Jul ०९, २०१९ ११:५० Asia/Kolkata

बहुत से लोग हमारे जीवन में आते और चले जाते हैं परंतु जीवन की सुन्दरता यह है कि हमारा परिवार सदैव हमारे साथ रहता है।

वही लोग परिवार हैं जो आपको अपना समझते हैं और आपको उसी तरह स्वीकार करते हैं जिस तरह आप हैं और आपको खुश करने के लिए हर कार्य करते हैं।

हमने कहा था कि इंसान जिस चीज़ की सबसे अधिक आवश्यकता का आभास करता है वह यह है कि कोई उसका जीवन साथी हो ताकि उसके साथ शांति का आभास करे, उससे प्रेम करे, अपने दिल की बात उससे कर सके और उसके लिए जो कुर्बानियां देता है वह उसका बदला दे सके। इस प्रकार इंसान की इस आवश्यकता का सही ढंग से प्रबंधन किया जाना चाहिये। अमेरिकी मनोचिकित्सक माज़लो शारीरिक आवश्यकता को इंसान की सबसे पहली आवश्कता समझते हैं जिसमें खाना, पानी और यौन इच्छा आदि शामिल है।

जो चीज़ इस प्रकार की मांग व आवश्यकता की सर्वोत्तम ढंग से पूर्ति कर सकती है वह विवाह है। ईश्वरीय धर्म इस्लाम में विवाह पर बहुत बल दिया गया है। अगर इंसान की आंतरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विवाह न किया जाये और जीवन साथी का चयन न किया जाये तो जो युवा लड़के और लड़कियां हैं उन्हें बहुत बड़ी समस्याओं का सामना होगा है और उनकी भरपाई लगभग असंभव होगी। इसी कारण इस समय के जो परिवार हैं उनकी एक गम्भीर चिंता परिवार के परिप्रेक्ष्य से बाहर जवान लड़के और लड़कियों के मध्य विस्तृत होते संबंध हैं। नूतनता, दूसरी संस्कृतियों का प्रभाव, नगरों में विस्तार, छोटे नगरों और गांवों में रहने वालों का बड़े नगरों की ओर पलायन आदि वे चीज़ें हैं जो सामाजिक मूल्यों की सीमायें खत्म कर रही हैं। आज की जो दोस्तियां होती हैं जवान लड़कों और लड़कियों के कथनानुसार वे एक दूसरे से परिचित होने और टाइम पास करने के लिए होती हैं और कभी अपने कार्यों का औचित्य दर्शाने के लिए वे कहते हैं  कि विवाह करना है इसके लिए अधिक पहचान की आवश्यकता है पंरतु अंत में लड़कियों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचता है।

लड़के और लड़कियों के मध्य जो संबंध हैं उसके लिए हर समाज में एक परिभाषा है। उदाहरण के तौर पर पश्चिमी और ग़ैर इस्लामी समाजों में लड़के और लड़कियों के मध्य जो संबंध हैं वे उन्हीं पर छोड़ दिये गये हैं। यानी यह कार्य उन्हें पर छोड़ दिये गये हैं कि वे आपसी सहमति से जिससे चाहें दोस्ती करें। यद्यपि पश्चिमी मनोचिकित्सक लड़के और लड़कियों के मध्य संबंधों से सहमत हैं परंतु उन्होंने परिवार और यौन संबंधों आदि के बारे में जो किताबें और लेख लिखे हैं उनमें उन्होंने इस प्रकार की दोस्ती और संबंधों के दुष्परिणामों को बयान किये हैं। लड़के और लड़कियों के मध्य दोस्ती और संबंधों की आज़ादी का नतीजा बहुत सी शारीरिक बीमारियां, गर्भपात और बच्चों को एसे ही छोड़े देनी जैसे बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और ये वे समस्याएं हैं जिनका पश्चिमी देशों विशेषकर अमेरिका को सबसे अधिक सामना है।

मौजूद आंकड़ों के अनुसार अवैध संबंधों से गर्भवती होने वाली महिलाओं व लड़कियों में अमेरिका सबसे आगे है और जो लोग शारीरिक संबंधों के कारण विभिन्न प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हैं उनमें प्रतिवर्ष एक करोड़ 90 लाख लोगों की वृद्धि हो रही है। आज विश्व के हर देश की तुलना में सबसे अधिक तलाक अमेरिका में होता है जो इस देश में पारिवारिक संबंधों के सबसे अधिक कमज़ोर होने का चिन्ह है।

वास्तविकता यह है कि यौन आज़ादी सामाजिक समस्याओं व अपराधों के अस्तित्व में आने का महत्वपूर्ण कारण है। एलेक्सिस कार्ल कहते हैं कि यौन इच्छा, बेताज बादशाह की भोति है राष्ट्रों का इतिहास अधिकांश परिवारों के यौन संबंधों की भांति है। बहुत से मर्दों ने अपनी काम वासना की पूर्ति के लिए अपनी सम्पत्ति और प्रतिष्ठा सबसे हाथ धो लिया।"

श्रोताओ कार्यक्रम के एक श्रोता ने इस संबंध में इस्लामी दृष्टिकोण को जानना चाहा। इस संदर्भ में इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि इस्लाम एक परिपूर्ण व परिपक्व धर्म के रूप में कानूनी संबंधों की दिशा में न केवल किसी प्रकार की बाधा व रुकावट नहीं है बल्कि कानून के परिप्रेक्ष्य में होने वाले संबंधों को वैचारिक, अध्यात्मिक और बौद्धिक परिपूर्णता का कारण समझता है और इस्लाम धर्म में लड़के व लड़कियों के मध्य अवैध व ग़ैर कानूनी संबंधों का कोई स्थान नहीं है। दूसरे शब्दों में इस्लाम जवान लड़के और लड़कियों के अवैध तरीके से एक दूसरे के साथ रहने का विरोधी है। इस्लाम धर्म समाज के समस्त लोगों का सही ढंग से जीवन व्यतीत करने और कानूनी ढंग से अपनी मांगों की आपूर्ति का आह्वान करता है।

इस्लाम धर्म की शिक्षाओं व आदेशों में लड़के और लड़कियों के जीवन के समस्त पहलुओं व ज़रूरतों को ध्यान में रखा गया है। अतः समाज की परिस्थिति के दृष्टिगत इस्लाम एक समूचित व तार्किक सुझाव पेश करता है ताकि यह संबंध कानूनी हों चाहे वे थोड़े ही समय के लिए क्यों न हों। इस्लाम के अनुसार विपरीत सेकस की ओर रुझान और उसकी पहचान इंसान की प्राकृतिक व मानसिक ज़रूरत है और संस्कृति व समाज उसकी सीमा को निर्धारित करते हैं। जिन देशों में पारिवारिक संबंधों के आधार इस्लामी शिक्षाएं हैं वहां बालिग होने के आरंभ से ही महरम व नामहरम अर्थात अपने और पराये मर्दों और औरतों के विषय को ध्यान में रखा जाता है। इस्लामी शिक्षाओं में जहां महिला को पर्दा करने के लिए कहा गया है वहीं पुरुष को पराई महिला को देखने से मना किया गया है। इसी प्रकार इस्लामी शिक्षाओं में आया है कि इस्लामी आवरण के साथ महिला सामाजिक गतिविधियों में भाग ले सकती है।

इस्लाम में अस्थाई विवाह का भी प्रावधान है। इस्लामी आदेशों और शीया धर्मशास्त्र की पुस्तकों में इस विषय का विस्तार से उल्लेख है। अलबत्ता मुसलमानों के कुछ एसे भी लोग व संप्रदाय हैं जो इसे बुरा समझते और इसकी निंदा करते हैं। अस्थाई विवाह भी एक कानूनी व धार्मिक विवाह है। इसकी कुछ विशेषताएं व शर्तें हैं। हालांकि वह स्थाई विवाह का स्थान कभी नहीं ले सकता और इससे वह अपेक्षाएं नहीं रखी जा सकतीं जो स्थाई विवाह से रखी जाती हैं।

अस्थाई विवाह स्थाई विवाह की तरह है। इसके कुछ विशेष अधिकार व शर्तें हैं जिनका मर्द और औरत दोनों को ध्यान रखना पड़ता है। इस प्रकार दोनों अपनी मानवीय प्रतिष्ठा की सुरक्षा करते हैं। उस्ताद शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी कहते हैं" अस्थाई विवाह को धार्मिक व कानूनी इसलिए बनाया गया है क्योंकि स्थाई विवाह हर स्थिति और हर हाल में इंसान की ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं है और केवल स्थाई विवाह के ज़रूरी होने से यह आवश्यकता पेश आती है कि लोग कुछ समय के लिए सन्यासी व वैरागी बन जायें या पूरी तरह यौन दुराचार में डूब जायें। स्पष्ट है कि जब किसी भी लड़की या लड़के के लिए स्थाई विवाह की भूमि प्रशस्त होगी तो वह कभी भी अस्थाई चीज़ में स्वयं को वयस्त नहीं करेगा।"

प्रतीत यह हो रहा है कि स्थाई विवाह में जो चीज़ सबसे अधिक इस्लाम के दृष्टिगत है वह परिवार का गठन, संतान पैदा करना और अच्छी संतान का प्रशिक्षण है जबकि अस्थाई विवाह में अधिकांशतः लक्ष्य यौन इच्छा व काम वासना की पूर्ति होती है और उसका अस्ली उद्देश्य संतान पैदा करना नहीं होता इस प्रकार के अस्थाई विवाह को मुताह कहा जाता है। स्थाई और अस्थाई विवाह के परिणाम कुछ चीज़ों में समान हैं  जबकि कुछ चीज़ों में एक दूसरे से भिन्न हैं। जो चीज़ दोनों को एक दूसरे से भिन्न करती है उनमें से एक यह है कि अस्थाई विवाह में मर्द और औरत दोनों एक दूसरे से नियत समय तक विवाह करने का फैसला लेते हैं और इसके बाद वह चाहें तो इसकी अवधि में वृद्धि कर सकते हैं या नियत समय के समाप्त होने पर एक दूसरे से अलग हो जाते हैं। अस्थाई विवाह में दूसरी चीज़ जो दोनों विवाहों को एक दूसरे से भिन्न करती है यह है कि मर्द और औरत अधिक आज़ादी के साथ शर्तें लगा सकते हैं। मिसाल के तौर पर स्थाई विवाह में मर्द की ज़िम्मेदारी यह है कि वह औरत के खर्चे को दे चाहे वह देना चाहे या न देना चाहे परंतु महिला के खर्च को देना मर्द पर अनिवार्य है जबकि अस्थाई विवाह में एसा नहीं है बल्कि उसका संबंध इस बात से है कि अस्थाई विवाह में मर्द और औरत ने विवाह से पहले क्या शर्त रखी थी। यह संभव है कि मर्द महिला के खर्च को देना ही नहीं चाहता या देना उसके लिए संभव नहीं है। इसी तरह यह भी संभव है कि महिला मर्द के पैसे का प्रयोग ही नहीं करना चाहती है।

कार्यक्रम के अंतिम भाग में हम आपका ध्यान पवित्र कुरआन के सूरे तहरीम की तीसरी आयत की ओर दिलाते हुए इस बिन्दु को बताना चाहते हैं कि परिवार उस समय तक प्रसन्न व स्वस्थ रह सकता है जब परिवार के सदस्य एक दूसरे के अधिकारों से अवगत हों। पवित्र कुरआन के व्याख्याकर्ताओं ने इस आयत की व्याख्या में लिखा है कि एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी एक पत्नी से एक बात बताई और उनसे कहा कि यह बात किसी दूसरे को न बताना यहां तक कि उनकी दूसरी पत्नी ही क्यों न हो परंतु पैग़म्बरे इस्लाम की उस पत्नी ने कुछ ही दिनों के बाद पैग़म्बरे इस्लाम की दूसरी पत्नी से यह बात बता दी। महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने वहि के माध्यम से पैग़म्बरे इस्लाम को इस बात से सूचित कर दिया। महान ईश्वर इस घटना को बयान करते हुए पवित्र कुरआन में कहता है उस समय को याद करो जब पैग़म्बर ने अपने राज़ की एक बात अपनी एक पत्नी की बताई पंरतु जब उसने बात खोल दी तो ईश्वर ने अपने पैग़म्बर को इस बात से सूचित कर दिया उसके कुछ भाग को पैग़म्बर को बताया जबकि कुछ को बताने से परहेज़ किया। जब पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी पत्नी से यह बात बताई तो वह बड़े अचरज से कहने लगी कि यह बात आपको किसने बताई? तो पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कि सर्वज्ञाता ईश्वर ने हमें सूचित किया है।

पवित्र कुरआन की यह आयत इस बात की सूचक है कि अमानतदारी केवल पैसे, प्रापर्टी और पति के जीवन की दूसरी चीज़ों की नहीं होती है। पत्नी को चाहिये कि पति की प्रतिष्ठा की सुरक्षा को भी महत्व दे और उन राजों को भी फाश न करे जिन्हें संभवतः पति किसी को नहीं बताना चाहता। पति- पत्नी को चाहिये कि एक दूसरे की प्रतिष्ठा का सम्मान करें। पत्नि को इस बात की अनुमति नहीं है कि वह अपने पति के भेदों को दूसरों से बयान करे।

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