Jun ०२, २०१९ १६:३७ Asia/Kolkata

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामनेई ने नैतिकता का जो दर्स दिया है आज के कार्यक्रम में हम उसके कुछ अंश को पेश कर रहे हैं।

अलबलाओ मुवक्केलुन बिलमंतिक मंतिक यानी बात करना। पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं कि विपत्ति बात करने की मुवक्किल है जैसेकि किसी चीज़ को आसमान में लटका दिया गया है और वह किसी भी समय नाज़िल हो सकती है उसका नाज़िल होना किसी चीज़ पर निर्भर है जिस चीज़ पर निर्भर है वह बात है।

इस वाक्य का अर्थ यह है कि जीवन की बहुत सी विपत्तियां चाहे वे प्राकृतिक हों, सामाजिक हों, नैतिक हों या राजनीतिक। ये सबकी सब विपत्तियां हैं ये सब हमारे और आपके बात करने पर निर्भर हैं।

जब हम बात करते हैं तो कभी हमारी बातें ईश्वरीय मापदंड के अनुसार नहीं होती हैं जैसे दूसरों की बुराई करना, अफवाह फैलाना, झूठ बोलना और आरोप लगाना। इसी तरह जब हम बात करते हैं तो कभी हमारी बातें ईश्वरीय मानदंड के अनुसार होती हैं। इंसान जितनी भी बातें करते हैं उन सबको हर जगह ज़बान पर नहीं लाना चाहिये। कभी इस प्रकार की बातें विपत्ति या बुराई हो जाने का कारण बनती हैं। हमें सोच समझ कर बोलना चाहिये। इस दौर में यह बात और महत्वपूर्ण हो जाती है जब सामूहिक संचार माध्यम और संपर्क बहुत अधिक हो गये हैं। हर बात हर जगह नहीं करनी चाहिये। यद्यपि वह बात हराम न हो तब भी नहीं करनी चाहिये। न दूसरों की बुराई है ,न दूसरों पर आरोप, बात सही व सच है तब भी नहीं कहना चाहिये। विशेषकर आज की उस स्थिति के दृष्टिगत जो हमने बयान किया है कि आज संपर्क की दुनिया है। कभी दो आदमी बात करते हैं और यह बात दोनों आदमी के बीच रहती है तो शायद कोई समस्या पेश न आये और उसमें कोई हरज नहीं है परंतु आज जो इलेक्ट्रांनिक संसाधन और इंटरनेट है उससे इस बात की संभावना है कि यह दो आदमी के बीच होने वाली वार्ता बड़े पैमाने पर फैल जाये। तो इस बात का बहुत ध्यान रखने की ज़रूरत है कि क्या कहें, किससे कहें और किस तरह कहें? 

पैग़म्बरे इस्लाम एक स्थान पर फरमाते हैं कि अगर विश्वास के साथ धैर्य कर सकते हो तो करो।

एक समय इंसान एक घटना में धैर्य करता है, एक समय विपत्ति पर धैर्य करता है, एक समय ईश्वरीय आदेशों के पालन करने पर धैर्य करता है और एक समय पाप न करने पर धैर्य से काम लेता है। ये सब धैर्य के प्रकार हैं।

अगर विश्वास के साथ धैर्य कर सकते हो तो करो मान लीजिये कि इंसान पर कोई विपत्ति नाज़िल होती है और इंसान विश्वास के साथ धैर्य करता है तो यह उसके लिए लाभदायक है या इंसान ईश्वरीय आदेशों के अनुपालन पर धैर्य से काम लेता है। एक कार्य को ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने के लिए अंजाम देना कठिन है, इंसान इस कठिनाई को सहन करता है और वह यह जानता है कि ईश्वर के निकट इसका पुण्य है। इसी तरह इंसान पाप न करने पर धैर्य करता है और उसका धैर्य विश्वास के साथ होता है, इंसान प्रतिरोध करता है और परिणाम पर उसका विश्वास होता है। इस प्रकार का धैर्य बहुत कठिन नहीं है जब इंसान धैर्य के परिणाम को जानता है तो धैर्य इंसान के लिए सरल हो जाता है किन्तु अगर धैर्य के साथ विश्वास नहीं कर सके और उसके परिणाम व लाभ पर भी विश्वास न हो तब भी धैर्य करो चूंकि ईश्वर ने धैर्य करने का आदेश दिया है। उस चीज़ पर धैर्य का इंसान के लिए बहुत लाभ है जो इंसान को पसंद नहीं है। उस चीज़ पर धैर्य इंसान के लिए बहुत लाभदायक है। स्वयं धैर्य करना, बीमारी पर धैर्य करना, गरीबी व निर्धनता पर धैर्य करना और उन कठिनाइयों व विपत्तियों पर धैर्य करना जो इंसान के जीवन में पेश आती हैं।

यहां इस बात का उल्लेख ज़रूरी है कि धैर्य के साथ हमेशा सफलता है। जहां दुश्मन के साथ एक मुकाबला हो। अगर आप ने धैर्य किया यानी कठिनाइयों को सहन किया और प्रतिरोध किया तो निश्चित रूप से सफलता भी उसके साथ है।

 

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