क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-742
क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-742
فَأَقِمْ وَجْهَكَ لِلدِّينِ حَنِيفًا فِطْرَةَ اللَّهِ الَّتِي فَطَرَ النَّاسَ عَلَيْهَا لَا تَبْدِيلَ لِخَلْقِ اللَّهِ ذَلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ (30)
तो (हे पैग़म्बर!) सत्य की ओर उन्मुख होकर अपना रुख़ धर्म की ओर जमाए रखिए। (यह) ईश्वर की प्रकृति है जिसके आधार पर उसने लोगों को पैदा किया है। ईश्वर की रचना में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। यही ठोस धर्म है किन्तु अधिकतर लोग नहीं जानते। (30:30)
مُنِيبِينَ إِلَيْهِ وَاتَّقُوهُ وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَلَا تَكُونُوا مِنَ الْمُشْرِكِينَ (31)
(तुम भी) उसकी ओर उन्मुख होने वाले रहो, उसका डर रखो, नमाज़ स्थापित करो और अनेकेश्वरवादियों में से न रहो। (30:31)
مِنَ الَّذِينَ فَرَّقُوا دِينَهُمْ وَكَانُوا شِيَعًا كُلُّ حِزْبٍ بِمَا لَدَيْهِمْ فَرِحُونَ (32)
उन लोगों में से जिन्होंने अपने धर्म को बिखेर दिया और गुटों में बँट गए, हर गुट के पास जो कुछ है, उसी में वह मग्न है। (30:32)
وَإِذَا مَسَّ النَّاسَ ضُرٌّ دَعَوْا رَبَّهُمْ مُنِيبِينَ إِلَيْهِ ثُمَّ إِذَا أَذَاقَهُمْ مِنْهُ رَحْمَةً إِذَا فَرِيقٌ مِنْهُمْ بِرَبِّهِمْ يُشْرِكُونَ (33)
और जब लोगों को कोई हानि पहुँचती है तो वे तौबा करते हुए अपने पालनहार को पुकारते हैं। फिर जब वह उन्हें अपनी दया का स्वाद चखा देता है तो उनमें से कुछ लोग अपने पालनहार का समकक्ष ठहराने लगते हैं। (30:33)
لِيَكْفُرُوا بِمَا آَتَيْنَاهُمْ فَتَمَتَّعُوا فَسَوْفَ تَعْلَمُونَ (34)
ताकि इस प्रकार वे उसके प्रति कृतघ्नता दिखाएँ जो कुछ हमने उन्हें दिया है। तो मज़े उड़ा लो, शीघ्र ही तुम्हें पता चल जाएगा। (30:34)