आयतें और निशानियां- 9
सृष्टि में पानी का बहुत अधिक महत्व है।
पानी, धरती के विकास के लिए ईश्वर का बहुत बड़ा और मूल्यवान उपहार है। पवित्र क़ुरआन में पानी के स्थान को मूल्यवान बताया गया है। पवित्र क़ुरआन ने विभिन्न अवसरों पर 63 बार पानी का उल्लेख किया है और इससे इसके महत्व का पता चलता है।
ईश्वर पवित्र क़ुरआन की विभिन्न आयतों में बादलों के चलने, बारिशों के होने, वनस्पतियों और पौधों के उगने और ज़मीन की हरियालियों की ओर संकेत करता है। सूरए अंबिया की आयत संख्या 30 में पानी को समस्त जातियों का जीवन जारी रखने का स्रोत बताता है। ईश्वर कहता है कि हमने पानी से हर चीज़ को जीवित किया।
मनुष्य और जीवित प्राणियों के जीवन चक्र में पानी की महत्वपूर्ण भूमिका के दृष्टिगत पानी को मूल्यवान ईश्वरीय कृपा वरदान क़रार दिया गया। सूरए क़ाफ़ की आयत संख्या 9 में ईश्वर कहता है कि और हमने आसमान से विभूतिपूर्ण पानी उतारा है और फिर उससे बाग़ों और खेती का अनाज उगाया है।
ईश्वर पवित्र क़ुरआन में पानी के विभिन्न लाभों को बयान करता है कि वह किस प्रकार मुर्दा ज़मीनों को दोबारा जीवन प्रदान करता है। इसी परिधि में सूरए फ़ुरक़ान की आयत संख्या 48 और 49 में ईश्वर कहता है कि और वही वह है जिसने हवाओं को कृपा और दया की शुभसूचना के लिए जारी कर दिया और हमने आसमान से पवित्र पानी बरसाया है ताकि उसके द्वारा मुर्दा शहरों को ज़िंदा बनाएं और अपनी सृष्टि में से जानवरों और इंसानों की एक बड़ी संख्या को तृप्त करें।
ईश्वर आसमान से पवित्र पानी उतारने और सूखी धरती को जीवित करने तथा इंसानों और जानरों की प्यास बुझाने के बाद कुछ आयतों में खुलकर और कुछ आयतों में इशारों में अपने बंदों से चाहता है कि वह उसका इस महा कृपा और विभूति पर आभार व्यक्त करे।
महान व सर्वसमर्थ ईश्वर पवित्र क़ुरआन के सूरए वाक़ेआ की 68 से 70 तक की आयतों में कहा गया है कि क्या तुमने उस पानी को देखा है जिसको तुम पीते हो, उसे तुमने बादलों से बरसाया है या उसके बरसाने वाले हम हैं, यदि हम चाहते तो उसे खारा बना देते तो फिर तुम हमारा आभार क्यों नहीं व्यक्त करते हो।
इन आयतों में बल दिया गया है कि जीवन जारी रखने के लिए पानी पीना बहुत आवश्यक है। इन आयतों में ईश्वर बंदों का आहवान करता है कि वह उस पानी के बदले जो आसमान से साफ़ और पवित्र उतारा गया है, ईश्वर की अनुकंपा का आभार व्यक्त करें।
ईश्वर का आभार व्यक्त करते कि उसने शीतल और स्वच्छ पानी जैसी अनुकंपाओं से हमें तृप्त किया और हमारे पापों के कारण उसे खारा क़रार नहीं दिया। (AK)