम्प के सामने, एक बार डट जाए। या फिर वाशिंग्टन की मनमानी के आगे चुप रह कर न केवल यह कि अपनी स्वाधीनता गंवा दे बल्कि अपने आर्थिक हितों की रक्षा करने में अपनी असमर्थता भी स्पष्ट कर दे । इसके साथ यह भी एक सच्चाई है कि जेसीपीओए के अंत का क्षेत्रीय व अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा पर भी असर होगा और उसका बोझ भी दूसरों से अधिक यूरोप पर होगा।
अमरीकी मामलों के विशेषज्ञ फ्रेडरिक ओटरान का कहना है कि ईरान के साथ परमाणु समझौतक का मार्ग बहुत जटिल और लंबा रहा है और मध्यपूर्व में अस्थिरता के दृष्टिगत, इस समझौते के हस्ताक्षर करने वाले देशों के लिए, चाहे वह रूस हो, चीन हो , युरोप हो , बल्कि चाहे अमरीका ही क्यों न हो , यह कदापि अच्छा नहीं होगा कि इस क्षेत्र की स्थिरता अधिक कमज़ोर हो। जेसीपीओए के निरस्त होने की दशा में न केवल यह कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर युरोप की पोज़ीशन कमज़ोर होगी बल्कि परमाणु वार्ता को गति देने वाले एक प्रभावशाली पक्ष के रूप में उसकी भूमिका भी कमज़ोर हो जाएगी। फिलहाल जो हालात हैं उनसे यह सिद्ध होता है कि हालांकि युरोप, जेसीपीओए को बचाने की गंभीरता के साथ कोशिश कर रहा है वह, अमरीका की ओर से ईरान के खिलाफ प्रतिबंधों सहित उसकी शत्रुतापूर्ण कार्यवाही पर अंकुश लगाने के लिए आवश्यक क्षमता व शक्ति नहीं रखता । इस लिए युरोप के तीनों प्रभावशाली देशों, अर्थात जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन को रूस और चीन के सहयोग से, जेसीपीओए को बचाने के लिए अधिक प्रयास करना चाहिए। (Q.A.)