Jun ३०, २०१९ १३:०५ Asia/Kolkata

इससे पहले हमने असंगठित युद्ध में डाक्टर मुस्तफा चमरान की शूरवीरता को बयान किया था।

इसी प्रकार हमने यह भी बताया था कि उन्होंने सोसन्गिर्द नगर को सद्दाम की अतिक्रमणकारी सेना के परिवेष्टन से किस प्रकार आज़ाद कराया था।

हुवैज़ा खुज़िस्तान प्रांत का एक छोटा सा नगर है। इस शहर के रणबांकुरों ने नगर की रक्षा में जो कुर्बानियां दी हैं वह परित्याग और बलिदान के इतिहास में अमर हो गयी हैं। सद्दाम की अतिक्रमणकारी सेना ने 31 सितंबर 1980 को ईरान पर हमला आरंभ किया था। इस हमले के आरंभिक चार महिनों में हुवैज़ा का नाम दो लोगों के बलिदान व परित्याग से जुड़ गया है एक 12 वर्षीय छात्रा सेहाम ख़य्याम और दूसरे इस्लामी क्रांति संरक्षक बल सिपाहे पासदारान के कमांडर सैयद हुसैन अलमुल होदा से।

शहीद सेहाम खय्याम पांचवीं क्लास की छात्रा थी। उसे अतिक्रमणकारी इराकी सैनिकों ने उस वक्त गोलीमार कर शहीद कर दिया जब वह उनकी ओर पत्थर फेंक रही थी।

हुवैज़ा के लोग अरबी और फारसी दोनों भाषाओं में बात करते हैं। इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद इराक की बासी सरकार ने हुवैज़ा नगर में ईरान की नवगठित इस्लामी व्यवस्था के खिलाफ खुल्लम- खुल्ला गतिविधियां आरंभ कर दी। उसकी एक बहुत बड़ी वजह यह थी कि चूंकि हुवैज़ा नगर के अधिकांश लोग अरबी भाषा में बात करते हैं ऐसे में सद्दाम ने सोचा की ज़बान का लाभ उठाकर हुवैज़ा को बड़ी आसानी से इराक में मिला सकता है इस दृष्टि से हुवैज़ा इराक के लिए विशेष महत्व रखता था। बहरहाल सद्दाम ने हुवैज़ा में अरबवाद का बीज बोना आरंभ कर दिया ताकि सरलता से अपने लक्ष्य को साध सके। इसी प्रकार सद्दाम हुवैज़ा में एसे तत्वों की खोज में था जो उसके लिए जासूसी और विध्वंसक कार्यवाहियां कर सकें परंतु सद्दाम अरबवाद का बीज बोने में विफल हो गया और उसे हुवैज़ा के लोगों के साहसिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। मर्द, औरत, बूढ़े, जवान और इसी प्रकार फारसी और अरबी बोलने वाले सबके सब इराक की अतिक्रमणकारी सेना के मुकाबले में अदम्य साहस के साथ डट गये और उन्होंने शूरवीरता का अविस्मरणीय इतिहास रच दिया।

सेहाम खय्याम 12 वर्षीय छात्रा थी जो इराक की अतिक्रमणकारी सेना द्वारा हुवैज़ा नगर पर कब्ज़ा कर लिये जाने के बाद अतिक्रमणकारी सैनिकों के मुकाबले में डट गयी। एक दिन उसने अपने आंचल में पत्थर के छोटे- छोटे टुकड़ों को भरा और उसे अतिक्रमणकारी सैनिकों की ओर फेंकना आरंभ किया। उसका यह कार्य देखकर अतिक्रमणकारी सैनिक क्रोधित हो गये और उन्होंने सेहाम खय्याम के सिर में गोली मारी। वह ज़मीन पर गिर पड़ी। उसका शरीर खून से लथ- पथ हो गया और उसके पास की ज़मीन खून से रंगीन हो गयी। सेहाम खय्याम की शहादत का दृश्य देखकर हुवैज़ा के लोगों का क्रोध आग की चिंगारी की तरह फूट पड़ा। इस प्रकार सेहाम खय्याम शहीद हो गयी और उसका नाम पवित्र रक्षा के अमर शहीदों की सूची में शामिल हो गया।

        

सैयद हुसैन अलमुल होदा

            

सैयद हुसैन अलमुल होदा इस्लामी क्रांति संरक्षक बल के वह कमांडर हैं जिनका नाम हुवैज़ा नगर के रणबांकुरों के इतिहास में शामिल है। इराक़ द्वारा ईरान पर हमले के बाद वह भी अतिक्रमणकारी सेना का मुकाबला करने के लिए खुज़िस्तान प्रांत गये थे। सुसंगर नगर का परिवेष्टन समाप्त हो जाने के बाद सैयद हुसैन अलमुल होदा अहवाज़ नगर के कुछ जवानों के साथ हुवैज़ा पहुंचे थे। सैयद हुसैन अलमुल होदा और उनके साथ गये जवानों की ज़िम्मेदारी हुवैज़ा में संरक्षक बल सिपाहे पासदारान को संगठित करना था। सैयद हुसैन अलमुल होदा कमांडर थे और उनकी उपस्थिति सबके लिए आशाजनक थी। उनके नेतृत्व में हुवैज़ा नगर में नस्र नाम का सैन्य अभियान किया गया जो विफल रहा। सैयद हुसैन अलमुल होदा और उनके नेतृत्व में काम करने वाले जवान इराकी टैंकों के परिवेष्टन में आ गये। इराकी टैंक सैयद हुसैन अलमुल होदा के मोर्चे के 50 मीटर निकट तक आ गये। इन टैंकों में जो सबसे निकट था सैयद हुसैन अलमुल होदा ने उसे लक्ष्य बनाकर ध्वस्त कर दिया। शेष दूसरे टैंकों ने मोर्चों पर गोलों की बारिश कर दी जिसके कारण सैयद हुसैन अलमुल होदा के सभी साथी शहीद हो गये। सैयद हुसैन अलमुल होदा पूरी मज़बूती और अदम्य साहस के साथ दोबारा अपनी जगह से खड़े हुए और दूसरे मोर्चे के पास गये। जिस समय वह दूसरे मोर्चे के पास जा रहे थे उनके पास आरपीजे के केवल दो गोले बचे थे। उन्होंने पहला गोला फायर किया। जब चार टैंक उनके मोर्चे के 10 मीटर निकट पहुंच गये थे तो इस शूरवीर ने आरपीजी का अंतिम गोला उनकी ओर रवाना किया जिससे एक टैंक तबाह हो गया। बाकी तीन दूसरे टैंकों ने एक साथ सैयद हुसैन अलमुल होदा के मोर्चे को लक्ष्य बनाया और वह वीरगति को प्राप्त हो गये।

इराक़ के अतिक्रमणकारी सैनिकों ने सैयद हुसैन अलमुल होदा और उनके साथियों के शरीर के ऊपर से टैंकों को गुज़ार दिया। इस प्रकार से कि उनके शरीर का कोई चिन्ह बाकी नहीं रहा। सैयद हुसैन अलमुल होदा और उनके साथियों की शहादत के 16 महीने बाद दोबारा इस क्षेत्र में बैतुल मुकद्दस नामक सैन्य कार्यवाही की गयी जिसमें इस क्षेत्र को इराक के अतिक्रमणकारी सैनिकों से दोबारा वापस ले लिया गया और खोजी दल के प्रयास से बड़ी कठिनाइ से उनके शवों के अवशेषों को पहचाना गया। सैयद हुसैन अलमुल होदा के साथ एक पवित्र कुरआन था जिस पर स्वर्गीय इमाम खुमैनी और वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई के हस्ताक्षर थे। सैयद हुसैन अलमुल होदा की वसीयत के अनुसार उन्हें और उनके साथियों को वहीं दफ्न कर दिया गया जहां वे शहीद हुए थे और उनकी याद में उनकी समाधि पर स्मारक भवन का निर्माण कर दिया गया। प्रति वर्ष हज़ारों लोग इस स्मारक का दर्शन करते और उनकी तथा उनके साथियों की कुर्बानी को याद करते हैं।

इराक के अतिक्रमणकारी सैनिकों ने हुवैज़ा नगर पर कब्ज़ा करने के बाद इस नगर को बर्बाद कर दिया यहां तक कि एक दीवार भी इस नगर में बाकी न बची। यह छोटा सा नगर था परंतु ईरानी जनता के प्रतिरोध और साहस का बहुत बड़ा मोर्चा था जिसे सद्दाम के अतिक्रमणकारी सैनिकों ने पूरी तरह बर्बाद कर दिया और एक विदेशी के कथनानुसार जो इसके निरीक्षण के लिए गया था हुवैज़ा की गणना सद्दाम के अपराधों के संग्रहालय में करना चाहिये। जिस समय सैयद हुसैन अलमुल होदा हुवैज़ा में शहीद हुए थे इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई उस समय हुवैज़ा में मौजूद थे और वह “हमासये हुवैज़ा” नाम की किताब की प्रस्तावना में लिखते हैं इस शौर्यगाथा से जो पाठ मिलता है वह समस्त राष्ट्रों और समस्त मानवीय पीढियों के लिए है, यह महापुरूषों की मर्दान्गी के प्रतिरोध का पाठ है जिन्होंने अपने फौलादी इरादों और उच्च मानवीय शक्ति को ईश्वरीय इरादे से जोड़ लिया और पूरी जागरूकता के साथ परित्याग व बलिदान के मैदान में कदम रखा और दुश्मन के साथ रणक्षेत्र को अपने खून से रंगीन कर दिया।"

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