घर परिवार-21
वर्तमान समय में बढ़ते ख़र्च ने बहुत से लोगों को पैसा ख़र्च करने के हिसाब से बहुत ही संवेदनशील बना दिया है।
ऐसे में बहुत से लोग घर के बाहर जाकर पैसा ख़र्च करने से बचते हैं। इस प्रकार के लोगों का यह सोचना होता है कि जितने पैसे हमने बाहर जाकर किसी पार्क या रेस्टोरेंट में ख़र्च किये, उतने ही पैसे का तो हम घर का कोई सामान या बच्चों के कपड़े या इसी प्रकार की ज़रूरत की कोई चीज़ ले सकते थे। हालांकि मनोवैज्ञानिकों का यह कहना है कि इस प्रकार की सोच रखने वाले व्यक्ति को यह पता नहीं होता कि कुछ समय तक अपने परिवार के सदस्यों के साथ उसने मनोरंजन या रेस्टोरेंट में जो पैसा खर्च किया वह पैसा उसके पारिवारिक संबन्धों को मज़बूत करने में कितनी प्रभावी भूमिका निभाता है। यदि मनुष्य को इस बात की सच्चाई का सही ढंग से अनुमान हो जाए तो फिर वह अपनी दैनिक आवश्यकता से बहुत सी चीज़ों को कम करके परिवार के साथ मनोरंजन के बारे में सोचेगा। मिल-जुलकर पार्क या पिकनिक पर जाने का आनंद ही अलग है और इसके कई मनोवैज्ञानिक लाभ हैं। ऐसे में पता चलता है कि बचत हर समय सही नहीं होती।
हमने इस्लामी गणतंत्र ईरान के संविधान में परिवार के अधिकारों के बारे में दृष्टि डाली थी। इससे यह पता चलता है कि इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद परिवार को नैतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक केन्द्र के रूप में देखा जाने लगा। इस विषय ने पारिवारिक जीवन को अधिक अर्थपूर्ण बना दिया। ईरान के संविधान के अनुसार इस्लामी व्यवस्था की एक ज़िम्मेदारी, तक़वे के आधार पर परिवारों में नैतिक वातावरण को सुदृढ़ करना है। इसकी एक अन्य ज़िम्मेदारी भ्रष्टाचार के हर स्वरूप के विरुद्ध संघर्ष करना है। इस विषय का महत्व उस समय स्पष्ट होता है जब हम देखते हैं कि स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी, भी परिवार के मूल्यों और उसकी एकता को बनाए रखने के पक्षधर हैं।
परिवार के संबन्ध में इमाम ख़ुमैनी इस बिंदु पर बल देते हैं कि मानव होने के नाते पति और पत्नी एक समान हैं। इसके बावजूद उनके भीतर अलग-अलग विशेषताएं भी पाई जाती हैं। उनमें शारीरिक अंतर और मानसिक दृष्टि से भी अंतर पाया जा सकता है। इसके बावजूद वे दोनों मिलकर एक परिवार की नींव रखते हैं। इस हिसाब से पति तथा पत्नी के बीच कई आयाम से अंतर होने के बावजूद वे एक-दूसरे के पूरक हैं।
इमाम ख़ुमैनी के अनुसार मनुष्य के निर्माण में परिवार की बहुत अहमियत है। वे कहते हैं कि मनुष्य को बनाने, उसका सही प्रशिक्षण करने तथा मानव को उच्चता तक पहुंचाने में परिवार की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इमाम ख़ुमैनी, महिला को परिवार का केन्द्र मानते हैं। वे कहते हैं कि मां की गोद ही सबकी पहली पाठशाला होती है। इन बातों के हिसाब से महिला का सम्मान किया जाना चाहिए। उनका यह भी कहना है घरदारी एक बहुत ही सम्मानीय काम है। इमाम खुमैनी के अनुसार शायद ही कोई काम हो जिसका मुक़ाबला घरदारी से किया जा सके। स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी की बेटी फरीदा मुस्तफ़ा कहती हैं कि हमारे छोटे बच्चे बहुत परेशान करते थे। इमाम की बेटियों में से एक ने जब उनसे अपने बच्चों की शैतानी की शिकायत की तो उन्होंने कहा कि बच्चों की शैतानी से तुम जो मुश्किलें सहन कर रही हो उनके बदले में इतना अधिक सवाब है कि मैं उनको अपनी इबादतों से बदलने को तैयार हूं।
पवित्र क़ुरआन घर को ऐसे स्थान के रूप में परिचित करवाता है जहां पर हर ओर प्रेम तथा स्नेह होता है। इस प्रकार से कहा जा सकता है कि परिवार को शांति और चिंताओं से दूरी का ऐसा केन्द्र होना चाहिए जो, ईश्वर की विभूतियों की भूमि प्रशस्त करने वाला हो। इमाम ख़ुमैनी अपने बेटों से सिफ़ारिश करते हैं कि तुमको अपनी मां का अधिक ध्यान रखना चाहिए। एक स्थान पर वे लिखते हैं कि माताओं की अनेक विशेषताएं पाई जाती हैं किंतु अपने जीवन में मैने तुम्हारी मां के साथ जो समय गुज़ारा उससे मैने यह नतीजा निकाला कि वे वास्तव में सदगुणों की स्वामी हैं। वे अपने बेटे को संबोधित करते हुए कहते हैं कि बेटा मैं तुमको वसीयत करता हूं कि तुम अपनी मां की बातों को मानना और उनकी मर्ज़ी हासिल करने की कोशिश करना। वे कहते हैं कि मेरी मौत के बाद भी तुम उनकी सेवा करते रहना।
नैतिक विशेषताओं में से एक बलिदान है। किसी भी परिवार के भीतर इस विशेषता का होना बहुत ज़रूरी है। जिस परिवार के सदस्यों में बलिदान की भावना पाई जाती होगी उस परिवार के सदस्यों में बहुत एकता देखने को मिलेगी। इस प्रकार के परिवारों में मन-मुटाव या द्वेष दिखाई नहीं देता। बलिदान की भावना के कारण इस परिवार में नाना प्रकार की विशेषताएं जन्म लेती रहती हैं और वहां पर सदैव प्रेमपूर्ण वातावरण पाया जाता है।
स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी अपने परिवार पर विशेष ध्यान देते थे। वे किसी भी स्थिति में अपने परिवार से निश्चेत नहीं रहते थे। यह बात इसलिए विशेष महत्व की स्वामी है कि स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी जैसे व्यक्ति के पास जितनी व्यस्तता थी उसके हिसाब से तो यह संभव दिखाई नहीं देता। अपनी हर प्रकार की व्यस्तता के बावजूद वे अपने परिवार के लिए समय निकालते और उनसे मिलते रहते थे। हालांकि इमाम खुमैनी विश्व स्तर के नेता थे जिनकी पृष्ठभूमि धार्मिक थी। वे धार्मिक कार्यों के साथ ही राजनीति में भी सक्रिय थे। अपनी हर प्रकार की गतिविधि के बावजूद वे परिवार के लिए निश्चित रूप से समय निकालते थे।
अच्छा जीवनसाथी स्वयं एक बहुत बड़ा वरदान या उपहार है। यदि किसी को अच्छा जीवनसाथी मिल गया है तो उसको इसपर ईश्वर का आभार व्यक्त करना चाहिए। जिस प्रकार से हम ईश्वर की ओर से प्रदान की गई बहुत सी अनुकंपाओं पर उसका आभार व्यक्त करते हैं उसी प्रकार से हमें अच्छा जीवनसाथी मिलने पर अवश्य ईश्वर का आभार व्यक्त करना चाहिए। वास्तव में अच्छा जीवनसाथी बहुत बड़ी विभूति है किंतु बहुत से लोग पूरा जीवन व्यतीत करने के बावजूद इसके महत्व को समझ नहीं पाते। अच्छे जीवनसाथी की प्राप्ति पर केवल धन्य कहना पर्याप्त नहीं है। इमाम ख़ुमैनी कहते हैं कि केवल शुक्र कहने और सजदा करने से काम नहीं चलेगा बल्कि शुक्र या आभार का अर्थ यह है कि मनुष्य उस अनुकंपा के महत्व को समझे और उसको जाने। मनुष्य को समझना चाहिए कि यह अनुकंपा ईश्वर ने उसे दी है अतः उसका आभार इस प्रकार से व्यक्त किया जाए जिससे ईश्वर प्रसन्न हो। विवाह भी एक ईश्वरीय अनुकंपा है जिसमें अच्छा जीवनसाथी उससे भी बड़ी अनुकया है। जब ईश्वर ने तुमको अच्छी जीवन साथी दिया है तो फिर देने वाले का शुक्र अदा करना चाहिए।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम जीवनसाथी के महत्व का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि जीवनसाथी का तुम्हारे जीवन में महत्व यह है कि वह तुमहारे लिए शांति का स्रोत है। ऐसे में पति को पत्नी और पत्नी को पति के प्रति आभार व्यक्त करना चाहिए। तुम्हारे लिए यह ज़रूरी है कि तुम ईश्वर की दी गई अनुकंपा पर आभार व्यक्त करो। अपने जीवनसाथी के साथ अच्छा व्यवहार करे चाहिए। उसकी भावनाओं को समझाने का प्रयास करों। उसकी योग्यता और क्षमता से अधिक की मांग न करना।